हिन्दी साहित्य

‘कामायनी’ की वस्तु योजना में ‘आशा सर्ग’ के महत्त्व

'कामायनी' की वस्तु योजना में 'आशा सर्ग' के महत्त्व
‘कामायनी’ की वस्तु योजना में ‘आशा सर्ग’ के महत्त्व

‘कामायनी’ की वस्तु योजना में ‘आशा सर्ग’ के महत्त्व पर प्रकाश डालिए। कामायनी के कथाविकास में ‘आशा सर्ग के महत्त्व का उल्लेख करते विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। 

कामायनी का पूर्वाभाष– ‘कामायनी’ में कुल पन्द्रह सर्ग हैं। क्रमानुसार ‘आशा सर्ग’ कामायनी का दूसरा सर्ग है। मानव जाति के आदिपुरु मनु हैं। वे देव जाति के हैं। देव जाति के मनु ने जिस प्रकार मानवीय जाति का सूत्रपात किया यह वास्तव में अपने में एक विलक्षण घटना है। किन्तु इस घटना का सीधा सम्बन्ध खण्ड-प्रलय की घटना है। खण्ड-प्रलय के अनन्तर अकेले मनु जीवित बचे थे।

कामायनी की कथा का प्रारम्भ

खण्ड-प्रलय हो चुका है। मनु हिमालय की एक चोटी पर बैठे हैं और भयंकर प्रलय के पश्चात् जीवन की करुण नश्वरता की करूण अनुभूति से चिन्तित हैं। उनका हृदय करुणा से आप्लावित है। कामायनी के इस प्रथम सर्ग में चिन्ता के अन्त में चिन्ताकुल मनु में यदि आशा का संचार न हुआ होता तो आगे की घटनाओं की कोई स्थिति ही न हो पाती। अकर्मण्य होकर मनु वहीं अपनी गुफ में समर्पित हो जाते और मानव इतिहास का अन्त हो जाता। अतः आशा सर्ग की कथावस्तु मूलकथ के विकास की अनिवार्य सीढ़ी है।

यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि आशा के संचार के बिना सृजन की प्रेरणा और आनन्द की मनु अनुभूति सम्भव नहीं हो पाती। आशा की वह मनोवृत्ति है जो व्यक्ति को सृजन की प्रेरणा देती है। और जीवन को गति प्रदान कर कर्म की ओर उन्मुख करती है। सम्भवतः इसी कारण कवि ने के मन में उठने वाले अनेकों प्रश्नों को उठाया है और मनु को उनके समाधान में प्रयत्नरत चित्रित किया है।

यह सत्य है कि जब तक मानव में आशा शेष रहती है वह जीवन के संघर्षों से जूझता रहता है। परिणाम की आशा ही उसे संघर्ष की शक्ति देती है। किन्तु यदि कोई आशा न दिखाई दे तो वह हाथ-पाँव बटोर कर बैठ जाता है और जीवन से विरक्त हो उठता है। उसके क्रियाकलाप स्थगित हो जाते हैं।

आशय यह कि मानवीय मनोवृत्तियों के कथाक्रम में आशा का आना अनिवार्य था तथा कामायनी के कथा विकास के लिए मनु में उसका संचार कर उन्हें कर्मण्य बनाना भी आवश्यक था। इस प्रकार आशा सर्ग कामायनी की कथा की प्रेरणाभूमि है तथा विकास की अनिवार्य सीढ़ी है। आशा और चिन्ता सर्ग की घटनाहीनता के कारण कथा के घटना विकास से उसका सम्बन्ध न जोड़ना नितान्त भूल होगी। यहीं पर कवि ने आशा की भावप्रधान व्याख्या प्रस्तुत की है जो मनोवृत्तियों के कथाक्रम में अत्यावश्यक है। जीवन की प्रेरणादायिनी शक्ति के होने के कारण उसका महत्त्व है ही।

आशा की महत्ता मनु के शब्दों में देखिए-

“यह संकेत कर रही सत्ता
किसकी सरल विकासमयी।”
जीवन की लालसा आज क्यों
इतनी प्रखर विलासमयी॥”

और इसी के साथ मनु में जीने की लालसा जागृत होती है-

“मैं हूँ, यह वरदान सदृश
क्यों लगा गूँजने कानों में ॥”
मैं भी कहने लगी- ‘मैं रहूँ’
शाश्वत नभ से गानों में ॥ “

इससे आशा सर्ग की महत्ता स्वयमेव स्पष्ट हो जाती है। जगत् में आते ही प्राणी का साक्षात्कार जिस वस्तु से होता है वह है चिन्ता। इसीलिए चिन्ता कामायनी का प्रथम सर्ग है। चिन्ता से साक्षात्कार होते ही व्यक्ति निराशा और उसी में डूबने लगता है। तब आशा की एक किरण ही उसे प्राणवायु से चिंतित करती है। जीवन में गति भरने का कार्य आशा ही करती है। निःसन्देह कामायनी के कथा विकास में आशा सर्ग का विशेष महत्त्व है।

आशा सर्ग की विशेषताएँ

आशा सर्ग की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(क) सर्ग का प्रारम्भ प्रकृति चित्रण से- कवि ने सर्ग का प्रारम्भ प्रकृति चित्रण से किया है। उसका यह प्रकृति चित्रण मानवीकरण के रूप में हुआ है। धरावधू का एक चित्रण देखिए-

सिंधु सेज पर धावधू अब
तक संकुचित बैठी सी।
प्रलय निशा हलचल स्मृति में
मान किये-सी ऐंठी-सी॥

(ख) रहस्यात्मक वर्णन – छायावादी कवि सृष्टि के कार्य कलापों में किस परोक्ष सत्ता का दर्शन करता है। उसे प्रकृति के अणु-अणु में उसी का आभास होता है। वह प्रत्येक कार्य में किसी अदृश्य कार्य की प्रेरणा स्वीकारता है। देखिए-

महानील इस परमव्योग में
अन्तरिक्ष में ज्योतिर्मान
ग्रह, नक्षत्र और विद्युत्क
किसका करते हैं संधान ॥

(ग) प्रेम एवं सौन्दर्य का वर्णन – आशा सर्ग में भावी मिलन सुख की परिकल्पना की गयी है जिससे मनु का मन पुलकित हो उठा है। प्रलय के इन्हीं क्षणों में मनु ज्योत्सना को रजनीरूपी नायिका का नग्न गात समझने लगते हैं जिससे यह विश्व उन्हें इसका आनन्द लूटते दिखता है-

फटा हुआ था नील वसन क्या
ओ यौवन की मतवाली।
देख अकिंचन जगत लूटता
तेरी छवि भोली भाली ॥

(घ) आशा एवं निराशा का चित्रण- आशा सर्ग में मनु की आशा एवं निराशा का बड़ा ही सफल चित्रण हुआ है। देखिए-

देव न थे हम और न ये हैं…
सब परिवर्तन के पुतले।
हाँ कि गर्व रथ में दुरंग-सा
जितना जो चाहे जुत ले।

निष्कर्ष – उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कथानक संगठन की दृष्टि से आशा सर्ग पूर्ण सफल है। ‘आशा’ ऐसी मनोवृत्ति है जिसके संचरित होते ही व्यक्ति कर्मण्य बन जाता है। उसमें नवजीवन का संचार होता है। कुछ कर गुजरने की ताकत आती है। मनु जो निश्चेष्ट पड़े थे, चिन्तातुर थे, जीवन के आनन्द को भूल चुके थे, उनमें जब आशा का संचार होता है तो वे भावी जीवन की प्रसन्नता के प्रति आस्थावान हो उठते हैं। उनमें जीवन की ललक उठती और कामायनी की आगे की कथा को गति मलती है, विकास मिलता है। इसी कारण कामायनी के कथा विकास में आशा सर्ग का विशेष महत्त्व है। इस सर्ग में कवि ने मनु की आशा-निराशा का बड़ा मनोरम चित्रण किया है और परोक्षसत्ता की ओर इंगित कर छायावादी कवियों की रहस्यवादी प्रकृति को उजागर किया है। साथ ही आशा मनोवृत्ति के निरूपण यथा प्रेम एवं सौन्दर्य में चित्रों की व्यंजना द्वारा सर्ग को आकर्षक बनाया गया है। संक्षेप में यही सर्ग की विशेषताएँ हैं।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment