अन्तर्राष्ट्रवाद से आप क्या समझते हैं ? वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अन्तर्राष्ट्रवाद की आवश्यकता एवं इसके विकास के उपायों का वर्णन कीजिए।
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अन्तर्राष्ट्रवाद (Internationalism)
अन्तर्राष्ट्रवाद संसार के समस्त देशों (राष्ट्रों) के प्रति प्रेम, सहयोग और परस्पर सहानुभूति की भावना उत्पन्न करता है। यह भावना विश्व के प्रत्येक मानव में, आपस में भाई-भाई की भावना रखती है। यह सम्पूर्ण धरा (पृथ्वी) एक बड़े परिवार (‘वसुधैव कुटुम्बकम्’) के समान है।
पं० जवाहरलाल नेहरू ने हमेशा अपने लेखों और भाषाणों के माध्यम से विश्वपटल पर विश्व शान्ति और अन्तर्राष्ट्रवाद के महत्त्व को उजागर किया। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘भारत एक खोज’ में लिखा है- “अलगाव का मतलब पिछड़ा और विनाश है, विश्व बदल चुका है तथा पुराने अवरोध टूट रहे हैं। इससे जीवन अधिक अन्तर्राष्ट्रीय होता जा रहा है। हमें आने वाले विश्ववाद में अपनी भूमिका का निर्वाह करना है।”
अन्तर्राष्ट्रवाद की भावना को ध्यान में रखते हुए मोरारजी देसाई ने 9 जून, 1978 को संयुक्त राष्ट्र संगठन की महासभा में विश्व शान्ति के महत्त्व को बताते हुए कहा- “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।” अर्थात् सभी सुखी हों, सभी नीरोग हों।
अन्तर्राष्ट्रवाद का अर्थ (Meaning of Internationalism)
जब व्यक्ति अपने राष्ट्र तक सीमित न रहकर समस्त विश्व को अपना निवास स्थान समझने लगता है, इससे ममता करने लगता है, इस मानवता को श्रेष्ठतम वृत्तियों का क्रीड़ास्थल बनाने के प्रयास में जुट जाता है, तब उसकी भावनाएँ राष्ट्रीयता परिधि में न रहकर अन्तर्राष्ट्रीयता की गोद में विचरण करने लगती हैं, वह विराट, विशाल और व्यापक बन जाता है।
अन्तर्राष्ट्रवाद, विश्व-मैत्री और विश्व बन्धुत्व की महान भावनाओं पर आधारित है। मानव मात्र का हित हो, प्राणिमात्र पर समान दृष्टि रहे, विश्व भर में राष्ट्रों की पारस्परिक भिन्नता, उनमें भाईचारे का नाता हो, समस्त वसुधा ही कुटुम्ब के समान प्रतीत हो, अन्तर्राष्ट्रीयता इन्हीं श्रेष्ठ विचारों पर निर्भर करती है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ एवं महात्मा गांधी द्वारा दिये गये अहिंसा और विश्वमैत्री के अमर सन्देश इसी अन्तर्राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाते हैं।
गोल्ड स्मिथ के अनुसार- ‘“अन्तर्राष्ट्रीयता एक भावना है जो व्यक्ति को यह बताती है कि वह अपने राज्य का ही सदस्य नहीं है वरन् विश्व का एक नागरिक भी है।”
इसका अर्थ है कि राष्ट्रों के ऊपर एक विश्व राष्ट्र है और सभी व्यक्ति अपने-अपने राष्ट्रों के साथ-साथ इस विश्व राष्ट्र के भी नागरिक हैं। तब तो राष्ट्र और नागरिकता दोनों की परिभाषाएँ बदलती होंगी। वास्तविकता यह है कि अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना विश्व राष्ट्र का सृजन नहीं करती, अपितु वह संसार के सभी राष्ट्रों के स्वतन्त्र अस्तित्व में विश्वास करती है। यह एक राजनैतिक सम्प्रत्यय है जो निम्नलिखित पाँच मूलभूत सिद्धान्तों पर आधारित है-
(1) सहयोग, (2) अनाक्रमण, (3) शान्तिपूर्ण ढंग से समस्याओं का समाधान, (4) शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व, (5) आन्तरिक मामलों में अनहस्तक्षेप ।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अन्तर्राष्ट्रवाद की आवश्यकता एवं महत्त्व (Need and Importance of Internationalism in the Present Perspective)
आज से सहस्रों वर्ष पूर्व ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का उपदेश हमारे देश भारतवर्ष में दिया गया था। इसमें संसार के प्रत्येक मनुष्य के कल्याण की भावना निहित है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ वैदिक धर्म का सिद्धान्त है, अन्तर्राष्ट्रीयता वर्तमान युग की राजनीति की आवश्यकता है। 1924 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई, परन्तु द्वितीय विश्वयुद्ध को रोकने में यह संस्था असफल हुई। इस समय आज का युग एक नये दौर से गुजर रहा है। इसे राजनैतिक आपदाओं से बचाने से के लिए आज अन्तर्राष्ट्रवाद की आवश्यकता है।
(1) मानव कल्याण- केवल राष्ट्रीयता से मानव का कल्याण नहीं हो सकता है। इसका मुख्य कारण दो विश्वयुद्ध का होना है। अतः मानव कल्याण के लिए व्यक्तियों में सद्भावना, सहानुभूति, सहयोग, परस्पर प्रेम तथा उदारता का विकास करने में अन्तर्राष्ट्रवाद की आवश्यकता है।
(2) स्वतन्त्र अस्तित्व के लिए राष्ट्रों की रक्षा- स्वतन्त्र अस्तित्व ही संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) का सिद्धान्त है। यह तभी सम्भव है जब संसार के सभी व्यक्तियों में अन्तर्राष्ट्रवाद हो। वे संसार के सभी राष्ट्रों के प्रति सद्भाव रखें।
(3) मानव मूल्य व जाति एक है- विश्व के विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यक्ति रहते हैं, परन्तु मानव मूल्य व जाति एक इकाई है तथा सबकी आत्मा एक है। समस्त देशों के व्यक्ति आपस में प्रेम, सहानुभूति, सद्भावना की भावना रखते हैं।
(4) भौतिक आवश्यकताओं पूर्ति के लिए- हमारे देश में नई खोजों व प्रगति के फलस्वरूप हमारी भौतिक आवश्यकताओं में भी बहुत वृद्धि हुई है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सभी राष्ट्र एक-दूसरे पर आश्रित हैं। यह आदान-प्रदान अन्तर्राष्ट्रवाद की स्थिति ही हो सकता है।
(5) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए- विश्व के प्रत्येक राष्ट्र को अपनी विशेषताएँ हैं कुछ प्रकृतिदत्त और कुछ मानव-निर्मित। आज भी देश अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के आदान-प्रदान द्वारा ही आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
(6) राष्ट्रों के पिछड़ेपन के विकास के लिए – संसार में अनेक ऐसे राष्ट्र हैं जो वर्तमान समय में भी पिछड़े हुए हैं। इन राष्ट्रों का विकास तभी हो सकता है जब विकसित राष्ट्र इनकी सहायता करें तथा इन्हें आर्थिक व नई नई तकनीकों से सहयोग प्रदान करें।
(7) विज्ञान व तकनीकी की प्रगति – विज्ञान के सहयोग से मानव ने प्रगति की है तथा विभिन्न क्षेत्रों में नई-नई तकनीकियों की खोज की है। इस बहुमुखी प्रगति के फलस्वरूप विश्व के विभिन्न देशों की पृथक्ता का अन्त हो गया है।
अन्तर्राष्ट्रीयता के लिए शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Education for Internationalism)
अन्तर्राष्ट्रवाद का विकास करने के लिए शिक्षा के उद्देश्यों को दो समूहों में बाँटा जा सकता है- (A) सामान्य उद्देश्य, (B) यूनेस्को द्वारा प्रतिपादित उद्देश्य
(A) सामान्य उद्देश्य
- छात्रों को विश्व नागरिकता के लिए तैयार करना ।
- उनमें स्वतन्त्र विचार, निर्णय, भाषण और लेखन की योग्यता का विकास किया जाये।
- उनको अन्धी और संकीर्ण राष्ट्रीयता का खण्डन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाये।
- उनको विश्व की समस्याओं से परिचित करया जाये और उनका समाधान करने के लिए लोकतंत्रीय ढंगों को बताया जाये।
- मानव संस्कृति और विश्व नागरिकता के विकास के लिए उनको सभी राष्ट्रों की उपलब्धियों का मूल्यांकन और आदर करना सिखाया जाये।
(B) यूनेस्को द्वारा प्रतिपादित उद्देश्य
- बालकों और बालिकाओं को समाज के निर्माण में सक्रिय भाग लेने के लिए तैयार किया जाना चाहिए।
- बालकों को अपने स्वयं के सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पक्षपातों को महत्त्व देने की शिक्षा दी जाये।
- मानव संस्कृति और विश्व नागरिकता के विकास के लिए उनको सभी राष्ट्रों की उपलब्धियों का मूल्यांकन तथा आदर करना सिखाया जाये।
- उनको विश्व में एक साथ रहने के लिए आवश्यक बातों का ज्ञान कराया जाये।
- उनको विश्व के समस्त व्यक्तियों के रहन-सहन के ढंगों, मूल्यों और आकांक्षाओं से परिचित कराया जाये।
अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास के उपाय (Measures to Develop Internationalisation)
अन्तर्राष्ट्रीयता की शिक्षा के लिए हमें आधुनिक शिक्षा के उद्देश्यों, उसके पाठ्यक्रम, उसकी पाठ्यचर्या एवं शिक्षण विधियों व अन्य शैक्षिक कार्यक्रमों में थोड़ा-बहुत परिवर्तन करना होगा।
इनका संक्षिप्त विवेचन निम्न प्रकार है-
(1) अन्तर्राष्ट्रीय खेलकूद – अन्तर्राष्ट्रीय एकता के विकास के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलकूदों का आयोजन कराना चाहिए। व्यावहारिक रूप में यह देखा जाता है कि इस स्तर की प्रतियोगिताओं में जब कोई देश जीतता अथवा हारता है तो पूरे देश में खुशी अथवा शोक मनाया जाता है। इससे दुर्भावना नहीं, प्रतिस्पर्द्धा बढ़ती है। इस भावना से ही राष्ट्र तरक्की करते हैं।
(2) अन्तर्राष्ट्रीय दिवस – प्रत्येक विद्यालय में संसार के सभी राष्ट्रों के झण्डे होने चाहिए और सभी अवसरों पर सभी राष्ट्रों के झण्डे फहराने चाहिए। सहगामी क्रियाओं के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय दिवस मनाये जायें।
(3) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम – सब देशों को अपने-अपने देश की सांस्कृतिक झाँकी प्रस्तुत करनी चाहिए और इसके साथ-साथ देश-विदेश की संस्कृतियों से भी बच्चों को परिचित कराना चाहिए ताकि बच्चे उनका आदर करने लगें और उनमें अन्तर्राष्ट्रीयता का विकास हो ।
(4) अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियाँ – अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में विभिन्न राष्ट्रों की प्रदर्शनियाँ बहुत सहायक सिद्ध हो सकती हैं, जैसे- साहित्य, पाठ्य पुस्तकें, वेशभूषा, चित्रकारी, शिल्प, कुटीर उद्योग, वैज्ञानिक आविष्कार आदि की प्रदर्शनियाँ। छोटे-छोटे बच्चे देश-विदेश के बने खिलौनों में बड़ी रुचि लेते हैं, अतः उनके लिए विभिन्न राष्ट्रों की प्रदर्शनियाँ लगानी चाहिए।
(5) अन्तराष्ट्रीय वर्ग के नेताओं के भाषण – विद्यार्थियों के बीच देश-विदेश के नेताओं को उपस्थित कर उनके भाषण १८२
कराने चाहिए, जिससे बच्चे एक-दूसरे के विचारों से परिचित होने का अवसर प्राप्त करेंगे। यह कार्य अन्तर्राष्ट्रीय दिवसों पर किया जा सकता है।
(6) अन्तर्राष्ट्रीय नेताओं के जन्मदिन – अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास के लिए हमें विदेशी नेताओं के जन्मदिन भी मनाने चाहिए। प्रायः आजकल प्रत्येक राष्ट्र में उन नेताओं के गीत गये जाते हैं जो अपने राष्ट्र का प्रभुत्व बनाते हैं।
(7) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर छात्रों के अध्ययन की व्यवस्था – हम देखते हैं कि जो छात्र दूसरे देशों में जाकर अध्ययन करते हैं, उनके हृदय में उन देशों के लिए उतना ही प्रेम हो जाता जितना अपने देश के लिए। यह कार्य बड़े पैमाने पर तो सम्भव नहीं है। मेधावी छात्रों के लिए यह सुविधा उपलब्ध करायी जा सकती है।
(8) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षकों का आदान-प्रदान – अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षकों का आदान-प्रदान होना चाहिए। यह कार्य कम-से-कम विश्वविद्यालय स्तरों पर तो किया ही जा सकता है। जब एक देश के शिक्षक दूसरे देश में जायेंगे तो अनेक प्रकार के देश-विदेश की संस्कृतियों का प्रसार होगा।
(9) रेडियो व टेलीविजनों पर अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रम – रेडियो और टेलीविजनों पर अन्तर्राष्ट्रीय भावना के विकास में सहयोगी कार्यक्रमों का प्रसारण करना चाहिए। हमें इस बात की बड़ी प्रसन्नता है कि हमारी सरकार इस ओर प्रयत्नशील है। अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में विद्यालयों के पुस्तकालयों में एवं वाचनालयों में अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व का साहित्य मँगवाना चाहिए। इसके साथ-साथ समाचार पत्र-पत्रिकाएँ भी बड़ा सहयोग दे सकते हैं।
(10) विदेश भ्रमण – राष्ट्र संकीर्णता से छुटकारा पाने के लिए संसार का दर्शन आवश्यक है। यद्यपि सब विद्यार्थियों को यह सहूलियत नहीं दे सकते, लेकिन कुछ विद्यार्थी इसका लाभ उठा सकें तो ठीक है। अन्य छात्र उनसे सुनकर ही लाभ उठा सकते हैं। देश-विदेश के दर्शन से संसार की एकता की अनुभूति सहज में ही होती है।
(11) अन्तर्राष्ट्रीय मित्र – बच्चे पत्र व्यवहार द्वारा देशों में अपने मित्र बनायें और वे समय-समय पर एक शुभकामना करेंगे तो एक-दूसरे के प्रति सद्भावना का विकास होगा और अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास के लिए सद्भावना आवश्यक है।
(13) समान व्यवहार- हमें दूसरे राष्ट्र के बच्चों और वस्तुओं, विशेषकर वहाँ के राष्ट्रध्वज एवं संस्कृति को आदर की दृष्टि से देखना चाहिए। अच्छाई को स्वीकार करना और बुराई को त्यागने की प्रवृत्ति का विकास करना चाहिए।
(14) पाठ्य पुस्तकों में सुधार – भाषा की पाठ्य पुस्तकों में आवश्यक संशोधन किया जाना चाहिए। उनमें से ऐसी विषय सामग्री हटा देनी चाहिए, जिससे संकीर्ण राष्ट्रीयता को बढ़ावा मिलता है। इसके बिना अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के जीवन चरित्र, घटनाओं आदि का समावेश करना चाहिए। देश-विदेश की संस्कृति, प्राकृतिक और संस्कृति एवं सभ्यता से सम्बन्धित सामग्री का पाठ्य पुस्तकों में समावेश करना चाहिए।
(15) शिक्षण विधियों में सुधार- शिक्षण विधियों को विशेष रूप से अपनाना चाहिए, जिनमें बच्चों को स्वयं करके, स्वयं के अनुभव से सीखने के अवसर मिलते हैं। अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास के लिए बच्चों मे स्वतन्त्र चिन्तन, स्वतन्त्र अभिव्यक्ति, आत्मविश्वास व विस्तृत दृष्टिकोण का होना आवश्यक है और इन सबका विकास उच्च शिक्षण विधियों द्वारा ही किया जा सकता है।
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