निद्रा की आवश्यकता स्पष्ट कीजिए। निद्रा के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ कौन-कौन सी हैं ? विभिन्न अवस्था के बालकों के लिए निद्रा की अवधि का उल्लेख कीजिए।
निद्रा
स्वास्थ्य और निद्रा का घनिष्ठ सम्बन्ध है। बच्चों के लिए निद्रा आवश्यक है। सोते समय हृदय की धड़कन तथा श्वसन क्रिया धीमी हो जाती है। इससे मस्तिष्क में कम रक्त जाता है और चर्म में अधिक तथा शरीर के सारे अंग विश्राम पाते हैं। यदि बच्चे की निद्रा कम या हल्की है तो वह अच्छा मानसिक कार्य नहीं कर सकता और वह उद्विग्न एवं चिड़चिड़ी प्रकृति का हो जाता है। निद्रा न आना रोग का कारण है।
बालकों के लिए सुनिद्रा हेतु घर तथा विद्यालय में कतिपय उपयुक्त परिस्थितियों की व्यवस्था होनी चाहिए। से परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं :-
1. शुद्ध वायु – सोने के कमरे में शुद्ध वायु के आवागमन के लिए समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। सोते समय कमरे की खिड़की व दरवाजे खुले रहने देने चाहिएँ। मुँह ढककर कभी नहीं सोना चाहिए।
2. शान्त वातावरण – अच्छे स्वास्थ्य के लिए हरी नींद आवश्यक है। यदि सोने के कमरे में अथवा उसके आस-पास शोरगुल अधिक होगा तो नींद में बाधा उत्पन्न होती है इसलिए सोने का कमरा ऐसा हो जिसमें शोरगुल न हो तथा वहाँ का वातावरण शान्त हो ।
3. वायु ताप – सोने के स्थान के ताप का प्रभाव भी निद्रा पर पड़ता है। यदि कमरे में अत्यधिक उच्च ताप होगा तो गर्मी के कारण व्यक्ति गहरी निद्रा के आनन्द का लाभ नहीं उठा सकता। इसी प्रकार यदि कमरे का ताप अत्यधिक निम्न है तो शीत के कारण गहरी नींद नहीं आएगी। सुनिद्रा के लिए ताप 60° फॉरेनहाइट से अधिक नहीं होना चाहिए।
4. बिस्तर – सोने के लिए बिस्तर कोमल, स्वच्छ एवं आरामदायक होना चाहिए। कठोर, गन्दे व अव्यवस्थित बिस्तर पर अच्छी नींद नहीं आती।
5. समय – सोने का समय नियमित रूप से निश्चित होना चाहिए। सामान्यतः शाम को जल्दी सोना व प्रातः जल्दी उठना लाभदायक होता है। प्रायः प्रतिदिन निश्चित समय पर नियमित रूप से सोना व उठना चाहिए। छोटे बच्चों को मध्यान्ह को भी लगभग एक घण्टे सोना चाहिए।
6. व्यायाम – गहरी निद्रा के लिए दिन में व्यायाम की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। विद्यालय में खेलने, पी० टी० तथा अन्य शारीरिक श्रम सम्बन्धी मनोरंजनात्मक क्रिया-कलापों का प्रबन्ध करना चाहिए। ध्यान रहे कि व्यायाम हल्का व बालकों के स्वास्थ्य के अनुकूल होना चाहिए। अत्यधिक थका देने वाला व्यायाम उनके स्वास्थ्य के लिए अधिक उपयोगी सिद्ध नहीं होता। सोने जाने से आधा घण्टा पूर्व कोई काम नहीं करना चाहिए, सोने जाने से पूर्व गर्म पेय पदार्थ पीने के लिए दे देना चाहिए।
7. स्नान – सोने जाने से कुछ समय पहले स्नान करने से गहरी नींद आने में सहायता मिलती है। यदि स्नान टब में किया जाए तो उत्तम हो । टब में 20-30 मिनट पड़े रहना चाहिए। स्नानार्थ जल मौसम के अनुसार गर्म अथवा ठण्डा होना चाहिए। स्नान करने से शरीर को आराम मिलता है तथा निद्रा की भावना उत्पन्न होती है, केवल पैर-स्नान (Foot bath) भी लाभदायक होता है। एक भगोने में सहता हुआ गरम पानी इतना भरना चाहिए जिसमें कि पैर डूब सकें। इसमें पैरों को 5 मिनट तक रखे रहना चाहिए। तत्पश्चात् बाहर निकालते समय उन पर एक छोटी बाल्टी ठण्डा जल डालिए। ऐसा करने से मस्तिष्क तथा छाती में उपस्थित आतरिक्त रक्त शरीर के अन्य अंगों में चला जाएगा तथा समस्त शरीर में रक्त-संचालन समान रूप से होने लगेगा। मानसिक कार्य करने वालों तथा अत्यधिक चिन्ता करने वालों के लिए गर्म व ठण्डे जल का पैर स्नान विशेष रूप से लाभदायक होता है।
8. हल्का भोजन — अनिद्रा का प्रमुख कारण आहार है। यदि आहार सादा, स्वाभाविक, हल्का व सुसंतुलित तथा तीखे अत्यधिक गरिष्ठ भोज्य-पदार्थों से रहित है तो पेट उसे सरलता से पचा लेता है तथा उसे विश्राम करने को समय मिल जाता है। परिणामतः व्यक्ति अधिक स्वप्न नहीं देखता तथा स्वस्थ गहरी नींद का आनन्द प्राप्त कर लेता है।
रक्त भी भोजन को पचाने में लगा रहने की अपेक्षा शरीर के अंगों के मलों को निष्कासित करने में रत रहता है। बच्चों को रात्रि के समय हल्का व सादा खाना दिया जाना चाहिए। गरिष्ठ, तीखे, भारी भोजन कर लेने से गहरी निद्रा नहीं आती, पेट को विश्राम नहीं मिल पाता तथा रक्त शरीर के विकारों को निष्कासित करने का कार्य कुशलतापूर्वक नहीं कर पाता। शरीर में रोग-ग्रहणशीलता बढ़ जाती है।
9. संवेगात्मक स्थिति – आहार के अतिरिक्त संवेगात्मक स्थिति भी निद्रा को अत्यधिक प्रभावित करती है। यदि बालकों के मस्तिष्क में अनावश्यक भय, चिन्ता, विभिन्न कारणों से मानसिक तनाव बना रहता है तो उसे गहरी नींद नहीं आएगी। बालकों का संवेगात्मक विकास समुचित रूप से किया जाना चाहिए। शिक्षक व माता-पिता को चाहिए कि वे बालकों के साथ प्रेम व सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करें।
निद्रा की मात्रा निम्न तालिका से विभिन्न आयु पर निद्रा की क्या औसत मात्रा होनी चाहिए,
शैशवावस्था – 2 से 4 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए 14 घण्टे ।
4 से 8 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए 12 घण्टे
बाल्यावस्था – 8 से 12 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए 10 घण्टे
12 से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए 10 घण्टे ।
किशोरावस्था– 14 से 16 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए 9 घण्टे ।
युवावस्था – 19 वर्ष की आयु वालों के लिए 8 घण्टे ।
प्रौढ़ावस्था – 50 वर्ष तक की आयु के लिए 8 घण्टे से अधिक नहीं।
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