मैथिलीशरण गुप्त के जीवन एवं व्यक्तित्व का परिचय दीजिए और उनकी कृतियों पर प्रकाश डालिए।
मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय- मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त, 1886 ई. को उ० प्र० के जिला झाँसी के चिरगाँव में हुआ था। उनके पिता श्री रामचरण और माता काशी देवी थी। उनका पारिवारिक परिवेश वैष्णव संस्कारों से युक्त था। बालक मैथिलीशरण पर भी ये संस्कार बचपन से ही पड़ गये। उनकी प्राथमिक शिक्षा घर पर हुई। विद्यालय में वे पढ़ने गये, परन्तु नियमित शिक्षा नहीं ग्रहण कर सके। स्वाध्याय द्वारा उन्होंने प्रमुख संस्कृत ग्रंथों का अध्ययन किया। लड़कपन से ही वे कविता करने लगे थे। 20 वर्ष की आयु तक उनकी रचनाएँ प्रकाशित होने लगी थी।
मैथिलीशरण जी का प्रथम विवाह बहुत जल्दी हो गया था, परन्तु उनके नवजात पुत्र और पत्नी का असमय निधन हो गया। 1904 में उनका दूसरा विवाह हुआ परन्तु 10 वर्ष बाद दूसरी पत्नी का देहावसान हो गया। 1917 ई. में सरजू देवी से उनका तीसरा विवाह हुआ, जिनसे सात सन्तानें हुईं, पर सभी काल के गाल में समा गई। आठवीं सन्तान 1936 ई. में उर्मिला चरण के रूप में हुई जिन्होंने कविता को अपना जीवन समर्पित किया।
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मैथिलीशरण जी का व्यक्तित्व-
गुप्त जी के व्यक्तित्व को जाने बिना उनको भली भाँति समझना असम्भव है। गुप्त जी की पारिवारिक आत्मीयता, उनका वैष्णव हृदय, राष्ट्र और देश-प्रेम, समन्वयशीलता और मानवीयता, प्राचीन संस्कार और आदर्श भावना उनके काव्य को प्रभावित करते रहे हैं। गुप्त जी को पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी तथा मुंशी अजमेरी से काव्य रचना में प्रेरणा और उत्साह प्राप्त हुआ। गुप्त जी के पिता भी काव्यानुरागी सज्जन थे। बाल्यावस्था में ही गुप्त जी ने उनकी कविता पुस्तक में एक रचना लिख दी, जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने गुप्त जी को कवि बनने का आशीर्वाद दिया, जो गुप्त जी के जीवन में सत्य प्रमाणित हुआ। सन् 1909 ई. में राष्ट्रीय आन्दोलन से प्रेरित होकर वे काव्य क्षेत्र में आए और तब से बराबर साहित्य-रचना करते रहे।
काव्य रचना के साथ ही मैथिलीशरण राष्ट्रीय आन्दोलनों में भी सक्रिय रहे। महात्मा गाँधी के आह्वान पर 1941 ई. में व्यक्तिगत सत्याग्रह करके कारागार में गये। अपनी रचनाओं के द्वारा वे बराबर, स्वाधीनता का बिगुल बजाते रहे। 1912 ई. में उनकी प्रसिद्ध रचना ‘भारत-भारती’ का प्रकाशन हुआ, जिसे ब्रिटिश सरकार ने राजद्रोह माना तथा उस पर प्रतिबन्ध लगाकर उनकी सारी प्रतियाँ जब्त कर ली। इस घटना ने इस महाकवि की ओर महात्मा गाँधी तथा अन्य राष्ट्रभक्तों का ध्यान सहज ही आकृष्ट किया और बाद में महात्मा गाँधी ने उन्हें राष्ट्रकवि कहा। भारत-भारती का प्रकाशन स्वतंत्रता के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है।
स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात् राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त को राज्यसभा का सदस्य नामित किया गया, जिसे बड़ी प्रार्थना करने पर उन्होंने स्वीकार किया। 12 वर्ष तक वे राज्यसभा के सदस्य रहे। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने उनकी महान् साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें डी. लिट्. की उपाधि दी तथा भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ का गौरवपूर्ण अलंकरण प्रदान किया। 78 वर्ष की उम्र में 12 दिसम्बर, 1964 ई. में वे अपनी जन्मभूमि ‘चिरगाँव’ में ही उनकी मृत्यु हो गयी।
मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ-
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपने लम्बे जीवन में बहुत सारो रचनाएँ रच जिनका उल्लेख काल-क्रम से निम्नलिखित है-
1. हेमन्त (प्रथम कविता-(1906), 2. रंग में भंग (1908), 3. भारत-भारती (1912 ई.), 4. तिलोत्तमा (1915 ई.), 5. चन्द्रहास (1916 ई.), 6. किसान (1916 ई.), 7. वैतालिक (1916 ई.), 8. पत्रावली (1916 ई.), 9. शकुंतला (1914-23 ई.), 10. लीला (1919 ई.), 11. पंचवटी (1925 ई.), 12. आर्य (1925 ई.), 13. स्वदेश संगीत (1925 ई.), 14. शक्ति (1927 ई.), 15. विकट भट (1928 ई.), 16. गुरुकुल (1928 ई.), 17. हिन्दू (1929 ई.), 18. रत्रिपथगा (1929 ई.), 19. झंकार (1929 ई.), 20. साकेत (1931 ई.), 21. यशोधरा (1932 ई.), 22. उच्छ्वास (1935 ई.), 23. सिद्धराज (1936 ई.), 24. द्वापर (1936 ई.), 25. मंगल घट, (1937 ई.), 26. नहुष (1940 ई.), 27. कुणाल गीत (1942 ई.), 28. अर्जन-विसर्जन (1942 ई.), 29 विश्व वेदना (1942 ई.), 30. काबा और कर्बला (1942 ई.). 31. अजित (1946 ई.) 32. प्रदक्षिणा (1950 ई.), 33. पृथ्वी पुत्र (1950 ई.), 34. हिडिम्बा (1950 ई.), 35. अंजलि और अर्घ्य (1950 ई.), 36. जय भारत (1952 ई.), 37. भूमि भाग (1953 ई.), 38. राजा-प्रजा (1956 ई.), 39. विष्णुप्रिया (1957 ई.), 40. रत्नावली (1960 ई.), 41.स्वस्ति और संकेत 1983 ई.)।
सम्मान एवं पुरस्कार- 1946 में उन्हें ‘साहित्य वाचस्पति’ की उपाधि, आगरा विश्वविद्यालय ने 1948 में डी. लिट. की मानद उपाधि प्रदान की। 1952 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ सम्मान से अलंकरित किया गया। 1960 में उन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की और से डी. लिट की उपाधि प्रदान की गयी। उन्हें महाकाव्य ‘साकेत’ के लिए ‘मंगला प्रसाद पारितोषित’ भी प्रदान किया गया।
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