अध्यापकों के सतत् व्यावसायिक विकास के प्रकार तथा इसमें आई.सी.टी. का महत्व बताइये तथा इसके द्वारा अध्यापक का विकास कैसे संभव है?
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अध्यापकों के सतत् व्यावसायिक विकास के प्रकार
सतत् व्यावसायिक विकास अधिगम के प्रकार एवं उसमें प्रयुक्त संसाधन सतत् व्यावसायिक विकास अधिगम मुख्यतः तीन प्रकार के होते है –
1. संरचनात्मक या सक्रिय अधिगम – एक परस्पर संवादात्मक और भागीदारी पर आधारित अधिगम है। इसमें व्यक्ति स्वयं सक्रिय रूप से शामिल होकर, संरचित रूप से ज्ञान प्राप्त करता है। जैसे- प्रशिक्षण कार्यक्रम, सम्मेलन, कार्यशाला, विचार गोष्ठी, व्याख्यान, ई- लर्निंग कोर्स या सी.पी.डी. सर्टिफिकेट इवेन्ट आदि पेशेवरों की कैरियर ऑरिएन्टिड एग्जामंस और असिसमेन्ट लेने के लिए सी.पी.डी. एक्टिव लर्निंग उपयुक्त है।
2. रिफलेक्टिव अधिगम- इसमें सहभागी अध्ययन के बजाए गैर-सक्रिय अध्ययन की व्याख्या करता है। इसमें संरचित वर्गीकृत की तरह उपस्थिति और सीखने वाले का शामिल होना अनिवार्य नहीं है अर्थात् इसमें पाटीसिपेन्ट बेसड इन्ट्रेक्शन आवश्यक नहीं है। यह सतत् व्यावसायिक विकास का निष्क्रिय और एक मार्गीय रूप है। जैसे- प्रांसगिक समाचार, लेख, पॉडकास्ट केस स्टडी और इन्डसट्री अपडेट का अध्ययन आता है। कुछ अनौपचारिक मीटिंग भी सी.पी.डी. रिफ्लेक्टिव लर्निंग के लिए उपयुक्त है। इन मीटिंग में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि सीखने के उद्देश्य स्पष्ट, वास्तविक और सी.पी.डी. योजना के समग्र व्यक्तियों के लिए उपयुक्त हो ।
3. स्व-निर्देशित अधिगम – इसमें व्यक्ति बिना साथी को शामिल किये सी.पी.डी. गतिविधियों में भागीदारी करके सीखता है। इसके अंतर्गत ऑनलाईन या प्रिंट रूप में उपलब्ध दस्तावेज, लेख और प्रकाशन का अध्ययन करता है। इसके अतिरिक्त प्रासंगिक प्रकाशकों, अग्रणी विशेषज्ञों द्वारा लिखित पुस्तकें, उद्योग एवं व्यापारिक पत्रिकाओं का अध्ययन आता है।
इस प्रकार, उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि सतत् व्यावसायिक विकास में विभिन्न संसाधनों का प्रयोग किया जाता है। जिसका चयन व्यक्ति अपनी सतत् व्यावसायिक विकास के विभिन्न अधिगम प्रकारों के अनुसार कर सकता है। यह एक जीवनपर्यन्त अधिगम है।
एन.सी.एफ.टी.ई. (2009) के अनुसार सतत् व्यावसायिक विकास प्राप्त करने के संसाधन या मार्ग
NCFTE (2009) ने सतत् व्यावसायिक विकास को प्राप्त करने के लिए अध्यापकों को निम्न मार्गों पर चलने के लिए निर्देशित किया-
- लघु एवं दीर्घ अवधि के पाठ्यक्रम
- दूरस्थ माध्यम का उपयोग
- अवकाशकालीन अध्ययन और अनुसंधान
- व्यावसायिक पाठ्यक्रम एवं मीटिंग
- व्यावसायिक मंच, संसाधन कमरे एवं सामग्री
- संकाय विनिमय यात्राएँ और फैलोशिप
आई.ए.एस.ई., सी.टी.ई., डी.आई.ई.टी., बी.आर.सी., सी.आर.सी., कुछ एन.जी.ओ., शिक्षण-अधिगम केन्द्र का कर्त्तव्य है कि वे शिक्षण संस्थाओं में अध्यापकों के लिए – सेवारत् और सेवापूर्व कार्यक्रमों का आयोजन करें।
अध्यापक के सतत् व्यावसायिक विकास में आई.सी.टी. का महत्व
सतत् व्यावसायिक विकास में आई.सी.टी. का महत्व जानने से पूर्व एन.सी.एफ.टी.ई.-2009-10 ने अध्यापक के लिए सतत् व्यावसायिक विकास अधिगम के जो उद्देश्य निर्धारित किये हैं, ये जानना भी आवश्यक है। क्योंकि तब ही हम उचित प्रकार से इस क्षेत्र में आई.सी.टी. के महत्व को समझ पायेंगे।
सी.पी. डी. की प्रकृति में प्रगतिशीलता, सक्रियता, निरंतरता (सतत्ता), गतिशीलता, योग्यता एवं कौशल का प्रदर्शन, विविधता, चुनौतियों को स्वीकार करने की इच्छा शक्ति तथा उत्कृष्टता समाहित है। इसकी इस प्रकृति को देखते हुए अध्यापक के विकास के लिए निम्न उद्देश्य निर्धारित किये गये है।-
1. नये ज्ञान को प्रतिबिंबित करने, पता लगाने तथा अभ्यास का विकास करने का उद्देश्य।
2. ज्ञान को गहराई से जानने के लिए और अकादमिक (शैक्षणिक) अनुशासन या विद्यालय पाठ्यक्रम के अन्य क्षेत्रों में अपने आपको नवीन रूप से विकसित करने का उद्देश्य।
3. अनुसंधान और सीखने का उद्देश्य।
4. शैक्षिक एवं सामाजिक मुद्दों को समझने एवं अध्ययन करने का उद्देश्य।
5. शिक्षक शिक्षा पाठ्यक्रम के विकास या परामर्श जैसी अन्य शिक्षा शिक्षण की अन्य भूमिकाओं के लिए तैयार करने का उद्देश्य।
6. बौद्धिक अलगाव को दूर करने तथा अन्य क्षेत्रों के अनुभवों एवं अंतदृष्टि को साझा करने के साथ-साथ अध्यापकों और शिक्षाविदों को विशिष्ट क्षेत्रों में कार्य करने के अलावा तत्कालिक और व्यापक सामाजिक बौद्धिकता को प्राप्त करने का उद्देश्य ।
इस प्रकार, उपर्युक्त उद्देश्यों से स्पष्ट होता है कि सी.पी.डी. का अध्यापक के व्यावसायिक विकास में अत्यन्त आवश्यकता है। इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद् द्वारा बी.एड. एवं एम.एड. के पाठ्यक्रम को पुनरावृत्त करके आधुनिक समाज की मांगों के अनुसार बनाने का प्रयास किया गया है। जिसके द्वारा अध्यापक सतत् व्यावसायिक विकास करते हुए निम्न लाभों को प्राप्त कर सकें-
- अध्यापक को परिवर्तनशील बनाती है।
- अध्यापक के व्यवहार में लचीलापन लाती है।
- नवीन खोज करने की क्षमता विकसित करता है।
- सजृनात्मकता का विकास करता है।
- नया सीखने तथा सीखाने की इच्छा उत्पन्न करता है।
- नये-नये उद्दीपनों से परिचित कराके उनमें भागीदारी करने के लिए प्रेरित कर कार्यकुशलता में वृद्धि करता है।
- स्वाध्याय एवं स्वतंत्र चिंतन का विकास करती है।
- नवीन प्रविधियों एवं तकनीकी को अपनाने में सहायता करता है।
- अध्यापक में व्यवहारात्मक कुशलता का विकास करती है।
- अध्यापक को सतत् व्यावसायिक विकास के लिए जागरूक करती है।
- पाठ्यवस्तु का गहन ज्ञान एवं निर्धारित कौशलों के मध्य तारतम्यता करना सीखाता है।
उपर्युक्त लाभों को देखते हुए, नई शिक्षा नीति (1986) एवं एन.सी.एफ. (2005) ने भी अध्यापक शिक्षा को सतत् चलने वाला कार्यक्रम माना है, जो अध्यापक को सशक्त प्रशिक्षार्थी बनाती है। इसीलिए, एक अध्यापक के सतत् व्यावसायिक विकास के लिए सूचना संप्रेषण तकनीकी सबसे उत्तम साधन है, क्योंकि इसमें सूचनाओं का आदान प्रदान करने के साथ-साथ उसका संग्रहण भी होता है। आई.सी.टी. के अंतर्गत निम्न माध्यमों का प्रयोग किया जाता है –
- मल्टीमीडिया पर्सनल कम्प्यूटर
- वीडियो कार्ड एण्ड वेब कैमरा विद् लेपटॉप
- सी.डी. रॉम एण्ड डी.वी.डी.
- डिजिटल वीडियो कैमरा
- एल.सी.डी.- प्रोजेक्टर
- कम्प्यूटर डाटा बेस
- पॉवर पाइंट सिमुलेशन
- वर्ड प्रोसेसर, स्प्रेड शीट आदि
- ई-मेल, इण्टरनेट, वर्ड वाइड वेब
- हाइपरमीडिया एण्ड हाइपरटेक्सट सोर्स
- वीडियो टेक्सट, टेली-टेक्सट, इण्टरएक्टिव वीडियो टेक्सट
- ऑडियो वीडियो कांफ्रेसिंग
- इण्टरएक्टिव रिमोट इन्सट्रेक्शन
- वर्चुजअल क्लासरूम
- डिजिटर लाइब्रेरी
- टेलीफोन
- टी.वी.
- रेडियो
इस प्रकार, इन माध्यमों का प्रयोग करके अध्यापक अपने ज्ञान, कौशल में वृद्धि कर कार्यकुशलता को प्राप्त कर सकता है और आई.सी.टी., 21 वीं शताब्दी में उभरता हुआ एक ऐसा उपयोगी संसाधन है जिसके द्वारा तीव्रता के साथ सूचनाओं का संप्रेषण, प्राप्तीकरण एवं एकत्रीकरण किया जा सकता है। इसके द्वारा अध्यापक सहयोगीपूर्ण एवं सहभागिता के साथ कार्य करता है।
इसके द्वारा होने वाले लाभों को देखते हुए यू.जी.सी. ने भी इनहेसिंग हायर एजूकेशन थ्रो ई-लर्निंग डायलॉग का आयोजन 17-19 नवम्बर, 2003 को नई दिल्ली में किया। जिसके अंतर्गत ई-लर्निंग का प्रयोग करके भारत में सभी स्थानों में उच्च अधिगम को प्राप्त करना था। इसके अतिरिक्त यू.जी.सी. ने इनफोनेट-1991, इनफिलबनेट (इनफारमेशन एण्ड लाइब्रेरी नेटवर्क) डीलनेट (डवलोपिंग लाईब्रेरी नेटवर्किंग) जैसे कार्यक्रमों का प्रारम्भ किया जिसके द्वारा बुक्स, जनरल्स, आर्टिकलस आदि का साझा किया जा सकता है।
अध्यापकों में आई.सी.टी. स्किल्स में वृद्धि करने के लिए एन.सी.टी.इ. ने एक्स एलइरेटिड प्रोफेशनल डेवलपमेंट इन द् इन्टिग्रेशन ऑफ टेक्नोलॉजी इन टीचर एजूकेशन प्रोजेक्ट इन कॉलेब्रेशन विद् इनटेल (आर) टेक प्रोग्राम को प्रारंभ किया। जिसका लक्ष्य देश के सभी शिक्षाविदों को टेक्नोलॉजी इन्टीग्रेशन के द्वारा व्यावसायिक विकास करना है। इसके अतिरिक्त (नेशनल प्रोग्राम ऑन टेक्नोलॉजी इन्हेन्सड लर्निंग) द्वारा वेब बेसड ट्रेनिंग उपलब्ध कराना है। इसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा वित्तीय सहायता दी जाती है।
सी-डेक सेन्टर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस मिनिस्ट्री ऑफ कम्यूनिकेशन एण्ड इन्फारमेशन टेक्नोलॉजी एक साइंटिफिक सोसाईटी है। जिसने इ-शिक्षक और तेलगू भाषा में कम्प्यूटर प्रोग्राम मुफ्त में प्रारम्भ किया है। 25 जनवरी, 2000 को टी.वी. पर ज्ञान दर्शन कार्यक्रम का प्रारम्भ हुआ। जो गुणात्मक दूरस्थ शिक्षा उपलब्ध कराता है। इसके द्वारा सितम्बर 2004 को एजूसेट या जीसेट- 3 स्थापित किया गया। यह एक एजूकेशनल सैटेलाइट है, जिससे आज देश में लगभग 35,000 से ज्यादा कक्षाएँ जुड़ी हुई है। इसके द्वारा ऑडियो, वीडियो और डाटा सर्विस उपलब्ध होती है।
अभी वर्तमान में ही कैबिनेट कमेटी ने एक नई योजना लागू की है, जिसका नाम है नेशनल मिशन ऑन एजूकेशन थ्रो इन्फारमेशन एण्ड कम्नयूकेशन टेक्नोलॉजी इस मिशन में दो प्रमुख तत्व सम्मलित है –
- कन्टेंट जनरेशन
- कनक्टिविटी एण्ड लर्नरस
इस प्रकार, वर्तमान समय में आई.सी.टी. का उपयोग शिक्षा क्षेत्र के प्रत्येक स्तर पर बढ़ रहा है। ये ना केवल बालकों (छात्रों) के लिए अपितु शिक्षक प्रशिक्षक, अध्यापक एवं शिक्षाविदों के लिए भी उपयोगी सिद्ध हो रही है। इसीलिए शिक्षा जगत् से जुड़े विभिन्न संगठन, आयोग एवं संस्था, वैज्ञानिक संस्थाएँ एवं सरकार भी इसके उपयोग को देखते हुए इस क्षेत्र में निरंतर वृद्धि एवं विकास कर अपना समर्थन दे रही है। आई.सी.टी. एवं सी.पी.डी. के विषय में विभिन्न शोधार्थियों एवं शिक्षाविदों के विचार वर्तमान समय में इस क्षेत्र में अनेक शोधार्थी एवं शिक्षाविद् कार्य कर रहे है। उनके विचार एवं शोध निष्कर्ष इस प्रकार है –
कुमार (2004) ने अपने लेख “अध्यापक शिक्षा में सूचना – सम्प्रेषण तकनीकी” के अन्तर्गत बताया है कि सूचना संप्रेषण तकनीकी प्रकृतिवादी निषेधात्मक शिक्षा है, ये इसी के समान सभी संवेदी अंगों को संवेदनशील बनाकर सूचनाओं को प्रभावशाली ढंग से ग्रहण कर सकता है। ये वातावरण को बहुआयामी, रूचिपूर्ण और आकर्षक बनाकर व्यक्तिगत अधिगम एवं स्वअनुदेशन का वातावरण निर्मित करता है। साइबर शिक्षा के लिए इस समय भारत में निम्नलिखित वेबसाइट्स है –
स्कूलनेटमीडिया.कॉम ई-गुरुकुल.कॉम, कैरियरलांसर.कॉम, एजूकेशनल वर्डवीडीगटोकॉम आदि शिक्षा क्षेत्र के लिए उपयोगी सिद्ध हो रही है। ई. बुक, सी.डी. रॉम, ई बुक रिटड का प्रयोग भी निरंतर बढ़ रहा है।
गुप्ता (2009) ने अपने लेख इन्फॉरमेशन्स एण्ड कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी इन् टीचर एजूकेशन” में बताया है कि आई.सी.टी. आभारी वातावरण के द्वारा ऐसे कोर्स उपलब्ध कराता है जिससे जीवन पर्यन्त व्यावसायिक विकास संभव है। परन्तु इसकी कुछ सीमाएँ भी है –
- संरचनात्मक ढांचे में कमी
- उचित सॉटवेयर की कमी
- तकनीकी भय
- सरकारी अनुदान (फंड) की कमी
- प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी
- निरंतर अध्ययन और नवीकरण पाठ्यक्रम एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम की कमी
इस प्रकार, सूचना संप्रेषण तकनीकी पारंपरिक एवं दूरस्थ शिक्षा के बीच की संभावनाओं को कम करता है। पाठक (2010) ने “हिन्दी भाषा शिक्षण में आई.सी.टी. के उपयोग के प्रति शिक्षकों की अभिवृत्ति” शोधकार्य के अंतर्गत उन्होनें इंदौर शहर के 120 माध्यमिक स्तर के शिक्षकों का चयन किया तथा प्रदत्तों का संकलन करके टी-टेस्ट, प्रतिशत, एनोवा आदि सांख्यिकी विधि का प्रयोग कर शोध परिणाम प्राप्त किये। इन शोध परिणाम के आधार पर उन्होनें निम्न निष्कर्ष को प्राप्त किया -“90 प्रतिशत माध्यमिक स्कूल के शिक्षकों की हिन्दी भाषा शिक्षण में आई.सी.टी. के उपयोग के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति है। यह परिणाम उस तथ्य को साबित करता है कि आई.सी.टी. के प्रति शिक्षकों का कोई विरोध नहीं है और उनकी सकारात्मक सोच हिन्दी भाषा शिक्षण में आई.सी.टी. के प्रयोग का समर्थन करती है और इसके प्रयोग की संभावनाओं को इंगित करती है।”
पाल (2011) ने “शिक्षक प्रशिक्षकों का सूचना संचार प्रौद्योगिकी के प्रति दृष्टिकोण एवं इसकी सुगमता” शोधकार्य के प्राप्त शोध- परिणाम के निष्कर्षों में पाया कि शिक्षकों एवं शिक्षक प्रशिक्षकों के दृष्टिकोण अधिगम में बहुत अधिक है। परन्तु प्रशिक्षकों का एक समूह यह नहीं जानता कि मीडिया या आई.सी.टी. का उपयोग किस तरह से शैक्षिक प्रक्रिया के अंग के रूप में करें। अप्रत्याशित रूप से कुछ शिक्षक प्रशिक्षक यह नहीं जानते कि उनके विषय में मीडिया और आई.सी.टी. आधारित सामग्री कहाँ से प्राप्त होगी।
एक तरफ तो शिक्षकों का तीन चौथाई भाग यह स्वीकार करता है कि उनकी संस्था/ महाविद्यालय में आई.सी.टी. की सुविधाएँ उपलब्ध हैं, परंतु दूसरी तरफ यह सरोकार सामने आता है कि लगभग 60 प्रतिशत शिक्षक प्रशिक्षक तथा शिक्षक कम्प्यूटर के उपयोग को शिक्षण में बहुत महत्वपूर्ण नहीं समझते। कुछ शिक्षकों के अनुसार वे मीडिया और आई.सी.टी. का कक्षा में उपयोग करेंगे यदि इसके लिए उन्हें पदोन्नति / वेतनवृद्धि दी जाए।
अधिकांश शिक्षकों ने बताया कि आई.सी.टी. एवं मीडिया का कक्षा में उपयोग करते समय वे कक्षा को पूर्ण नियंत्रण में रखते है। इसके अतिरिक्त शिक्षकों का मानना है कि कम्प्यूटर और इंटरनेट से जो अधिगम अनुभव प्राप्त होते हैं वे रेडियो और टी.वी. से नहीं हो पाते। यह भी पाया कि शिक्षक प्रशिक्षक मोबाईल टेक्नोलॉजी के माध्यम से – शिक्षण अधिगम के नए आयामों को सीखना चाहते है।
अधिकांशतः शिक्षक- प्रशिक्षकों के पास आधारभूत मीडिया की सुविधाएँ हैं। आँकडों से यह भी पता चलता है कि जिन शिक्षक प्रशिक्षकों के पास घर अथवा ऑफिस में कम्प्यूटर की सुगमता है, उन्हें कुछ सीमा तक इंटरनेट की सुगमता भी हैं। बहुत कम शिक्षकों प्रशिक्षकों को पास ई-मेल का पता है तथा वे अपने मित्रों तथा साथियों के संवाद में इसका उपयोग करते हैं। बहुत थोड़े से ही शिक्षक प्रशिक्षक किसी लर्निंग साइट के ग्राहक हैं इस प्रकार, आई.सी.टी. की सुविधाओं को शिक्षकों/ शिक्षक प्रशिक्षकों तथा प्रशिक्षणार्थी के लिए और अधिक सुगम बनाने की और जागरूकता कार्यक्रम करने की आवश्यकता है।
अमाले एवं दीक्षित (2013) ने ‘मल्टीपल स्टेक हॉल्डस’ व्यसू ऑफ कन्टिन्यूइगं प्रोफेसनल डेवलपमेंट शोधकार्य के अंतर्गत बांद्रा और वर्धा, महाराष्ट्र राज्य के सी.बी.एस.ई. और एम.एस.बी.एस.ई. बोर्ड के विद्यालयों का चयन किया। इन्होनें अपने शोधकार्य में प्रश्नावली, साक्षात्कार और फोकस ग्रुप चर्चा विधि की सहायता से प्रदत्तों का संकलन किया और शोध परिणामों से निष्कर्ष पर पहुँचे कि अध्यापक, विद्यार्थी, अभिभावक, परिवार के सदस्य, प्रधानाध्यापक, विद्यालय प्रबंधन के सदस्य एवं शिक्षाधिकारी सभी का सतत् व्यावसायिक विकास के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण है और इसे आवश्यक मानते है।
चंचल (2015) ने “डिजिटल इण्डिया, चुनौतियाँ व प्रांसगिकता” लेख में कहा है कि हमारे देश में 2.4 लाख स्कूलों, विश्वविद्यालयों में वाई-फाई है। इसके अतिरिक्त दूरस्थ गाँवों और छोटे शहरों में इंटरनेट की स्पीड पहुँचाना एवं नेशनल ऑप्टिकल फाइवर नेटवर्क के दायरे में लाना कठिन है। आज हमारे देश में करीब 30 प्रतिशत लोग निरक्षर हैं। वहाँ इण्टरनेट साक्षरता शत-प्रतिशत कहाँ होगी, साथ ही संपूर्ण भारत में बिजली 24 घण्टे उपलब्ध नहीं है।
निष्कर्ष-
इस प्रकार, उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि अध्यापक के लिए सतत् व्यावसायिक विकास अत्यन्त आवश्यक है। वर्तमान समय में एल.पी.जी. काम्पटीशन (स्वतंत्र विचार करना, सुख का अभाव, वैश्वीकरण) चल रहा है। इसलिए एक अध्यापक का लगातार प्रगतिशील होना आवश्यक है। इसके लिए उसे निरंतर अध्ययनशील और क्रियाशील रहना चाहिए। जिससे वह अपने आस-पास होने वाले परिवर्तनों एवं चुनौतियों के प्रति सजग रह सकें तथा परिस्थितियों को समझकर उन्हें नियंत्रित कर सकें। इसी को ध्यान में रखते हुए यू.जी.सी. ने उच्च शिक्षा संस्थानों के अध्यापकों के लिए कुछ नियमों का निर्माण किया, जिसे ऐकेडमिक परफॉरमेंस कहते है। जिसके द्वारा “प्रत्यक्षीकरण, सतत् अधिगम, श्रेष्ठता प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहना, ज्ञान के क्षेत्र में भागीदारी करना, किसी भी विशेष क्षेत्र में ज्ञान प्राप्त करने के लिए सूक्ष्म से सूक्ष्म बिन्दुओं को सीखना” है।
इस प्रकार, एक अध्यापक को विभिन्न प्रकार के कौशलों, कार्यों में भागीदारी करते हुए, अनुसंधान करते हुए, अध्ययन करते हुए अपना सतत् व्यावसायिक विकास करना चाहिए और इन सबको प्राप्त करने के लिए वर्तमान समय में आई.सी.टी. से उत्तम और कोई साधन है। इसके द्वारा व्यक्ति अपनी रूचि, क्षमता, कौशल एवं समयानुसार ज्ञान प्राप्त कर सकता है। ये एक ऐसा तीव्रतम साधन है जिसमें सूचनाओं को मात्र संग्रहित ही नहीं किया जाता, अपितु उसे संप्रेषित कर एक सहभागी एवं सहकारी अधिगम को भी प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार, अध्यापक के सतत् व्यावसायिक विकास में सूचना संप्रेषण तकनीकी एक अहम् भूमिका का निर्वाह कर रही है।
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