ठेका लगान या संविदा लगान (Contract Rent)
जो राशि एक कृषक किसी भूमि पर खेती के बदले या अन्य कोई व्यक्ति किसी भूमि के उपयोग के बदले भूस्वामी को समय-समय पर देने का करार करे उसे ठेका लगान कहते हैं। अन्य शब्दों में, ठेका लगान की मात्रा भू-स्वामी और भूमि प्रयोक्ता के बीच हुए करार द्वारा तय होती है।
यह आवश्यक नहीं है कि ठेके का लगान आर्थिक लगान के बराबर ही हो बल्कि वह आर्थिक लगान से कम या अधिक भी हो सकता है। मान लीजिए, किसी देश में भूमि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, किन्तु कृषकों में भूमि के लिए माँग कम है अथवा उनमें प्रतियोगिता का अभाव है, ऐसी स्थिति में ठेका लगान ‘आर्थिक लगान’ से कम होगा। इसके विपरीत, यदि भूमि की कमी उनकी माँग बेलोचदार है तो ऐसी स्थिति में भूमि स्वामी कृषकों को ठेके का लगान ‘आर्थिक लगान’ की अपेक्षा अधिक तय करने में समर्थ होगा। अन्य शब्दों में, भू-स्वामी एकाधिकारी की भाँति भूमि का अधिक मूल्य प्राप्त कर कृषकों का शोषण करने में सफल हो जायेगा । इस स्थिति को अर्थशास्त्र में ‘लगानखोरी’ अथवा अत्यधिक लगान कहते हैं।
परन्तु यदि देश में भू-स्वामी और कृषकों में पूर्ण व स्वतन्त्र प्रतियोगिता है और भूमि की पूर्ति इसकी मांग के बराबर है तो ठेका या प्रसंविदा लगान आर्थिक लगान के बराबर होता है। अतः स्पष्ट है कि ठेका या प्रसंविदा लगान भूमि की माँग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा निर्धारित होता है तथा यह आर्थिक लगान के बराबर, कम या अधिक हो सकता है।
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