व्यापार चक्रों का नियन्त्रण (Control of Business Cycles)
व्यापार चक्रों के नियन्त्रण के लिये निम्नलिखित उपाय काम में लाये जा सकते हैं।
(1) कीमत सहायता (Price Support) – युद्धोत्तर काल में मंदी से निपटने के लिए अमरीकी प्रशासन ने इस प्रकार के उपाय को अपनाया था। कीमत सहायता का उपयोग किसी देश की अर्थव्यवस्था में मंदी से निपटने के लिए किया जाता है। जब कीमत एक न्यूनतम स्तर से नीचे गिरने लगती है उस समय सरकार उत्पादकों को हानि से बचाने के लिए इस उपाय का उपयोग करती है और निर्धारित कीमत पर वस्तुओं का क्रय सरकार द्वारा किया जाता है। इस उपाय के अन्तर्गत दो बातें होना आवश्यक हैं:
प्रथम, सरकार ऐसी स्थिति में होना चाहिए कि आवश्यक वित्त का प्रबन्ध कर सके जिससे कि वस्तुओं का क्रय किया जा सके।
द्वितीय, सरकार को मूल्य सहायता नीति के अन्तर्गत खरीदी वस्तुओं के विक्रय के लिए बाजार भी खोजना होगा। इसके लिए घरेलू तथा विदेशी बाजार की सम्भावनाओं का पता लगाना होगा।
(2) मौद्रिक नीति (Monetary Policy)- व्यापार चक्रों को रोकने तथा नियन्त्रण करने का आसान उपाय मौद्रिक नीति है। केन्द्रिय बैंक अपने विभिन्न अस्त्रों के माध्यम से बैंकिंग तथा मौद्रिक प्रणाली का नियन्त्रण करती है। इन अस्त्रों के प्रयोग से अर्थव्यवस्था में साख का संकुचन करके साख की पूर्ति महँगी कर दी जाती है। जिससे निवेश हतोत्साहित होता है, उत्पादन कम होता है, रोजगार के अवसर में वृद्धि होती है और मंदी का दौर शुरू हो जाता है। अतः मंदीकाल में केन्द्रीय बैंक अपने अस्त्रों में छूट देकर आर्थिक क्रियाओं में वृद्धि करती है तथा तेजी काल में इन अस्त्रों के उपयोग से साख एवं मुद्रा की पूर्ति महँगी करके तेजी को नियन्त्रित करने का प्रयास करता है। विकासशील देशों में यह नीति प्रभावपूर्ण नहीं रही है क्योंकि इन देशों में असंगठित मुद्रा एवं पूँजी बाजार विद्यमान है तथा देशी बैंकर भी क्रियाशील हैं। फिर भी 1948 के पश्चात से मौद्रिक नति का उपयोग व्यापार चक्रों को नियन्त्रित करने के लिए किया गया है। भारत, इंग्लैण्ड तथा अन्य देशों में बैंक दर में परिवर्तन करके स्फीतिकारी दबावों को रोकने के प्रयास किये गये हैं।
(3) कीमत नियन्त्रण (Price Control) – प्रो० फिशर के अनुसार कीमतों में वृद्धि से लाभ बढ़ते हैं और इससे आर्थिक क्रियाओं में विस्तार होता है तथा तेजी का दौर दीर्घकाल तक नहीं चलता है और शीघ्र ही कीमतों में गिरावट आती है। अतः कीमतों में निरन्तर वृद्धि को रोकने के लिए कीमत नियन्त्रण का उपाय काम में लाया जाता है। यद्यपि कीमत नियन्त्रण से लाल फीताशाही, प्रशासनिक भ्रष्टाचार, चोर बाजारी, तस्करी आदि जैसी बुराइयाँ भी उत्पन्न होती हैं तथा समाज भी इस प्रकार से नियन्त्रण का विरोध करते हैं।
(4) राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) – प्रो० किन्स ने इंग्लैण्ड तथा प्रो० हेन्सन ने अमरीका में आर्थिक क्रियाओं में स्थायित्व लाने हेतु राजकोषीय नीति को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। व्यापार चक्रों की रोकथाम के लिए मौद्रिक नीति प्रभावी नहीं होने के कारण राजकोषीय नीति को लागू करने का सुझाव दिया गया है। मंदी को समाप्त करने के लिए राजकोषीय नीति के माध्यम से सार्वजनिक कार्य करवाये जाएँ और इसके लिए घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाई जाए। मंदीकाल में जैसे ही व्यावसायिक क्रियाओं में कमी आती है प्रत्येक सरकार को विभिन्न सार्वजनिक कार्य जैसे-सड़क, बाँध, अस्पताल, स्कूल आदि शुरू कर देने चाहिए जिससे बेरोजगारों को रोजगार प्राप्त होगा और उनकी क्रय शक्ति में वृद्धि होने से अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की माँग बढ़ेगी। इसमें गिरती हुई कीमतों एवं माँग को रोकने में सहायता मिलेगी। जैसे ही सार्वजनिक कार्यों में मंदी से छुटकारा मिलता है सरकार को इन कार्यों को त्याग कर आधिक्य का बजट (Surplus Budgeting) बनाना होगा। इस प्रकार मंदी काल में अधिक तथा तेजीकाल में सरकार कम खर्च करके अर्थव्यवस्था में आर्थिक स्थायित्व की स्थिति प्राप्त कर सकती है। मंदीकाल में सरकार वित्त घाटे की अर्थव्यवस्था से प्राप्त करती है अथवा ऋण एवं करारोपण से प्राप्त कर सकती है।
(5) स्वचालित स्थायीकरण (Automatic Stabilizers) – व्यापार चक्रों की रोकथाम के लिए आवश्यक मौद्रिक एवं राजकोषीय उपायों का विश्लेषण किया गया है। ये दोनों ही नीतियाँ सरकारी नीतियाँ हैं जो सरकार के स्व-निर्माण (Discretion) पर निर्भर करती हैं। इन नीतियों का क्रियान्वयन सरकार की सर्तकत्ता तथा तत्परता पर निर्भर करता है। ये नीतियाँ व्यापार-चक्रों को रोकने में तभी प्रभावी हो सकती हैं, जब सरकार कराधान, व्यय एवं मौद्रिक नीतियों को बड़ी तत्परता एवं मुस्तैदी के साथ उचित समय पर इन्हें लागू करती है। अतः व्यापार-चक्रों को कारकार ढंग से नियमित एवं नियन्त्रित करने के लिए आधुनिक अर्थशास्त्री कई प्रकार के स्वचालित स्थायी कारकों अथवा संरचित स्थायीकारकों का सुझाव देते हैं। स्वचालित स्थायीकारक या संरचित स्थायीकरण ने आर्थिक आघात अवशोषक हैं जो बिना किसी सरकारी आयोजित कार्यवाही के ही चक्रीय व्यावसायिक उच्चावचनों (Cyclical business cycles) को स्वतः ही समतल कर देते हैं।
(6) बेरोजगारी बीमा (Unemployment Insurance ) – व्यावसायिक उच्चावचनों को रोकने एवं नियन्त्रिण करने के लिए योरोप तथा अनेक देशों में बेरोजगार बीमा जैसे उपाय का सुझाव दिया गया है। सरकार द्वारा अनिवार्य रूप से बेरोजगारी बीमा दिया जाना चाहिए। इसका निर्माण समृद्धिकाल में एक कोष के निर्माण के माध्यम से किया जा सकता है और मंदी काल में इस कोष से बेरोजगारी बीमा दिया जा सकता है। इससे प्रभावी माँग को बनाये रखने में मदद मिलेगी तथा मंदी के दल-दल से अर्थव्यवस्था को निकाला जा सकेगा। यद्यपि यह नीति सैद्धान्तिक रूप से बिल्कुल एक आकर्षक उपाय है लेकिन व्यवहार में इसे लागू करना बड़ा कठिन है।
व्यापार चक्रों के नियन्त्रण के उपर्युक्त उपायों के अध्ययन के पश्चात स्पष्ट है कि इनमें से कोई भी उपाय अपने आप में पूर्ण नहीं है। अतः व्यापार चक्रों को रोकने के लिये हमें युद्ध स्तर पर सभी उपायों को एक साथ लागू करना होगा। इसके लिये सरकार की दृढ़ इच्छा, कुशल एवं ईमानदार प्रशासन तथा जन-सहयोग आवश्यक है।
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