लगान को प्रभावित करने वाले तत्व (Factors Effects of Rent)
लगान को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्व निम्न हैं
(1) जनसंख्या वृद्धि – जनसंख्या की वृद्धि के साथ खाद्य पदार्थों की माँग भी बढ़ती है जिसकी पूर्ति के लिए कम उर्वरा शक्ति वाली भूमि पर खेती होने लगेगी, फलस्वरूप लगाने में वृद्धि हो जायेगी। इसी प्रकार गहरी खेती की दशा में भी लगान बढ़ जायेगा क्योंकि क्रमागत उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होने से कम अच्छी और अच्छी भूमि का अन्तर बढ़ने लगता है।
(2) निर्यात का प्रभाव — किसी भी देश में यातायात के साधनों का विकास होने से उस देश की वस्तुएँ अन्य देशों में निर्यात होने लगती हैं। यदि कोई देश अन्य देशों में कृषि पदार्थों का अधिक मात्रा में निर्यात करता है, तो उस देश में कृषि भूमि की माँग बढ़ती है। कृषि भूमि की माँग बढ़ने से बेकार पड़ी भूमि पर भी कृषि होने लगती है। इस प्रकार ऐसी भूमि पर उत्पादन होता है तो देशी सीमान्त भूमि अधिसीमान्त भूमि होकर लगान देने लगती है। इस प्रकार किसी भी देश का निर्यात बढ़ने पर उस देश में लगान में भी वृद्धि होने लगती है।
(3) आयात का प्रभाव — जब देश में अन्य देशों से वस्तुएँ अधिक मात्रा में आयात होने लगती हैं तो देश में वस्तुओं की पूर्ति बढ़ जाती है तथा देश की भूमि पर उत्पादन कम होता है, परिणामस्वरूप सीमान्त भूमि पर उत्पादन बन्द कर दिया जाता है। अधिसीमान्त भूमि सीमान्त भूमि होकर लगान देना बन्द कर देती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि किसी भी देश में जब कृषि पदार्थों का आयात बढ़ने लगता है तो देश में लगान भी घटने लगता है।
(4) यातायात के साधनों का विकास- देश में यातायात के साधनों का विकास होने से खाद्यान की माँग में वृद्धि होने लगती है। औद्योगीकरण को प्रोत्साहन मिलता है। कारखाने खुलने से कच्ची सामग्री (गन्ना, कपास) आदि की माँग बढ़ती है। इस प्रकार किसी भी देश में जितने अधिक यातायात के साधन उन्नत होते हैं, भूमि की माँग में वृद्धि होती है। भूमि की माँग भी बढ़ने से सीमान्त भूमि पर भी खेती होने लगती है तथा लगान में वृद्धि होती है।
(5) आर्थिक विकास का प्रभाव- आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप औद्योगिक विकास होता है। औद्योगिक विकास होने से कच्चे माल की माँग बढ़ती है तथा भूमि की माँग बढ़ती है। इसी प्रकार औद्योगिक विकास या आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप देश में स्कूल, सड़क, कारखाने, मकान, पार्क आदि के लिए भी भूमि की माँग बढ़ती है। कुल मिलाकर आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप भूमि की माँग बहुत बढ़ जाती है। तथा कृषि भूमि का लगान भी बढ़ जाता है।
(6) कृषि में उन्नति का प्रभाव- जिस किसी देश में कृषि के नवीन तथा वैज्ञानिक तरीकों का प्रयोग किया जाता है तथा अच्छे बीज, रासायनिक खाद, सिंचाई, उन्नत मशीनें तथा औजार आदि काम में लाये जाते हैं, तो कृषि उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि होती है। देश में खाद्यान्न की पूर्ति अधिक बढ़ जाने से भूमि की माँग कृषि कार्य के लिए कम हो जाती है, परिणामस्वरूप सीमान्त भूमि पर उत्पादन कार्य बन्द हो जाता है तथा अधिसीमान्त भूमि सीमान्त भूमि हो जाती है। अधिसीमान्त भूमि के सीमान्त भूमि हो जाने पर इस भूमि को अब लगान नहीं देना पड़ता है। – अब इस स्थिति में अधिसीमान्त भूमि तथा सीमान्त भूमि के उत्पादन का स्तर कम हो जाता है तथा लगान भी घट जाता है। कृषि में उन्नति का प्रभाव तभी सम्भव होगा, जब सभी प्रकार की भूमि पर उन्नत ढंग से कृषि की जाये।
(7) सांस्कृतिक विकास का प्रभाव – आर्थिक विकास की तरह ही सांस्कृतिक विकास में भी भूमि की माँग बढ़ती है। भूमि माँग की तुलना में कम है, अतः भूमि की माँग बढ़ने से भूमि का लगान भी बढ़ता है। अब हम यह देखने का प्रयत्न करेंगे की सांस्कृतिक विकास के परिणामस्वरूप लगान में किस प्रकार वृद्धि होती है ? सांस्कृतिक विकास के परिणामस्वरूप जीवन-स्तर उन्नत होता है। उन्नत जीवन-स्तर में अच्छा भोजन, अच्छा मकान तथा आमोद-प्रमाद के स्थानों की आवश्यकता होती है। उक्त आवश्यकताओं की पूर्ति करने हेतु भूमि की माँग बढ़ती है। भूमि की माँग बढ़ने से भूमि का लगान भी बढ़ता है।
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