शिक्षा में उदारीकरण क्या है ? शिक्षा में इसके सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभावों की विवेचना कीजिए।
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शिक्षा में उदारीकरण (Liberalisation in Education)
आपसे उदारीकरण का अभिप्राय भारत में कुछ निश्चित सुधारों व नीतियों में शिथिलता प्रदान करने से है। उदारीकरण का प्रत्यय आर्थिक उदारीकरण के सन्दर्भ में प्रयुक्त होता है। चूँकि भारत आर्थिक रूप से उदार होते हुए भी यहाँ की शिक्षा प्रणाली उदार नहीं है। उदारता न होने के कई कारण हैं जिनमें से एक कारण यह है कि राष्ट्रीय शिक्षा उद्यम की प्रतियोगिता नहीं चाहता व सरकार स्वयं से पूर्ण नियन्त्रण खोना चाहती है। भारत में उच्च शिक्षा प्रणाली सम्बद्धता के बोझ तले व स्वायत्तता के अभाव से ग्रस्त है। इसमें लचीलेपन का अभाव है। उच्च शिक्षा की वास्तविक कमजोरी इसके संगठनात्मक ढाँचे में ही है और इसीलिए अन्तदर्शन व प्रत्यक्षीकरण की भी आवश्यकता पड़ती है। जनता का दृष्टिकोण भी शार्टकट (Shortcut) अपनाने व आसानी से गुणवत्ता युक्त प्रबन्धन के बजाय केवल प्रणाली का विस्तार करने से है। आज की विश्वविद्यालय व्यवस्था की आधारभूत समस्या इच्छुक लोगों तक उच्च शिक्षा का लाभ न पहुँचा पाना है। इसके साथ ही सार्वजनिक कोष हेतु भी कोई राजनीतिक प्रतिबद्धता नहीं है। शोध आधारित शिक्षा के अभाव में शिक्षा की गुणवत्ता दिनोदिन नीचे गिरती जा रही है। बहुत कम संस्थान व कम्पनियाँ ही ऐसी हैं जो वास्तव में जनता के लिए लाभदायी शोधकार्य करवाती हैं। एक अध्ययन के अनुसार शोध में गुणवत्ता के वैज्ञानिक प्रकार के मामले में भारत का स्थान 25 नेट पर आता है। एक ऐसे देश में जिसकी शैक्षिक प्रणाली के प्रतिवर्ष लगभग 2.5 करोड़ लोग स्नातक हो रहे हैं, यह आँकड़े वहाँ की अज्ञानता के प्रतीक हैं। भारत की साक्षरता वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 74.4% थी साक्षरता में निरन्तर बढ़ोत्तरी हुई है।
भारत में शिक्षा नीति (2009) के अनुसार, यह कहा गया है कि भारत में शैक्षणिक संस्थान केवल ट्रस्टों, सोसाइटियों व चेरीटेबिल कम्पनियों द्वारा ही खोले जा सकते हैं, परन्तु इनसे प्राप्त होने वाले लाभ को पुननिर्वाचित किया जाना आवश्यक है। हालांकि सरकार विश्वविद्यालयों द्वारा भारत में कैम्पस स्थापित करने के सन्दर्भ में कोई परिभाषा या स्पष्टीकरण नहीं देती है। इच्छुक समूह भी इस दिशा में आगे बढ़ने से कतराते हैं। जब तक कि उन्हें निर्देश नहीं मिलते। यद्यपि विदेशी शैक्षिक संस्थानों को भारत में प्रमाणित डिग्री देने की अनुमति नहीं दी गई है। शिक्षा विभाग ने लगभग 150 विदेशी संस्थानों को एक निश्चित व्यवस्था के तहत यह अनुमति दे दी है कि कोर्स का एक अंश भारत में किया जा सकेगा तथा शेष विदेशों में पूरा किया जा सकेगा। विदेशी महाविद्यालयों के पास उचित अनुभव व वांछित योग्यता होती है जिनसे वे शीघ्र ही नये भविष्य के अनुसन्धानकर्ताओं व अध्यापकों के लिए प्रशिक्षण शुरू कर सकते हैं और इसलिए उनमें निराशा का आना स्वाभाविक है। यदि सरकार विदेशी विश्वविद्यालयों भारत आने पर कुछ सीमित रोक ही लगाती है तो भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में अत्यधिक सुधार का एक मौका मिल सकता है।
शिक्षा में उदारीकरण के सकारात्मक प्रभाव (Positive Impacts of Liberalization)
शिक्षा में उदारीकरण के सकारात्मक प्रभाव निम्नलिखित हैं-
1. भारतीय छात्र जो विदेशों में लगभग प्रतिवर्ष पाँच से दस लाख रुपये खर्च कर अध्ययन करते हैं व हजारों की संख्या में जो छात्र विदेशों में बस जाते हैं उदारीकरण द्वारा भारत की इस मानव पूँजी की बचत होगी।
2. भारतीय अर्थव्यवस्था जिसे मुख्यतः सेवा आधारित उद्योग में सशक्त किया गया है, में शिक्षा के उदारीकरण द्वारा तेजी से आर्थिक स्रोत प्राप्त होंगे।
3. उदारीकरण द्वारा शिक्षकों की पूर्ति सेवाओं व शैक्षणिक संस्थानों की आपसी प्रतिस्पर्धा यह सुनिश्चित करेगी कि वे शिक्षा पर अधिक अधिकार नहीं लेंगे। शिक्षा के साधनों की पूर्ति में वृद्धि स्वतः ही शिक्षा के खर्चों में कमी लायेगी।
4. उदारीकरण द्वारा देश की वित्तीय व्यवस्था में सुधार होगा जिसमें अनुसन्धान उदारीकरण, निजीकरण व वैश्वीकरण के युग में विद्यालयों का बदलता स्वरूप छात्रों के भविष्य के लिए यह सुखद परिणाम देगा।
5. रोजगार के अवसर एवं शिक्षित जनसंख्या में वृद्धि से तकनीकी व संचार सुविधाओं में तीव्र वृद्धि होगी इससे समाज की औद्योगीकरण आधारित दिशा का सूचना आधारित समाज की तरफ हस्तान्तरण प्रारम्भ हो जाएगा।
6. उदारीकरण के कारण कारपोरेट जगत को मान्यता मिल जाने से अच्छे उद्योगों पर आधारित व विशेष कौशलों से युक्त स्नातकों का विकास सुनिश्चित होगा।
शिक्षा में उदारीकरण के नकारात्मक प्रभाव (Negative Impacts of Liberalization)
शिक्षा में उदारीकरण के नकारात्मक प्रभाव को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. भारत में अत्यधिक भ्रष्टाचार व्याप्त है अतः यह भी सम्भव है कि इस तरह की नीति द्वारा रिश्वतखोरी झूठी डिग्री पक्षपातरहित अंकन को भी बढ़ावा मिल सकता है। ये सब उदारीकरण के कुछ ऐसे अनदेखे प्रभाव हैं जो घटनाओं के घटित होने पर प्रकाश में आते हैं।
2. उदारीकरण द्वारा कुछ ऐसे झूठे संस्थानों का भी खतरा बना रहता है जो केवल मौका पाते ही अपनी जेब भरने को तैयार रहते हैं।
3. शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर गिर जायेगा क्योंकि हर व्यक्ति पैसे व पहुँच के बल पर शिक्षा प्राप्त करने के अवसर प्राप्त कर लेगा।
4. भारत में छात्र इस तरह की सुविधाओं का लाभ बिना किसी पुख्ता सूचना व समझ के लेने को तैयार रहते हैं तथा विदेशी डिग्रियों का लालच उन्हें बुद्धिहीन व सूचना विहीन बना देता है कुछ निचले स्तर के संस्थान इन विकासशील देशों में निम्नस्तरीय कॉलेजों व यूनीवर्सिटी से सहभागिता भी बना लेते हैं।
5. स्थानीय संस्थान जिनके पास सीमित पूँजी होती है, टिक नहीं पाते हैं। यहाँ तक कि प्रतिष्ठित संस्थान भी इस प्रतियोगिता से प्रभावित होते हैं क्योंकि उनके द्वारा दिये गये राष्ट्रीय प्रमाण पत्र विश्व मान्यता प्राप्त प्रमाण-पत्रों से कम महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं।
6. प्रतिभावान छात्रों के प्रतिभा का सदुपयोग सम्भव नहीं हो सकेगा क्योंकि उनकी प्रतिस्पर्धा में ऐसे छात्र अवसर पा जायेंगे जिन्होंने पैसे व पहुँच के बल पर ऊँची डिग्रियाँ प्राप्त कर ली हैं।
7. इसके कारण शिक्षा के क्षेत्र में मूल्य आधारित शिक्षा का प्रभाग नगण्य हो जाने की सम्भावना है।
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