आन्तरिक तथा बाह्य बचतों में अन्तर (Distinguish between internal and external economies)
आन्तरिक बचतें एक फर्म को प्राप्त होती हैं और वे फर्म के आकार पर निर्भर करती हैं अर्थात् फर्म के आकार में वृद्धि के परिणामस्वरूप मिलती हैं। बाह्य बचतें समस्त उद्योग को प्राप्त होती हैं और वे उद्योग के आकार में वृद्धि तथा उद्योग-स्थायीकरण के परिणामस्वरूप मिलती हैं।
वास्तव में, इन दोनों प्रकार की बचतों के बीच अन्तर की एक स्पष्ट तथा निश्चित रेखा खींचना कठिन है। इसके मुख्य कारण हैं : श्रीमती जॉन रोबिन्सन के अनुसार, “बड़े पैमाने के उद्योग की बचतें फर्म के अनुकूलतम आकार (optimum size) को बदल सकती हैं और नये अनुकूलतम आकार की दृष्टि से फर्म के आन्तरिक पुनर्गठन के लिए किये गये प्रयत्न और अधिक आन्तरिक बचतों को जन्म देती हैं।” इनको रॉबर्टसन (Robertson) ने ‘आन्तरिक बाह्य बचतें (Internal-external economies) कहा है; ये आन्तरिक बचतें इसीलिए है कि ये फर्म के आकार पर निर्भर करती है और बाह्य बचतें इसलिए हैं कि ये उद्योग के आकार पर निर्भर करती हैं।” यह सम्भव है कि एक स्थिति में जो बचतें आन्तरिक हैं, दूसरी स्थिति में बाह्य हो जायें उदाहरणार्थ, किसी एक फर्म के आकार में बहुत विस्तार हो जाने के कारण बड़ी मात्रा में अवशिष्ट पदार्थ (bye-product) प्राप्त हो सकता है। जब इस अवशिष्ट पदार्थ का प्रयोग अन्य फर्म या फर्में करती हैं तो बाह्य बचत होगी। यदि कई फर्मों, जिन्हें बाह्य बचतें प्राप्त हो रही हैं, आपस में मिल जाती हैं तो ‘बाह्य बचतें’ ‘आन्तरिक बचतें’ हो जायेंगी। प्रो० कान्ह (R. F. Kahn) के अनुसार, “व्यक्तिगत फर्मों के लिए आन्तरिक तथा बाह्य बचतें हो सकती हैं; परन्तु समस्त अर्थव्यवस्था के लिए केवल आन्तरिक बचतें ही हो सकती हैं।”
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