राजनीति विज्ञान / Political Science

अन्तर्राष्ट्रीय विधि एक वास्तविक नैतिकता है|- आस्टिन

"अन्तर्राष्ट्रीय विधि एक वास्तविक नैतिकता है।"
“अन्तर्राष्ट्रीय विधि एक वास्तविक नैतिकता है।”

“अन्तर्राष्ट्रीय विधि एक वास्तविक नैतिकता है।” आस्टिन के इस कथन के प्रकाश में अन्तर्राष्ट्रीय विधि के प्रकृति की विवेचना कीजिए।

प्रो० ऑस्टिन ने अन्तर्राष्ट्रीय विधि को एक वास्तविक नैतिकता अथवा सकारात्मक नैतिकता कहा है, जिसकी तत्कालीन विधिवेत्ताओं ने कठोर आलोचना की है। नैतिकता और विधि के विषय में बताते हुये प्रो० प्रोपेनहाइल कहते हैं कि, “नैतिकता के नियम वे नियम हैं जो समुदाय की सामान्य सहमति द्वारा विवेक (conscience) और केवल विवेक पर ही लागू होता है। दूसरी ओर, विधि-नियम वह नियम है जो आवश्यकता पड़ने पर समुदाय की सामान्य सहमति द्वारा बाह्य शक्ति द्वारा मनाया जा सकता है।” अन्तर्राष्ट्रीय विधि की बन्धकारी प्रकृति के बारे में अब आम सहमति है जबकि शुद्ध नैतिकता के नियम बन्धनकारी नहीं होते। एडवर्ड कॉलिन्स के अनुसार, अन्तर्राष्ट्रीय नैतिकता को उचित व्यवहार का स्तर कह सकते हैं जो व्यक्तिगत नैतिक निर्णय पर आधारित होते हैं। “यद्यपि नैतिकता का दृष्टिकोण अन्तर्राष्ट्रीय विधि के विकास को प्रभावित करता है, परन्तु राज्य नैतिकता के नियमों को मानने के लिए बाध्य नहीं है। जबकि अन्तर्राष्ट्रीय विधि के नियम बन्धनकारी होते हैं।” प्रो. हार्ट के अनुसार, अन्तर्राष्ट्रीय विधि के नियम को ‘नैतिकता’ की कोटि में रखना अनुचित है। उसके अनुसार, इसके प्रमुख कारण निम्न हैं-

(i) बहुधा राज्य एक-दूसरे की आलोचना यह कहकर करते हैं कि उनका आचरण अनैतिक है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि विधि नैतिकता है। वास्तव में राज्यों के आचरण का नैतिकता के आधार पर मूल्यांकन करना अन्तर्राष्ट्रीय विधि के नियमों के अनुसार हैं। उनके दावे, माँग, अधिकारों तथा उत्तरदायित्वों से भिन्न हैं।

(ii) अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अन्तर्गत राज्य जब अपने दावे प्रस्तुत करते हैं तो वह यह उल्लेख नहीं करते हैं कि नैतिकता के आधार पर उचित है अथवा नहीं वरन् वह पूर्वोक्तियों, सन्धियों तथा विधिशास्त्रियों के मतों का उल्लेख करते हैं।

(iii) राज्य विधि के नियमों की भाँति अन्तर्राष्ट्रीय विधि के नियम बहुधा नैतिकता से असम्बन्धित होते हैं। बहुधा नियमों का अस्तित्व सुविधा तथा आवश्यकता के कारण होता है न कि उसके नैतिक महत्व के फलस्वरूप ।

(iv) बहुधा यह कहा जाता है कि राज्य अन्तिम रूप में अन्तर्राष्ट्रीय विधि का पालन इस कारण करते हैं क्योंकि वह ऐसा करना अपना नैतिक उत्तरदायित्व समझते हैं। परन्तु तात्पयं यह नहीं है कि अन्तर्राष्ट्रीय विधि के अस्तित्व के लिए नैतिक उत्तरदायित्व आवश्यक है।

यद्यपि नैतिकता का दृष्टिकोण अन्तर्राष्ट्रीय विधि के विकास को प्रभावित करता है, परन्तु राज्य नैतिकता के नियम को मानने के लिए बाध्य नहीं है जबकि अन्तर्राष्ट्रीय विधि के नियम बन्धनकारी होते हैं; अत: यह स्पष्ट है कि “अन्तर्राष्ट्रीय विधि सिर्फ सकारात्मक नैतिकता नहीं है।” अत: आस्टिन का उपर्युक्त मत सही नहीं है।

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Anjali Yadav

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