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ई-लर्निंग क्या है ? ई-लर्निंग की विशेषताएँ, प्रकृति, क्षेत्र, विधियाँ, भूमिका, प्रासंगिकता, लाभ एंव सीमाएँ

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ई-लर्निंग क्या है ? ई-लर्निंग की विशेषताएँ, प्रकृति, क्षेत्र, विधियाँ, भूमिका, प्रासंगिकता, लाभ एंव सीमाएँ

ई-अधिगम क्या है ? ई-लर्निंग की विशेषताएँ, प्रकृति एवं क्षेत्र की विवेचना कीजिए। इसकी सीमाएँ (कमियाँ) भी बताइए। अथवा ई-लर्निंग के प्रमुख घटक एवं उनकी भूमिका बताइए।

ई-लर्निंग (E-Learning)

ई-लर्निंग अधिगम की वह प्रक्रिया है, जिसमें सूचना या सामग्री के वितरण के लिए एक साथ नेटवर्क (Network), अंतर्क्रिया (Interaction) तथा सुविधा (Felicitation) का प्रयोग किया जाता है।

केनेट (Kenet) के शब्दों में, “ई-लर्निंग एक प्रभावशाली शिक्षण अधिगम प्रक्रिया है, जिसकी रचना ई-डिजिटल शिक्षण सामग्री, स्थानीय समुदाय, ट्यूटर तथा वैश्विकी समुदाय की सहायता व सम्पर्क द्वारा संयुक्त रूप से होती है।”

इस प्रकार ई-लर्निंग शिक्षा और प्रौद्योगिकी का मिश्रण है।

ई-लर्निंग के अन्तर्गत, अधिगम उद्देश्य से विभिन्न स्रोतों द्वारा सामग्री या पाठ्यवस्तु को विभिन्न संचार प्रणालियों के माध्यम से वितरित किया जाता है। यह एक प्रकार से उन विद्यार्थियों के लिए सतत शिक्षा प्रणाली है जो औपचारिक विधियों द्वारा शिक्षा प्राप्त करने से वंचित हो जाते हैं।

ई-लर्निंग को अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे- डिस्ट्रीब्यूट लर्निंग, डिस्टेंस लर्निंग, टेक्नोलॉजी एनेबल्ड लर्निंग तथा आन लाइन लर्निंग आदि ।

ई-लर्निंग की विशेषताएँ एवं प्रकृति (Characteristics and Nature of E-Learning)

ई-लर्निंग की विशेषताओं के बारे में निम्न निष्कर्ष निकाल सकते हैं-

  1. ई-लर्निंग एक प्रगतिशील प्रत्यय है, इसमें नित नये आयाम सृजन होते रहते हैं; जैसे- मोबाइल लर्निंग
  2. ई-लर्निंग समकालिक या असमकालिक हो सकती है, अर्थात् इसे कई रूपों में प्रयोग किया जा सकता है।
  3. ई-लर्निंग को दूरवर्ती शिक्षा के समतुल्य नहीं देखना चाहिए, दोनों के प्रत्ययों में कुछ समानता तथा असमानताएँ हैं।
  4. कम्प्यूटर सहाय अनुदेशन, कम्प्यूटर प्रबन्धित अनुदेशन तथा मल्टीमिडिया आदि को ई-लर्निंग का दर्जा तब तक नहीं दिया जा सकता जब तक ई-सेवाओं का प्रयोग कर उन्हें शिक्षण अधिगम में प्रयुक्त न किया जाए।
  5. ई-लर्निंग के लिए अध्यापक तथा छात्रों की तकनीकी का ज्ञान आवश्यक है।
  6. ई-लर्निंग बिना बिजली / ऊर्जा के साधन के बिना निष्क्रिय हो जाती है।
  7. ई- लर्निंग इण्टरनेट सेवाओं तथा वेब सुविधाओं के बिना सम्भव नहीं है।
  8. ई-लर्निंग में इलेक्ट्रॉनिक्स ही (ई) उपकरणों; जैसे-कम्प्यूटर, सी. डी. रोम, दृश्य-श्रव्य उपकरणों, मल्टीमीडिया आदि का प्रयोग किया जाता है।

ई-लर्निंग का क्षेत्र (Scope of E-Learning)

इन्हीं इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों तथा इण्टरनेट सेवाओं का प्रयोग कर अन्य क्षेत्रों में ई-कॉमर्स, ई-बैंकिंग, ई-मेल तथा ई-बुकिंग जैसे कार्यों को सम्पादित किया जाता है, अर्थात् ई. लर्निंग का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। इसी प्रकार ई-लर्निंग युक्त सुविधाओं के सन्दर्भ में रोजेनवर्ग (2001) ने ई-लर्निंग को इस प्रकार परिभाषित किया है- “ई-लर्निंग से तात्पर्य इण्टरनेट तकनीकियों के ऐसे प्रयोग से है जिनसे विविध प्रकार के ऐसे रास्ते खुलें- जिनके द्वारा ज्ञान और कार्य क्षमताओं में वृद्धि की जा सके।”

ई-लर्निंग की विधियाँ (Methods of E-Learning)

ई-लर्निंग की विधियों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-

(1) समकालिक (Synchronous)- इस विधि में कक्षाएँ वास्तविक या निश्चित समय पर एक साथ चलाई जाती हैं। कक्षाएँ निर्देशन व प्रशिक्षण आधारित होती हैं। विद्यार्थियों/अधिगमकर्ताओं से सम्पर्क चैट रूम के द्वारा होता है।

(2) विषमकालिक (Asynchronous)- इस विधि में विद्यार्थी/अधिगमकर्ता को प्रशिक्षण के लिए पहले से तैयार पैकेज (Pre-packaged Training) उनकी आवश्यकता और सुविधानुसार उपलब्ध कराये जाते हैं।

ई-लर्निंग के विभिन्न घटक एवं भूमिका (Different Factors and its Role in E-Learning)

ई-लर्निंग के प्रमुख घंटक निम्न प्रकार के होते हैं-

(1) सामग्री वितरण की विधियाँ (Content Delivery Method)– पारम्परिक अधिगम प्रणाली में शिक्षण सामग्री पाठ के रूप में होती है लेकिन ई-लर्निंग सामग्री में पाठ के साथ-साथ श्रव्य-दृश्य सामग्रियाँ भी उपलब्ध कराई जाती हैं। व्यक्तित्व रूप से अधिगमकर्त्ता के स्तर और प्रगति के आधार पर सामग्री का अनुकूलन और आपूर्ति की जाती है। ई-लर्निंग की प्रक्रिया की दूसरी पीढ़ी की निम्न विधियाँ हैं-

(i) लाइव ब्रॉडकास्टिंग- टेलीविजन के समान ही ई-लर्निंग द्विमार्गी प्रणाली की तरह कार्य कर सकती है। अधिगमकर्त्ता को परीक्षा देने, प्रश्न पूछने, प्रश्नावली के उत्तर देने की छूट मिलती है।

(ii) वीडियो आन डिमांड (VOD)- यह तकनीकी केबिल टेलीविजन (CATV) प्रणाली के द्वारा प्रस्तुत की जाती है। अधिगमकर्त्ताओं का एक बड़ा समूह वीडियो सामग्रियों को प्राप्त कर सकता है। यह लाइव ब्रॉडकास्टिंग की तरह ही द्विमार्गी प्रणाली की तरह कार्य करती है।

(2) अंतर्क्रियात्मक सम्प्रेषण- इस प्रकार की ई-लर्निंग में तकनीकी की द्वि-मार्गी – क्षमता का प्रयोग ही होता है। इस विधि के दो उपागम हैं-

(i) दूरस्थ शिक्षा – दूरस्थ शिक्षा उपागम में प्रशिक्षक तथा विद्यार्थी अलग-अलग स्थानों पर रहते हुए भी ब्लैकबोर्ड की तरह शेयर फाइल का प्रयोग करते हुए अंतर्क्रिया करते हैं।

(ii) सामुदायिक उपागम- सामुदायिक उपागम में प्रशिक्षक ही पूरी आभासी कक्षा का केन्द्रबिन्दु होता है लेकिन इस विधि में संभव होता है कि विद्यार्थी विशेष विषयों पर विशेषताओं से परामर्श ले सकते हैं तथा परिचर्चा कर सकते हैं।

(3) लिखने या निर्माण के उपकरण (Authoring Tools)- ये तैयार किए गए सॉफ्टवेयर (Software products) हैं। ये वे उपकरण हैं जिनका प्रयोग शिक्षण सामग्री के निर्माण के लिए किया जाता है।

(4) अधिगम प्रबन्धन प्रणाली (Learning Management System : LMS)- प्रारम्भ से ही ई-लर्निंग का सबसे प्रमुख घटक ‘अधिगम प्रबन्धन प्रणाली’ रहा है। इस प्रणाली के अंतर्गत विद्यार्थी, मैनेजर तथा ऑपरेटर को यह सुविधा मिलती है कि वह अपनी व्यक्तिगत प्रगति तथा निष्पादन क्षमता (Performance) को जान सके और उसका मूल्यांकन भी कर सकें।

ई-लर्निंग में हमेशा यह प्रयास रहता है कि व्यक्तिगत अधिगम आवश्यकताओं की पूर्ति सुविधा के लिए बहुत ही सूक्ष्म रूप से तैयार निर्देशों का निर्माण किया जाय।

ई-लर्निंग की प्रासंगिकता (Relevancy of E-Learning )

विगत वर्षों में ई-बिजनेस (E-business) तथा ई-कॉमर्स (E-Commerce) जैसे शब्दों का सामान्य प्रयोग प्रारम्भ हुआ, इन्हीं शब्दों के साथ-साथ ई-लर्निंग भी विश्व पटल पर उभरा है। ई-लर्निंग को वेब-बेस्ड ट्रेनिंग (Web Based Training) के नाम से भी जाना जाता है ई-लर्निंग की अवधारणा नई नहीं है। इंटरनेट (Internet), कम्प्यूटर की सहायता से प्रशिक्षण (CAI) तथा कम्प्यूटर आधारित प्रशिक्षण (CBT) आदि के पीछे भी ई-लर्निंग की अवधारणा ही रही है। सन् 70 के दशक में पर्सनल कम्प्यूटर (PC), CAI तथा CBT का प्रयोग अवश्य प्रारम्भ हो गया था लेकिन अधिगम व प्रशिक्षण के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन ‘इंटरनेट’ के आगमन के साथ माना जा सकता है।

ई-लर्निंग के लाभ (Advantage of E-Learning)

ई-लर्निंग से प्रगतिशील समाज की उच्च स्तरीय शिक्षा कम खर्चे में और सही समय में मिल जाती है। ई-लर्निंग के निम्नलिखित लाभ हैं-

(1) आज शैक्षणिक पद्धतियाँ दिन-प्रतिदिन महँगी होती जा रही हैं। वहीं डिजिटल एवं इलेक्ट्रॉनिक बाजार में उत्पादों के दाम कम होते जा रहे हैं। इस कारण भी ई-लर्निंग किफायती है, पारम्परिक शैक्षणिक विधियों के मुकाबले ई-लर्निंग 30 से 40 प्रतिशत सस्ती है। जैसे-जैसे तकनीकी विकास होता जा रहा है इसका लाभ ई-लर्निंग को मिलता जा रहा है।

(2) विविध पाठ्यक्रमों की उपलब्धता होती है। शिक्षा ग्रहण करने वालों के लिए ई-लर्निंग में सर्टिफिकेट कोर्स, डिप्लोमा, डिग्री, कन्टीन्यूइंग एजूकेशन, वोकेशनल कोर्सेस जैसे कई पर्याय उपलब्ध हैं।

(3) सुगम और सुलभ ई-लर्निंग के लिए न तो किसी कक्षा की आवश्यकता होती है और न किसी समय-सारिणी की। इसलिए ई-लर्निंग को ‘कहीं भी और कभी भी’ लर्निंग कहते हैं क्योंकि विद्यार्थी पीसी, लैपटॉप और इण्टरनेट कनेक्शन के साथ कहीं भी सीख सकता है।

(4) ई-लर्निंग में कोलाब्रेटिव लर्निंग को प्रधानता दी जाती । इसके अन्तर्गत कई तरह के टूल्स उपलब्ध हैं- जैसे- डिस्कशन बोर्ड, चेट, एलवीसी, ब्रेक आउट सेशंस। इनमें शिक्षक, मार्गदर्शक, समूह वार्तालाप से एक-दूसरे से लाभान्वित होते हैं।

(5) हायर रिटेन्शन ई-लर्निंग में उपलब्ध टूल्स विद्यार्थियों में सीखने की रुचि का विकास करते हैं। सर्वोत्तम ट्रेनर, कोलाब्रेटिव लर्निंग, अपने अनुरूप सीखने की सुविधा, फीडबैक तथा शंका समाधान जैसी विशेषताओं के कारण ई-लर्निंग के द्वारा हायर रिटेन्शन होता है।

(6) समाज के पिछड़े वर्ग और शारीरिक रूप से अक्षमों के लिए वरदान है। सिर्फ क्लास रूम में बैठकर सीखने की आवश्यकता नहीं होने से ई-लर्निंग दूरस्थ क्षेत्रों के लोगों एवं अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए वरदान है। आम व्यक्ति एवं कमजोर वर्ग स्थापित शिक्षा व्यवस्था को महँगी एवं कठिन महसूस करता है। इसके मुकाबले ई-लर्निंग सरल, सुलभ, किफायती एवं उनके विकास में सहायक है।

(7) ई-लर्निंग के माध्यम से किसी भी विषय के विशेषज्ञ का राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मार्गदर्शन उपलब्ध हैं। अन्य पारम्परिक शिक्षण के तौर-तरीकों में सिर्फ एक स्थान पर ही उपलब्ध व्यक्ति विशेष का ही मार्गदर्शन मिलता है, जबकि ई-लर्निंग द्वारा सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञ का वीडियो रिकार्डिंग, लाइव क्लासेस द्वारा मार्गदर्शन ले सकते हैं।

ई-लर्निंग की सीमाएँ (Limitations of E-Learning)

ई-लर्निंग की कमियाँ या सीमाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) ई-लर्निंग को प्रयोग में लाने के लिए शिक्षकों तथा शिक्षार्थियों को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता होती है। विद्यालय प्रशासन, यहाँ तक कि शिक्षकों में भी इसके लिए पर्याप्त उत्साह देखने नहीं मिलता, वे परम्परागत शिक्षण से हटकर कुछ करने में रुचि नहीं लेते, इसे भार समझते हैं।

(2) ई-लर्निंग में छात्रों में सामाजिक मेलजोल या मानवीय सम्बन्धों की सांवेगिक विशेषताओं का सर्वथा अभाव रहता है। इसके अभाव में ई-लर्निंग की प्रभावशीलता कम हो जाती है।

(3) ई-लर्निंग में विद्यार्थियों तथा शिक्षकों को मल्टीमीडिया, कम्प्यूटर इण्टरनेट तथा वेब टेक्नोलॉजी के प्रयोग में दक्ष होना चाहिए। इसके अभाव ई-लर्निंग सम्भव ही नहीं है।

(4) ई-लर्निंग के लिए मल्टीमीडिया, कम्प्यूटर तथा वेब सुविधा शिक्षक तथा शिक्षार्थी दोनों के पास होना आवश्यक है, अत्यधिक महँगा होने के कारण ये सभी के पास उपलब्ध होना सम्भव नहीं है। हमारे विद्यालयों में भी इनकी पर्याप्त व्यवस्था न होने से ई-लर्निंग को प्रयोग में लाने में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं।

(5) विद्यार्थियों, शिक्षकों, अभिभावकों तथा समाज के अन्य वर्गों में भी प्रायः ई-लर्निंग के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण का प्रायः अभाव पाया जाता है। इस प्रकार का नकारात्मक तथा उपेक्षित दृष्टिकोण से ई-लर्निंग को परम्परागत शिक्षण का एक विकल्प बनाने में बाधा उत्पन्न हो रही है।

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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