प्रजनन की पूरी प्रक्रिया के दौरान महिला की देखभाल किस प्रकार करेंगे ?
एक परिप्रेक्ष्य में सबसे महत्त्वपूर्ण है प्रजनन की पूरी प्रक्रिया के दौरान महिला की समुचित तथा सही देखभाल हो। जैसे ही कोई खतरे के चिन्ह नजर आयें, उन्हें पहचान कर उनके निदान की समुचित व्यवस्था करनी चाहिये। पूरी प्रजनन प्रक्रिया को चार भागों में विभाजित किया गया है:
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(I) गर्भावस्था से पूर्व–
यह जानना अत्यन्त आवश्यक है कि जो महिला गर्भधारण के लिये सामाजिक रूप से तैयार है, क्या उसका शरीर भी इस अवस्था में है कि गर्भावस्था का बोझ सह सके। कुछ विशेष परिस्थितियों में गर्भधारण हानिकारक हो सकता है तथा कुछ परिस्थितियों में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। ऐसी महिलाओं को जोखिमपूर्ण समूह में रखा जाता है।
ऐसी कुछ विशेष परिस्थितियाँ हैं:
1. महिला की ऊँचाई – यह पाया गया है कि जिन महिलाओं का कद 5 फीट से कम होता है, उन्हें बच्चे के जन्म के समय कठिनाई आ सकती है, क्योंकि इन महिलाओं के Cervix का आकार सामान्य से कम होता है।”
2. अधिक गर्भपात- अगर किसी महिला को पूर्व में कई गर्भपात हो चुके हैं तो आने वाले गर्भ के प्रति अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता होगी।
3. महिला की आयु – 20 वर्ष से कम तथा 35 वर्ष से अधिक उम्र में गर्भधारण हानिकारक हो सकता है।
4. शारीरिक कमजोरी – अगर महिला शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं है और उसे रक्त अल्पता (Anaemia), अत्यधिक कमजोरी (Malnutrition), या फिर सपैदिक (TB.) जैसी कोई बीमारी है या उसका रक्त का आर० एच० फैक्टर ऋणात्मक तो नहीं है, तो उसे तब तक गर्भधारण नहीं करना चाहिये जब तक उसका सम्पूर्ण उपचार न हो जाये।
5. अधिक गर्भधारण – महिला ने जितने अधिक गर्भधारण किये होंगे, अगले गर्भ में उसे उतनी ही अधिक कठिनाई होने की सम्भावना है।
(II) गर्भावस्था के दौरान देखभाल (Antenatal Care) –
गर्भावस्था का पता चलते ही यह आवश्यक हो जाता, है कि महिला की सही देखभाल शुरू कर दी जाये। इस स्थिति में कई नियमों का पालन करना चाहिये, जिन्हें निम्नानुसार अंकित किया जा रहा है|
1. पोषण का ध्यान रखना – गर्भवती महिला को चाहिये कि वह नियमित तथा पौष्टिक भोजन ले। अगर महिला माँस-मछली तथा फल आदि का सेवन नहीं भी कर सकती है तो उसे अपने आहार में हरी पत्तेदार सब्जियाँ, दालें, दूध आदि का भरपूर सेवन करना चाहिये। समय के अनुसार धीरे-धीरे अपनी खुराक बढ़ानी चाहिये। यह ध्यान रखना आवश्यक है। कि महिला के वजन में सामान्य वृद्धि हो रही है या नहीं। यह सुनिश्चित करें कि प्रयोग में आने वाला नमक आयोडीनयुक्त हो।
2. सामान्य व्यायाम – महिला को अपना नित्य कार्य जारी रखना चाहिये और सामान्य जीवन व्यतीत करना चाहिये। यह आवश्यक है कि कोई भी भारी सामान न उठाया जाये तथा अत्यधिक थका देने वाले कार्य न किये जायें।
3. टिटनेस से बचाव के लिए टीका – गर्भावस्था का पता लगते ही फौरन टिटनेस का एक टीका गर्भवती स्त्री को लगाना चाहिये। इसके एक महीने बाद दूसरा टीका भी अवश्य लगाना चाहिये। यदि उससे पूर्व का गर्भ 3 वर्ष के भीतर हुआ हो और तब टिटनेस के दोनों टीके लगे हों तो इस गर्भ के दौरान केवल एक टीका बूस्टर के रूप में लगता है। ये महिला तथा होने वाले शिशु को टिटनेस के सम्भावित खतरे से बचाते हैं।
4. यौन सम्पर्क – गर्भवती महिला को गर्भ के पहले तीन माह तथा अन्तिम तीन माह में यौन सम्बन्धों से परहेज रखना चाहिये।
5. आयरन की गोलियाँ – सामान्यतः यह माना जाता है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में हर महिला रक्त अल्पता का शिकार होती है, इसीलिये सावधानी के तौर पर हर गर्भवती महिला को 3 माह तक प्रतिदिन एक आयरन को गोलो का सेवन करना चाहिये। यदि गम्भीर एनीमिया रक्त की जाँच द्वारा सिद्ध हो गया हो तो प्रतिदिन 2 गोली, 3 माह तक महिला को खानी चाहिये ।
6. जोखिमपूर्ण स्थिति की पहचान – यदि महिला गर्भधारण से पूर्व जोखिमपूर्ण समूह में आती है (जिसका उल्लेख पहले किया जा चुका है) तो उसे निरन्तर चिकित्सक के सम्पर्क में रहना चाहिये। इसके अतिरिक्त अगर गर्भावस्था में कोई अस्वाभाविक लक्षण दिखाई दें तो फौरन चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिये। ये अस्वाभाविक लक्षण निम्न हो सकते हैं-
- झटकें आना (Eclampsia)
- वजन का अत्यधिक बढ़ना
- हाथ-पाँव या शरीर में सूजन
- असामान्य साव या रक्तस्राव
- रतौंधी (रात में दिखाई न देना ) (Night Blindness) |
इन सभी परिस्थितियों में तुरन्त चिकित्सकीय परामर्श लेना चाहिये अन्यथा गम्भीर परिणाम हो सकते हैं। यह अत्यन्त आवश्यक है कि गर्भवती महिला का गर्भकाल के दौरान कम से कम तीन बार चिकित्सकीय परीक्षण हो ।
(III) प्रसव के दौरान देखभाल (Natal Care)
प्रसव कराना एक जटिल कार्य है। हालांकि पिछले दशकों में यह कार्य घर की प्रौढ़ औरतें अथवा दाईयाँ ही करती रही हैं, परन्तु इस सबके दौरान बहुत-सी असावधानियाँ हो जाती थीं जिनके कारण प्रसूता को अपनी जान तक गंवानी पड़ती थी। इन असावधानियों को अब पहचाना गया है तथा ग्राम स्तर पर दाईयों तक को प्रसव कराने का सही प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ऐसे में जन-साधारण का कर्तव्य बन जाता है कि प्रसव केवल प्रशिक्षित व्यक्ति द्वारा ही कराया जाये। ऐसे व्यक्ति की गर्भावस्था के दौरान ही पहचान कर देनी चाहिये तथा सम्भावित तिथियों के बारे में बता देना चाहिये।
यदि गर्भवती स्त्री की गर्भ के दौरान सही देखभाल हुई है और उसका चिकित्सकीय परीक्षण भी हुआ है तो यह पहले से पता होता है कि अधिक सम्भावना सामान्य प्रसव (Normal Delivery) की है अथवा किसी चिकित्सक की सहायता लेनी पड़ेगी। चिकित्सक सभी परिस्थितियों से स्वयं निबट सकते हैं। हम यहाँ घर पर कराये जाने वाले सामान्य प्रसव के बारे में बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में चर्चा करेंगे-
1. सफाई पर विशेष ध्यान दें- यह नितान्त आवश्यक है कि प्रसव पूरी तरह साफ-सुथरे स्थान पर कराया जाये। गन्दगी आदि से स्त्री या बच्चे को टिटनेस का खतरा बढ़ जाता है। इसके लिये यूनीसेफ ने हाल ही में 5 सफाईयों (5 Cleans) का नारा दिया है, जिनमें निम्नलिखित सफाईयाँ सम्मिलित हैं-
(i) साफ हाथ (Clean Hands) – जो हाथ प्रसव में मदद करते हों, वह साबुन तथा साफ पानी से धुले होने चाहियें। अक्सर हाथ धोये तो जाते हैं, परन्तु उन्हें कपड़े से पौंछ कर सुखाया जाता है, जो कि हाथों को पुनः गन्दा कर देता है। अतः हाथों को धोकर हवा में ही सूखने देना चाहिये।
(ii) साफ नाल बाँधने का धागा (Clean Cord Tie) – नाल बाँधने के लिए जिस धागे का प्रयोग करें, वह साफ होना चाहिये। प्रयोग में लाने से पहले धागे को 20 मिनट तक पानी में उबाल लेना चाहिये।
(iii) साफ स्थान (Clean Surface) – वह स्थान जहाँ प्रसव कराया जाना है पूरी तरह से साफ तथा घुला हुआ होना चाहिये। गाँव में अधिकतर फर्श को गोबर से लीपने की प्रथा है, जो कि पूर्णतः गलत है। इसके साथ ही, इस कमरे में कोई धुआँ धूल आदि भी नहीं होनी चाहिये ।
(iv) साफ ब्लेड (Clean Blade) – नाल काटने के लिये केवल ब्लेड का ही इस्तेमाल करना चाहिये। ब्लेड हमेशा नया होना चाहिये। इसे पानी आदि से पुनः साफ नहीं करना चाहिये।
(v) साफ नाल (Clean Cord Stump) – नाल को बाँधकर उसे ऐसे ही छोड़ देना चाहिये। उस पर तेल, घी या अन्य कोई क्रीम आदि नहीं लगानी चाहिये
(2) जटिलताओं पर विशेष नजर- यदि किसी स्थिति में प्रसव कराने वाले व्यक्ति को यह महसूस हो कि प्रसव में किसी भी तरह की जटिलता आ सकती है तो उसे फौरन किसी चिकित्सक से सम्पर्क स्थापित कर स्त्री को निकटतम चिकित्सालय में पहुँचाने की व्यवस्था करनी चाहिये। ऐसा कोई भी प्रयास, जिसके लिये वह सक्षम नहीं है, उसे नहीं करना चाहिये ।
इनमें कुछ मुख्य जटिलतायें हैं-
- बच्चे का कोई अंग फंस जाना (Obstructed labour),
- अत्यधिक रक्तस्राव ( hemorrhage),
- नाल पूरी तरह बाहर न आना (Retained placenta),
- काफी प्रसव पीड़ा के बावजूद प्रसव न होना (Prolonged labour) |
(3) जन्मे बच्चे की देखभाल – जन्मे बच्चे को तुरन्त नहला कर साफ कपड़े से उसकी आँखें-नाक आदि पोंछकर उसे लपेट देना चाहिये। यह ध्यान देना अति आवश्यक है कि बच्चे में कोई अस्वाभाविक लक्षण तो नहीं हैं, जैसे-
- बच्चे का वजन 2.5 किलोग्राम से कम तो नहीं है।
- बच्चे को साँस लेने में कोई तकलीफ तो नहीं हो रही है।
- बच्चा नीला तो नहीं पड़ गया है (Cyanosis)
- जन्मजात विकृति (Congenital malformation) तो नहीं है।
- बच्चा भली प्रकार से, तेज आवाज में से रो रहा है।
- बच्चे को कोई अन्य तकलीफ तो नहीं है।
इन सभी परिस्थितियों में तुरन्त चिकित्सकीय सहायता की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि माँ को तुरन्त बच्चे को अपना दूध पिलाना शुरू कर देना चाहिये। सामान्य प्रसव में साधारणतः माँ एक घण्टे के भीतर अपने शिशु को स्तनपान कराने में सक्षम हो जाती है। माँ का पहला दूध (Colostrum) शिशु के लिए अत्यन्त आवश्यक है। इसे बेकार समझकर फेंक दिया जाता है, जबकि यह दूध ही बच्चे को अन्य रोगों से लड़ने की शक्ति (Immunity) प्रदान करता है।
(IV) प्रसवोपरान्त देखभाल (Post Natal Care) –
प्रसव के बाद भी महिला की देखभाल की अत्यन्त आवश्यकता होती है। सबसे पहले यह आवश्यक है कि माँ अपने बच्चे को स्तनपान कराती रहे। पहले तीन माह तक शिशु को कोई अन्य आहार की आवश्यकता नहीं होती। नवीनतम सिद्धान्त कहते हैं कि पहले तीन माह तक शिशु को पानी की भी आवश्यकता नहीं होती है, यदि वह पूर्ण रूप से अपनी माँ का दूध पी रहा है। इस सिद्धान्त को ‘केवल स्तनपान‘ के नाम से प्रचलित किया जा रहा है। सरकारी अस्पतालों में इसे मान्यता मिल चुकी है तथा ये अस्पताल इस पद्धति को प्रोत्साहित कर रहे हैं।
यदि शिशु माँ के दूध पर निर्भर है तो माँ के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी सेहत का पूरा ध्यान रखे, जिससे वह अपने शरीर की क्षतिपूर्ति तो करेगी ही, साथ ही बच्चे को मिलने वाला दूध भी पौष्टिक होगा। इसके लिए माँ को पौष्टिक भोजन करना चाहिये तथा समय से भोजन करना चाहिये। यदि गर्भावस्था के दौरान गम्भीर रक्त अल्पता की शिकायत रही हो तो प्रसव के बाद भी आयरन की गोलियों का सेवन, चिकित्सक के परामर्श से करना चाहिये। बेहतर रहता है यदि प्रसव के बाद 6 सप्ताह के भीतर 1-2 बार स्त्री का चिकित्सकीय परीक्षण करा लिया जाये।
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