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महादेवी वर्मा की रहस्यभावना का मूल्यांकन

महादेवी वर्मा की रहस्यभावना का मूल्यांकन
महादेवी वर्मा की रहस्यभावना का मूल्यांकन
महादेवी वर्मा की रहस्यभावना का मूल्यांकन कीजिए।

रहस्यानुभूति की अभिव्यक्ति ही महादेवी के काव्य का प्राणधन है।

“रहस्यानुभूति भावावेश की आँधी नहीं वरन् ज्ञान के अनन्त आकाश के नीचे अज्ञान की प्रवाह भरी त्रिवेणी है। इसी से हमारे तत्व दर्शक बौद्धिक तथ्य को हृदय का सत्य बना सके।” – डॉ. शिवमूर्ति पाठक

महादेवी ने दीपक और उसकी बत्ती के माध्यम से मानव जीवन के दुःख सुख रूपी अन्धकार को अध्यात्म प्रेम के संयोग से दूर करने की भावना व्यक्त की है। महादेवी के साधना के क्षेत्र में दीपक के रूपक का निर्वाह अपनी प्रारम्भिक कविताओं से लेकर ‘दीपशिखा’ तक बराबर किया है।

महादेवी ने दीपक के माध्यम से सर्वत्र आत्म-वेदना, विश्व करुणा एवं अध्यापक प्रेम को व्यक्त किया है। महादेवी की रहस्यानुभूति उनकी वैयक्तिक वृत्तियों, उनके पारिवारिक संस्कारों, भारतीय साहित्य की परम्पराओं मध्यकालीन सन्तों की भाव-धाव तथा सामयिक कवियों की रचनाओं के प्रभाव से युक्त है। महादेवी का रहस्यवादी काव्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचा हुआ है। उसकी रहस्यानुभूति शुद्ध एवं यथार्थ रहस्यानुभूति है। उसकी अभिव्यक्ति लौकिक शब्दावली में हुई है। ‘नीहार’ के प्रथम गीत से लेकर ‘दीप-शिखा’ तक रहस्यानुभूति की धारा अविच्छिन्न रूप से प्रवाहित हुई है। रहस्यानुभूति की पाँच अवस्थाएँ मानी गई हैं— (1) जिज्ञासा, (2) आस्था, (3) अद्वैत-भावना, (4) मिलन की अनुभूति महादेवी के काव्य जीवन के प्रारम्भ में ही अलौकिक सत्ता के प्रति दृष्टिकोण एवं बोध एक गम्भीर रागात्मक भाव में परिणत हो चुका था। अतः उनकी रहस्यानुभूति में जिज्ञासा का अस्तित्व नहीं मिलता। आस्था की अभिव्यक्ति सर्वत्र गम्भीरता के साथ हुई है।

छिपा है जननी का अस्तित्व, रुदन में शिशु के अर्थ विहीन।
मिलेगा चित्रकार का ज्ञान, चित्र की जड़ता में लीन ।

साधक और साध्य की एकात्मक अनुभूति रहस्यवाद का मूलाधार है। महादेवी की दार्शनिक मान्यताओं में भारतीय अद्वैतवाद के सभी तत्त्व मिलते हैं। उन्होंने सर्वत्र आत्मा और परमात्मा की अद्वैतता का निरूपण किया है-

मैं तुमसे हूँ एक एक है, जैसे रश्मि प्रकाश।
मैं तुमसे हूँ भिन्न भिन्न ज्यों, धन में तड़ित् विलास ।
महादेवी प्रत्येक स्थिति में स्वयं को अभिन्न देखती हैं।
“बीच भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ।”

महादेवी की रहस्यानुभूति अत्यन्त सुदृढ़ आदार पर अवस्थिति है। अलौकिक प्रणयानुभूति का वर्णन महादेवी ने स्थान-स्थान पर किया है।

मूक प्रणय से मधुर व्यथा से, स्वप्न लोक के से आह्वान।
वे आये चुपचाप सुनाने, तब मधुमय मुरली की तान

महादेवी का अलौकिक प्रणय मिलन की कहानी से प्रारम्भ होता है, परन्तु क्षणिक प्रारम्भिक मिलन सदा के लिए विरह में परिणत हो जाता है। प्रियतम की एकमात्र चिरमय ने विरह वेदना का स्थायी साम्राज्य दे दिया—

इन ललचाई पलकों पर, पहरा जब था क्रीड़ा का।
साम्राज्य मुझे दे डाला, उस चितवन ने पीड़ा का।
वे जीवन दीप जलाये हुए उसी की मौन प्रतीक्षा में लीन हैं :
अपने इस सूनेपन को, मैं हूँ रानी मतवाली।
प्राणों का दीप जलाकर, करती रहती दीवाली।

भारतीय काव्यशास्त्रियों ने रस-दशाओं का निरूपण किया है— 1. अभिलाषा, 2. चिन्ता, 3. स्मृति, 4. गुण-कथन, 5. उद्वेग, 6. प्रलांप, 7. उन्माद, 8. व्याधि की जड़ता, और 9. मरण। महादेवी की विरह-वेदना विशुद्ध रूप से आध्यात्मिक है। अतः क्रमिक रूप से विरह दशाओं का निरूपण नहीं मिलेगा। परन्तु भक्त दशाओं के मार्मिक उदाहरण सहज ही मिल जायेंगे।

  • अभिलाषा – अलि कैसे उनकी पाऊँ।
  • वे आँसू बनकर मेरे इस कारण ढल ढल जाते।
  • इन पलकों के बन्धन में मैं बाँध बाँध पछताऊँ।
  • गुण-कथन- उनकी वीणा का नव कंपन,
  • डाल गई री मुझमें जीवन ।
  • उद्वेग- फिर विकल हैं प्राण मेरे ।
  • तोड़ दो यह क्षितिज मैं भी देख लूँ उस ओर क्या हैं?
  • जा रहे जिस पंथ में युग कल्प उसका छोर क्या है?

महादेवी की विरह-व्यथा कहीं-कहीं निराशा मिश्रित होकर रोष, क्षोभ अमर्ष से उद्वेलित हो जाती हैं

मत कहो हे विश्व! ‘झूठे’, हैं अतुल वरदान तोरे।

अन्ततः महादेवी में भक्तों का दैन्य और आत्म-समर्पण चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाता है :

सिन्धु की क्या परिचय दें देव, बिगड़ते बनते बीचि विलास ।

क्षूद्र मेरे बुद्बुद् प्राण, तुम्हीं में सृष्टि तुम्हीं में नाश ।

महादेवी ने आध्यात्मिक मिलनोल्लास और आह्लाद का भी वर्णन किया है। मानो क्षणभंगुर जीवन को अपनी गोद में लेने के लिए साक्षात् आनन्द ही उपस्थित हो गया हो—

“अंक मैं तन नाश को, लेने अनन्त विकास आया।”

महादेवी की रहस्यानुभूति की धारा क्रमशः प्रारम्भिक मिलन, दीर्घ वियोग, पुनः क्षणिक मिलन के तटवर्ती बिन्दुओं को स्पर्श करती हुई अन्ततः उस स्थान पर पहुँच जाती हैं। वे साधिका रूप में परम तत्त्व के अस्तित्व का बोध करने लगती है। द्वैत और अद्वैत में सामंजस्य स्थापित हो जाता है। आधुनिक युग के हिन्दी के कवियों में महादेवी के ही रहस्यानुभूति की यथार्थता, व्यापकता, गम्भीरता और उसकी अभिव्यक्ति की कलात्मकता मिलती है।

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Anjali Yadav

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