व्यावसायिक अर्थशास्त्र की प्रकृति एंव क्षेत्र
व्यावसायिक अर्थशास्त्र की प्रकृति (Nature of Business Economics)
व्यावसायिक अर्थशास्त्र की प्रकृति को इस प्रकार से स्पष्ट कर सकते हैं-
(1) यह कला व विज्ञान दोनों है- विज्ञान का तात्पर्य किसी विषय के क्रमबद्ध विश्लेषण तथा अध्ययन से होता है। व्यावसायिक अर्थशास्त्र एक विज्ञान है, क्योंकि इसमें निर्णयन एवं पूर्वानुमान के लिए आवश्यक तथ्य, समंकों का क्रमबद्ध संग्रह, वर्गीकरण एवं विश्लेषण किया जाता है। कला का आशय किसी कार्य को करने के सर्वोत्तम ढंग से होता है। एक व्यावसायिक फर्म के साधन सीमित होते हैं और इनके वैकल्पिक प्रयोग भी सम्भव होते हैं। व्यावसायिक अर्थशास्त्र व्यावसायिक प्रबन्ध को विभिन्न वैकल्पिक प्रयोगों में से सर्वश्रेष्ठ विकल्प के चुनाव में सहायता करता है।
(2) व्यावसायिक अर्थशास्त्र, अर्थशास्त्र की व्यावसायिक शाखा है- व्यावसायिक अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों का प्रयोग अनेक आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए किया जाता है; जैसे—माँग विश्लेषण व पूर्वानुमान. पूँजी प्रबन्धन, लागत विश्लेषण तथा लाभ विश्लेषण आदि ।
व्यावसायिक अर्थशास्त्र का क्षेत्र (Scope of Business Economics)
व्यावसायिक अर्थशास्त्र एक नया विषय होने के कारण विद्वानों में इस विषय के क्षेत्र के सम्बन्ध में मतभेद है, परन्तु फिर भी निम्न विषयों को इसमें सम्मिलित किए जाने के सम्बन्ध में अधिकांश विद्वान सहमत हैं।
(1) उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन (Study of Consumer’s Behaviour) – एक व्यवसायी के लिए उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन परमावश्यक है। उपभोक्ता के व्यवहार के पूर्वानुमान के लिए उपभोक्ता की बचत, क्रय, रुचि, शक्ति, पसंदगी, फैशन आदि विषयों का अध्ययन उपयोगी होगा।
(2) फर्म का सिद्धान्त (Theory of Firm ) – फर्म के सिद्धान्त के अन्तर्गत फर्म का मॉडल, फर्स के उद्देश्य फर्म का सिद्धान्त और उसकी कार्यप्रणाली का अध्ययन किया जाता है।
(3) लाभ का प्रबन्ध (Profit Management) – यह व्यावसायिक अर्थशास्त्र का सबसे अधिक जटिल क्षेत्र है क्योंकि यह अनेक अनिश्चितताओं से घिरा होता है। इसमें लाभों को प्रभावित करने वाले कारकों पर विचार किया जाता है तथा इनकी सही भविष्यवाणी की जाती है। इसके अन्तर्गत लाभ की प्रकृति और उसकी माप, लाभ की नीतियाँ, लाभ-दर, लाभ-नियोजन और पूर्वानुमान आदि का अध्ययन किया जाता है।
(4) प्रतियोगिता (Competition ) – इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रतियोगी दशाओं और उनके प्रभावों का अध्ययन किया जाता है ताकि सही निर्णय लिए जा सकें।
(5) मूल्य प्रणालियाँ और नीतियाँ (Pricing Practices and Policies) – मूल्य निर्धारण व्यावसायिक अर्थशास्त्र का एक महत्वपूर्ण पहलू है। इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रतियोगी दशाओं में मूल्य निर्धारण, व्यावसायिक फर्मों की मूल्य नीतियाँ, मूल्य-विभेद नीति, उत्पाद श्रेणी, मूल्य-निर्धारण और मूल्यों के पूर्वानुमान का अध्ययन किया जाता है।
(6) लागत और उत्पादन विश्लेषण (Cost and Output Analysis) – प्रभावपूर्ण लाभ नियोजन, नियन्त्रण और सुदृढ़ प्रबन्धकीय व्यवहार के लिए लागत और उत्पादन विश्लेषण बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इस भाग के अन्तर्गत लागत की अवधारणा, लागत वक्र, लागत और सीमान्त विश्लेषण, लागत उत्पादन सम्बन्ध, उत्पत्ति का पैमाना, उत्पादन प्रकार्य, उत्पत्ति के नियम, आदान- उत्पादन विश्लेषण और रेखीय कार्यक्रम का विवेचन किया जाता है।
(7) माँग विश्लेषण तथा पूर्वानुमान (Demand Analysis and Forecasting ) — यह व्यावसायिक अर्थशास्त्र का एक महत्वपूर्ण पहलू है। वस्तुतः माँग पूर्वानुमान की शुद्धता पर ही प्रबन्ध के भावी नियोजन की सफलता निर्भर करती है। व्यावसायिक अर्थशास्त्र के इस भाग के अन्तर्गत माँग का नियम, माँग की लोच, माँग वक्र, माँग के निर्धारक तत्त्व, माँग-विभेद, माँग का पूर्वानुमान, बाजार शोध आदि का विश्लेषण किया जाता है।
(8) पूँजी का प्रबन्ध (Management of Capital) – व्यावसायिक अर्थशास्त्र में पूँजी की लागत, पूँजी विनियोजन व परियोजनाओं के चुनाव आदि का अध्ययन किया जाता है।
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