भोजन में किन-किन पोषक तत्त्वों का होना आवश्यक हैं ? प्रोटीन पर एक लेख लिखिए।
मनुष्य को अपने शरीर को स्वस्थ तथा सुचलायमान रखने के लिए ऊर्जा (Energy) या शक्ति और गर्मी की आवश्यकता होती है। यह गर्मी कुछ तत्त्वों से प्राप्त होती है, जो शरीर को भोजन के रूप में प्राप्त होते हैं। शरीर में जितना भोजन डाला जायेगा उससे उतनी ही शक्ति प्राप्त होगी, जितनी कि उस भोजन के तत्वों में है। भोजन तथा भोजन के तत्त्वों के सम्बन्ध में अनेक खोजें की गयी हैं। इन खोजों से यह ज्ञात हुआ है कि शरीर के ताप, गति और विकास के लिए भोजन के केवल मुख्य चार तत्त्व होते हैं-कार्बोज, प्रोटीन, वसा और खनिज लवण|
परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ है कि मनुष्य के शरीर में भी उपरोक्त तत्त्व हैं। भोजन में जिस रासायनिक तत्त्व की अधिकता होगी, शरीर के उसी तत्त्व द्वारा बने अंश पर उस भोजन का अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। पोषक तत्वों को उनके रासायनिक निर्माण की दृष्टि से निम्नलिखित वर्गों में बाँट सकते हैं:-
कार्बोज, वसा, प्रोटीन तथा खनिज लवण के अतिरिक्त शरीर को स्वस्थ और निरोग बनाये रखने के लिए जल तथा विटामिन की आवश्यकता होती है। यहाँ प्रोटीन, कार्बोज, वसा, लवण और विटामिन का पृथक्-पृथक् वर्णन किया गया है।
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प्रोटीन
यह सबसे अधिक आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है। इसमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कुछ गन्धक तथा कुछ अंश फॉस्फोरस का सम्मिश्रण होता है। हमारा शरीर नाइट्रोजन का उपयोग अधिक मात्रा में करता है और यह तत्त्व केवल प्रोटीन में ही मिलता है। इसलिए इसे नाइट्रोजन वाला तत्त्व भी कहते हैं।
उपयोगिता
(1) शरीर के तन्तुओं (त्वचा, पेशी), रक्त वाहिनियों तथा आन्तरिक अंगों के निर्माण और उनकी टूट-फूट की क्षतिपूर्ति, शरीर के विकास की क्रिया में प्रोटीन का उपयोग होता है। बच्चों, गर्भिणी स्त्रियों तथा दूध पिलाने वाली माताओं को इसकी उचित मात्रा आवश्यक है।
(2) आवश्यकता से अधिक प्रोटीन का उपयोग करने पर यह वसा के रूप में शरीर में एकत्र होता रहता है। शरीर में जब कभी वसा या कार्बोज का अभाव होता है तो यही संचित प्रोटीन गर्मी व शक्ति के उत्पादन में सहायता प्रदान करता है।
(3) प्रोटीन पाचक रसों, आन्तरिक रस (Hormones), एन्जाइम (Enzymes), व ऐण्टीबॉडीज (Antibodies) का निर्माण करता है।
(4) यह मानसिक शक्ति को बढ़ाता है।
(5) रक्त में पाया जाने वाला हीमोग्लोबिन भी प्रोटीन के द्वारा बनता है।
(6) यह शरीर में रोग-निवारण क्षमता उत्पन्न करता है। इस तत्त्व की कमी के कारण शरीर की ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता कम हो जाती है, फलस्वरूप अनेक रोगों के कीटाणु शरीर पर आक्रमण कर उसे रोगी बना देते हैं।
(7) यह शारीरिक वृद्धि में सहायता प्रदान करता है। अतः शरीर के स्वस्थ एवं समुचित विकास के लिए प्रोटीन का पर्याप्त मात्रा में उपयोग करना चाहिए।
साधन
साधनों के आधार पर प्रोटीन दो प्रकार के हैं— (1) पशु प्रदत्त, एवं (2) वनस्पति प्रदत्त ।
सामान्यतः वनस्पति प्रदत्त प्रोटीन, पशु प्रदत्त प्रोटीन की अपेक्षा कम उपयोगी होता है। पशुओं के कोश बहुत कुछ मानव कोशों के समान ही होते हैं। इसीलिए उनसे प्राप्त प्रोटीन हमारे शरीर के लिए अधिक उपयोगी होता है। पशु प्रदत्त प्रोटीन को ‘ए’ और वनस्पति प्रदत्त प्रोटीन को ‘बी’ वर्ग का प्रोटीन कहते हैं। पशु प्रदत्त प्रोटीन दूध, दूध से बने अन्य पदार्थ दही, पनीर, अण्डा, माँस व मछली आदि में पाया जाता है। वनस्पति प्रदत्त प्रोटीन, फलियों-उड़द, मूँग, मसूर, अरहर, सोयाबीन, सेम, मटर, लोबिया, आदि दालों, हरी सब्जियों, अनाज-गेहूँ, जौ, बाजरा, मक्का; सूखे मेवे-बादाम की मिंगी, मूँगफली, काजू, आदि में प्रचुरता से मिलता है। पशु प्रदत्त प्रोटीन में अण्डा, माँस व मछली आदि ऐसे पदार्थ हैं, जो वनस्पति प्रदत्त सोयाबीन, मटर, दाल तथा सेम आदि की अपेक्षा कम सुपाच्य होते हैं तथा तामसिक प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं, अतः इनके स्थान पर दूध, मटर, सोयाबीन, सेम आदि का प्रयोग अतिरिक्त मात्रा में किया जाये तो उचित होगा। प्रोटीन अण्डे में एल्ब्यूमिन के रूप में, गोश्त में मायोसिन के रूप में, दूध में केसीन के रूप में, गेहूँ में ग्लूटिन के रूप में तथा मटर व दालों में लेग्युमिन के रूप में होता है।
पदार्थ | पदार्थ का नाम | प्रोटीन |
पशुजन्य | गाय का दूध | 3.2-4.5 |
भैंस का दूध | 4.0-4.5 | |
मछली | 15.0-23.0 | |
जिगर | 17.0-19.5 | |
माँस | 18.0-26.0 | |
अण्डा | 13.0-13.3 | |
अनाज व दालें | सोयाबीन | 43.2-45.0 |
मूँग, मसूर, उड़द की दाल | 21.0-28.0 | |
अरहर, चने की दाल | 21.0-28.0 | |
सूखी मटर | 16.0-19.0 | |
गेहूँ | 6.0-13.0 | |
राजमा | 21.0-23.0 | |
सूखे मेवे | मूंगफली | 24.0-26.0 |
काजू, बादाम | 18.0-21.0 | |
अखरोट | 13.0-15.3 |
प्रोटीन की कमी से हानि
प्रोटीन की कमी से शरीर अस्वस्थ रहता है, रक्त की कमी हो जाती है, विकास की गति अवरुद्ध हो जाती है, रक्त-चाप निम्न हो जाता है और शरीर का भार कम हो जाता है तथा शरीर शक्तिहीन होता चला जाता है। यकृत बढ़ जाता है तथा सूजन आ जाती है, त्वचा पर चित्तियाँ पड़ जाती हैं, बाल भूरे होकर झड़ने लगते हैं। व्यक्ति का संक्रामक रोगों से बचाव कठिन हो जाता है।
बच्चों में प्रोटीन की कमी से कवाशियोरकोर (Kwashiorkor) रोग उत्पन्न हो जाता है, फलस्वरूप बच्चे का मानसिक विकास रुक जाता है।
शरीर के भार के अनुसार प्रतिदिन 1 ग्राम प्रति किलोग्राम के हिसाब से प्रोटीन की आवश्यकता होती है। प्रोटीन की अधिकता से हानि प्रोटीन की अधिकता हानिकारक होती है। गरम देशों में इसे पचाने में कठिनाई होती है। इससे शरीर में गर्मी भी अधिक पैदा होती है तथा जिगर एवं गुर्दों को प्रोटीन के पचने के पश्चात् उत्पादित मल, आदि को निष्कासित करने में अधिक श्रम करना पड़ता है, जो गुर्दों के लिए हानिकारक है। भारत जैसे गरम देशों में अण्डा, मछली व गोश्त का प्रयोग कम करना ही हितकर होगा।
प्रोटीन की दैनिक आवश्यकता
प्रत्येक व्यक्ति की दैनिक आवश्यकता उसकी आयु व उसके भार पर आधारित है। आयु, भार के अतिरिक्त व्यक्ति की दैनिक प्रोटीन आवश्यकता उसकी संवेगात्मक अव्यवस्था (Emotional disturbance), तनाव अवस्था (Stress situation), संक्रमण (Infection) पर बहुत कुछ निर्भर करती है।
प्रस्तावित दैनिक प्रोटीन आवश्यकता इण्डियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के पोषण विशेषज्ञ समूह (1968) द्वारा निम्न प्रकार से निर्धारित की गयी है-
1. सामान्य प्रौढ़ – एक भारतीय प्रौढ़ के लिए एक ग्राम उसके प्रत्येक किलोग्राम भार पर प्रस्तावित है। इस प्रकार एक सामान्य पुरुष का भार यदि 55 किग्रा० है तो उसकी दैनिक आवश्यकता 55 ग्राम है और एक सामान्य स्त्री का भार यदि 45 किग्रा० है तो उसकी प्रोटीन की दैनिक आवश्यकता 45 ग्राम है।
भारत में प्रोटीन की दैनिक आवश्यकता आयु के अनुसार निम्नवत् है-
एक शिशु को जन्म से कुछ सप्ताह तक लगभग 2.3 ग्राम प्रोटीन उसके प्रत्येक किलोग्राम भार के अनुसार चाहिए। धीरे-धीरे यह एक वर्ष तक कम होकर 1.5 ग्राम प्रत्येक किग्रा भार हो जाता है।
शिशुकाल में प्रोटीन की प्रस्तावित दैनिक मात्रा
आयु (माह में) | भार (ग्राम/किग्रा०) |
0-3 | 2.3 (दूध द्वारा) |
3-6 | 1.8 (दूध द्वारा) |
6-9 | 1.8 (वनस्पति भोजन द्वारा) |
9-12 | 1.5 (वनस्पति भोजन द्वारा) |
2. बाल्यावस्था – प्रस्तावित प्रोटीन की दैनिक आवश्यकता बाल्यावस्था में निम्न प्रकार से होती है-
आयु/वर्ष बालक/बालिकाओं के लिए | भार
(ग्राम/किग्रा०) |
दैनिक आवश्यकता
(ग्राम में) |
1 | 1.90 | 16.5 |
2 | 1.72 | 18.0 |
3 | 1.70 | 20.0 |
4-6 | 1.66 | 22.0 |
7-9 | 1.59 | 33.0 |
10-12 | 1.48 | 41.0 |
3. गर्भावस्था – गर्भावस्था में प्रोटीन की दैनिक आवश्यकता बढ़ जाती है प्रतिदिन – 10 पाम अतिरिक्त आवश्यकता गर्भावस्था के पाँचवें माह से जब भ्रूण की वृद्धि तीव्र गति से होती है। इस प्रकार एक सामान्य भार की गर्भवती स्त्री को जिसका भार 45 किमा० है, 55 ग्राम प्रोटीन मिलना चाहिए।
4. स्तनपान अवस्था – स्तनपान की अवस्था में स्त्री 800 मिमा दूध से 10 ग्राम प्रोटीन बालक को देती है। अतः एक 45 किमा० भार की सामान्य स्त्री को गर्भवती की तुलना में 10 ग्राम अतिरिक्त प्रोटीन प्रतिदिन मिलना चाहिए। अतः स्तनपान अवस्था में प्रोटीन की दैनिक आवश्यकता बढ़कर 65 ग्राम हो जाती है।
बालक | ||
13-15 | 1.44 | 55.0 |
16-19 | 1.33 | 60.0 |
बालिकाएँ | ||
13-15 | 1.40 | 50.0 |
16-19 | 1.27 | 55.0 |
गर्भावस्था एवं स्तनपान काल में प्रस्तावित प्रोटीन की आवश्यकता (ग्राम में)
सामान्य आवश्यकता | अतिरिक्त मात्रा | योग | |
गर्भावस्था | 45 | 10 | 55 |
स्तनपान | 45 | 20 | 65 |
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