हिन्दी शिक्षक की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए। अथवा हिन्दी शिक्षक के प्रमुख गुण एवं कर्त्तव्य की विवेचना कीजिए।
हिन्दी शिक्षक के गुण, विशेषताएँ एवं व्यक्तित्व
हिन्दी के अध्यापन के महत्व को देखते हुए इसके शिक्षक को निम्नांकित गुणों में पारंगत होने की अपेक्षा की जाती है-
(1) हिन्दी साहित्य-प्रेमी- हिन्दी के अध्यापक की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शर्त यही है कि उसे साहित्य-प्रेमी होना चाहिए, क्योंकि हृदय में साहित्य प्रेम न होने पर वह विषय के प्रकृति संवेदनशीलता, जागरूकता आदि का प्रदर्शन नहीं कर पायेगा। इसके परिणामस्वरूप छात्रों में विषय के प्रति उत्सुकता उत्पन्न न होगी।
(2) हिन्दी की समस्त विधाओं में पारंगत- किसी हिन्दी के अध्यापक को हिन्दी की समस्त विधाओं; जैसे- कहानी, नाटक, एकांकी, उपन्यास, रिपोर्ताज, लघुकथा, निबन्ध आदि में पारंगत होना चाहिए। अध्यापक को समझना चाहिए कि हिन्दी छात्र की मातृभाषा है, इसका क्षेत्र व्यापक है। विद्यार्थी किसी भी विधा से सम्बन्धित प्रश्न कर सकता है।
(3) हिन्दी की समकालीन गतिविधियों से परिचित- मातृभाषा का शिक्षण करने वाले अध्यापक को हिन्दी की समकालीन गतिविधियों से परिचित होना चाहिए। उसे वर्तमान समय में नवीन प्रवृत्तियों का ज्ञान होना चाहिए। हिन्दी के क्षेत्र में कौन-कौन सी नवीन रचनायें उपलब्ध हैं तथा कौन-कौन से कवि या लेखक अपनी किन रचनाओं के कारण सुर्खियों में हैं, यह मालूम होना चाहिए। वर्तमान समय के कवियों और लेखकों के साहित्यिक योगदान की उसे पूर्ण जानकारी होनी चाहिए।
(4) सभ्यता और संस्कृति – मातृभाषा का शिक्षक होने के कारण हिन्दी के अध्यापक को सभ्यता और संस्कृति का ज्ञान होना चाहिए। छात्र अपने अतीत का गौरव जानने के लिए मातृभाषा के शिक्षक का ही आश्रय लेते हैं।
(5) सत्यवादी- हिन्दी शिक्षक को सत्यवादी होना चाहिए क्योंकि शिक्षार्थी उसे अपनी सभ्यता और संस्कृति का प्रतिरूप मानते हैं। अपने आदर्श के रूप में देखते हैं।
(6) कुशल-प्रेरक- इन गुणों के अतिरिक्त हिन्दी अध्यापक एक कुशल प्रेरक भी होना चाहिए जो अपने शिक्षण से विद्यार्थी में हिन्दी के प्रति उत्सुकता और प्रेम को जन्म दे सके। उसे प्रेरक इसलिए भी होना चाहिए कि हिन्दी का ज्ञान ही विद्यार्थी को आगामी कक्षाओं में अध्ययन के योग्य समर्थ बनाता है। हिन्दी के शिक्षक को समझना चाहिए कि प्रेरणा के अभाव में विद्यार्थी हिन्दी की आधारभूत बातों से वंचित रह जायेगा तथा उसका भविष्य कठिनाइयों से भर जायेगा। अतः विद्यार्थियों को आगामी कठिनाइयों से बचाने के लिए उसे कुशल प्रेरक की भूमिका निभानी चाहिए।
(7) शिक्षण में निष्ठा और स्वाभिमान – हिन्दी के अध्यापक को निष्ठा के साथ अपना कार्य सम्पादन करना चाहिए क्योंकि निष्ठा के अभाव में उसका प्रदर्शन घटिया होगा। वह कार्य को मात्र खाना पूरी समझकर पूरा करेगा। ऐसी स्थिति में शिक्षण कार्य मात्र औपचारिकता बनकर रह जायेगा। शिक्षण के कोई परिणाम सामने न आयेंगे।
स्वाभिमान भी हिन्दी के शिक्षक का एक प्रमुख गुण होना चाहिए। वह उस विषय का शिक्षण कर रहा है जो विद्यार्थी की तथा स्वयं उसकी मातृभाषा है अतः उसके मन में गौरव और स्वाभिमान होना चाहिए कि वह हिन्दी जैसे महान विषय का शिक्षण कर रहा है।
(8) दुर्व्यसनों से मुक्त- यह विशेषता हिन्दी शिक्षक की अनिवार्य शर्त होनी चाहिए कि उसे दुर्व्यसनों से मुक्त होना चाहिए। देखा जाता है कि कुछ शिक्षक पान-बीड़ी, तम्बाकू आदि का सेवन करते हैं तथा इनका गम्भीर दुष्प्रभाव छात्रों की मानसिकता पर पड़ता है। वे अध्यापक के बारे में गलत धारणा बना लेते हैं। स्वयं दुर्गुणों से ग्रस्त रहने पर वह विद्यार्थियों को अच्छी बातें न सिखा पायेगा। स्वयं ही सोचें कोई डॉक्टर स्वयं सिगरेट पी रहा हो तथा अपने मरीज से सिगरेट की हानियों का जिक्र करे तो मरीज अपने डॉक्टर की बातों को कितनी गम्भीरता से लेगा।
(9) आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी- हिन्दी के शिक्षक को आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होना चाहिए। उसे साफ-सुथरे आकर्षक, सुरुचिपूर्ण, वस्त्रों को धारण करना चाहिए। उसकी मुख- मुद्रा आत्मविश्वास से पूर्ण होनी चाहिए। शिक्षण के समय अटकना, शब्दों की पुनरावृत्ति तथा तकिया कलाम आदि दोषों से मुक्त होना चाहिए। व्यक्तित्व का यह भी एक अभिन्न अंग है कि शिक्षण के समय धाराप्रवाह और साधिकार बोले। ऐसा करने से विद्यार्थी शिक्षक की बातों को गम्भीरता से लेते हैं तथा एकाग्रचित्त होकर सुनते हैं।
(10) शिक्षण कला में दक्ष- शिक्षण कला में दक्षता प्रत्येक हिन्दी शिक्षक को प्राप्त करनी चाहिए क्योंकि हिन्दी का विषय ऐसा विषय है जिसमें भिन्न-भिन्न परिवेश से आने वाले विद्यार्थी प्रवेश लेते हैं। ऐसे में उनकी हिन्दी अध्यापक से बहुत सारी आशायें होती हैं। शिक्षण कला के अभाव में वह उन सभी को विषय का समुचित ज्ञान न करा पायेगा तथा विद्यार्थी ज्ञानरहित रह जायेंगे। प्रत्येक विद्यार्थी भिन्न-भिन्न प्रकार की मानसिक योग्यता रखता है। अतः उसे सभी विद्यार्थियों को ध्यान रखना चाहिए तथा ऐसी विधि अपनानी चाहिए जिससे समस्त विद्यार्थियों का समाधान हो जाये।
(11) समदर्शी तथा छात्रों का शुभचिन्तक- यह गुण तो सभी विषय के अध्यापकों में होना चाहिए किन्तु हिन्दी के अध्यापक के विषय में इस गुण की महत्ता और भी बढ़ जाती है। इसका कारण यह है कि छात्रों को समान रूप से देखने के कारण विद्यार्थी उसके प्रति सम्मान की दृष्टि रखने लगते हैं। इसका प्रभाव शिक्षण के समय देखा जाता है विद्यार्थी उसे अपना शुभ-चिन्तक समझते हैं तथा उसकी बातों को गौर से सुनते हैं।
(12) वाणी में ओज- ओजस्विता का एक महान गुण है जो प्रायः लेखकों, कवियों और है महान राजनेताओं में पाया जाता है किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि अध्यापक को स्वयं ही महान होना चाहिए। कथन का मूल आशय इतना ही है कि हिन्दी अध्यापक को अपनी वाणी में आत्मविश्वास, गम्भीरता एवं प्रभावशीलता इतनी अवश्य विकसित करनी चाहिए कि विद्यार्थी उसकी बातों को सुनने के लिए उत्सुक रहें। इन गुणों की उपस्थिति में अध्यापक को विद्यार्थियों का ध्यान विषय की ओर खींचने में विशेष प्रयत्न नहीं करना पड़ेगा।
(13) समय का पाबंद- हिन्दी के शिक्षक को समय के प्रति सचेत रहना चाहिए। समय से कक्षा में प्रवेश करना चाहिए क्योंकि ऐसा करके वह विद्यार्थियों को भी समय से कक्षा में उपस्थिति दर्ज कराने के लिए प्रेरित कर सकता है। आये दिन कक्षा से गायब रहना, विद्यालय न आना आदि ऐसे गुण हैं जो शिक्षण को तो प्रभावित करते ही हैं साथ ही साथ छात्रों में विषय और अध्यापक के प्रति विरक्ति भी उत्पन्न करते हैं। विद्यार्थियों में सन्देश जाता है कि हिन्दी कोई महत्त्वपूर्ण विषय नहीं है। अगर होता तो अध्यापक अवश्य ही आते।
(14) धैर्यवान – हिन्दी शिक्षण से सम्बन्धित अध्यापकों को धैर्यवान होना चाहिए। हिन्दी ऐसा विषय है जिसमें भिन्न-भिन्न भाषाओं और प्रान्तों की आंचलिक भाषाओं का समावेश होता है तथा एक ही शब्द के कई अर्थ होते हैं। ऐसे में संभव है कि विद्यार्थी कुछ शब्दों के अर्थ को न समझ पाये। अतः अध्यापक को अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए। परिश्रमपूर्वक छात्रों की समस्या पर विचार करना चाहिए तथा धैर्यपूर्वक प्रश्न का समाधान करना चाहिए।
कुछ छात्र केवल शिक्षक के ज्ञान की गहराई का परीक्षण करने के लिए ही कभी-कभी दुरूह प्रश्नों को पूछते हैं। यह जानते हुए भी शिक्षक को धैर्य से काम लेना चाहिए तथा बिना उत्तेजित हुए उसका उत्तर देना चाहिए। ऐसा करने से विद्यार्थी के मन में शिक्षक के प्रति विश्वास उत्पन्न होता है।
(15) शैक्षिक समस्याओं के प्रति जागरूक- प्रत्येक विषय में शिक्षण सम्बन्धी कुछ न कुछ समस्यायें होती हैं, परन्तु हिन्दी के शिक्षण में यह समस्याएँ और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं क्योंकि अध्यापक का सम्बन्ध हिन्दी जैसे आधारभूत विषय के शिक्षण से सम्बन्धित होता है अतः हिन्दी के शिक्षक को हिन्दी शिक्षण की समस्याओं के सम्बन्ध में जागरूक रहना चाहिए। उसे सदैव चिन्तन-मनन करते रहना चाहिए तथा समस्याओं के निराकरण की कोशिश करनी चाहिए।
(16) सामान्य ज्ञान- हिन्दी के शिक्षक को सामान्य ज्ञान पर भी अधिकार रखना चाहिए। उसे केवल अपने ही विषय तक सीमित नहीं रहना चाहिए अपितु वर्तमान सामाजिक राजनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों से भी परिचित होना चाहिए। हो सकता है कि उसे शिक्षण के दौरान इन सन्दर्भों की आवश्यकता पड़े। अपरिचित रहने पर वह उचित सन्दर्भों का हवाला न दे पायेगा। ऐसी स्थिति में शिक्षण अपूर्ण रह जायेगा। वर्तमान वैज्ञानिक प्रयोगों एवं उससे प्राप्त परिणामों की जानकारी, शिक्षक को एक समर्थ अध्यापक के रूप में प्रतिष्ठित करती है अतः हिन्दी के अध्यापक को सामान्य ज्ञान के प्रति लापरवाह न रहकर सजग रहना चाहिए।
(17) जिज्ञासु और अध्ययनशील- हिन्दी के अध्यापक को केवल अपने शिक्षण तक ही सीमित न रहना चाहिए। उसे जिज्ञासु रहना चाहिए तथा नई बातों को सीखते रहना चाहिए। अध्ययन उसे बन्द नहीं करना चाहिए। अध्ययन बन्द करने से अध्यापक की विविधता समाप्त हो जाती है। नवीन विचारों के अभाव में वह लकीर का फकीर बन जाता है। एक निश्चित बने-बनाये ढरें पर चलने लगता है। इससे नीरसता उत्पन्न हो जाती है। छात्र विषय के प्रति अनिच्छा प्रकट करने लगते हैं। रोचकता में ह्रास होने के कारण विषय एक बोझ बन जाता है। विद्यार्थी बोझ उठाना कतई पसन्द नहीं करेंगे।
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