“ऊँची मजदूरी नीची मजदूरी होती है और नीची मजदूरी ऊँची मजदूरी होती है।” व्याख्या कीजिये। “High wages are low wages and low wages are the high wages.” Explain.
प्रायः लोगों में यह धारणा बन गयी है कि ‘नीची मजदूरी’ सस्ती और ‘ऊँची मजदूरी’ महंगी होती है; किन्तु यह धारणा सदैव सत्य नहीं है, वास्तविकता यह है कि “ऊँची मजदूरी सस्ती होती है और सस्ती मजदूरी महंगी पड़ती है।” (“Highly paid or dear labour is really a cheap labour and cheap labour is high labour”.) इस विचार में विरोधाभास अवश्य है, परन्तु है सत्य ।
नीची मजदूरी से श्रमिकों की कार्यक्षमता घट जाती है और वे काम करने के योग्य नहीं रह जाते हैं। प्रायः उन्हें जितना दिया जाता है उस सबसे वे कहीं कम उत्पादन करते हैं। उदाहरण के लिए, दो कारीगरों को फर्नीचर बनाने के काम में लगाया जाता है। इनमें से एक मजदूर को 10 रुपया जबकि दूसरे को 5 रुपया दिया जाता है। नकद मजदूरी की दृष्टि से दूसरा कारीगर पहले कारीगर की अपेक्षा अधिक सस्ता है; परन्तु पहला कारीगर एक दिन में तीन कुर्सियां बना लेता है जबकि दूसरा कारीगर एक दिन में केवल एक ही कुर्सी बना पाता है उत्पादन-व्यय की दृष्टि से पहला कारीगर दूसरे कारीगर की अपेक्षा सस्ता है। I
सन् 1825 के लगभग रॉबर्ट ओवन (Robert Owen) ने स्वयं के प्रयोगों से यह सिद्ध कर दिया था कि ऊँची मजदूरी, सस्ती मजदूरी होती है। चूँकि ऊँची मजदूरी ‘नीची-मजदूरी-लागत’ को जन्म देती है, और इसीलिए कहा जाता है कि ‘ऊँची मजदूरी सस्ती मजदूरी’ होती है। इस कथन को निम्न बातों से और भी स्पष्ट किया जा सकता है :
(1) ऊँची मजदूरी देने से सेवायोजकों को कुशल और अच्छे श्रमिक मिल जाते हैं जो कम समय में अधिक उत्पादन करते हैं, परिणामस्वरूप उत्पादन लागत घट जाती है।
(2) ऊँची मजदूरी श्रमिकों तथा सेवायोजकों के बीच सम्बन्धों को मधुर बना देती है, फलतः मजदूर अपना काम समझकर उत्पादन करते हैं। हड़ताल व तालाबन्दी न होने से श्रम दिवसों की हानि नहीं होती है।
(3) ऊँची मजदूरी के कारण श्रमिक अपने बच्चों को उचित प्रशिक्षण तथा उच्च शिक्षा दे सकते हैं। इससे भविष्य में कुशल श्रमिकों की पूर्ति बढ़ जाती है जो देश के आर्थिक विकास में योगदान करते हैं।
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