व्यावसायिक अर्थशास्त्र / BUSINESS ECONOMICS

अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान है अथवा आदर्श विज्ञान अथवा दोनों ?

अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान है अथवा आदर्श विज्ञान अथवा दोनों ?
अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान है अथवा आदर्श विज्ञान अथवा दोनों ?

अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान है अथवा आदर्श विज्ञान अथवा दोनों ?

अर्थशास्त्र एक विज्ञान है, इस तथ्य को तो लगभग सभी विद्वान एकमत से स्वीकार करते हैं; परन्तु अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान (Positive Science) के साथ-साथ आदर्श विज्ञान भी है अथवा नहीं ? यह एक विवादग्रस्त प्रश्न है। प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री मुख्यतः सीनियर तथा केयरनीज आदि अर्थशास्त्र को एक वास्तविक विज्ञान मानते थे। आधुनिक अर्थशास्त्रियों मैं प्रो० रोविन्स इस मत के प्रबल समर्थक हैं। उनकी धारणा है कि, “अर्थशास्त्र साध्यों के मध्य तटस्थ है। यह मूल्य सम्बन्धी अन्तिम निर्णयों की सत्यता का फैसला नहीं कर सकता अर्थात् अर्थशास्त्र केवल वास्तविक विज्ञान हैं।” आधुनिक विचारकों में प्रो० सेम्युल्सन तथा बोल्डिंग ने स्पष्ट शब्दों में कहा है- “अर्थशास्त्र चुनावों का अध्ययन करता है, उनका मूल्यांकन नहीं।”

अर्थशास्त्र केवल वास्तविक विज्ञान है-

इस धारणा के प्रतिपादक मुख्य रूप से निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत करते हैं-

(1) विज्ञान के रूप में अर्थशास्त्र को विकसित करने के लिए यह आवश्यक है कि इसे वास्तविक विज्ञान तक सीमित रखा जाये।

(2) श्रम विभाजन (Division of labour) के आधार पर ही अर्थशास्त्र को केवल वास्तविक विज्ञान मानना चाहिए।

(3) आदर्शों का निर्धारण अवश्य ही एक जटिल कार्य है, अतः अर्थशास्त्री को अच्छे-बुरे के निर्णय में नहीं पड़ना चाहिए।

(4) यदि अर्थशास्त्र को आदर्श विज्ञान ही माना जाए तो व्यर्थ ही भ्रम उत्पन्न होगा। अर्थशास्त्र को केवल वास्तविक विज्ञान ही मानना चाहिए।

उपर्युक्त तर्कों के बावजूद अधिकांश अर्थविज्ञानवेत्ता; जैसे— हाटे, फ्रेजर, टगवेल, पीगू मार्शल, जे० के० मेहता आदि अर्थशास्त्र को वास्तविक विज्ञान के साथ-साथ आदर्श विज्ञान भी मानते हैं। इन अर्थशास्त्रियों की दृष्टि में अर्थशास्त्री एक सांसारिक दार्शनिक है जिस पर समाज के दर्शन का दायित्व है।

अर्थशास्त्र आदर्श विज्ञान भी है-

अर्थशास्त्र को आदर्श विज्ञान मानने वाले विचारकों का कथन है कि अर्थशास्त्र निर्विवाद रूप से वास्तविक विज्ञान के साथ-साथ आदर्श विज्ञान भी है, क्योंकि-

(1) अर्थशास्त्र उद्देश्यों के प्रति तटस्थ नहीं हो सकता, क्योंकि अर्थशास्त्र के अध्ययन का मुख्य उद्देश्य सीमित साधनों का सर्वोत्तम प्रयोग करना है।

(2) प्रो० रोबिन्स आदि अर्थशास्त्रियों द्वारा प्रस्तुत श्रम विभाजन का तर्क उचित नहीं है।

(3) यदि अर्थशास्त्र के आदर्शात्मक स्वरूप को स्वीकार किया गया तो यह अर्थशास्त्र अत्यन्त संकुचित हो जाएगा।

(4) अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान (Social Science) है।

(5) वर्तमान युग आर्थिक नियोजन का युग है और आर्थिक नियोजन के उद्देश्यों की प्राप्ति तब तक असम्भव है जब तक अर्थशास्त्र के आदर्शात्मक स्वरूप को न स्वीकार कर लिया जाए।

(6) व्यावहारिक जीवन की औद्योगिक समस्याओं के समाधान हेतु अर्थशास्त्र के आदर्शात्मक स्वरूप को स्वीकार करना अत्यन्त आवश्यक है।

(7) स्वयं वे अर्थशास्त्री, जो अर्थशास्त्र को केवल वास्तविक विज्ञान बताते हैं, अर्थशास्त्र के आदर्शात्मक स्वरूप से प्रभावित हैं।

(8) ‘प्रावैगिक’ (Dynamic) आर्थिक जीवन की व्यावहारिक समस्याओं के समाधान हेतु अर्थशास्त्र का नीतिशास्त्र से अत्यन्त निकट सम्पर्क होना अत्यन्त आवश्यक है।

(9) यह एक सर्व स्वीकृत तथ्य है कि मनुष्य केवल तार्किक ही नहीं है वरन् यह भावुक भी है। अतः मानव व्यवहार का अध्ययन वास्तविक एवं आदर्शात्मक दोनों दृष्टियों से किया जाना चाहिए।

इस प्रकार अर्थशास्त्र को आदर्श विज्ञान मानने वाले अर्थशास्त्री अपने पक्ष में अत्यन्त प्रबल तर्क प्रस्तुत करते हैं जिनकी अवहेलना नहीं की जा सकती । अतः वर्तमान में अधिकांश अर्थशास्त्री इस विज्ञान को वास्तविक विज्ञान के साथ-साथ आदर्श विज्ञान भी मानते हैं और यह स्वीकार करते हैं कि, “अर्थशास्त्री का कार्य केवल व्याख्या या खोज करना ही नहीं, अपितु समर्थन तथा निन्दा करना भी है।” प्रो० पीटर के अनुसार, “इसका (अर्थशास्त्र का) प्रमुख महत्व तो इस बात में है कि वह नीतिशास्त्र के अधीन है तथा व्यवहार का सेवक है।” वे अर्थशास्त्र को न केवल ज्ञानवर्द्धक (Knowledge Bearing), बल्कि ‘फलदायक’ (Fruit Bearing) भी मानते हैं। प्रो० हाट्रे के शब्दों में, “अर्थशास्त्र को नीतिशास्त्र से अलग नहीं किया जा सकता।” इस प्रकार, अर्थशास्त्र एक वास्तविक विज्ञान के साथ-साथ आदर्श विज्ञान भी है।

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Anjali Yadav

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