भोजन के खनिज लवणों का वर्णन कीजिए। उनका सेवन करने से क्या लाभ होता है और सेवन न करने से क्या हानि होती है ? समझाइये।
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खनिज लवण
प्रोटीन की भाँति लवर्णों से भी शरीर का विकास होता है। ये तत्त्व भी शरीर के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक हैं। ये हड्डियों और रक्त को लाभ पहुँचाते हैं। शरीर का भार 1.5-2.0 प्रतिशत खनिज लवण से बना है। शरीर में लगभग 20 प्रकार के खनिज तत्व हैं, जिनसे अनेक प्रकार के खनिज लवण बनते हैं। साधारणतः मुख्य लवण ये हैं—कैल्सियम, फॉस्फोरस, लोहा, आयोडीन, सोडियम, सोडियम क्लोराइड (सामान्य नमक के रूप में), मैग्नीशियम, ताँबा और गन्धक।
इनमें से मुख्य लवणों का वर्णन निम्नवत् है-
कैल्सियम (Calcium)
99 प्रतिशत कैल्सियम शरीर की हड्डियों में पाया जाता है। 10 मि० ग्राम कैल्सियम 100 मि० ग्राम रक्त में पाया जाता है।
- यह रक्त को जमाने में सहायता देता है।
- स्नायुओं को स्वस्थ रखता है।
- बहुत से एन्जाइमों का एक मुख्य अंग है।
- यह हड्डियों एवं दाँतों को पूर्णतः स्वस्थ एवं शक्तिशाली बनाये रखने के लिए आवश्यक है।
- हृदय की गति को नियन्त्रित करता है।
- माँसपेशियों की क्रियाशीलता बनाये रखता है।
कैल्सियम की कमी से हानि
इसके अभाव से हड्डियाँ कमजोर व विकृत हो जाती हैं। बच्चों में रिकेट अर्थात् सूखा रोग तथा स्त्रियों में मृदुलास्थि रोग हो जाते हैं। प्रौढ़ों में कैल्सियम के अभाव में हुए रोग को ऑस्टोमेलेशिया (Osteomalacia) कहते हैं। दमा तथा चर्म रोग भी इसी की कमी के कारण होते हैं। इसके अभाव में शरीर का विकास समुचित रूप से नहीं हो पाता तथा शक्तिहीनता उत्पन्न हो जाती है। वृद्धों की अस्थियों के जोड़ों में दर्द होने लगता है। दाँत बेडौल व कमजोर हो जाते हैं। रक्त जमने में अधिक समय लगता है। त्वचा सूखी, चित्तेदार, खुरदरी हो जाती है।
कैल्सियम की अधिकता से हानियाँ
कैल्सियम की अधिकता से बच्चे विशेष रूप से प्रभावित हो जाते हैं, उनकी भूख कम हो जाती है, कब्ज हो जाता है, उल्टी आने लगती है। रक्त में यूरिया व कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है।
दैनिक आवश्यकता
बच्चों को 9 वर्ष तक लगभग 500-550 मि० ग्राम, 10 वर्ष से 15 वर्ष तक 550-700 मिo ग्राम तथा किशोरों को 600-700 मि० ग्राम, एक सामान्य स्त्री को 400-500 मि० ग्राम कैल्सियम की आवश्यकता होती है। गर्भवती तथा धात्री माताओं को इसकी दैनिक आवश्यकता 1 से 115 ग्राम तक रहती है।
साधन- कैल्सियम दूध, पनीर, दही, खोया, सूखी मेवा, अण्डे की जर्दी में बहुतायत से मिलता है तथा मेथी, मूली की पत्ती, गाजर की पत्ती तथा बन्दगोभी, फूल-गोभी, पान के चूने तथा पीने के पानी में पाया जाता है।
फॉस्फोरस (Phosphorus)
कैल्सियम की भाँति इसकी उपयोगिता निम्नवत् है-
- रक्त में अम्ल तथा क्षार का सन्तुलन बनाये रखना
- व्यय की गयी शारीरिक शक्ति को पूर्ण करने में सहयोग देता है।
- अस्थियों, दाँतों तथा स्नायु संस्थान को पूर्ण स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक होता है।
- यह मस्तिष्क को मजबूत बनाता है।
- शरीर के समुचित विकास के लिए इसका उपयोग आवश्यक है।
शरीर में विद्यमान खनिज लवण का भाग फॉस्फोरस ही होता है। फॉस्फोरस और कैल्सियम एक-दूसरे के पूरक हैं। सम्पूर्ण शरीर के फॉस्फॉरस का लगभग 80% भाग शरीर की अस्थियों तथा दाँतों के निर्माण में व 20% भाग कोमल ऊतकों में पाया जाता है।
साधन- यह पनीर, अण्डा, मछली, गोश्त, सोयाबीन, आलू, कच्ची मक्का, बादाम व मेवा, करमकल्ला, पालक और दूध आदि में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है। सोयाबीन, काबुली चने में भी यह पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
दैनिक आवश्यकता – एक सामान्य व्यक्ति को प्रतिदिन इसकी 500 मि० ग्राम की आवश्यकता होती है। गर्भवती स्त्री तथा बढ़ते हुए बालक को लगभग एक ग्राम फॉस्फोरस की दैनिक आवश्यकता होती है।
लौह लवण (Iron)
एक सामान्य प्रौढ़ व्यक्ति के शरीर में 3-4 ग्राम लौह लवण होता है, जिसका 75 प्रतिशत रक्त में पाया जाता है। यह रक्त में लाल कोशिकाओं का निर्माण करता है। यह शरीर को शक्ति प्रदान करता है तथा रक्त के वर्णक तत्त्व हीमोग्लोबिन (Hacmoglobin) का एक मुख्य अंग है। स्त्रियों को पुरुषों की अपेक्षा अधिक लौह की आवश्यकता होती है। इसकी कमी के कारण रक्ताल्पता (Anaemia) का रोग हो जाता है और चर्म का रंग पीला और भूरा पड़ जाता है। ऐसी दशा में व्यक्ति काफी उदासी व थकावट अनुभव करता है तथा उसके दिल की धड़कन बढ़ जाती है और श्वास-क्रिया धीमी हो जाती है।
लोहे की कमी विशेष रूप से बाल्यावस्था में, व किशोरावस्था में लड़कियों तथा गर्भवती स्त्रियों व दुग्धपान कराने वाली माताओं को हो जाती है। 50-55 वर्ष की आयु में जब स्त्रियों को मासिक धर्म बन्द हो जाता है, स्त्री-पुरुष में इसकी आवश्यकता समान हो जाती है।
साधन- लोहा मुख्यतः जिगर, कलेजी, माँस, मछली, अण्डे की जर्दी, मुर्गी के बच्चे, गुड़, गाजर, पालक, खीरे, अनाज, दालें, सेव, मेवे, प्याज, हरी सब्जियाँ, शकरकन्द, जैतून के तेल, सूखे मेवे आदि से प्राप्त होता है।
दैनिक आवश्यकता
जन्म से 1 से 20 वर्ष तक | 15-20 मि० ग्राम |
बालक/बालिकाएँ | 30 मि० ग्राम |
प्रौढ पुरुष, स्त्रियाँ | 20 मि० ग्राम |
गर्भवती | 40 मि० ग्राम |
दुग्धपान कराने वाली माता | 30 मि० ग्राम |
विशेष स्थिति में इसकी बहुत अधिक कमी होने पर भोजन के द्वारा यह कमी पूरी नहीं हो पाती। अतः इसकी पूर्ति के लिए लौह टेबलेट, टॉनिक या इन्जेक्शन का प्रयोग आवश्यक हो जाता है।
आयोडीन (Iodine)
आयोडीन थाइरॉइड ग्रन्थियों (Thyroid Glands) के समुचित शारीरिक एवं मानसिक कार्य सम्पादन के लिए नितान्त आवश्यक है। इसके अभाव में थाइरॉइड ग्रन्थि बढ़ जाती है तथा कण्ठमाला (Goitre) रोग होने की सम्भावना अधिक रहती है। आयोडीन शरीर में कैल्सियम और वसा का उचित उपयोग करने में सहायक होता है। यह त्वचा, बाल और नाखून को स्वस्थ रखने में सहायक होता है।
साधन- यह साधारणतः ताजे भोजन तथा कुछ विशेष प्रकार की सब्जियों, जैसे प्याज आदि में अधिक मिलता है। समुद्री मछली, समुद्री पानी, मछली के जिगर तथा तेल में यह पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
दैनिक आवश्यकता-
प्रतिदिन 0.14 मि० ग्राम पुरुष को तथा 0.10 मि० ग्राम स्त्री को आयोडीन मिलना चाहिए। समुद्रतटीय निवासियों को इसकी अधिक आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि उनके भोजन में आयोडीन की अधिक मात्रा रहती है।
शरीर के लिए अन्य आवश्यक लवण-
सामान्य लवण, पोटैशियम, मैग्नीशियम, गन्धक, तथा सोडियम कार्बोनेट हैं सामान्य लवण (Sodium Chloride) हम भोजन के साथ जो नमक प्रयोग करते हैं, वहीं सामान्य लवण कहलाता है। शरीर के सभी तरल द्रव्यों में सोडियम पाया जाता है। इसके उपयोग से भोजन स्वादिष्ट बनता है, कब्ज दूर होती है। यह शरीर के समस्त अंगों को क्रियाशील रखने में सहायता देता है तथा रक्त का उचित संचालन बनाये रखता है। इसकी कमी से बदहजमी, कब्ज, दस्त आदि रोग हो जाते हैं। मांसपेशियों में ऐंठन उत्पन्न हो जाती है तथा अम्ल-क्षार की मात्रा असन्तुलित हो जाती है। सोडियम पेशाब, पसीने द्वारा बाहर निकल जाता है।
साधन- यह फूलगोभी, दूध, जानवरों के गोश्त, शलजम, किशमिश, प्याज आदि में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
दैनिक आवश्यकता – इसकी थोड़ी मात्रा लाभदायक होती है। इसको दैनिक आवश्यकता निम्न प्रकार है-
सामान्य प्रौढ़ व्यक्ति | 10-15 ग्राम |
शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्ति | 10-20 ग्राम |
युवा व्यक्ति | 10-25 ग्राम |
बालक | 10 ग्राम |
जब सामान्य लवण आवश्यकता से अधिक मात्रा में खाया जाता है तो कभी-कभी इससे रक्तचाप बढ़ जाता है। प्रतिदिन सोडियम को शरीर से मुक्त करने में गुर्दों को अधिक कार्य करना पड़ता है। इसके फलस्वरूप हृदय का कार्य भार बढ़ जाता है तथा हृदय सम्बन्धी रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
पोटैशियम (Potassium)
पोटैशियम कोशिकाओं तथा रक्त में पाया जाता है। इसका मुख्य कार्य शरीर के तन्तुओं का निर्माण करना है। यह हड्डियों को मजबूत करता है तथा घाव के दर्द को दूर करता है। मांसपेशियों के संकुचन, हृदय की धड़कन, स्नायुओं की संवेदन-शक्ति को नियमित करता है। इसकी कमी से कब्ज, चिड़चिड़ापन, उदासीनता के चिन्ह प्रकट होने लगते हैं।
साधन–समस्त वनस्पतीय भोज्य पदार्थ इस तत्त्व से पर्याप्त रूप से युक्त होते हैं। पशुओं से प्राप्त भोज्य पदार्थ भी इससे युक्त होते हैं। अतः इसकी प्राप्ति के अनेक साधन होने के कारण यह शरीर को पर्याप्त मात्रा में मिलता रहता है। इसकी कमी से मन में घबराहट रहती है, नींद कम आती है और कब्ज रहता है। इसकी दैनिक मात्रा अभी तक निर्धारित नहीं हो पायी है।
मैग्नीशियम (Magnesium)
यह हड्डी, दाँत, कोशिका व रक्त में पाया जाता है। यह शरीर की वृद्धि के लिए आवश्यक है। शरीर में इसकी मात्रा 21 ग्राम है, जिसमें लगभग 11 पाम हड्डियों में पाया जाता है। यह शरीर में कुछ एन्जाइमों को सक्रिय करता है, जिससे कार्बोज की पाचन क्रिया भली-भाँति होती है। यह कैल्सियम, फॉस्फोरस को क्रियाशील बनाता है। इसके अभाव में स्नायु सम्बन्धी रोग (Nervous irritability) तथा ऐंठन (Convulsions) के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। माँसपेशियाँ काँपने लगती हैं तथा अन्य स्नायु सम्बन्धी रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
साधन – मनुष्य के आहार में प्रायः इस तत्त्व की कमी नहीं होती, क्योंकि यह प्रत्येक प्रकार के भोज्य पदार्थों में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इसके मुख्य साधन सब्जी, फल आदि हैं। दैनिक आवश्यकता लगभग 10 मि० ग्राम है।
गन्धक (Sulphur)
गन्धक प्रोटीन का ही एक अंश है। यदि भोजन में प्रोटीन की मात्रा पर्याप्त है तो गन्धक की आवश्यकता स्वतः ही पूरी हो जाती है। यह लवण प्रोटीन के पाचन के लिए तथा बालों एवं नाखूनों की वृद्धि के लिए आवश्यक है। शरीर में ऑक्सीकरण (Oxidation) क्रिया में भी इसका महत्त्वपूर्ण योगदान है।
ताँबा (Copper) यह शरीर के लिए उपयोगी होता है। यह रक्त में हीमोग्लोबिन बनाने में सहायक होता है। विटामिन ‘सी’, वसा के लिए उपयोगी है।
साधन-माँस, अण्डे, मछली, दूध, दालों तथा अनाजों में 1 प्रतिशत से अधिक गन्धक की मात्रा विद्यमान रहती है। दूध और अण्डे के प्रोटीन जो प्रमुख रूप से शरीर की वृद्धि से सम्बन्धित होते हैं, सबसे अधिक मात्रा में गन्धक-युक्त हैं। मूली, पालक तथा दालों में भी यह मिलता है।
सोडियम कार्बोनेट (Sodium Carbonate)
यह रक्त को शुद्ध करने, शरीर में अम्ल और क्षार की मात्रा को नियन्त्रित करने, शारीरिक विकारों को पसीने के साथ निष्कासित करने तथा प्राचक रसों को केटेलाइज (Catalyse) करने की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी लवण है। इसकी शरीर में कमी हो जाने से थकावट का अनुभव होता है।
साधन-दूध, मेवे, सेब, केला, अमरूद आदि से यह कुछ मात्रा में प्राप्त होता है। इसकी आवश्यक मात्रा प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त मात्रा में नमक का उपयोग आवश्यक होता है।
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