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यथार्थवादी शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ | Chief Features of the Realistic Educations in Hindi

यथार्थवादी शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ  | Chief Features of the Realistic Educations in Hindi
यथार्थवादी शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ | Chief Features of the Realistic Educations in Hindi

यथार्थवादी शिक्षा की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। 

यथार्थवादी शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ (Chief Features of the Realistic Educations)

शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों पर हम यथार्थवादी विचारधारा का प्रभाव देखते हैं। वास्तव में आधुनिक शिक्षा व्यवस्था एक तरह से पूर्ण रूप से यथार्थवादी ही है। यहाँ हम शिक्षा में यथार्थवाद की विशेषताओं पर संक्षेप में प्रकाश डाल रहे हैं।

(1) पुस्तकीय एवं अवास्तविक पाठ्यक्रम का विरोध- यथार्थवाद में शिक्षा के क्षेत्र में पुस्तकीय गूढ़ एवं अवास्तविक पाठ्यक्रम का विरोध किया गया है। यथार्थवादियों ने प्राचीन पाठ्य पुस्तकों, क्लासिक्स आदि के अध्ययन को कोई महत्त्व नहीं दिया। उनके स्थान पर उन्होंने मानव और प्रकृति से सम्बन्धित बातों को जानना आवश्यक माना। मानव सम्पर्क प्रकृति ज्ञान, भ्रमण, निरीक्षण आदि पर यथार्थवादियों ने विशेष बल दिया।

(2) इन्द्रिय ज्ञान का सिद्धान्त- यथार्थवादी विचारधारा के अनुसार हमारी इन्द्रियाँ ही ज्ञान की मुख्य साधन हैं। इसी प्रकार यथार्थवादियों ने पुस्तकों के स्थान पर वस्तुओं के पर बल दिया है। यथार्थवादियों का विचार था कि हमारे चारों ओर जो वस्तुएँ और दशाएँ हैं उन्हीं का अध्ययन किया जाना चाहिए और इन्द्रियों के माध्यम से उनका ज्ञान प्राप्त किया जाना चाहिए।

(3) विज्ञान की शिक्षा पर विशेष बल- यथार्थवादियों के अनुसार व्याकरण, साहित्य और अन्य निरर्थक विषयों के स्थान पर विज्ञान की शिक्षा पर बल दिया जाना चाहिए।

(4) शिक्षा का वर्तमान जीवन से सम्बन्ध- यथार्थवादियों ने शिक्षा के वर्तमान जीवन से सम्बन्ध स्थापित किया है। उन्होंने देश और समाज के अनुसार शिक्षा की · आवश्यकता पर बल दिया। उनका विचार था, “विद्यालय जो कि साविधिक शिक्षा का साधन माना जाता है वे जीवन और समाज में अवश्य ही सम्बन्ध रखें।”

(5) सामुदायिक विद्यालय की स्थापना पर बल- आधुनिक युग में अमेरिका में जो सामुदायिक विद्यालय (Community School) की स्थापना पर बल दिया जा रहा है उसकी नींव यथार्थवादियों ने ही रखी है। यथार्थवादियों ने इस तथ्य पर विशेष बल दिया कि जो विषय विद्यालय में पढ़ाये जायँ उनका सम्बन्ध तात्कालिक जीवन से भी हो। इतिहास हमें अच्छा नागरिक बनाने में सहायता दे। साहित्य वर्तमान जीवन की यथार्थ आलोचना करे, और रसायन एवं भौतिक तथा जीव विज्ञान हमारे सामने की वस्तुओं, पदार्थों, पशु-पक्षियों का ज्ञान प्रदान करे।

(6) सामान्य शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा और मानवीय शिक्षा पर बल- मानवतावादी यथार्थवादी मिल्टन के अनुसार- “मैं उस शिक्षा को पूर्ण एवं उदार कहता हूँ जो एक व्यक्ति को न्यायोचित ढंग से, दक्षतापूर्ण और उदारता के साथ अपने निजी एवं सार्वजनिक सभी कार्य शान्ति तथा युद्ध के समय करने के योग्य बनाती है।” यथार्थवादियों ने सामान्य शिक्षा के साथ ही व्यावसायिक शिक्षा पर विशेष बल दिया। इंग्लैण्ड की स्पेन्स रिपोर्ट में लिखा गया- “शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण कार्य किसी व्यवसाय के हेतु तैयार करना है। किसी विशेष व्यावसायिक प्रशिक्षण को ही विद्यालय जीवन का लक्ष्य बनाया जाना चाहिए।” यथार्थवादियों ने मानवीय शिक्षा की व्यवस्था की बात भी कही है।

(7) शिक्षा द्वारा मानव जीवन की पूर्णता – यथार्थवादियों का यह विचार था कि मानव-जीवन में पूर्णता शिक्षा के माध्यम से ही आती है। शिक्षा व्यक्ति की स्वाभाविक रुचियों के अनुसार हीं दी जानी चाहिए। जब इस प्रकार की शिक्षा प्रदान की जायेगी तभी वह वास्तविक रूप में उपयोगी होगी। शिक्षा द्वारा जीवन की सार्थकता के चरम लक्ष्यों की प्राप्ति में योगदान दिया जाता है।

(8) शिक्षा व्यापक एवं संकुचित दोनों दृष्टिकोण से- यथार्थवादियों ने यह विचार व्यक्त किया कि शिक्षा व्यापक एवं संकुचित दोनों दृष्टिकोणों से दी जाती है। व्यापक अर्थ में शिक्षा जीवन की समस्त अनुभूतियों से सम्बन्धित की जाती है। संकुचित दृष्टिकोण से शिक्षा की प्रक्रिया में निश्चित उद्देश्यों को सामने रखकर ही शिक्षा दी जाती है तथा भी जाति के अपनी अनुभवहीन नवपीढ़ी को जीवनोपयोगी ज्ञान प्रदान करती है। इस प्रकार यह वृद्धजन स्पष्ट है कि यथार्थवादी शिक्षा की प्रक्रिया के व्यापक और संकुचित दोनों रूपों को मान्यता प्रदान करते हैं।

(9) प्राकृतिक तत्त्वों एवं सामाजिक संस्थाओं पर बल- यथार्थवादी शिक्षा व्यवस्था में विषयों की अपेक्षा प्राकृतिक तत्त्वों एवं सामाजिक संस्थाओं को अधिक बल दिया जाता है जिनमें कि व्यक्ति का जीवन व्यतीत होता है। पाल मुनरो लिखता है, “शिक्षा में यथार्थवाद शब्द इस प्रकार की शिक्षा के लिए प्रयोग किया जाता है जिसमें प्राकृतिक तत्वों और सामाजिक संस्थाओं को भाषाओं एवं साहित्य की अपेक्षा अध्ययन का मुख्य विषय बनाया जाता है।”

(10) पाठ्यक्रम की विशदता – यथार्थवादी शिक्षा व्यवस्था में पाठ्यक्रम की विशदता के दर्शन होते हैं। 17वीं शताब्दी के यथार्थवादियों ने 25-30 विषयों के अध्ययन का प्रस्ताव रखा। यथार्थवादी विचारधारा के अनुसार क्षेत्रों की भाषा, गणित, सामाजिक विषय, व्यावसायिक विज्ञानों आदि की शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए।

(11) जन-साधारण के हेतु की व्यवस्था- शिक्षा में यथार्थवाद मूलतः उच्चवर्गीय आन्दोलन था परन्तु फिर भी मध्यम वर्ग और साधारण जनता के लिए शिक्षा का आन्दोलन कमेनियस और अल्कास्टर जैसे यथार्थवादियों ने चलाया। यथार्थवादी दृष्टिकोण के अनुसार समाज में रहने वाले सभी लोगों के हेतु शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए।

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Anjali Yadav

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