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महादेवी वर्मा के काव्य की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताएँ

महादेवी वर्मा के काव्य की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताएँ
महादेवी वर्मा के काव्य की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताएँ

महादेवी वर्मा के काव्य की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं को निर्धारित कीजिए। अथवा आधुनिक हिन्दी कवियों में अपने रुचि के कवि का उल्लेख कीजिए और सोदाहरण काव्य गुणों पर प्रकाश डालिए।

गौतम बुद्ध की करुणा मीरा बाई वेदना, सूरदास का संगीत तत्व और छायावादी काव्य की सौन्दर्य चेतना जिस कवयित्री के काव्य में एकाकार होकर व्यक्त होते हैं वे महादेवी वर्मा है। आपको विद्वानों लोग आधुनिक युग का मीरा कहते हैं। सरस्वती के पावन मन्दिर में छायावादी काव्य स्वरों को अपनी साधना की वीणा से झंकृत कर देने वाली कवयित्री महादेवी वर्मा का कवि विहार कल्पना के स्वर्णिम पंखों पर आसीन होकर निःसीम गगन में उड़ता चला जाता है। महादेवी वर्मा ने एक ओर तो अपने काव्य में विह्वल होकर करुणा और वेदना के गीत गाती हैं तो दूसरी ओर प्रियतम की स्मृति के दीप भी जला कर मन में सुख व आशा का संचार भी करती हैं, अभिसार और श्रृंगार भी करती है। और अपने रेखा चित्रों में दीन-हीन जनों यथार्थ का अंकन करती हैं, उनके प्रति सहानुभूति भी व्यक्त करती है।

(क) भाव सीय विशेषताएँ

(1) वैयक्तिकता- छायावादी कवि निजी जीवन की अभिव्यक्ति की अपेक्षा रखता है। सामाजिक जीवनाभिव्यक्ति का अवकाश नहीं हैं निजी अनुभूतियों के वैयक्तिक चित्रण में उसकी रुचि अधिक रमी है। महादेवी वर्मा भी इसी वैयक्तिकता को लेकर आगे बढ़ी है। उनके काव्य का विषय प्रकृति हो या अलौकिक प्रियतम उनका मूल स्वर व्यक्ति केन्द्रित ही दिखायी देता है। प्रियतम से स्थायी मिलन के प्रस्ताव को भी वे इसीलिए अमान्य घोषित कर देती है। क्योंकि इससे उनके व्यक्तित्व का लोप हो जाने की शंका हैं महादेवी वर्मा को अपना एकाकीपन विरह पीड़ा आदि सब कुछ अंगीकार है और इस पर उन्हें गर्व भी है-

 “उनसे कैसे छोटा है, मेरा यह भिक्षुक जीवन?
उनमें अनन्त करुणा है, इसमें असीम सूनापन।”

(2) स्वच्छन्दतावाद- छायावाद के बन्धनों को विच्छिन्न कर देने की प्रवृत्ति महादेवी वर्मा में स्वभावगत है। सम्भवतः इसीलिए उन्होंने सांसारिक जीवन का परित्याग कर भिक्षुणी बनने का निश्चय अपने यौवन के प्रभातकाल में किया था। इस आकांक्षा के पूरे न होने पर भी उन्होंने दाम्पत्य जीवन को ठुकराकर अपनी स्वचन्छन्द भावना की तुष्टि की है। इसी भावना से परिचालित होकर वे कष्ट कटकों को चुनौती देती हुई अनजान दिशा में साहसपूर्वक अग्रसर हुई है-

“पंथ होने दे अपरिचित प्राण रहने दो अकेला!
और हांगे चरण हारे। अन्य हैं जो लौटते वे शूल के संकल्प सारे।
मैं लगाती चल रहीं नित मोतियों की हाट और चिनगारियों का एक मेला।”

(3) रहस्यात्मक भावना – महादेवी जी की छायावादी उक्तियों में रहस्यात्मकता का सुन्दर सन्निवेश हैं उताहणार्थ-

“घर लौट-सुख-दुःख विहग तम पोंछ रहा मेरा अगजग
छिप आज कला वह चित्रित मग उतरो अब अलकों में पहुन!”

(4) प्रकृति के प्रति प्रेम- छायावादी काव्य में प्रकृति के प्रति बहुत विस्तार से वर्णन किया गया है परिणामतः कुछ आलोचकों ने छायावाद को प्रकृति काव्य कहना ही उपयुक्त समझा है। महादेवी जी ने भी प्रकृति का चित्रण अनेक रूपों में किया हैं उनके काव्य में प्रकृति आलम्बन उद्दीपन उपदेशक, पूर्व पीठिका आदि रूपों में प्रस्तुत हुई है। उन्होंने प्रकृति पर मानवीय भावनाओं का आरोप करके उसे आत्मीय बना लिया हैं-

“धीरे-धीरे उतर क्षितिज से आ बसन्ती रजनी !
तारकमय नव वेणी बन्धन
शीश फूल कर शशि का नूतन
रश्मि-विलय सित-धन अवगुंठन
मुक्ताहल अभिराम बिछा दे चितवन से अपनी!”

(5) वेदना के स्वर- महादेवी वर्मा के काव्य में सर्वत्र वेदना भाव समाहित हैं उनकी वेदना में साधना, संकल्प और लोक कल्याण की भावना निहित है। महादेवी जी को वेदना अत्यधिक प्रिय है। उनकी कमना है कि उनके जीवन में सदैव अतृप्ति बनी रहे और उनकी आँखों से निरन्तर आँसुओं की धारा बहती रहती है

“मेरे छोटे से जीवन में देना न तृप्ति का कण भर रहने दो प्यासी आँखें, भरती आँसू के सागर । “

(6) अलौकिक प्रेम चित्रण- महादेवी वर्मा का सम्पूर्ण काव्य प्रेम काव्य है। उनके प्रारम्भिक गीतों में जिस अलौकिक प्रेम का चित्रण हुआ है, वहीं आगे चलकर एक प्रकार की साधना बन गया है। महादेवी के प्रारम्भिक गीतों में ऐसे अनेक संकेत प्रदर्शित हुए हैं। जिनके आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि उनके प्रेम का आलम्बन अलौकिक ब्रह्म के विषय में कभी तो उनके मन में मिलन कि प्रबल भावना जागृत होती है और कभी रहस्यमयी प्रबल जिज्ञासा ।

(7) रागात्मकता– छायावादी काव्य में रागात्मकता अथवा भाग प्रवणता की प्रधानता है। महादेवी वर्मा की भी कविताओं में रागात्मकता का प्रभाव व्याप्त है किन्तु उनकी यह रागात्मकता कोरी भावुकता न होकर बुद्धि से समन्वित भी है। प्रसाद, पंत निराला आदि अन्य छायावादी कवियों की रागात्मकता जहाँ मानव प्रकृति अध्यात्म नारी आदि विविध रूपों में व्यक्त हुई है वही महादेवी की रागात्मकता का केन्द्र आध्यात्मक हो रहा है।

(ख) कलापक्षीय विशेषताएँ

पीड़ा और वेदना की कवयित्री महादेवी वर्मा के काव्य की कलापक्षीय विशेषताएँ निम्न प्रकार है-

(1) सूक्ष्म अप्रस्तुत विधान – अपने काव्य विषय को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए कवि उपमानों का सहारा लेते हैं। ये उपमान दो प्रकार के होते हैं- स्थूल और सूक्ष्म महादेवी वर्मा ने अपने काव्य में सूक्ष्म और वायुवीय उपमानों का प्रयोग अधिक किया है।

(2) प्रतीक योजना- महादेवी जी के काव्यों में प्रतीकों का बाहुल्य हैं बदली, सान्ध्य गगन, सरिता, दीपक सजल नयन, गगन, जलधारा, ज्वाला, पंकज, किरण, प्रकाश विद्युत आदि उपमान उनके प्रमुख प्रतीत हैं उनके प्रतीकों के अर्थ भी अपने ही हैं, जैसे-

मैं नीर भरी दुःख की बदली।”

इसमें ‘बदली’ करुणा से भरी हृदयावती का प्रतीक हैं इसी प्रकार कुछ गिने चुने प्रतीकों को महादेवी वर्मा ने अपनाकर उनमें अर्थ भर कर कवयित्री ने अपनी प्रतीक योजना को समृद्ध और भावों को प्रभावशाली बना दिया है।

(3) लाक्षणिकता— लाक्षणिकता की दृष्टि से महादेवी का काव्य अतिभव्य हैं उन्होंने अपने अनेक गीतों में भावों के सुन्दर चित्र अंकित किए हैं। जिस प्रकार थोड़ी सी रेखाओं और रंगों के माध्यम से कुशल चित्रकार किसी भी चित्र को उभार देता है, उसी प्रकार महादेवी वर्मा ने थोड़े से शब्दों के माध्यम से ही अनेक सुन्दर चित्र चित्रित हुए हैं।

(4) कोमल कान्त पदावली- महादेवी जी ने अपने काव्य में शब्द चयन में अत्यन्त जागरूकता बरती है। उन्होंने उन्हीं शब्दों का प्रयोग किया है, जो उनके भावों को प्रस्तुत करने में पूरी तरह से समय और सक्षम हैं सत्सम शब्दों के साथ-साथ उन्होंने आवश्यकतानुसार तद्भव शब्दों को भी अपनाया है वर्ण मैत्री भी इनकी शब्द योजना की प्रमुख विशेषता है कोमलकान्त पदावली में इनका काव्य रचा गया है-

मधुर मधुर मेरे दीपक जल!
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
प्रियतम का पथ आलोकित कर।

(5) छन्द – विधान– महादेवी वर्मा संगीत को जीवन मानती है। इस कारण उनके गीतों में संगीतात्मकता का प्रभाव परिलक्षित होता है छन्द में गीत-छन्द का प्रयोग महादेवी वर्मा की अपनी नवीन प्रस्तुति है।

(6) अलंकार विधान– महादेवी वर्मा के काव्य में अलंकार अनायास आ गए हैं। उन्होंने प्रयास से अलंकारों की योजना नहीं की है, रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण, विभावना आदि अलंकार उनके काव्य में व्यक्त हुए हैं। रूप अलंकार का प्रसिद्ध उदाहरण है जो मानवीकरण अलंकार भी है—

“मैं नीर भरी दुःख की बदली।”

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Anjali Yadav

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