शारीरिक शिक्षा से क्या अभिप्राय है ? शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता क्षेत्र तथा महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
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शारीरिक शिक्षा
शारीरिक शिक्षा से अभिप्राय शरीर को स्वस्थ रखने से है। शारीरिक शिक्षा को पी० टी० भी कहते हैं। पी० टी० (P.T) शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द फीजिकल ट्रेनिंग (Physical Training) का संक्षिप्त रूप है, जिसका अर्थ है शारीरिक प्रशिक्षण । खेल-कूद को भी शारीरिक शिक्षा कहा जाता है। जिमनास्टिक को भी शारीरिक शिक्षा कहते हैं। वास्तव में, ये तो शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम हैं। शारीरिक शिक्षा तो अत्यन्त विस्तृत है। शरीर को स्वस्थ रखने की इन सब शारीरिक क्रियाओं को सामूहिक रूप से शारीरिक शिक्षा कहा जा सकता है।
केन्द्रीय सरकार की शारीरिक शिक्षा की सलाहकार समिति ने शारीरिक शिक्षा की निम्नलिखित परिभाषा दी है—’शारीरिक शिक्षा शरीर की शिक्षा है।’ शारीरिक शिक्षा की यह परिभाषा अपने आप में अधूरी है।
शारीरिक शिक्षा की सबसे सही परिभाषा जे० एफ० विलियम (J. F. Williams) ने दी है। उनके अनुसार, ‘शारीरिक शिक्षा व्यक्ति के उन शारीरिक क्रिया-कलापों को कहते हैं, जिनका चुनाव उनके प्रभाव की दृष्टि से किया जाता है।” यह आवश्यक है कि शारीरिक शिक्षा को शिक्षा में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाना चाहिए। शारीरिक शिक्षा का कार्यक्रम खाली पीरियडों की पूर्ति का साधन नहीं समझा जाना चाहिए। शिक्षकों को चाहिए कि वे इस बात की पूरी जानकारी रखें कि छात्र शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों में भाग लेते हैं या नहीं।
शारीरिक शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व
विद्यालयों में शारीरिक शिक्षा का बहुत महत्त्व है। छात्र मानसिक रूप से तो पुस्तकीय ज्ञान से विकसित हो जाते हैं, लेकिन शारीरिक रूप से अधिकतर कमजोर पाये जाते हैं। इसलिए शारीरिक शिक्षा भी छात्रों को दी जानी चाहिए। छात्रों का सर्वांगीण विकास तभी है, जबकि वे शारीरिक रूप से भी विकसित हों। बच्चों के शारीरिक विकास के लिए शारीरिक शिक्षा अत्यन्त आवश्यक है। शारीरिक शिक्षा के व्यावहारिक उपयोग से छात्रों का कद और वजन बढ़ेगा, शरीर के अन्य अवयव सुडौल होंगे, छात्रों में नियमितता आ जायेगी और अच्छी संतति होगी। स्वस्थ बच्चे राष्ट्र की उन्नति में सहयोगी होंगे।
शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों से छात्रों का मनोरंजन भी होता है। विभिन्न प्रकार के खेल-कूद जिनसे शरीर का विकास तो होता ही है, साथ ही बच्चों का मनोरंजन भी होता है। आजकल शारीरिक श्रम बहुत कम हो गया है। मशीनों के कारण व्यक्ति शारीरिक परिश्रम नहीं कर पाता है, जिससे वह स्वास्थ्य की दृष्टि से भी पिछड़ा रहने लगा है। श्रम की क्षति-पूर्ति शारीरिक व्यायामों से की जा सकती है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए स्कूलों में शारीरिक शिक्षा और भी आवश्यक हो जाती है।
शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र
स्वस्थ रहने के वे सभी उपाय जो व्यक्ति करता है, शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं। जैसे—वालीबाल, फुटबाल, टेनिस, क्रिकेट, बैडमिन्टन, बॉक्सिग, कुश्ती आदि। इसके अतिरिक्त सभी प्रकार के नृत्य भी इसी के अन्तर्गत रखे जा सकते हैं। जल में तैरना तथा नाव चलाना भी इसके अन्तर्गत ही आता है। शिविर लगाकर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम बनाना भी शिक्षा का अंग है। शारीरिक शिक्षा के अन्तर्गत बहुत से कार्य आ जाते हैं। उन सबको प्रयोग में नहीं लाया जा सकता। इसलिए छात्रों की रुचि को ध्यान में रखते हुए उन्हें वे ही कार्य दिये जाने चाहिएँ, जिससे उनके स्वास्थ्य में भी वृद्धि हो सके।
शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य
शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों की जानकारी भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:-
(1) छात्रों के व्यक्तित्व का विकास करना, तथा उनमें सामाजिकता की भावना का विकास करना शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य है।
(2) छात्रों को शारीरिक शिक्षा देने का उद्देश्य, छात्रों के शरीर का पूर्ण विकास करना है। शरीर को सुन्दर तथा सुडौल बनाना तथा माँसपेशियों को मजबूत बनाना, शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम में आता है।
(3) छात्रों का मनोरंजन करना और खेल-कूद की भावना भरना शारीरिक शिक्षा द्वारा किया जा सकता है। शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमं शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों में छात्र और छात्राओं के कार्यक्रमों में अन्तर होना चाहिये। शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम ऐसे होने चाहियें जिससे कमजोर छात्रों के स्वास्थ्य में सुधार हो। यह कार्यक्रम छात्रों की आयु के अनुसार बनाया जाना चाहिये। छात्रों में इन कार्यक्रमों के प्रति रुचि जाग्रत की जानी चाहिये उन पर किसी प्रकार का दबाव डालकर इन कार्यक्रमों में शामिल नहीं करना चाहिये। शारीरिक शिक्षा कार्यक्रम में वे सभी कार्य शामिल किये जाने चाहिये जो छात्रों में सहयोग की भावना पैदा करें और उन्हें शारीरिक रूप से स्वस्थ बनायें।
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