भारतीय समाज में विविधता की विवेचना कीजिए। अथवा भारतीय समाज के सन्दर्भ में भाषायी, सांस्कृतिक, क्षेत्रीय एवं धार्मिक विविधता का वर्णन कीजिए।
भारतीय समाज में विविधता (Diversity in Indian Society)
अपनी विशेषताओं के कारण भारतीय समाज एक अनुपम समाज है, किन्तु वर्तमान दशाओं में भारत को एक विविधतापूर्ण समाज कहा जा सकता है। भारतीय समाज अनेक प्रजातियों, जतियों, धर्म, भाषाओं और विश्वासों से मिलकर बना है। इसके अन्दर अनेक सांस्कृतिक समूह साथ-साथ रहते हैं। जलवायु के दृष्टिकोण से यह समाज अनेक भौगोलिक क्षेत्रों में बँटा हुआ है तथा विभिन्न क्षेत्रों की जनसंख्यात्मक विशेषताएँ भी एक-दूसरे से भिन्न हैं। इस दृष्टिकोण से यह आवश्यक है कि भारतीय समाज से सम्बन्धित उन महत्त्वपूर्ण भिन्नताओं को देखा जाए तो इसकी विविधतापूर्ण प्रकृति को स्पष्ट करती है।
(1) जनसंख्या सम्बन्धी भिन्नताएँ- भारत की सम्पूर्ण जनसंख्या अनेक प्रजातियों और जातियों में बँटी हुई है। इसी कारण भारत को ‘जातियों और प्रजातियों का एक संगम स्थल’ कहा जाता है। सन् 1991 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 84.63 करोड़ थी जो सन् 2011 की जनगणना तक बढ़कर 121 करोड़ से भी अधिक हो गयी। यह सम्पूर्ण जनसंख्या देश के कुल 35 राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों में फैली हुई है। जहाँ एक ओर दिल्ली में एक वर्ग किलोमीटर के अन्दर 11,297 व्यक्ति निवास करते हैं, वहीं अरुणाचल प्रदेश में प्रति वर्ग किलोमीटर जनसंख्या का घनत्व केवल 17 व्यक्ति है। जनसंख्या सम्बन्धी भिन्नता इस बात से भी स्पष्ट होती है कि इसमें गोरे, काले तथा श्याम रंग से सम्बन्धित सभी प्रजातियों का समावेश है।
के बाद एक नई भाषा का आरम्भ हो जाता है। यदि हम भारतीय समाज को कुछ प्रमुख भाषाओं में विभाजित करें तो भी ऐसे भागों की संख्या लगभग 35 कहीं जा सकती है। भारतीय संविधान
(2) भाषा की भिन्नता – भाषा के आधार पर भी भारतीय समाज बहुत से समूहों में विभाजित है। कुछ विद्वान यहाँ तक मानते हैं कि भारतीय समाज में प्रत्येक 100 किलोमीटर के द्वारा अंग्रेजी सहित केवल 16 भाषाओं को मान्यता मिली हुई है, लेकिन प्रत्येक भाषाई समूह अपनी भाषा को विकसित करके अपनी पृथक् पहचान बनाने का प्रयत्न कर रहा है। सच तो यह है कि भाषा की भिन्नता के आधार पर भारतीय समाज एक-दूसरे से पृथक् अनेक क्षेत्रों में विभाजित हो गया है जिसके फलस्वरूप इसकी सांस्कृतिक विशेषताएँ भी एक-दूसरे से भिन्न होती जा रही हैं।
(3) धार्मिक विविधता- भारत विभिन्न धर्मों का एक समन्वय स्थल है। भारतीय समाज के निर्माण में उस सभी व्यक्तियों का योगदान है, जो हिन्दू, जैन, बौद्ध, सिक्ख, इस्लाम, ईसाई और पारसी वर्ग को मानने वाले हैं। यद्यपि यहाँ हिन्दू धर्म के अनुयायियों की संख्या कुल जनसंख्या का लगभग 80 प्रतिशत भाग है, लेकिन हिन्दू धर्म के अनुयायी भी वैष्णव, शैव, शाक्त तथा अनेक दूसरी धार्मिक शाखाओं में विभाजित हैं। इन धार्मिक भिन्नताओं के कारण भारत में अनेक बार धार्मिक संघर्ष भी हुए हैं, लेकिन फिर भी किसी भी धर्म का विकास अवरुद्ध नहीं हुआ है।
(4) सांस्कृतिक भिन्नताएँ- अपने विशाल आकार के कारण भारतीय समाज में परम्पराओं, खान-पान, कला, वेश-भूषा तथा नैतिकता के स्तर में एक स्पष्ट भिन्नता देखने को मिलती है। विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों तथा जातियों से सम्बन्धित व्यक्तियों की अपनी अलग-अलग प्रथाएँ हैं। उत्तर भारत की वेश-भूषा दक्षिण भारत से अत्यधिक भिन्न है, जबकि नगरीय तथा ग्रामीण क्षेत्रों की सांस्कृतिक विशेषताओं में भी एक स्पष्ट भिन्नता देखने को मिलती है। कुछ समुदाय खान-पान में किसी तरह के निषेध को मान्यता नहीं देते, जबकि जनसंख्या का अधिकांश भाग खान-पान के जातिगत प्रतिबन्धों से बँधा हुआ है। भारतीय समाज की कला में एक अपूर्व विविधता देखने को मिलती है। मन्दिरों, मस्जिदों, चर्चों तथा बौद्ध स्तूपों की कला को देखकर इस भिन्नता का सरलता से अनुमान लगाया जा सकता है।
(5) प्रजातीय भिन्नताएँ (Racial diversities) – प्रजाति का अर्थ एक ऐसे बड़े मानव समूह से होता है जिसमें कुछ विशेष तरह की शारीरिक विशेषताएँ पायी जाती हैं। यह शारीरिक विशेषताएँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को बिना किसी अधिक परिवर्तन के जैविकीय रूप से हस्तांतरित होती रहती हैं। प्रजातीय आधार पर संसार में तीन मुख्य प्रजातियाँ पायी जाती हैं जिन्हें कॉकेशायड (Caucasoid), मंगोलॉयड (Mangoloid) तथा नीग्रॉयड (Negroid) प्रजाति कहा जाता है। सरल शब्दों में, इन्हीं को हम सफेद, पीले तथा काले रंग के मानव-समूहों के नाम से सम्बोधित कर सकते हैं। भारतीय समाज की विशेषता यह है कि यहाँ आरम्भ से ही द्रविड़ तथा आर्य समूहों की प्रजातीय विशेषताएँ एक-दूसरे से भिन्न थीं। द्रविड़ों में नीग्रॉयड प्रजाति की विशेषताओं की प्रधानता थी, जबकि आर्य लोगों में कॉकेशायड अथवा गोरे रंग वाली प्रजाति की विशेषताएँ अधिक थीं। भारत में जब शक, हूण, कुषाण तथा मंगोल आक्रमणों के फलस्वरूप बाहरी समूहों का प्रवेश हुआ तो यहाँ मंगोलॉयड अथवा पीली प्रजाति के लोगों की संख्या भी बढ़ने लगी। यह सभी प्रजातियाँ एक-दूसरे से अलग नहीं रहीं, बल्कि धीरे-धीरे उनके से बीच मिश्रण भी बढ़ता गया।
(6) संजातीय भिन्नताएँ (Ethnic diversities)– संजातीयता की अवधारणा प्रजाति से अलग है। प्रजाति उस बड़े मानव समूह को कहा जाता है जिसमें समान शारीरिक विशेषताएँ होती हैं। दूसरी ओर संजातीयता एक ऐसी भावना है जो संस्कृति, धर्म, क्षेत्र, भाषा, वेश-भूषा अथवा जीवन-शैली के आधार पर किसी विशेष समुदाय को अपनी अलग पहचान बनाए रखने का प्रोत्साहन देती है। संजातीयता का सम्बन्ध उन पूर्वाग्रहों से है जिनके आधार पर एक संजातीय समूह अपने से भिन्न संजातीय समूह से पृथकता महसूस करने लगता है और कभी-कभी दूसरे की तुलना में अपने को अधिक श्रेष्ठ या उच्च दिखाने की कोशिश करता है। समाजशास्त्र में इस दशा को सजातीयता की प्रवृत्ति’ (Ethnocentrism) कहा जाता है।
(7) राजनीतिक भिन्नताएँ (Political Diversities)- किसी समाज का सामाजिक सांस्कृतिक जीवन राजनीतिक दशाओं से बहुत कम प्रभावित होता है। वास्तविकता यह है कि बहुत प्राचीन काल से भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन राजनीतिक दशाओं से बहुत कम प्रभावित होता है। वास्तविकता यह है कि बहुत प्राचीन काल से भारत के सामाजिक सांस्कृतिक जीवन को प्रभावित करने में राजनीतिक दशाओं का काफी प्रभाव रहा है।
(8) प्राकृतिक विविधता- भारतीय समाज सम्भवतः एकमात्र ऐसा समाज है जिसमें एक ही समय पर विभिन्न क्षेत्रों में सभी ऋतुओं की जलवायु पायी जा सकती है। यहाँ के पहाड़ी प्रदेशों में वर्ष के अधिकांश भाग में मौसम ठण्डा रहता है जबकि रेगिस्तानी प्रदेशों में गर्म जलवायु की प्रधानता है। कुछ क्षेत्रों में वर्ष भर केवल 15-20 सेमी० से अधिक वर्षा नहीं होती, जबकि कुछ क्षेत्रों में वर्षा 500 सेमी० से भी अधिक हो जाती है (चेरापूँजी में लगभग 1,100 सेमी)। यहाँ एक • ओर संसार की सबसे ऊँची पर्वत श्रेणियाँ हैं तो दक्षिण में हजारों किलोमीटर लम्बा समुद्र तट है। एक ओर उत्तर में गंगा-यमुना के उपजाऊ मैदान हैं तो अनेक क्षेत्रों में पठारी और जंगली प्रदेशों की अधिकता के कारण आजीविका के साधन प्राप्त करना भी कठिन हो जाता है। कुछ है जीवन बड़े-बड़े उद्योगों और खनिज पदार्थों पर निर्भर है, जबकि अधिकांश व्यक्ति खेती पर निर्भर होने के कारण एक परम्परागत जीवन व्यतीत कर रहे हैं। क्षेत्रीय तथा जलवायु सम्बन्धी भिन्नताओं के कारण विभिन्न स्थानों का सामाजिक संगठन भी एक-दूसरे से पर्याप्त भिन्न है।
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