व्यावसायिक अर्थशास्त्र / BUSINESS ECONOMICS

माँग की लोच को प्रभावित करने वाले तत्त्व | Factors Affecting the Elasticity of Demand in Hindi

माँग की लोच को प्रभावित करने वाले तत्त्व | Factors Affecting the Elasticity of Demand in Hindi
माँग की लोच को प्रभावित करने वाले तत्त्व | Factors Affecting the Elasticity of Demand in Hindi

माँग की लोच को प्रभावित करने वाले तत्त्व (Factors Affecting the Elasticity of Demand)

माँग की लोच को प्रभावित करने वाले तत्व निम्नलिखित हैं-

(1) वस्तु की प्रकृति— सामान्यतः अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली वस्तुओं की माँग बेलोचदार होती है, क्योंकि इन आवश्यकताओं को अधिक समय तक सन्तुष्ट नहीं रखा जा सकता। इसके विपरीत, आरामदायक आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली वस्तुओं की माँग औसत लोचदार तथा विलासिता की वस्तुओं की माँग अधिक गा अत्यधिक लोचदार होती है।

(2) वस्तु की कीमत — प्रायः जिन वस्तुओं की कीमत ऊँची होती है उनकी माँग अधिक लोचदार होती है, जिन वस्तुओं की कीमत मध्यम श्रेणी की होती है उनकी माँग की लोच सामान्य होती है जबकि बहुत सस्ती या बहुत कम मूल्य वाली वस्तुओं की माँग बहुत कम लोचदार या बेलोचदार होती है।

(3) स्थानापन्न वस्तुओं की उपलब्धि – यदि किसी वस्तु की अनेक स्थानापन्न वस्तुएँ उपलब्ध हों तो उसकी माँग अधिक लोचदार होगी, क्योंकि वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर अन्य स्थानापन्न वस्तुओं का प्रयोग किया जाने लगेगा। इस प्रकार स्थानापन्न वस्तुओं की कीमतें भी माँग की लोच को प्रभावित करती हैं।

(4) वस्तुओं के वैकल्पिक प्रयोग – प्रायः जिन वस्तुओं के वैकल्पिक उपयोग सम्भव होते हैं उनकी माँग अधिक लोचदार होती है; जैसे विद्युत की माँग अधिक लोचदार होती है।

(5) प्रयोग का स्थान – यदि वस्तु ऐसी है जिसके प्रयोग को सरलता से भविष्य के लिए स्थगित किया जा सकता है तो माँग अधिक लोचदार होगी; लेकिन यदि वस्तु के प्रयोग को स्थगित नहीं किया जा सकता (अर्थात् वस्तु का क्रय करना अत्यन्त आवश्यक है) तो वस्तु की माँग बेलोचदार होगी ।

(6) मूल्य स्तर — मूल्य स्तर भी माँग की लोच को एक बड़ी सीमा तक प्रभावित करता है। प्रो० मार्शल के शब्दों में, “माँग की लोच ऊँची कीमतों के लिए पर्याप्त होती है और जैसे-जैसे कीमतें घटती जाती हैं वैसे-वैसे लोच भी घटती जाती है और यदि कीमतें इतनी गिर जाती हैं कि तृप्ति की सीमा आ जाती है तो लोच धीरे-धीरे विलीन हो जाती है।”

(7) आय समूह – माँग की लोच इस बात पर भी निर्भर करती है कि क्रेता आय के किस समूह अथवा वर्ग में आता है। प्रायः समृद्ध वर्ग (धनी लोगों) के लिए वस्तु की माँग बेलोचदार होती है जबकि निर्धन वर्ग के लिए वस्तुओं की माँग अधिक लोचदार होती है क्योंकि मूल्य में होने वाला थोड़ा-सा परिवर्तन भी निर्धन वर्ग के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है।

(8) धन के वितरण का प्रभाव – प्रो० टासिंग का कथन है कि- “सामान्यतः समाज में धन का असमान वितरण होने पर माँग की लोच बेलोचदार होती है और धन के समान वितरण के साथ लोचदार हो जाती है।” इसका कारण यह है कि जब समाज में धन का विषम वितरण होता है तो मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या कम होती है, अधिकांश लोग या तो बहुत धनी होते हैं या निर्धन। निर्धन वर्ग के लोग केवल जीवन की अनिवार्यताओं को ही सन्तुष्ट कर पाते हैं जबकि धनी लोग विलासिता की वस्तुओं का खुलकर उपयोग करते हैं। अन्य शब्दों में, “धनी वर्ग के लोगों की माँग की लोच बेलोचदार होती है। इसके विपरीत, धन के सम वितरण की दशा में, जब मध्यम वर्ग के लोगों की बड़ी संख्या होती है, माँग का लोचदार होना स्वाभाविक ही है।”

(9) आय का व्यय किया जाने वाला अंश – उपभोक्ता जिन वस्तुओं पर अपनी आय का एक छोटा-सा अंश व्यय करता है उन वस्तुओं की माँग बेलोचदार हुआ करती है। इसके विपरीत, जिन वस्तुओं/सेवाओं पर उपभोक्ता अपनी आय का एक बड़ा अंश व्यय करता है उनकी माँग अधिक बेलोचदार होती है।

(10) संयुक्त माँग – जिन वस्तुओं की संयुक्त माँग होती है; जैसे—पैन तथा स्याही की माँग, उनकी माँग प्राय: एक ही दिशा में परिवर्तित होती है। अन्य शब्दों में, यदि पैन को माँग स्थिर (बेलोचदार) है तो स्याही की माँग भी बेलोचदार ही होगी।

(11) समय का प्रभाव – साधारणतः समय जितना कम होता है, वस्तुओं की माँग उतनी ही कम लोचदार होती है और समय जितना अधिक होता है, माँग की लोच उतनी ही अधिक लोचदार होती है। प्रो० मार्शल ने भी इसी तथ्य की पुष्टि की है, “माँग की लोच कुछ समय बीतने पर ही जानी जा सकती है। अल्पकाल में मूल्यों के परिवर्तन का वस्तु की माँग पर लगभग कोई प्रभाव नहीं पड़ता; परन्तु दीर्घकाल में उसकी प्रतिस्थापन प्रभार की सम्भावना बढ़ जाती है और ऐसी दशा में माँग में तेजी से परिवर्तन हो सकते हैं।”

(12) स्वभाव तथा आदत – उपभोक्ताओं के स्वभाव एवं आदत का भी माँग की लोच पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। उपभोक्ता को जिन वस्तुओं के प्रयोग की आदत पड़ जाती है उन वस्तुओं की माँग प्रायः बेलोचदार होती है ।

(13) राजकीय नियन्त्रण – कभी-कभी सरकार मूल्य नियन्त्रण आदि के द्वारा आर्थिक गतिविधियों में हस्तक्षेप करती है। ऐसी दशा में बहुधा माँग बेलोचदार हो जाती है।

(14) मूल्यों के भावी अनुमान – सामान्यतः जिन वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि की सम्भावना होती है उनकी माँग अधिक लोचदार होती है जबकि मूल्यों में गिरावट होने की सम्भावना होने पर माँग बेलोचदार होती है।

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Anjali Yadav

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