विद्यालय में किस प्रकार के संसाधनों की आवश्यकता होती है और क्यों?
विद्यालय की सफलता उसके भौतिक और मानवीय संसाधनों पर निर्भर करती है। इन्हीं संसाधनों के बल पर एक सफल विद्यालय का संचालन संभव है। ये संसाधन ही एक विद्यालय को ख्याति अथवा नाम प्रतिष्ठा में अपना योगदान देते हैं। विद्यालय प्रबंधन में मूल रूप से तीन प्रकार के संसाधनों की आवश्यकता होती है जिनका वर्णन इस प्रकार है।
(अ) मानवीय संसाधनः- मानवीय संसाधनों में मुख्यता प्रबंधन, प्रधानाध्यापक, अध्यापक, क्लर्क आदि आते हैं। किसी भी विद्यालय के पर्यावरण में भौतिक आयाम की अपेक्षा मानवीय आयाम का प्रभाव अत्यधिक होता है। ऐसे विद्यालय जिनके मानवीय संसाधन कुशल प्रशिक्षित दक्ष एवं समर्पित होते हैं, उन विद्यालयों की संकल्पना अच्छे विद्यालय अथवा प्रभारी विद्यालय दक्ष और समर्पित होते हैं, उन विद्यालयों की संकल्पना अच्छे विद्यालय अथवा प्रभारी विद्यालयों की संकल्पना अच्छे विद्यालय अथवा प्रभारी विद्यालय के रूप में की जा सकती है। प्रायः यह देखा गया है कि मानवीय संसाधनों के सुप्रशिक्षित एवं कुशल होने पर देश का विकास संभव हो सका है।
(ब) भौतिक और सामग्री संसाधन:- विद्यालय मानवीय संसाधन कितने ही दक्ष क्यों न हो जब तक पर्याप्त भौतिक संसाधन नहीं हो तब तक वे भली प्रकार कार्य नहीं कर सकते। उपयुक्त विद्यालय भवन, मैदान, पुस्तकालय, खेलकूद का सामान प्रयोगशालाएँ शिक्षण सामग्री आदि के बिना विद्यालय का सुसंचालन नहीं किया जा सकता है।
भौतिक संसाधन के अन्तर्गत विद्यालय के वे सभी उपकरण एवं वस्तुएँ आती है जिनका प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से उपयोग विद्यालय परिसर में शिक्षक एवं विद्यार्थी शैक्षिक सह शैक्षिक एवं गैर शैक्षिक कार्यों के लिए उपयोग करते है। उपयोग आधार पर भौतिक संसाधनों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है।
(1) शैक्षिक भौतिक संसाधन:- विद्यालय में काम में आने वाले वे सभी उपकरण एवं वस्तुएँ जिनकी शिक्षक एवं शिक्षार्थी अध्ययन अध्यापन के कार्यों में उपयोग में लेते है जैसे श्यामपट्ट, चॉक, डस्टर, मानचित्र, ग्लोब, प्रयोगशाला में काम में आने वाले सभी उपकरण, शब्दकोश, विद्यालय के विभिन्न अभिलेख पुस्तकें गणितीय उपकरण, विज्ञान के सभी उपकरण, भूगोल के सभी उपकरण इत्यादि ।
(2) सह-शैक्षिक भौतिक संसाधन:- विद्यालय में काम में आने वाले वे सभी उपकरण एवं वस्तुएँ जिनकी शिक्षक एवं शिक्षार्थी अध्ययन अध्यापन के अतिरिक्त पाठ् सहगामी गतिविधियों / सह-शैक्षिक गतिविधियों के कार्यों के संचालन में उपयोग में लेते हैं जैसे खेल एवं खेल के मैदान सम्बन्धी सभी उपकरण, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों सम्बन्धी सभी उपकरण वाद्य यंत्र आदि ।
(3) गैर-शैक्षिक एवं सह शैक्षिक भौतिक संसाधनः- इन भौतिक संसाधनों के अन्तर्गत इन सभी संसाधनों को रखा जा सकता है जिनका उपयोग विद्यालय में शैक्षिक एवं सह-शैक्षिक क्रिया कलापों में करना आवश्यक नहीं होता है अर्थात् इन संसाधनों का विद्यालय के शैक्षिक एवं सह-शैक्षिक क्रिया कलापों में कोई विशेष उपयोग नहीं होता है परन्तु फिर भी इन संसाधनों की आवश्यकता विद्यालय में अवश्य होती है। ये सभी संसाधन घरेलू मानव जीवन से अधिक सम्बन्धित होते हैं परन्तु विद्यालय में इनकी महत्वपूर्ण आवश्यकता होती है इनका उपयोग करते हुए ही विद्यालय में शैक्षिक एवं सह-शैक्षिक गति विधियों का आयोजन किया जा सकता है जैसे पंखे, दरी, पट्टी, पानी की टंकी, गिलास, लोटा, गेस, स्टोव, फर्नीचर बक्से इत्यादि ।
(स) वित्तीय संसाधन:- विद्यालय में मानवीय एवं भौतिक संसाधनों का तब तक महत्व नहीं है जब तक कि यथेष्ठ वित्तीय संसाधन न हो। मानवीय संसाधनों को वेतन भत्तों, भौतिक संसाधनों का क्रय एवं रख रखाव आदि के लिए वित्त की आवश्यकता होती है अतः ऐसे विद्यालय जिनकी वित्तीय स्थिति सुदृढ़ हो अच्छे विद्यालय कहलाते हैं। राज्य सरकार के विद्यालयों की वित्तीय व्यवस्था शासन द्वारा की जाती है जबकि निजी विद्यालय भी स्वयं के संसाधन जुटकर उत्तम कोटि की शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।
वित्त सभी प्रवृत्तियों का आधार है। किसी भी विद्यालय की दक्षता उसकी आय तथा उस आय का विद्यालय विकास में योगदान विवेक पूर्ण व्यय पर निर्भर करता है अतः किसी भी विद्यालय के विकास और दक्षता के लिए वित्तीय नियोजन शैक्षिक नियोजन का प्रमुख आधार बनना चाहिए। दूसरे शब्दों में शिक्षा या विद्यालय पर किया गया वित्तीय निवेश मानव विकास से सम्बन्धित है जिससे मानव समाज की अधिकांश उपलब्धियाँ सम्बन्धित है।
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