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उत्पत्ति वृद्धि नियम (Law of Increasing Returns)
उत्पत्ति के नियम के अनुसार एक या एक से अधिक साधनों को स्थिर रखकर अन्य साधनों की मात्रा को बढ़ाया जाए तथा परिवर्तनशील साधनों की वृद्धि करने के अनुपात से अधिक उत्पादन बढ़े तो इसे उत्पत्ति वृद्धि नियम कहेंगे ।
इस नियम के अन्तर्गत मार्शल तथा रॉबिन्स की परिभाषायें महत्वपूर्ण हैं-
मार्शल के अनुसार, “श्रम और पूँजी में वृद्धि सामान्यतया संगठन को अधिक श्रेष्ठ बना देती है, जिससे फिर श्रम और पूँजी की कार्यक्षमता में वृद्धि हो जाती है।”
श्रीमती जॉन रोबिन्सन के अनुसार, “जब किसी प्रयोग में एक उत्पत्ति साधन की अधिक मात्रा लगाई जाती है तब प्रायः संगठन में ऐसे सुधार करने सम्भव हो जाते हैं जो कि उत्पत्ति के साधनों (मनुष्य, भूमि और मौद्रिक पूँजी) की प्राकृतिक इकाइयों को अधिक कुशल बना दें, जिसके कारण उत्पादन बढ़ाने के लिए साधनों की भौतिक मात्राओं में आनुपातिक वृद्धि करना आवश्यक नहीं होता।”
श्रीमती जॉन रोबिन्सन की परिभाषा से दो बातें स्पष्ट होती हैं-
(i) यह नियम सभी प्रकार के उत्पादन क्षेत्रों पर लागू होता है जबकि मार्शल ने इस नियम की कल्पना केवल उद्योग-धन्धों के सम्बन्ध में की है।
(ii) उत्पादन से साधनों की कार्यकुशलता में वृद्धि के कारण यह नियम क्रियाशील होता है। रोबिन्स ने लिखा है कि “उत्पादन को बढ़ाने के लिए सभी भौतिक साधनों को उसी अनुपात में नहीं बढ़ाया जाता है, जिस अनुपात में उत्पादन बढ़ता है।” क्योंकि उत्पत्ति वृद्धि नियम में कुछ ही साधनों को बढ़ा देने पर उत्पादन के समस्त साधनों की क्षमता में वृद्धि हो जाती है।
उत्पत्ति वृद्धि नियम के क्रियाशील होने की दशाएँ या कारण (Conditions or Causer of the Law of Increasing Returns)
क्रमागत उत्पत्ति वृद्धि नियम की उपर्युक्त विवेचना में हमने यह स्पष्ट किया है कि नियम सामान्यतः अल्पकाल में उत्पादन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रारम्भिक अवस्था में क्रियाशील होता है। इसकी क्रियाशीलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
(1) साधनों की अविभाज्यता – रॉबिन्स के अनुसार इस नियम के क्रियाशील होने का मुख्य कारण साधनों की अविभाज्यता है अर्थात् साधनों को प्रायः हम छोटे-छोटे टुकड़ों में नहीं बाँट सकते हैं। उदाहरण के लिए, भूमि, मशीन, पूँजी इत्यादि साधन एक सीमा तक वृद्धि करने से अविभाज्य साधनों का प्रयोग उचित ढंग से होने लगता है, उत्पादन अनुपात से अधिक बढ़ता है और लागत कम होती है अर्थात् उत्पत्ति वृद्धि नियम क्रियाशील हो जाता है।
(2) बड़े पैमाने की उत्पत्ति की बचत — उत्पत्ति के साधनों की अधिकाधिक इकाइयाँ प्रयोग करने पर उत्पत्ति के पैमाने में वृद्धि होती है। पैमाने के आकार में वृद्धि के कारण उस फर्म को आन्तरिक व बाह्य बचत प्राप्त होने लगती है। इस कारण प्रति इकाई उत्पादन खर्च घटने लगता है अर्थात् क्रमागत उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू हो जाता है।
(3) साधनों का अनुकूलतम संयोग— कृषि के अन्तर्गत भूमि साधन काफी स्थिर रहता है, इसमें वृद्धि नहीं हो पाती है। ऐसी स्थिति में फर्म में कोई साधन उतना स्थिर नहीं होता। उनमें प्रत्येक साधन की पूर्ति मूल्य सापेक्ष होती है। इस आसानी के कारण ही उद्योगपति प्रतिस्थापन नियम का प्रयोग कर पाता है, अर्थात् महंगे साधन के स्थान पर सस्ते साधन प्रयोग में लाता है और इस प्रकार अपने लागत व्ययों को घटाते हुए उत्पादन में वृद्धि करता जाता है
(4) वैज्ञानिक आविष्कार— उत्पादन में वृद्धि के लिए उद्योग-धन्धों में नये-नये वैज्ञानिक आविष्कार किये जाते हैं। जैसे ही एक प्रकार के आविष्कारों का प्रभाव समाप्त होता प्रतीत हो तुरन्त ही नये प्रकार के आविष्कार प्रचलित कर दिए जाते हैं और इस प्रकार वृद्धि प्रतिफल नियम को काफी समय तक बचाये रखा जा सकता है।
उपर्युक्त विभिन्न कारण हैं जो कि उत्पत्ति वृद्धि नियम को क्रियाशील बनाने में सहायता प्रदान करते हैं। प्रो० थामस का कहना है कि “निर्माण उद्योगों में बड़े पैमाने की बचत, विज्ञान का अधिकाधिक प्रयोग, श्रमः विभाजन का विस्तार एवं श्रेष्ठ मशीनों का निरन्तर प्रयोग, उत्पत्ति वृद्धि नियम को क्रियाशील बनाने में अत्यन्त सहायक होते हैं। ये तत्व उत्पत्ति ह्रास नियम के बिन्दु को हमेशा पीछे रखते हैं।”
उत्पत्ति वृद्धि नियम की सीमाएँ (Limitations of Law of Increasing Returns)
उत्पत्ति वृद्धि नियम की प्रमुख सीमाएँ निम्न प्रकार हैं-
(1) जब उत्पादन में स्थिर साधन की इकाई अविभाज्य होती है और प्रत्येक विभाजित अंश पर परिवर्तनशील साधनों की कुछ निश्चित इकाइयाँ लगा सकना सम्भव होता है तो उत्पादन वृद्धि की प्रवृत्ति के स्थान पर समान उत्पादन प्रवृत्ति दिखाई पड़ती है।
(2) यदि उत्पादन में परिवर्तनशील अनुपात में लगाए जाने वाले साधनों की इकाइयों का आकार छोटा है तो उत्पादन में वृद्धि की प्रवृत्ति स्पष्ट देखी जा सकती है; किन्तु जब इन साधनों का आकार बहुत बड़ा होता है तो बहुधा इनकी एक इकाई लगाने पर ही उत्पादन वर्तमान प्रतिफल की अवस्था को पार कर जाता है और उत्पादक को क्रमागत उत्पादन वृद्धि नियम की क्रियाशीलता का आभास भी नहीं हो पाता।
उत्पत्ति वृद्धि नियम तथा लागत (The Law of Increasing Return and Cost)
उत्पत्ति वृद्धि नियम को लागत की दृष्टि से ‘लागत हास नियम’ (Law of Decreasing Cost ) कहा जाता है। जैसा कि स्पष्ट किया जा चुका है, उत्पत्ति वृद्धि नियम उत्पादन की एक ऐसी अवस्था का वर्णन करता है जिसमें उत्पादन के साधनों में की गयी वृद्धि की तुलना में उत्पादन की मात्रा में अधिक वृद्धि प्राप्त होती है।
इसलिए इस नियम के अन्तर्गत सीमान्त लागत (MC) तथा औसत लागत (AC) घटती है। यह कमी तब तक चलती रहती है, जब तक कि साधनों के बीच आदर्शतम संयोग स्थापित नहीं हो जाता है। इन लागतों के घटने के कारण इस नियम को ‘लागत हास नियम’ कहते हैं।
नियम का क्षेत्र (Scope of the Law) – उत्पत्ति वृद्धि नियम के क्षेत्र को मार्शल ने काफी संकुचित कर दिया था, जबकि आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने इस नियम के क्षेत्र को काफी व्यापक बना दिया है। उत्पति वृद्धि नियम केवल विनिर्माण उद्योगों में ही लागू नहीं होता है, बल्कि यान्त्रिकीकरण से कृषि के क्षेत्र में भी लागू होने लगा है। उत्पादन का चाहे कोई भी क्षेत्र क्यों न हो, उस क्षेत्र में जब तक साधनों को अनुकूलतम अनुपात में बढ़ाया जायेगा, तब तक उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू होता रहेगा। अतः इस नियम का क्षेत्र सीमित न होकर व्यापक है ।
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