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परावर्तन-स्तर का शिक्षण, विशेषताएँ, प्रतिमान, दोष एंव सुझाव

परावर्तन-स्तर का शिक्षण,  विशेषताएँ, प्रतिमान, दोष एंव सुझाव
परावर्तन-स्तर का शिक्षण, विशेषताएँ, प्रतिमान, दोष एंव सुझाव

परावर्तन स्तर के शिक्षण को स्पष्ट कीजिए। इसकी क्या विशेषताएँ हैं? 

परावर्तन-स्तर का शिक्षण (Reflective Level Teaching)

परावर्तन-स्तर के शिक्षण को मन या चिन्तन का स्तर भी कहते हैं। यह शिक्षण का सर्वोच्च स्तर है और पूर्णतः विचारपूर्ण होता है। जब शिक्षक एवं छात्र किसी वास्तविक समस्या की पहचान कर उसका समाधान करने के प्रति तत्पर होते हैं, इस समस्यात्मक परिस्थिति को पूरी तरह समझने की कोशिश करते हैं और विशेष सूझबूझ, रचनात्मक एवं आलोचनात्मक दृष्टि तथा | कल्पनाशीलता का उपयोग करते हुए पूरी तल्लीनता के साथ सम्पन्न हल प्राप्त कर लेते हैं तो इस प्रकार का शिक्षण एवं अधिगम परावर्तन के स्तर पर रखा जाता है। शिक्षण प्रक्रिया में समस्या को पहचानने, उसे परिभाषित कराने, सीमांकित कराने तथा उसका अन्वेषणात्मक हल प्राप्त करने की ओर बल देने के कारण इसे समस्या केन्द्रित शिक्षण (Problem centered teaching) की संज्ञा दी जाती है। इसी प्रकार अधिगम की प्रक्रिया में छात्र द्वारा समस्या का स्वयं रूपांकन करने, उसके समाधान हेतु सम्भव विकल्पों को चुनने, परिकल्पनात्मक हल ढूँढने, उसकी परीक्षा करने तथा अन्तिम हल प्राप्त करने पर जोर देने के कारण इसे समस्या केन्द्रित अधिगम (Problem centred learning) के नाम से पुकारा जाता है।

परावर्तन या चिन्तन स्तर के शिक्षण में शिक्षक छात्रों के सम्मुख कोई सम्बन्धित ज्वलंत समस्या प्रस्तुत करता है जिससे विद्यार्थियों में इतना मानसिक तनाव पैदा हो जाता है कि वे स्वयं प्रेरित होते हुए सक्रिय होकर समस्या को सुलझाने के लिए चिन्तन प्रारम्भ कर देते हैं। यह चिन्तन आलोचनात्मक दृष्टिकोण वाला एवं मौलिक चिन्तन होता है। छात्र अपनी उपकल्पनाएँ बनाकर समस्या का परीक्षण करना प्रारम्भ कर देते हैं। अन्त में एक समय ऐसा आता है कि समस्या सुलझ जाती है।

परावर्तन स्तर के शिक्षण में स्मृति तथा बोध दोनों स्तरों का शिक्षण निहित होता है। यदि किसी कारण से शिक्षण की व्यवस्था पहले स्मृति तथा बोध स्तरों पर नहीं हुई तो चिन्तन स्तर का शिक्षण सफल नहीं हो सकता। अतः चिन्तन स्तर के शिक्षण के लिए आवश्यक है कि शिक्षण की व्यवस्था पहले तथा बोध स्तरों पर अवश्य हो चुकी हो।

परावर्तन-स्तर के शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Reflective Level Teaching)

परावर्तन-स्तर के शिक्षण की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  1. परावर्तन-स्तर का शिक्षण सर्वोच्च स्तर का होता है और पूर्णतः विचारपूर्ण है।
  2. परावर्तन स्तर पर शिक्षण समस्या केन्द्रित होता है।
  3. इस स्तर पर छात्रों में जिज्ञासा, रुचि, अन्वेषण और अध्यवसाय विकसित होता है, जिसके द्वारा वे समस्याओं का वैज्ञानिक समाधान ढूँढ पाने में सफल होते हैं।
  4. परावर्तन-स्तर के शिक्षण में सामूहिक वाद-विवाद ही शिक्षण की प्रभावशाली व्यूह रचना (strategy) मानी जाती है।
  5. इस स्तर के शिक्षण में छात्र की आयु तथा परिपक्वता का अधिक महत्त्व होता है। उच्च कक्षाओं के स्तर पर यह शिक्षण अधिक उपयोगी है।
  6. बिग्गी महोदय के अनुसार “परावर्तन स्तर का अध्ययन कक्षा में सजीव, उत्तेजक, प्रेरणादायी, सक्रिय समालोचनात्मक तथा संवेदनशील वातावरण को जन्म देती है जो नवीन और मौलिक चिन्तन को प्रोत्साहित करता है।”
  7. इस स्तर के शिक्षण में छात्र तथा शिक्षकों के सम्बन्ध निकट के होते हैं। छात्र शिक्षक की आलोचना भी कर सकते हैं।
  8. इस स्तर के शिक्षण को पाठ्यक्रम, पाठ्यवस्तु तथा पाठ्यपुस्तकों तक ही सीमित नहीं रखा जाता है बल्कि पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं को भी महत्त्व दिया जाता है।
  9. बिग्गी तथा हण्ट के अनुसार, “जब परावर्तन स्तर के शिक्षण में सफलता प्राप्त होती है तो छात्रों में एक बहुत ही सामान्य प्रकार परीक्षित अन्तर्दृष्टि की राशि में वृद्धि होती है और उनमें समस्या को स्वयं विकसित एवं हल करने की क्षमता भी बढ़ जाती है।”
  10. परावर्तन स्तर के शिक्षण में आन्तरिक अभिप्रेरणा अधिक कार्य करती है।

परावर्तन स्तर के शिक्षण का प्रतिमान (Teaching Models of Reflective Level Teaching)

नीचे हण्ट द्वारा प्रतिपादित चिन्तन-स्तर के शिक्षण के प्रतिमान का प्रारूप प्रदर्शित है-

प्रतिमान पक्ष परावर्तन स्तर पर शिक्षण
1. उद्देश्य (Focus)
  1. छात्रों में मौलिक और स्वतंत्र चिन्तन शक्ति का विकास करना ।
  2. छात्रों में समस्या समाधान हेतु आलोचनात्मक तथा सृजनात्मक चिन्तन शक्ति का विकास करना।
2. संरचना (Syntax) समस्या की प्रकृति व्यक्तिगत तथा सामूहिक दोनों प्रकार की हो सकती है। इसके चार सोपान हैं-

  1. छात्रों के सामने परिस्थिति उत्पन्न करना।
  2. छात्रों द्वारा उपकल्पना का निर्माण करना।
  3. परिकल्पना पुष्टि के लिए सूझबूझ एवं चिन्तन-मनन करना ।
  4. उपकल्पना का परीक्षण तथा समस्या समाधान।

3. सामाजिक प्रणाली (Social System)

  1. कक्षा का वातावरण पूर्ण रूप से खुला और स्वतंत्र होता है।
  2. छात्र क्रियाशील और स्वप्रेरित होते हैं।
  3. छात्रों के समाजीकरण का दृढ़ आधार है।
  4. सहयोग, सामाजिक संवदेनशीलता तथा सहानुभूति का वातावरण होता है।

4. मूल्यांकन प्रणाली (Evaluation System)

  1. निबन्धात्मक मूल्यांकन अधिक उपयोगी है।
  2. अभिवृत्ति, समस्या समाधान सृजनात्मक आदि के परीक्षण उपादेय हैं।

परावर्तन-स्तर के शिक्षण के दोष (Demerits of Reflective Level Teaching)

यद्यपि कि परावर्तन-स्तर शिक्षण-अधिगम का महत्त्वपूर्ण स्तर माना जाता है, फिर भी इस स्तर के शिक्षण की कुछ न्यूनताएँ अवश्य हैं-

  1. परावर्तन-स्तर में स्मृति तथा बोध स्तर के शिक्षण की भाँति किसी निश्चित कार्यक्रम का अनुकरण नहीं किया जा सकता है।
  2. इस स्तर के शिक्षण की उपयोगिता केवल उच्च कक्षाओं के लिए ही है। छोटी कक्षाओं के लिए यह अनुपयोगी है।
  3. शिक्षण का स्वरूप सदैव समस्या केन्द्रित होता है समस्या नहीं तो शिक्षण नहीं। शिक्षक सदैव समस्या केन्द्रित नहीं होता।
  4. इस स्तर के शिक्षण में वाद-विवाद को ही अधिक महत्त्व दिया जाता है जो ठीक नहीं है क्योंकि सभी प्रकार की पाठ्यवस्तु के शिक्षण में वाद विवाद का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
  5. इस शिक्षण स्तर पर शिक्षक विद्यार्थी का सम्बन्ध समानता के स्तर पर देखा जाता है जो ठीक नहीं है।

परावर्तन-स्तर के शिक्षण के लिए सुझाव (Suggestion for Reflective Level Teaching)

परावर्तन-स्तर के शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए हण्ट ने निम्नलिखित सुझाव दिए हैं-

  1. स्मृति तथा अवबोध-स्तर के शिक्षण की परीक्षाओं में सफल होने पर ही छात्र को परावर्तन स्तर के शिक्षण में प्रवेश दिया जाये।
  2. शिक्षण में इसके चारों सोपानों का अनुसरण अधिक सतर्कता से किया जाना चाहिए।
  3. छात्र को समस्याओं के प्रति तथा अपनी विषयवस्तु के सम्बन्ध में अधिक संवेदनशील होना चाहिए।
  4. परावर्तन-स्तर के शिक्षण को सफल बनाने के लिए शिक्षक को चाहिए कि वह विद्यार्थियों का आकांक्षा स्तर ऊँचा उठावे ।
  5. छात्र को इस स्तर के शिक्षण में ‘ज्ञानात्मक क्षेत्र मनोविज्ञान (Cognitive Field Psychology) को ही महत्त्व देना चाहिए जिससे इसकी अधिकांश कमजोरियों को दूर किया जा सके।
  6. छात्र को समस्या की अनुभूति होनी चाहिए तभी वह उसके लिए परिकल्पनाओं का प्रतिपादन कर सकता है।

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Anjali Yadav

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