यथार्थवाद का आशय स्पष्ट करते हुए आधुनिक शिक्षा पर इसके प्रभाव की विवेचना कीजिए।
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यथार्थवाद क्या है ? (What is Realism?)
यथार्थवाद एक ऐसी विचारधारा है जो यह मानती है कि इन्द्रियों के द्वारा जो ज्ञान प्राप्त होता है वही सत्य होता है। यथार्थवादी यह कहते हैं कि जो कुछ संसार में दिखलाई पड़ रहा है वही सत्य है। बटलर अत्यन्त स्पष्ट शब्दों में लिखता है- “जैसा यह संसार दिखलाई पड़ता है, सामान्यतः उसे वैसा ही स्वीकार करना यथार्थवाद है।”
स्वामी रामतीर्थ ने भी यथार्थवाद की परिभाषा दी है। उन्होंने लिखा है, “संक्षेप में यथार्थवाद वह विश्वास या सिद्धान्त है जो संसार को वैसा ही मानता है जैसा कि वह दिखलाई . पड़ता है अर्थात् संसार केवल रूप एवं गुण-मात्र है।”
यथार्थवादी यह कहते हैं कि भौतिक जगत ही सत्य है। उनका विश्वास भौतिकवाद में है और उनके अनुसार मनुष्य को संसार के सभी सुखों की प्राप्ति करने का प्रयास करना चाहिए। उनका विश्वास वास्तविकता में ही अधिक है। यहाँ यह प्रश्न बरबस उठता है कि यदि यथार्थवाद और प्रकृतिवाद भौतिक जगत् की सत्ता एवं सत्यता में विश्वास करते हैं तो दोनों में अन्तर क्या है? अन्तर यह है कि प्रकृतिवाद पदार्थों पर अधिक बल देता है और पदार्थों को ही सब कुछ मानता है जबकि यथार्थवाद केवल उनके अस्तित्व को ही स्वीकार करता है। वह इस ओर कोई ध्यान नहीं देता कि वे कहाँ तक किसी अन्य पदार्थ के कारण हैं।
यथार्थवाद प्रयोगवाद के भी निकट है। यथार्थवादी प्रयोगवादियों की भांति अनुभव में विश्वास करते हैं और कहते हैं कि सत्य-ज्ञान की प्राप्ति अनुभव के बिना नहीं हो सकती। यथार्थवादियों और प्रयोगवादियों में अन्तर यह है कि यथार्थवादी प्रयोगवादियों की भाँति प्रगतिशील नहीं हैं और उनका विश्वास परम्पराओं में है। प्रयोगवादी वस्तु – स्थिति का ज्ञान क्रिया के द्वारा करते हैं जबकि यथार्थवादी कहते हैं कि वस्तु के साथ ही यथार्थ-ज्ञान स्पष्ट होता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि यथार्थवादी अनुभव में भौतिक यथार्थता ‘जगत्’ सत्य मानते हैं। पार्टर वी० गुड यथार्थवाद की परिभाषा देते हुए लिखता है- “यथार्थवाद वह सिद्धान्त है जिसके अनुसार वस्तुगत यथार्थता या भौतिक जगत् चेतन मन से स्वतन्त्र रूप में अस्तित्व रखता है, उसकी प्रकृति और उसके गुण उसके ज्ञान से मालूम होते हैं।”
रॉस के अनुसार, “वह मानता है कि जो कुछ हम प्रत्यक्ष में अनुभव करते हैं उनके पीछे के तथा उनसे मिलता-जुलता वस्तुओं का एक यथार्थ जगत् है।” इस प्रकार सदैव जगत् के होने वाले समस्त क्रिया-कलापों को वास्तविक स्वतन्त्र कल्पना से रहित स्वीकार करता है। डॉ० चौबे आगे यथार्थवाद के सम्बन्ध में लिखता है- “यथार्थवाद अनुभव में भौतिक यथार्थता के जगत् को वास्तविक एवं आधारभूत वस्तु मानता है। इसका विचार है कि भौतिक जगत् ही वस्तुगत है और तथ्यगत जगत् कोई ऐसी वस्तु है जैसे वह है उसी तरह सरलता से स्वीकार किया जा सकता है। “
आधुनिक शिक्षा पर यथार्थवाद का प्रमुख प्रभाव (Various Effect of Realism on Modern Education)
हमारी आज की शिक्षा पर यथार्थवाद का बड़ा प्रभाव पड़ा है। ये प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं-
(1) एकेडेमी की स्थापना यथार्थवाद की देन है। जर्मनी में यथार्थवादी शिक्षा का पर्याप्त विचार हुआ। जर्मनी में रियल स्कूल पदार्थवादी विचारधारा को लेकर चलते हैं।
(2) एकेडेमी की स्थापना इंग्लैंड में की गई। इनमें भाषा तथा दर्शन के साथ-साथ इतिहास, भूगोल, अंकगणित, आशुलिपि आदि को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया। लगभग सभी स्कूलों में शिक्षा का माध्यम आंग्ल भाषा को बनाया गया।
(3) अमेरिका में भी एकेडेमी की स्थापना हुई, इन्हें अब विद्यालयों के रूप में बदल दिया गया है।
(4) इंजीनियरिंग, चिकित्सा, औद्योगिकी, तकनीकी शिक्षा के लिए लगभग सभी देशों में विद्यालयों की स्थापना की गई है। ये विद्यालय यथार्थवादी विचारधारा के पोषक हैं। ये यथार्थवाद के ही परिणाम हैं।
(5) शिक्षा की जो परिभाषा आज दी जा रही हैं वह यथार्थवाद पर पूर्ण रूप से टिकी है। यथार्थवाद के अनुसार शिक्षा का रूप व्यावहारिक होना चाहिए।
(6) शिक्षा के उद्देश्य कोरी कल्पना का विषय न हो जाय, इसलिए इसे यथार्थ पर आधारित करने का प्रयास किया जाता है।
(7) हमारे आज के पाठ्यक्रमों पर यथार्थवाद का पूर्ण प्रभाव देखने को मिलता है। पाठ्यक्रम की विस्तृत किया गया है और उपयोगी विषयों की शिक्षा दी जाती है।
(8) अनुसन्धान में वैज्ञानिक विधि को स्थान आगमन प्रणाली को महत्त्व, अनुशासन में वास्तविकता का प्रवेश यथार्थवाद की ही देन है।
(9) अध्यापक अब कक्षा में केवल तथ्यों को ही बताते हैं। वे अपने विचार और भावनाओं को महत्त्व नहीं देते। यह यथार्थवाद का ही प्रभाव है।
(10) छात्रों का अब वस्तुनिष्ठ ढंग से ध्यान दिया जाता है, वह भी यथार्थवाद का परिणाम है।
(11) विद्यालय का संचालन आज केवल आदर्श पर ही नहीं टिका है बल्कि इस दिशा में यथार्थ बातों को महत्त्व दिया जाने लगा है। यह भी यथार्थवादी शिक्षा का ही प्रभाव और परिणाम है।
(12) आज ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त किये गये ज्ञान को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है। कई शिक्षा विधियाँ ऐसी हैं जो ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण पर ही बल देती हैं। यह यथार्थवाद का ही प्रभाव है।
यथार्थवाद ने शिक्षा को उसके विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावित किया है। यथार्थवाद के उदय से शिक्षा में नवीन उद्देश्यों का श्रीगणेश हुआ और उन बातों को महत्त्व मिला जो बालक के भावी जीवन को सुखी बनाने के लिए आवश्यक होती हैं। उसने शिक्षा को पुरानी परम्परा, कल्पना तथा भावना की ऊँची-नीची लहरों से खींचकर वास्तविकता की भूमि पर खड़ा कर दिया।
यूरोप में परीक्षा पद्धति और पाठ्यक्रम तो बदलने ही लगे, नई-नई संस्थायें भी खड़ी होती हुई दिखाई देने लगीं। सबसे पहले यह प्रभाव जर्मनी में दिखाई दिया। वहाँ प्राथमिक पाठशालाओं में वृद्धि होने लगी और मातृ-भाषा ही शिक्षा का माध्यम हो गई। विज्ञान को पाठ्यक्रम में महत्त्वपूर्ण स्थान मिला और यूरोप, अमेरिका की सारी शिक्षा संस्थायें उसके प्रभाव से अभिभूत दिखाई देने लगीं। सब जगह वनस्पति शास्त्र, रसायन शास्त्र, भूगर्भ शास्त्र, प्राणिविज्ञान तथा भौतिक विज्ञान जैसे विषय पढ़ाये जाने लगे।
यथार्थवाद की शिक्षा की दो प्रमुख देन हैं। सर्वप्रथम इसने शिक्षा और जीवन के पार्थक्य को मिटाने का प्रयत्न किया। फिर इसने शिक्षा में निरीक्षण तथा स्वानुभव पद्धति का प्रतिपादन किया। यथार्थवाद ने ही सर्वप्रथम इस विचार को हमारे सम्मुख रखा कि इन्द्रियाँ ही ज्ञान का द्वार हैं। इसने ही बताया कि ज्ञान आगमन (Inductive) पद्धति से प्राप्त किया जाना चाहिए। शाब्दिक शिक्षा पर्याप्त नहीं है, पुस्तकीय ज्ञान सब कुछ नहीं है। सच्ची शिक्षा वही है जो प्रकृति और समाज के प्रत्यक्ष सम्पर्क में रहकर स्वानुभव द्वारा प्राप्त हो ।
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