आर्थिक या वास्तविक लगान (True Rent or Economic Rent)
“आर्थिक लगान कुल लगान का वह भाग है जो केवल भूमि के प्रयोग के लिए भुगतान किया जाता है।” इसमें अन्य तत्व शामिल नहीं होते हैं। प्रो० रिकार्डों के अनुसार, “आर्थिक लगान अधि-सीमान्त भूमियों की उपज के अन्तर का माप है।”
हम यह जानते हैं कि सभी प्रकार की भूमि उपजाऊपन तथा स्थिति के दृष्टिकोण से समान नहीं होती है। भूमि का एक टुकड़ा दूसरे टुकड़े की अपेक्षा अधिक उपजाऊ या अधिक अच्छी स्थिति वाला हो सकता है। अतः अधिक उर्वरा व अधिक अच्छी जगह पर स्थित भूमि के टुकड़े की उपज कम उपजाऊ व कम अच्छी जगह पर स्थित भूमि के टुकड़े की उपज की तुलना में अधिक होती है। चूंकि अधिक उर्वरा या अधिक उत्तम स्थिति की भूमि पर उपज अपेक्षाकृत अधिक होती है, इसलिए उत्पादन लागत कम हो जाती है। इसके फलस्वरूप कुछ अतिरिक्त उपन बची रहती है, इसी बचत को ‘आर्थिक लगान’ कहते हैं। इसके विपरीत, “कम उर्वरा तथा कम अच्छी भूमि पर प्राप्त उपज में से उत्पादन व्यय घटाने पर कुछ नहीं बचता। इस प्रकार की भूमि को लगान रहित या सीमान्त भूमि कहते हैं।” क्योंकि इस भूमि पर कोई बचत प्राप्त न होने के कारण लगान का प्रश्न नहीं उठता। परन्तु प्रथम प्रकार की भूमि को, जिस पर लगान उत्पन्न होता है, अधिसीमान्त भूमि कहा जाता है। अतः अधिसीमान्त तथा सीमान्त भूमि की उपज में अन्तर की बचत को ही आर्थिक लगान अथवा वास्तविक लगान कहते हैं।
प्रो० मार्शल के अनुसार, “किसी व्यक्ति को भूमि या अन्य कोई प्रकृति-दत्त पदार्थों के स्वामित्व के नाते जो आमदनी प्राप्त होती है उसे आर्थिक लगान कहते हैं।”
चूँकि आर्थिक लगान सीमान्त भूमि से अधिक उर्वरता वाली भूमि के स्वामी को अथवा अधिक अच्छी स्थिति वाली भूमि के स्वामी को प्राप्त होता है, इसलिए यह एक प्रकार का सापेक्षिक लाभ है। इसी तथ्य को प्रो० कार्वर ने निम्न शब्दों द्वारा स्पष्ट किया है- “भूमि के किसी टुकड़े का लगान एक निश्चित श्रम तथा पूँजी द्वारा हो भूमि पर जो उपज होगी और जो उपज सबसे घटिया भूमि पर प्राप्त की जा सकती है उनके अन्तर के बराबर उस होता है।
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