भोजन के पोषक तत्त्व वसा के संघटन, उपयोगिता तथा साधन का वर्णन कीजिए। वसा की अधिकता तथा कमी से क्या हानियाँ हैं ? वसा की दैनिक आवश्यकता कितनी है ?
Contents
भोजन के पोषक तत्त्व वसा(fat) के संघटन
वसा चर्बीदार अम्ल तथा ग्लिसरीन का मिश्रण है। यह उन्हीं तत्त्वों से बनती है, जिनसे कार्बोज अर्थात् कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन बनती है, परन्तु इन दोनों में तत्त्वों के मिश्रण के अनुपात में अन्तर होता है। वसा में नाइट्रोजन तत्त्व नहीं रहता। इसके अतिरिक्त यह कार्बोज की अपेक्षा 22 गुना अधिक शक्ति व गर्मी उत्पन्न करती है। एक ग्राम वसा द्वारा लगभग 9 कैलोरी गर्मी प्राप्त होती है। |
वसा की उपयोगिता
1. त्वचा के नीचे की वसा शरीर की बाह्य वातावरण की गर्मी व सर्दी से रक्षा करती है।
2. वसा शरीर में चिकनाई पैदा करती है।
3. वसा में विटामिन ‘ए’, ‘डी’, ‘ई’ तथा ‘के’ पाये जाते हैं।
4. वसा या चर्बी शरीर को मांसपेशीय शक्ति प्रदान करती है। इससे नयी चर्बी तो बनती ही है, साथ में क्षति हुई चर्बी की भी पूर्ति होती रहती है।
5. यदि वसा आवश्यकता से अधिक मात्रा में उपयोग की जाये तो यह त्वचा के नीचे तन्तुओं में एकत्र होती रहती है। इससे शरीर सुडौल होता है, शरीर के आन्तरिक अंग, हड्डियाँ और जोड़ कुछ सीमा तक बाहरी चोटों से सुरक्षित हैं।
6. वसा शरीर में मांसपेशियों का निर्माण करती है।
वसा के साधन
सामान्यतः वसा दो प्रकार से प्राप्त होती है—(1) पशुओं से, तथा (2) वनस्पतीय भोज्य पदार्थों से। पशुओं की चर्बी, अण्डे की जर्दी, मछली का तेल, घी, दूध, मलाई, मक्खन आदि के रूप में वसा पशुओं से प्राप्त होती है। इसमें वनस्पति वसा की अपेक्षा विटामिन ‘ए’, ‘डी’, ‘ई’ अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। वनस्पति वसा सरसों, नारियल, मूँगफली तथा तिली, आदि के तेल के रूप में तथा बादाम, काजू आदि सूखे मेवों से प्राप्त होती है।
विभिन्न भोज्य-पदार्थाें में वसा की प्रतिपूर्ति मात्रा
1. मक्खन | 81.90 |
2. मूँगफली | 41.50 |
3. दूध | 10.15 |
4. सूअर की चर्बी | 91.00 |
5. सोयाबीन | 20.00 |
6. बादाम, अखरोट | 51.70 |
7. पनीर | 31.40 |
वसा की अधिकता से हानियाँ
(1) ओबेसिटी के कारण गुर्दे भी अपना कार्य ठीक से नहीं कर पाते। अतः शरीर से यूरिया, यूरिक एसिड का निष्कासन ठीक से नहीं हो पाता।
(2) भोजन में अधिक मात्रा में वसा लेने से यह त्वचा के नीचे चर्बी के रूप में जमा होने लगती है, जिससे शरीर मोटा हो जाता है, उसका भार बढ़ जाता है। इस रोग को ओबेसिटी (Obesity) कहते हैं।
(3) वसा की अधिकता से कोलेस्ट्रॉल रक्त में बढ़ जाता है, जिससे रक्त वाहिनियाँ संकुचित हो जाती हैं और रक्त का दबाव (Blood pressure) बढ़ जाता है या दिल की अन्य बीमारियाँ हो जाती हैं। व्यक्ति मधुमेह का शिकार भी हो सकता है।
ऊर्जा के 25-30 प्रतिशत भाग से अधिक वसा नहीं लेनी चाहिए।
वसा की कमी से हानियाँ
1. शरीर में खुश्की तथा त्वचा की अन्य बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
2. वसा की कमी से शरीर में वसीय अम्ल की कमी हो जाती है, जिससे शारीरिक वृद्धि रुक जाती है।
दैनिक आवश्यकता
शारीरिक श्रम करने वालों तथा ठण्डी जलवायु में रहने वालों के भोजन में वसा की अधिक मात्रा चाहिए, कि इसकी मात्रा अत्यधिक नहीं होनी चाहिए। इसकी अधिकता से भोजन ठीक तरह से नहीं पच पाता और शरीर में कई प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाते हैं तथा शरीर पर आवश्यकता से अधिक मोटापा छा जाता है। एक प्रौढ़ व्यक्ति को प्रतिदिन40-60 ग्राम वसा पर्याप्त है।
IMPORTANT LINK
- नवजात शिशु की क्या विशेषताएँ हैं ?
- बाल-अपराध से आप क्या समझते हो ? इसके कारण एंव प्रकार
- बालक के जीवन में खेलों का क्या महत्त्व है ?
- खेल क्या है ? खेल तथा कार्य में क्या अन्तर है ?
- शिक्षकों का मानसिक स्वास्थ्य | Mental Health of Teachers in Hindi
- मानसिक स्वास्थ्य और शिक्षा का क्या सम्बन्ध है?
- मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ एंव लक्षण
- खेलों के कितने प्रकार हैं? वर्णन कीजिए।
- शैशवावस्था तथा बाल्यावस्था में खेल एंव खेल के सिद्धान्त
- रुचियों से क्या अभिप्राय है? रुचियों का विकास किस प्रकार होता है?
- बालक के व्यक्तित्व विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
- चरित्र निर्माण में शिक्षा का क्या योगदान है ?
- बाल्यावस्था की प्रमुख रुचियाँ | major childhood interests in Hindi
- अध्यापक में असंतोष पैदा करने वाले तत्व कौन-कौन से हैं?
Disclaimer