स्वास्थ्य शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
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स्वास्थ्य शिक्षा की आवश्यकता
विद्यालय में स्वास्थ्य शिक्षण
विद्यालयों में स्वास्थ्य शिक्षण का ज्ञान छात्रों को देना उतना ही आवश्यक है, जितना कि अन्य विषयों का स्वास्थ्य रक्षा के अन्तर्गत व्यायाम तथा खेल-कूद के अतिरिक्त छात्रों के लिए स्वास्थ्य शिक्षा भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। किसी भी राष्ट्र की उन्नति के लिए उस देश के नागरिकों का स्वस्थ होना बहुत जरूरी है। जिस देश में छात्रों के स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया जायेगा, उस देश का नैतिक पतन होगा तथा वहाँ के नागरिकों का शरीर निर्बल तथा अशक्त होगा। ऐसा देश प्रगति के पथ पर नहीं चल सकता। इसलिए विद्यार्थियों के स्वास्थ्य पर ध्यान देना आवश्यक है। विद्यालयों में स्वास्थ्य शिक्षण की विधि स्वास्थ्य शिक्षण को पाठशालीय शिक्षा का एक अंग मानते हुए स्वास्थ्य शिक्षण निम्न प्रकार से पाठशाला में विद्यार्थियों को दिया जाये-
1. छात्रों में स्वास्थ्य सम्बन्धी आदतों का विकास- छात्रों को स्वास्थ्य शिक्षण देने का सबसे अच्छा और मनोवैज्ञानिक तरीका है—छात्रों में स्वास्थ्य सम्बन्धी आदतों का विकास करना और उन्हें प्रोत्साहन देना। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि छात्र विद्यालय तथा घर पर कुछ अच्छी स्वस्थ आदतें सीखें। यह तभी सम्भव हो सकता है जब छात्र के शिक्षक तथा अभिभावक स्वयं स्वस्थ आदतें रखें। यदि विद्यालय का वातावरण एवं विद्यालय भवन साफ होंगे तो बच्चे भी सफाई से रहना पसन्द करेंगे। सफाई से रहने से बालक के स्वास्थ्य पर अच्छा तथा स्वास्थ्यवर्धक प्रभाव पड़ेगा।
2. छात्रों को स्वास्थ्य शिक्षण- अन्य विषयों के शिक्षण की तरह ही छात्रों को स्वास्थ्य-शिक्षण भी दिया जाना चाहिए। स्वास्थ्य शिक्षण की कक्षाओं में छात्रों को स्वास्थ्य के सामान्य नियमों का ज्ञान देना तथा उनको व्यवहार में लाने की बातें सिखाई जानी चाहिएँ। स्वास्थ्य शिक्षण के अन्तर्गत छात्रों का सामान्य स्वास्थ्य निरीक्षण भी होता रहे। प्रतिदिन विद्यार्थी के शरीर तथा कपड़ों का निरीक्षण होना चाहिए। गन्दे कपड़ों में बिना स्नान के आने वाले छात्रों को टोका जाना चाहिए तथा उन्हें स्वास्थ्य के लाभ से परिचित कराना चाहिए।
3. व्यायाम तथा शारीरिक शिक्षा- छात्रों को व्यायाम तथा शारीरिक शिक्षा का ज्ञान देना भी उतना ही आवश्यक है, जितना कि पाठ्य पुस्तकों का सामान्य ज्ञान देना। स्वास्थ्य शिक्षा के अन्तर्गत व्यायाम तथा शारीरिक शिक्षा का ज्ञान देना किसी शिक्षक विशेष का कार्य नहीं होना चाहिए अर्थात् व्यायाम या शारीरिक शिक्षा के शिक्षक पर ही इसकी जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए। छात्रों के शारीरिक विकास के कार्यक्रम समय-समय पर होते रहने चाहिए। शिक्षक वर्ग का यह कर्त्तव्य है कि वे इसमें सक्रिय योगदान दें। छात्रों को शुरू से ही शरीर रक्षण के उपायों का ज्ञान देते हुए व्यायाम की उपयोगिता से भी परिचित करा देना चाहिए। पाठशाला में व्यायाम तथा योग के आसनों का प्रदर्शन भी होना चाहिये ।
4. स्वास्थ्य शिक्षा पुस्तकों एवं निर्देशों द्वारा – स्वास्थ्य रक्षा पर बहुत-सी पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं और बहुत-सी पुस्तकें अब भी लिखी जा रही हैं। इन पुस्तकों को पढ़ने से छात्रों को बहुत लाभ हो सकता है। इसके माध्यम से वे बहुत-सी अच्छी आदतें तथा स्वास्थ्य-रक्षा के उपाय सीख सकते हैं। स्वास्थ्य सम्बन्धी पुस्तकों में अच्छी से अच्छी पुस्तकों को छाँट कर विद्यालय के पुस्तकालय में रखा जाय और छात्रों को उन्हें पढ़ने की सलाह दी जाये। इसी प्रकार समय-समय में पर स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों की तरफ से स्वास्थ्य रक्षा के नियमों तथा निर्देशों की जानकारी भी छात्रों को होती रहनी चाहिए।
5. समाज सेवा कार्यक्रम द्वारा – छात्रों को उनकी रुचि के अनुसार समाज सेवा के कार्यक्रमों में लगाया जाना चाहिए। कोई भी ज्ञान अथवा शिक्षा उस समय तक सफल नहीं कही जा सकती, जब तक कि व्यावहारिक रूप से उसका उपयोग न हो। स्वास्थ्य शिक्षा भी छात्रों को व्यावहारिक रूप से दी जानी चाहिए। समाज सेवा कार्यक्रम के अन्तर्गत छात्र ऐसे नगरों तथा गाँवों में जाकर स्वयं सफाई का कार्य करें, जहाँ गन्दगी बहुत रहती हो एवं रोग फैलते हों। इसके लिए सबसे जरूरी बात जो ध्यान में रखी जानी चाहिए वह यह है कि छात्रों में समाज सेवा के प्रति रुचि उत्पन्न करना। इससे छात्र स्वयं समाज सेवा के प्रति उत्सुक होंगे तथा ऐसे समाज सेवा के कार्यक्रमों में भाग लेंगे। इससे न केवल छात्र बल्कि पूरा समाज स्वस्थ रहने के नियमों का पालन करेगा।
6. दूरदर्शन तथा आकाशवाणी का योगदान – दूरदर्शन तथा आकाशवाणी द्वारा स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यक्रमों का प्रसारण होता रहता है। इन प्रसारणों को छात्रों तक पहुँचाना चाहिए, जिससे छात्रों में स्वास्थ्य सम्बन्धी स्वस्थ दृष्टिकोण का विकास हो सके। विद्यालय में वी० सी० आर० तथा आडियो टेप का प्रयोग करके छात्रों में स्वास्थ्य सम्बन्धी जागरूकता को उत्पन्न किया जा सकता है।
स्वास्थ्य शिक्षा का महत्त्व
शिक्षकों का यह एक महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य यह है कि वे स्वास्थ्य शिक्षा को भी उतना ही महत्त्व दें, जितना कि वे अन्य सामान्य ज्ञान की पुस्तकों को पढ़ाने पर देते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए यह देखना चाहिए कि छात्रों के पढ़ने के कक्ष स्वच्छ तथा हवादार हैं या नहीं। इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि छात्र अच्छी आदतों को ही जीवन में उतारें। स्वास्थ्य शिक्षा अथवा किसी भी शिक्षा का महत्त्व उस समय तक नहीं है, जब तक कि वह व्यवहार में न लाई जाये। स्वास्थ्य शिक्षा एक ऐसी शिक्षा है, जिसको जीवन में उतारने से निश्चित रूप से लाभ होगा। स्वास्थ्य शिक्षा न केवल छात्रों को वरन् छात्रों के अभिभावकों को भी दी जानी चाहिए। अनभिज्ञ माता-पिता अपने बच्चों का बिल्कुल ध्यान नहीं रखते हैं। इससे बालक बचपन से ही अस्वस्थ रहता है। अस्वस्थ बच्चे समाज और शिक्षक दोनों के लिए ही भार रूप हैं। इसलिए माता-पिता तथा शिक्षक का यह कर्त्तव्य है कि वे प्रारम्भिक वर्षों में बालक के स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखें। मानसिक रूप से पिछड़े बालकों का शारीरिक विकास भी प्रायः अवरुद्ध पाया जाता है। इसलिए मानसिक विकास के लिए शारीरिक विकास पर ध्यान देना अत्यन्त आवश्यक है।
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