व्यावसायिक अर्थशास्त्र / BUSINESS ECONOMICS

अल्पकालीन उत्पादन फलन अथवा परिवर्तनशील अनुपात का नियम | Short-run Production Function or Law of Variable Proportion in Hindi

अल्पकालीन उत्पादन फलन अथवा परिवर्तनशील अनुपात का नियम | Short-run Production Function or Law of Variable Proportion in Hindi
अल्पकालीन उत्पादन फलन अथवा परिवर्तनशील अनुपात का नियम | Short-run Production Function or Law of Variable Proportion in Hindi

अल्पकालीन उत्पादन फलन अथवा परिवर्तनशील अनुपात का नियम (Short-run Production Function or Law of Variable Proportion)

अल्पकाल में जब एक फर्म उत्पत्ति के कुछ साधनों को स्थिर रखकर अन्य साधनों की मात्रा में परिवर्तन करती है तब उत्पादन की मात्रा में जो परिवर्तन होते हैं उन्हें ‘उत्पत्ति के नियम’ (Law of Returns) के नाम से जाना जाता है।

अल्पकालीन उत्पादन फलन की तीन अवस्थाएँ होती हैं जिन्हें उत्पत्ति के तीन नियमों के रूप में जाना जाता है-

  1. उत्पत्ति वृद्धि नियम (Law of Increasing Returns)
  2. उत्पत्ति समता नियम (Law of Constant Returns)
  3. उत्पत्ति हास नियम (Law of Diminishing Returns)

उत्पत्ति हास नियम अल्पकालीन उत्पादन फलन का तीसरा नियम है। किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्री अल्पकालीन उत्पादन फलन के इन तीनों नियमों को उत्पत्ति का एक ही नियम मानते हैं तथा इसे परिवर्तनशील अनुपात के नियम (Law of Variable Proportion) का नाम देते हैं। आधुनिक अर्थशास्त्री उत्पत्ति के तीनों नियमों को परिवर्तनशील अनुपात के नियम की तीन विभिन्न अवस्थाएँ मानते हैं। प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने इसी नियम को उत्पत्ति हास नियम के नाम से पुकारा था। किन्तु प्रो० मार्शल द्वारा प्रतिपादित उत्पत्ति हास नियम को केवल कृषि क्षेत्र तक ही सीमित रखा गया। आधुनिक अर्थशास्त्री इस नियम की क्रियाशीलता को केवल कृषि तक ही सीमित नहीं रखते बल्कि उत्पादन के प्रत्येक क्षेत्र में इस नियम की क्रियाशीलता को स्वीकार करते हैं।

प्रो० स्टिगलर के अनुसार, “जब कुछ उत्पत्ति साधनों को स्थिर रखकर एक उत्पत्ति साधन की इकाइयों में समान वृद्धि की जाए तब एक निश्चित बिन्दु के बाद उत्पादन की उत्पन्न होने वाली वृद्धियाँ कम हो जाएंगी अर्थात् सीमान्त उत्पादन घट जाएगा।”

श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के अनुसार, “उत्पत्ति हास नियम यह बताता है कि यदि किसी एक उत्पत्ति के साधन की मात्रा को स्थिर रखा जाए तथा अन्य साधनों की मात्रा में उत्तरोत्तर वृद्धि की जाए तो एक निश्चित विन्दु के बाद उत्पादन में घटती दर से वृद्धि होती है।”

उपर्युक्त सिद्धान्त तीन शर्तों पर आधारित है :

  1. एक साधन के अतिरिक्त सभी अन्य साधनों की मात्राओं को स्थिर मान लिया जाए।
  2. तकनीकी ज्ञान भी स्थिर हो।
  3. साधनों के संयोग का अनुपात परिवर्तनशील हो ।

परिवर्तनशील अनुपात का नियम इस तथ्य पर आधारित है कि उत्पत्ति के साधन परस्पर स्थानापन्न नहीं हैं ।

परिवर्तनशील अनुपात के नियम की स्पष्ट व्याख्या निम्नलिखित बिन्दुओं की सहायता से की जा सकती है :

(1) कुल उत्पादकता (Total Productivity or TP) – किसी परिवर्तनशील साधन की निश्चित इकाइयों के अन्य स्थिर साधन इकाइयों के साथ प्रयोग से जो उत्पादन प्राप्त होता है, उसे कुल उत्पादकता कहते हैं। कुल उत्पादकता मुख्यतः परिवर्तनशील साधन की मात्रा पर निर्भर करती है,

अर्थात्  TP = f (TVF)

TVF = कुल परिवर्तनशील साधन

(2) औसत उत्पादकता (Average Productivity or AP ) – औसत उत्पादकता विभिन्न उत्पादन स्तरों पर उत्पादन-साधन अनुपात (Output-Input Ratio) है ।

दूसरे शब्दों में,

औसत उत्पादकता (AP) = ‘कुल उत्पादकता (TP) / कुल परिवर्तनशील साधन (TVF)

(3) सीमान्त उत्पादकता (Marginal Productivity or MP ) – परिवर्तनशील साधन की एक अतिरिक्त इकाई के प्रयोग से, जबकि अन्य साधन स्थिर हैं, कुल उत्पादन में जो वृद्धि होती है उसे उस साधन की सीमान्त उत्पादकता कहते हैं।

MPn = TPn — TP (n-1)

जहाँ MPn = n वें साधन की सीमान्त उत्पादकता

TPn = n साधनों की कुल उत्पादकता

TPn-1 = (n – 1 ) साधनों की कुल उत्पादकता

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Anjali Yadav

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