पॉलो फ्रेरा का संक्षिप्त परिचय दीजिए। पॉलो फ्रेरा के शैक्षिक दर्शन की विवेचना कीजिए। अथवा पॉलो फ्रेरा के शैक्षिक दर्शन की व्याख्या कीजिए। पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों एवं साक्षरता कार्यक्रमों पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
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पॉलो फ्रेरा (Paulo Friere )
पॉलो फ्रेरा का जीवन परिचय (Life History of Paulo Friere)- पॉलो फेरा का जन्म सन् 1921 में रैसिफ में हुआ। रैसिफ को उत्तर-पूर्वी ब्राजील के एक छोटे से नगर के रूप में जाना जाता है। फ्रेरा ने जिस परिवार में जन्म लिया वह साधारण निम्न मध्यम वर्गीय परिवार था, किन्तु सन् 1921 में शेयर बाजार में भारी गिरावट के कारण ब्राजील की अर्थव्यवस्था चौपट हो गयी। उस काल में फ्रेरा के परिवार में दो टाइम का भोजन मिलना भी कठिन हो गया।
यह समय अत्यन्त संकट का था। पॉलो फ्रेरा की प्रारम्भिक शिक्षा रैसिफ के स्कूल में हुई, किन्तु सन् 1929 के आर्थिक संकट के बाद फ्रेरा स्कूल में नियमित रूप से पढ़ाई नहीं कर पा रहे थे। स्कूल में वे पीछे रह गये। फ्रेस ने देखा कि उस समय उसके स्कूल के कुछ मित्र खाने के लिए तरस रहे थे तो कुछ के पास खाने के लिए और पहनने के लिए कमी बिल्कुल नहीं थी। उस समय फ्रेरा के मन में शंका हुई कि ईश्वर कुछ को गरीब और कुछ को अमीर क्यों बनाता है। बाद में उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि गरीबी-अमीरी ईश्वर प्रदत्त न होकर सामाजिक वर्गभेद के कारण है। फिर भी वे इसका वास्तविक कारण खोज नहीं पा रहे थे। ग्यारह वर्ष की अल्प आयु में ही उन्होंने एक कठिन शपथ ले ली कि दुनिया से भूख के कम करने के लिए वे सभी सम्भव उपाय करेंगे।
फ्रेम ने सन् 1959 में रैसिफ विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और उसी विश्वविद्यालय में शिक्षा के इतिहास तथा शिक्षा दर्शन के प्रोफेसर के रूप में इनकी नियुक्ति हो गयी इसके बाद उन्होंने साक्षरता का कार्यक्रम प्रारम्भ किया।
सन् 1964 में ब्राजील का नियन्त्रण सेना के एक गुट के हाथ में आ गया। फ्रेरा का जनजागरण आन्दोलन सैनिकों को कैसे अच्छा लग सकता था। फ्रेरा को बन्दी बना लिया गया और कारावास में डाल दिया गया।
इनका जीवन इसके बाद अत्यन्त कठिन हो गया। जीवन के आगे के पन्द्रह वर्ष फ्रेरा ने देशनिकाला में बिताये। सन् 1979 में ब्राजील में जब आम माफी की घोषणा हुई तो वे अपने देश वापस आये।
फ्रेरा ने अपना कुछ समय चिली में व्यतीत किया बाद में संयुक्त राज्य अमेरिका में रहे। फिर जेनेवा में स्थायी रूप से बसने के लिए चले गए। जेनेवा में वर्ल्ड कौंसिल फॉर चर्चेज के शिक्षा विभाग के लिए उन्होंने कार्य किया। सारी दुनिया का उन्होंने भ्रमण किया। ऑस्ट्रेलिया, निकारागुआ, तंजानिया, पुर्तगाल, मेक्सिको आदि देशों के साथ-साथ उन्होंने भारत का भी भ्रमण किया और सभी जगह साक्षरता कार्यक्रम को व्यवस्थित करने में उन्होंने सहायता की। इस कार्यक्रम को उन्होंने आगे बढ़ाया।
साओ पालो ब्राजील का एक बहुत बड़ा नगर है। पालो फ्रेरा आजकल वहाँ के शिक्षा सचिव हैं। साओ पालो के मार्क्सवादी मेयर ने फ्रेरा को इस पद पर आमन्त्रित किया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
पॉलो फ्रेरा का शैक्षिक दर्शन (Educational Philosophy of Paulo Friere)
फ्रेरा ने अपने शैक्षिक दर्शन में स्पष्ट किया है कि आवश्यकता पूर्ति के लिए, व्यक्ति वातावरण के साथ जो प्रतिक्रिया करता है यही प्रतिक्रिया शिक्षा प्रक्रिया है। शिक्षा व्यक्तित्व विकास का कारक है। औद्योगिक शिक्षा तथा व्यक्तित्व विकास में पारस्परिक निर्भरता है। इनके पारस्परिक सम्बन्ध को हम इस प्रकार समझ सकते हैं जैसे बचपन से ही व्यक्तित्व विकास की हमारी आवश्यकता होती है। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए हम शिक्षा ग्रहण करते हैं। शिक्षा ग्रहण करने से हमारे व्यक्तित्व का विकास होता है। आवश्यकता ही हमारी शिक्षा का स्वरूप निर्धारित करती है। शिक्षा के अनुसार ही हमारे व्यक्तित्व का विकास होता है। व्यक्तित्व विकास के अनुरूप ही हमारी आवश्यकता का निर्माण होता है।
फ्रेरा के शैक्षिक दर्शन को हम निम्न शीर्षकों के माध्यम से समझ सकते हैं-
फ्रेरा का पाठ्यक्रम (Curriculum of Friere)
फ्रेरा ने पाठ्यक्रम में पूर्णरूप से परिवर्तन करने की बात को स्वीकार किया है। वे पहले ईसा मसीह से प्रभावित थे और धार्मिक पुस्तकों के पठन-पाठन को आवश्यक समझते थे। ये बाद में मार्क्स की ओर आकर्षित हुए किन्तु मार्क्स के सिद्धान्तों को वे आँख मूँदकर नहीं स्वीकार कर पाये। मार्क्स की अनेक बातों से फ्रेरा असहमत थे और उनकी आलोचना भी उन्होंने की। मार्क्स से वे प्रेरित हुए और उन्होंने सभी छात्रों को मार्क्स के अनुसार सामाजिक अन्तर्विरोधों को समझने का परामर्श दिया।
फ्रेरा ने अपने पाठ्यक्रम में सार्च, एरिक, फ्रॉम, माओ, मार्टिन लूथर किंग के विचारों को पाठ्यक्रम का अंग बनाना चाहते थे। फ्रांज फैनल की पुस्तक ‘संसार के अभागे लोग’ (द रैचिड ऑफ द अर्थ) से वे बहुत प्रभावित थे। गणित, इतिहास, भूगोल को पढ़ाना है किन्तु प्रायः बालक इनमें फेल हो जाते हैं। हमें इनको सरल करके पढ़ाना है। ऐसी इनकी विचारधारा थी।
पाठ्यक्रम के पुनर्गठन पर इनका जोर था। फ्रेरा पाठ्यक्रम को पुनर्गठित करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने कहा कि दार्शनिकों, कला शिक्षकों, भौतिक विज्ञानियों समाजशास्त्रियों की सहायता की जरूरत है। पाठ्यक्रम को विस्तृत और उपयोगी बनाने के लिए इनकी सहायता कारगर सिद्ध होगी। शिक्षा, कला, नीतिशास्त्र, कामवासना, मानव अधिकार, खेल, सामाजिक वर्ग, भाषा, दार्शनिक विचारधारा जैसी ज्ञान की शाखाओं पर चर्चा होनी चाहिए जिससे पाठ्यक्रम की पुनर्रचना ठीक से हो सके। पाठ्यचर्या में अल्पसंख्यकों के मूल्यों को भी शामिल करना चाहिए।
फ्रेरा के अनुसार पाठ्यक्रम को जड़, असंवेदनशील एवं अनुपयोगी नहीं होना चाहिए। इसकी पूर्णतः उपयोगिता होनी चाहिए। प्रायः यह देखा जाता है कि पाठ्यक्रम इसके निर्माताओं के लाभ के लिए गठित किया जाता है न कि छात्र के लाभ के लिए।
फ्रेरा का विचार था कि सामान्य वर्ग के लिए जो पाठ्यक्रम आवश्यक होता है, सम्भव है प्रभुत्वसम्पन्न लोगों के लिए वह हितकारी न हो।
अपने पाठ्यक्रम में समाजवाद व साम्यवाद के विचारों को आदरणीय स्थान देना चाहिए। फ्रेरा लोकतन्त्र के वास्तविक स्वरूप को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहते थे न कि उसके वर्तमान विकृत रूप को। पाठ्यक्रम में लोकतन्त्रीय भावना के वास्तविक स्वरूप को आवश्यक मानते थे।
फ्रेरा की शिक्षण विधि (Teaching Method of Friere)
फ्रेरा प्रभुत्व सम्पन्न लोगों के विरोधी थे। फ्रेरा के अनुसार, “साक्षरता का कोई अर्थ तभी है जब निरक्षर व्यक्ति दुनिया में अपनी स्थिति, अपने काम और इस दुनिया में बदलाव लाने की अपनी क्षमता लेकर सोचने लगे। यही चेतना है। उन्हें पता चले कि दुनिया उनकी है, प्रभुत्वसम्पन्न वर्ग की नहीं।”
इन्होंने एक अद्भुत शिक्षण विधि को अपनाया। साक्षर करने की शिक्षण विधि जो फ्रेरा ने अपनायी वह आश्चर्यजनक थी। उनके अनुसार कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिन्हें प्रजनक या उत्पादक शब्द कहना चाहिए। झोंपड़-पट्टी, वर्षा, जमीन, साइकिल आदि ऐसे ही शब्द हैं। ये उत्पादक शब्द भाव तथा अर्थ से स्पन्दित होते हैं। ये शब्द सीखने वाले व्यक्तियों के समूह की इच्छा, आकांक्षा, माँग, चिन्ता, स्वप्न, कुण्ठा को व्यक्त करते हैं। पुर्तगाली भाषा के मूल स्वनिम सिखाने के लिए फ्रेरा के अनुसार पन्द्रह या अठारह शब्द पर्याप्त प्रतीत होते हैं। इस सन्दर्भ में फ्रेरा का कथन ध्यान देने योग्य है। यहाँ पर फ्रेरा के कथन से उद्धरण दिया जा रहा है।
काफी प्रतीत होते हैं। उदाहरण के लिए ईंट शब्द को लीजिए ईंट के सभी पहलुओं की चर्चा करने के बाद हम उनके सामने शब्द रखते हैं- तिजोको फिर इसे अक्षरों में बाँटते हैं ति-जो-को। इसके बाद हम स्वनिम परिवार को लाते हैं- त-ते-ति-तो-तू, ज-जे-जि-जो-जू, ल-ले-लि-लो-यू । उच्चारण ध्वनियों को समझते ही पूरा ग्रुप शब्द बनाने लगता है- तातू, लूता (संघर्ष), लोग (भण्डार), जैक्टो (जैट) इत्यादि । कुछ सहभागी किसी अक्षर से कोई स्वर ले लेते हैं, उसे कितो अन्य अक्षर के साथ लगाते हैं, फिर उसमें कोई तीसरा अक्षर जोड़कर शब्द-निर्माण करते हैं। एक निरक्षर ने पहली ही रात कहा- तू जा ले ( तुम पहले से ही पढ़ते हो) । एक संस्कृति-मण्डल में एक सहभागी ने पाँचवें दिन ब्लैक बोर्ड पर लिखा- ओ पावो रिजाल्वरोस प्रोब्लेम्स दो ब्राजील वोतांदो कंसीन्ते (जनता ब्राजील की समस्याओं को कुशल मतदान द्वारा हल कर लेगी।) आप इस तथ्य की व्याख्या कैसे करेंगे कि एक आदमी जो अभी कुछ ही दिन पहले निरक्षर था। इतने जटिल स्वनिमों वाले शब्द कैसे लिखने लगा ?
यह तथ्य सर्वविदित है कि आवश्यकता पूर्ति के लिए साधन का ज्ञान हमें समाज से ही प्राप्त होता है। इसके साथ ही साधन का स्वरूप भी समाज ही निर्धारित करता है। उदाहरणार्थ-शरीर ढकने के लिए हमें वस्त्र साधन का ज्ञान समाज से ही प्राप्त होता है। इसके साथ ही वस्त्रों का स्वरूप भी समाज ही निर्धारित करता है। जैसे-ग्रामीण समाज में छोटी उम्र से ही लड़कियाँ साड़ी पहनना शुरू कर देती हैं और शहरी समाज में काफी उम्र तक लड़कियाँ सलवार- र-कुर्ता, स्कर्ट-ब्लाउज तथा जीन्स-टॉप आदि वस्त्र पहनती रहती हैं।
समाज में प्रत्येक कार्य का सम्पादन एक निश्चित स्तर से होता है। समाज में विभिन्न कार्यों के लिए विभिन्न प्रकार की विभिन्न स्तरों की योग्यता वाले व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। उदाहरणार्थ- भवन निर्माण योजना में एक व्यक्ति नक्शा बनाता है, दूसरा उसको क्रियान्वित करता है। इस योजना को पूर्ण करने के लिए हमें दीवार बनाने वाले, फर्श बनाने वाले, छत बनाने वाले, वायरिंग करने वाले, फिटिंग करने वाले, प्लम्बिंग करने वाले तथा सफेदी करने वाले आदि विभिन्न प्रकार का कार्य करने वाले मिस्त्रियों की आवश्यकता होती है। एक मिस्त्री दूसरे प्रकार का कार्य करने वाले मिस्त्री का कार्य उचित ढंग से नहीं कर सकता है। इसीलिए न केवल भवन निर्माण में बल्कि किसी भी योजना में मिस्त्रियों की ही अधिक आवश्यकता होती है। मिस्त्रियों की मानसिक योग्यता का स्तर सामान्य होता है क्योंकि इनके अपने कार्य को भली प्रकार से करने के लिए सोच-विचार की अपेक्षा कौशल की अधिक आवश्यकता होती है। इसी प्रकार के सामान्य योग्यता वाले व्यक्तियों को विभिन्न व्यवसायों में प्रशिक्षण देकर कुशल मिस्त्रियों (तकनीशियनों) को तैयार करने के उद्देश्य से ही औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना हुई है। बढ़ते हुए औद्योगीकरण के कारण तकनीकी शिक्षा का महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। पिछले चार दशकों में तकनीकी शिक्षा संस्थानों का काफी विकास हुआ है और भविष्य में भी होने की सम्भावना है। अपनी जीविकोपार्जन के लिए फ्रेरा प्रत्येक को सुझाव देते हैं।
वे कहते हैं कि भूख व अन्य दैहिक आवश्यकताओं की पूर्ति सभी को करनी है। हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए कि व्यक्ति साक्षर व शिक्षित होकर अपनी आवश्यकता की पूर्ति अच्छी तरह कर सके।
फ्रेरा ईसा मसीह के सच्चे अनुयायी थे और शिक्षा द्वारा बालक के व्यक्तित्व का निर्माण करना चाहते थे। फ्रेरा का जीवन दर्शन ईसा मसीह के जीवन व दर्शन से प्रभावित था।
फ्रेरा का शैक्षिक आदर्श (Educational Ideals of Friere)
फ्रेरा की यह मान्यता है कि अपने स्वयं के तुच्छ स्वार्थ से व्यक्ति इतना ग्रसित है कि वह दूसरों को क्षति पहुँचाने में लेशमात्र भी संकोच नहीं कर पा रहा है। अनेकानेक मानसिक यातनाओं और कुपरिस्थितियों से वह ग्रसित है। वैज्ञानिक प्रगति के बाद भी मानव को आत्मीय शान्ति नहीं है। वह स्वनिर्मित वस्तुओं का कृतदास हो गया है। ‘सामाजिक न्याय का सम्प्रत्यय विकसित नहीं हो पाया है, जिसके कारण मानवीय दृष्टिकोण संकुचित और एकांगी हो गया है। यही कारण है कि वह अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए दूसरों की आवश्यकताओं को नहीं समझ पाता और अन्याय हो जाता है। आज हम समाजवाद की बात करते हैं। समाजवाद और पूँजीवाद दोनों की कल्पना आर्थिक मनुष्य की कल्पना है, जो व्यर्थ और काम को एकमात्र पुरुषार्थ मानती है, लेकिन ‘आर्थिक मनुष्य एक अमूर्त प्रत्यय है। मानवतावाद अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को महत्त्व देकर सम्पूर्ण मानव को इकाई मानकर चलता है। शिक्षालयों में छात्रों और अध्यापकों की अनेकानेक समस्याएँ हैं। आये दिन घेराव, धरना, तोड़-फोड़, मारपीट इत्यादि अभद्रतापूर्ण घटनाएँ हो रही हैं। इसका कारण मानवतावादी शिक्षा का अभाव है। मानवतावादी शिक्षा द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में सौहार्द्र, प्रेम, करुणा, मुदिता का संचार होगा और सर्वत्र शान्ति और आतृत्व होगा।
फ्रेरा ने मानवतावाद पर ध्यान केन्द्रित किया है। फ्रेरा ने ठीक ही कहा है कि निरंकुश राज्य और सम्पन्न लोग नहीं चाहते कि किसान पढ़ने प्रक्रिया में उठ खड़े हों। शिक्षा का आदर्श दलितों, किसानों, मजदूरों को साक्षर व शिक्षित करना आवश्यक है। मानवतावाद का यही सन्देह है। वैसे, मानवतावाद शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जर्मन शिक्षाविद् एफ. जे. नीथ हैमर (F.J. Neith Hamer) ने ऐसे शिक्षा दर्शन के अर्थ में किया था जो विद्यालय पाठ्यक्रम के रूप में क्लासिक साहित्य के पठन-पाठन का समर्थन करता है। 14वीं सदी से 16वीं सदी का काल यूरोप के इतिहास में पुनर्जागरण काल है जिस काल में शिक्षा में मानवतावाद ने जोर पकड़ा, यह शास्त्रीय मानवतावाद था। फ्रेरा ने जिस मानवतावाद को अपनाया वह आज के मजदूर व दलित वर्ग के प्रति प्रेम से परिपूर्ण है।
वर्तमान युग औद्योगीकरण का है। औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप मनुष्य मशीन के पुर्जे के सदृश्य हो गया जिससे विद्रोह की भावना का संचार हुआ। नगरीकरण औद्योगीकरण के फलस्वरूप मनुष्य का क्रन्दन या चीख यानि आर्तनाद ही मानवतावाद कहा जाएगा। मानवतावाद कल्पनाओं में नहीं बाह्य जगत में अस्तित्ववान है। वह विचारों, शुभाकांक्षाओं एवं सद्भावनाओं से ओत-प्रोत है। शिक्षा का यही उद्देश्य होना चाहिए।
“फ्रेरा के शैक्षिक विचारों की यह मूलभूत मान्यता है कि छात्र जो ज्ञान प्राप्त करते हैं उससे वे शक्ति-सम्पन्न बनते हैं। साक्षरता कौशल को अर्जित करने में वे शक्ति-सम्पन्न नहीं बनते। एक अद्भुत उदाहरण है कि कुछ साक्षरता पाठों के बाद एक किसान उठकर बोला- “इसके पहले हमें पता नहीं था कि हम जानते थे। अब हमें पता है कि हम जानते हैं। चूँकि आज हमें पता है कि हम जानते थे, अतः आज हम और ज्यादा जान सकते हैं।”
इस प्रकार फ्रेरा बच्चों की जिज्ञासा को शान्त करते हुए अपनी बात को मनोवैज्ञानिक ढंग से समझाते चलते हैं। किसानों को शिक्षित करने की फ्रेरा की विधि को आज सारा संसार प्रशंसा की दृष्टि से देखता है।
फ्रेरा के अनुसार शिक्षण विधि ऐसी होनी चाहिए जिससे सीखने वाला अपनी जिन्दगी के अनुभव से दूर न हो। उसे ऐसा न लगे उसकी भाषा, संस्कृति और परम्परा का शिक्षा निषेध करती है।
इस प्रकार फ्रेरा ने मानवतावादी दृष्टिकोण को सबके समक्ष रखते हुए अपने शैक्षिक दर्शन को प्रगति प्रदान करने, परम्पराओं एवं संस्कृतियों के सृजन की बात को स्वीकार किया है।
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