हण्टर कमीशन (1882) की प्रमुख सिफारिश का उल्लेख कीजिए।
लार्ड रिपन ने 3 फरवरी 1882 को वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य विलियम हण्टर की अध्यक्षता में भारतीय शिक्षा आयोग की नियुक्त की। इसमें अध्यक्ष के अतिरिक्त 20 सदस्य और थे।
अयोग का उद्देश्य- नियुक्ति के प्रस्ताव में आयोग के उद्देश्य का उल्लेख निम्न प्रकार किया गया, “कमीशन का कर्त्तव्य होगा विशेष रूप से इस बात की जाँच करना कि 1854 ई० के घोषणा पत्र के सिद्धान्तों को किस प्रकार कार्यान्वित किया गया है और ऐसे उपायों का सुझाव देना जो उस घोषणापत्र में निर्धारित रीति को कार्यान्वित करने के लिए कमीशन के मतानुसार वांछनीय प्रतीत होते हैं।
आयोग का कार्य क्षेत्र- कमीशन का निर्माण निम्नलिखित बातों की जाँच करने के लिए किया गया।
(1) क्या सरकार ने आधुनिक और उच्च शिक्षा की ओर अधिक ध्यान देकर प्राथमिक शिक्षा की उपेक्षा की है ?
(2) देश में प्राथमिक शिक्षा की क्या स्थिति है। और उसके विकास के क्या उपाय किये जाने चाहिए।
(3) भारत में राजकीय विद्यालयों की क्या दशा है? भारतीय शिक्षा के लिए उनकी आवश्यकता है या नहीं।
(4) देश की शिक्षा व्यवस्था में मिशनरी विद्यालयों का क्या स्थान है।
(5) शिक्षा के क्षेत्र में वैयक्तितक प्रयासों के प्रति सरकार की क्या नीति होनी चाहिए।
Contents
आयोग की सिफारिशें तथा सुझाव
प्राथमिक शिक्षा
(क) शिक्षा नीति- प्राथमिक शिक्षा नीति के सम्बन्ध में सुझाव निम्नलिखित हैं।
- प्राथमिक शिक्षा का उद्देश्य जन साधारण में शिक्षा का प्रसार होना चाहिए।
- प्राथमिक शिक्षा का आदिवासियों और पिछड़ी हुई जातियों में प्रसार करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाना चाहिए।
- प्राथमिक शिक्षा का माध्यम देशी भाषा हो ।
- प्राथमिक शिक्षा को सरकार महत्व प्रदान करे।
(ख) पाठ्यक्रम- प्रान्तों को पाठ्यक्रम चुनने में स्वतन्त्रता दी गयी। परन्तु कुछ जीवनोपयोगी विषयों जैसे कृषि, भौतिक विज्ञान, बही-खाता, गणित तथा स्वास्थ्य विज्ञान को सम्मिलित करने की सिफारिश की।
(ग) आर्थिक व्यवस्था- आयोग ने नगरपालिकाओं तथा जिला परिषदों को प्राथमिक शिक्षा के लिए अलग से कोष बनाने के लिए कहा। आयोग ने कहा कि स्थानीय संस्थाओं के साधन सीमित हैं। अतः प्रान्तीय सरकार को भी अनुदान के रूप में आर्थिक सहायता देनी चाहिए। वह आर्थिक सहायता स्थानीय संस्थाओं के कोष का 1/2 भाग अथवा सम्पूर्ण व्यय का 1/3 भाग होनी चाहिए।
(घ) प्राथमिक शिक्षकों का प्रशिक्षण- प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षण के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए आयोग ने शिक्षकों के प्रशिक्षण तथा और अधिक प्रशिक्षण विद्यालयों को खोलने पर बल दिया।
देशी शिक्षा
देशी शिक्षा पर प्रमुख सिफारिशें निम्न थीं-
- सभी देशी पाठशालाओं को सरकार द्वारा प्रोत्साहन दिया जाये।
- इनके संचालन का दायित्व नगरपालिकाओं तथा जिला परिषदों को दिया जाये।
- इन पाठशालाओं में अध्ययन करने वाले निर्धन विद्यार्थियों को छात्रवृत्तियाँ दी जाये।
- इन पाठशालाओं में प्रवेश प्राप्त करने के लिए छात्रों पर कोई बन्धन न लगाया जाये।
- इन विद्यालयों के शिक्षकों के प्रशिक्षण का उचित प्रबन्ध किया जाये।
माध्यमिक शिक्षा
माध्यमिक शिक्षा के सम्बन्ध में हण्टर कमीशन ने दो बातों के सम्बन्ध में अपने सुझाव दिये।
- माध्यमिक शिक्षा के प्रचार करने के उपाय।
- माध्यमिक शिक्षा के दोषों को दूर करने के उपाय।
माध्यमिक शिक्षा के प्रसार करने के उपाय- माध्यमिक शिक्षा के प्रसार के लिए आयोग ने यह सुझाव दिया कि सरकार सहायता अनुदान प्रणाली द्वारा योग्य और कुशल भारतीयों को माध्यमिक शिक्षा का उत्तरदायित्व सौंपकर स्वयं इस भार से मुक्त हो जाये तथा यह संस्थाएं विद्यार्थियों से फीस लेकर व्यय भार वहन कर सके। हाँ, उन संस्थानों पर जहाँ की जनता माध्यमिक शिक्षा का भार ग्रहण करने में असमर्थ है, सरकार अपने स्कूल खोल सकती है।
माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम को भी दो भागों में विभक्त कर देने की सिफारिश की गयी। पहला पाठ्यक्रम उन विद्यार्थियों के लिए है जो उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विश्व विद्यालय में प्रवेश लेते हैं तथा दूसरा पाठ्यक्रम उन विद्यार्थियों के लिए हो जो व्यवहारिक पक्ष पर बल देते हुए व्यवहारिक और जीवन उपयोगी शिक्षा का प्रबन्ध करते हों ताकि वह शिक्षा समाप्त होने पर जीविकोपार्जन कर सके। आयोग ने माध्यमिक शिक्षा के लिए अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजी माध्यम को ही उचित माना और विद्यालयों में मातृ भाषा के प्रयोग की उपेक्षा की गयी।
उच्च शिक्षा
यद्यपि प्रथम भारतीय शिक्षा आयोग का कार्य क्षेत्र माध्यमिक शिक्षा तक ही सीमित था पर उसने उच्च शिक्षा के सम्बन्ध में भी कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं-
- कालेजों को सहायता अनुदान देते समय शिक्षकों की संख्या, कालेजों का व्यय, कार्य क्षमता और स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाये।
- आवश्यकता पड़ने पर कालेजों को भवन निर्माण, फर्नीचर, पुस्तकालय और शिक्षण सामग्री के लिए अलग से सहायता अनुदान दिया जाये।
- विद्यालयों में विभिन्न प्रकार के विशद पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जाये जिससे कि छात्र आपनी रुचि के अनुसार विषयों का चुनाव कर सकें।
- योग्य विद्यार्थियों को छात्र वृत्तियाँ देकर उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजा जाये।
- विद्यार्थियों का नैतिक स्तर ऊँचा उठाने के लिए ऐसी पाठ्य पुस्तकें तैयार की जाये जिनमें प्रकृति धर्म व मानव धर्म के सिद्धान्तों की पूर्ण व्याख्या हो।
सहायता अनुदान प्रणाली
इस घोषणा पत्र के अनुसार भारत के सभी प्रान्तों में इसकी सहायता अनुदान प्रथा प्रचलित थी। प्रत्येक प्रान्त में इसका अलग रूप था। अत: इन सभी का अध्ययन कर हण्टर कमीशन ने निम्नलिखित सुझाव दिये-
- प्रान्त के सभी विद्यालयों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर सहायता अनुदान सम्बन्धी नियमों में परिर्वतन तथा संशोधन किये जाये।
- सहायता अनुदान सम्बन्धी नियमों में संशोधन करते समय गैर सरकारी विद्यालयों के प्रबन्धों की राय ली जाये।
- सहायता अनुदान नियमों को समाचार पत्रों में प्रकाशित किया जाये कि सभी लोगों को इसकी जानकारी प्राप्त हो सके।
- सहायता अनुदान के नियमों को उदार बनाने का प्रयास किया जाये।
- पिछड़े हुए क्षेत्र के विद्यालयों अथवा जिनके पास आय के साधनों की कमी है उनको अवश्य सहायता प्रदान की जाये।
- भवन निर्माण, पुस्तकालय, वाचनालय फर्नीचर और प्रयोगशालाओं आदि के लिए अनुदान देते समय आवश्यक नियम निश्चित किये जाये।
- सहायता अनुदान देते समय गैर सरकारी विद्यालय और राजकीय विद्यालय में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप या पक्षपात न किया जाये।
नारी शिक्षा
उस समय की नारी शिक्षा के सम्बन्ध में कमीशन ने गहराई के साथ विचार किया और उसकी उन्नति का प्रयास किया। इसके लिए निम्न सुझाव दिये गये।
1. सार्वजनिक कोष की व्यवस्था स्थानीय संस्थाओं तथा प्रान्तीय सरकार के पास जो भी सार्वजनिक कोष हो उससे बालक बालिकाओं के स्कूलों को समान अनुपात में धन मिलना चाहिए।
2. सहायता अनुदान- लड़कियों के स्कूलों के लिए सहायता के नियम सरल होने चाहिए, जिससे कि यह अनुदान उनको सरलता से प्राप्त हो सकें। उन महिला विद्यालयों को भी सहायता दी जाये जो धार्मिक शिक्षा प्रदान करते हैं।
3. शुल्क और छात्रवृत्ति- बालिकाओं की शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिए, साथ ही उनको छात्रवृत्तियाँ भी देनी चाहिए। ऐसा करने से स्त्रियाँ शिक्षा की ओर झुकेंगी। जिन विद्यालयों में निःशुल्क शिक्षा दी जाती हो उनको सहायता अवश्य दी जाये।
4. महिला अध्यापिकायें- नारी शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए यह आवश्यक है कि स्त्रियों को अध्यापिका बनाया जाये।
5. छात्रावास की व्यवस्था- महिला कालेजों में शिक्षा प्राप्त करने के लिए दूर से आने वाली महिलाओं के लिए छात्रावासों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
6. माध्यमिक शिक्षा- महिला कालेजों में माध्यमिक शिक्षाएं भी आरम्भ की जानी चाहिए।
मुस्लिम शिक्षा
हण्टर कमीशन ने मुस्लिम शिक्षा के निम्नलिखिए सुझाव दिये-
- मुस्लिम शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए स्थानीय संस्थाओं और प्रान्तों के कोषों की सहायता ली जाये।
- मुस्लिम प्राथमिक स्कूलों का शिक्षा स्तर ऊँचा उठा दिया जाये।
- मुस्लिम प्राथमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम में लौकिक विषयों को स्थान देने के लिए प्रोत्साहित किया जाये।
- मुस्लिम प्राथमिक विद्यालयों में जहाँ तक सम्भव हो मुसलमान निरीक्षक ही नियुक्त किये जाये।
- जिन स्थानों पर मुसलमानों की संख्या अधिक है वहाँ मिडिल और हाईस्कूलों में हिन्दोस्तानी और फारसी पढ़ाने का प्रबन्ध किया जाये।
- मुसलमानों को आर्थिक सहायता देकर शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाये।
- सरकारी स्कूलों में निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करने के लिए मुसलमानों की संख्या निश्चित की जाये।
- मुसलमान अध्यापकों के प्रशिक्षण की विशेष रूप से व्यवस्था की जाये।
आदिवासियों व पहाड़ी जातियों की शिक्षा
हण्टर आयोग ने आदिवासियों तथा पहाड़ियों की शिक्षा के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये-
- आदिवासियों और पहाड़ी जातियों की शिक्षा के लिए अलग प्रबन्ध किये जाये।
- इन विद्यालयों को खोलने के लिए व्यक्तिगत प्रयासों को प्रोत्साहित किया जाये।
- इनको निःशुल्क शिक्षा दी जाये।
- इनको मातृभाषा के माध्यम की शिक्षा दी जाये।
हरिजनों और पिछड़ी जातियों की शिक्षा
हण्टर आयोग ने हरिजनों और पिछड़ी जातियों के विषय में निम्न सुझाव दिये हैं-
- अनुसूचित, हरिजन और पिछड़ी जातियों के विद्यार्थी के लिए राजकीय स्कूलों में प्रवेश की कोई रुकावट न हो और इस बात पर पूर्ण ध्यान दिया जाये कि उनके साथ समानता का व्यवहार हो।
- यदि कहीं इन जातियों के छात्रों के विद्यालय प्रवेश पर अन्य जातियाँ आपत्ति करें तो उनके लिए अलग विद्यालय खोले जाये।
- जाति भेद की समस्या से जोर-जबर्दस्ती न करके बुद्धिमत्ता पूर्वक इस समस्या को हल करने का सुझाव दिया।
धार्मिक शिक्षा
- स्कूलों में धार्मिक शिक्षा अनिवार्य हो।
- मिशनरियों को अपनी शिक्षण संस्थाओं में बाइबिल पढ़ाने की स्वतन्त्रता हो।
- सरकार की धर्म निरपेक्षता की नीति अध्यात्मवादी देश भारत की उन्नति के लिए लाभप्रद नहीं है।
आर्य समाय और ब्रह्म समाज आदि संस्थाएं उस समय बाइबल शिक्षा की शिकायतें कर रही थीं और इनके स्थान पर उपनिषदों की शिक्षा को प्रधानता देना चाहती थीं। अतः परिस्थितियों पर विचार करके कमीशन ने निम्न सुझाव दिये-
- सरकारी स्कूलों में किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा न दी जाये।
- गैर सरकारी विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है और सरकार को इसकी तरफ ध्यान नहीं देना चाहिए। वह स्कूल के प्रबन्ध पर छोड़ देना चाहिए।
- सहायता अनुदान देते समय धार्मिक शिक्षा देने वाले विद्यालयों के शैक्षणिक कार्य पर ही ध्यान देना चाहिए।
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