व्यावसायिक अर्थशास्त्र / BUSINESS ECONOMICS

सूक्ष्म (व्यष्टि) अर्थशास्त्र का आशय, क्षेत्र एंव सीमाएँ | Meaning, scope and limitations of microeconomics in Hindi

सूक्ष्म (व्यष्टि) अर्थशास्त्र का आशय, क्षेत्र एंव सीमाएँ | Meaning, scope and limitations of microeconomics in Hindi
सूक्ष्म (व्यष्टि) अर्थशास्त्र का आशय, क्षेत्र एंव सीमाएँ | Meaning, scope and limitations of microeconomics in Hindi

सूक्ष्म (व्यष्टि) अर्थशास्त्र का आशय (Meaning of Micro Economics)

सूक्ष्म अर्थशास्त्र, जिसे व्यष्टि अर्थशास्त्र भी कहा जाता है, में अर्थव्यवस्था का समग्र अध्ययन न करके अर्थव्यवस्था की विशिष्ट आर्थिक इकाइयों (Particular Economic Units) अथवा व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन किया जाता है। अन्य शब्दों में, सूक्ष्म अर्थशास्त्र के अन्तर्गत एक उद्योग, एक वस्तु या आर्थिक कारक का अध्ययन किया जाता है। सूक्ष्म अर्थशास्त्र को कीमत सिद्धान्त (Price Theory) की संज्ञा भी दी जाती है, क्योंकि अर्थशास्त्र का मुख्य उपकरण कीमत सिद्धान्त है। प्रो० बोल्डिंग ने सूक्ष्म या व्यष्टि अर्थशास्त्र को इस प्रकार परिभाषित किया है, “सूक्ष्म अर्थशास्त्र विशेष फर्मों, विशेष परिवारों, व्यक्तिगत कीमतों, मजदूरियों, आयों, व्यक्तिगत उद्योगों तथा विशिष्ट वस्तुओं का अध्ययन है।” प्रो० मेहता के शब्दों में, “सूक्ष्म अर्थशास्त्र इस बात का अध्ययन करता है कि वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें किस प्रकार निर्धारित होती हैं।”

सूक्ष्म (व्यष्टि) अर्थशास्त्र का क्षेत्र (Scope of Micro Economics)

सूक्ष्म अर्थशास्त्र का कार्य-क्षेत्र वस्तुतः काफी व्यापक है। उपभोग का अधिकांश भाग, इसी के अन्तर्गत आता है। सीमान्त विश्लेषण (Marginal Analysis) इसका मुख्य उपकरण है क्योंकि उपभोग के सभी नियम सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम, सम-सीमान्त उपयोगिता नियम, उपभोक्ता की बचत आदि सीमान्त विश्लेषण पर आधारित हैं। कीमत निर्धारण और वितरण का भी पर्याप्त अंश सूक्ष्म या व्यष्टि अर्थशास्त्र की सीमाओं के अन्तर्गत आता है।

 सूक्ष्म (व्यष्टि) अर्थशास्त्र की सीमाएँ (Limitations of Micro Economics)

सूक्ष्म या व्यष्टि अर्थशास्त्र की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) सूक्ष्म अर्थशास्त्र से सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की कार्य-विधि तथा स्थिति का चित्र प्राप्त नहीं होता।

(2) सूक्ष्म आर्थिक विश्लेषण के द्वारा प्राप्त निष्कर्ष सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर लागू नहीं होते।

(3) सूक्ष्म अर्थशास्त्र पूर्ण रोजगार, पूर्ण प्रतियोगिता जैसी अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है, अतः जब मान्यताएँ ही गलत हों, सही निष्कर्षो की आशा कैसे की जा सकती है।

(4) सूक्ष्म अर्थशास्त्र कुछ आर्थिक समस्याओं के अध्ययन एवं समाधान के लिए पूर्णतः अनुपयोगी है, जैसे- राजस्व, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, विदेशी विनिमय, बैकिंग आदि समस्याओं का अध्ययन इसके अन्तर्गत नहीं किया जाता।

उपर्युक्त सीमाओं के रहते हुए भी सूक्ष्म अर्थशास्त्र, आर्थिक विश्लेषण में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती।

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Anjali Yadav

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