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उत्तर मार्क्सवाद के विकास | Development of post -Marxism in Hindi

उत्तर मार्क्सवाद के विकास | Development of post -Marxism in Hindi
उत्तर मार्क्सवाद के विकास | Development of post -Marxism in Hindi

 उत्तर मार्क्सवाद के विकास की विवेचना कीजिए।

समकालीन पूंजीवादी समाज की कमजोरियों को उजागर करें तथा क्लासिक सिद्धान्ते की समीक्षा करने के उद्देश्यों को लेकर सन 1923 में पश्चिमी जर्मनी के फ्रैंकफर्ट विद्यालय में “समाजिक अनुसंधान संस्थान’ की स्थाना की गयी जो फ्रैंकफर्ट स्कूल के नाम से विख्यात हुआ। इस संस्थान में मार्क्सवादी विचारधारा के आधार पर तत्कालीन विश्व के बदलते हुए परिवेश की व्याख्या प्रस्तुत की गयी।

फ्रैंकफर्ट स्कूल के प्रमुख विद्वान ल्युकाक्स, गोर्कीमिन, एडोनों, हरबर्ट मायूज एवं एरिक फ्रांम आदि रहे है।

1960 के दशक तक आते-आतें विषेश रूप से अमेकरका समाजपाख में प्रार्थवाद का प्रभुत्स स्थापित हो गया और फ्रैंकफर्ट स्कूल धीरे-धीरे बिखर गए। 1970 के दशक के अन्तिम वर्षों में (यह प्रकार्यवाद के अवसान का काल था) मार्क्सवादी लेखकों को बदले हुए तत्कालीन समाज में निगम पूंजीवाद (Corporate Capitalism) के विश्लेषण हेतु रूढ़िवादी मार्क्स अप्रासंगिक लगने लगा था ऐसी अवस्था में रूढ़िवादी मार्क्सवाद में संशोधन आवश्यक था। इधर फ्रैंकफर्ट स्कूल के शिथिल हो जाने के बाद भी इसके कई लेखकों ने वक्तगत स्तर पर मार्क्स की पुर्नव्याख्या करना नहीं छोड़ा था। नए सन्दर्भ में इसी फ्रैंकफर्ट स्कूल ने उत्तर-मार्क्सवाद को जन्म दिया।

उत्तर-मार्क्सवाद वह है जिसमें कोई भी सामाजिक सिद्धान्तों या समाजशास्त्रीय विश्लेषण मार्क्स व एंजेल्स को अपना मूल सन्दर्भ बनाता है इसमें मार्क्सवादी विचारों को लिया जाता है। लेकिन इसके अतिरिक्त अन्य सामाजिक सिद्धान्तों की परम्परा को भी शामिल किया जाता है। उत्तर- मार्क्सवादियों का मत है कि मार्क्स के समय में समाज और पूंजीवाद की जो संरचना थी वो आज नही है अतः इन नवीन परिस्थितयों के परिप्रेक्ष्य में मार्क्स के सिद्धान्तों में नवीन विश्लेषण की आवश्यकता है। उत्तर- मार्सवादी प्रमुख विचारको में हेबरमाम्स, अल्थयूजर फ्रेडरिक, जेमेसन आदि शमिल है।

संरचनात्मक मार्क्सवाद अथवा लुई अल्थ्यूजर का आर्थिक निर्धारणवाद- अल्थ्यूजर एक फ्रांसीसी मार्क्सवादी विचारक था वह संरचनात्मक मार्क्सवाद के जनक थे इन्होंने मार्क्स के विचारों में संशोधन कर मार्क्सवाद को सामाजिक व ऐतिहासिक विज्ञान के रूप में पुनः स्थापित करने का प्रयासस किया है अल्थ्यूजन ने मार्क्स आर्थिक निर्धारणवाद को अस्वीकार किया और कहा कि किसी समाज की अधोसंरचना को अथोसंरचना का निर्धारक मान लेना तर्कसंगत नहीं है। क्योकि दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते है। अल्थ्यूजन ने मार्क्स के इतिहासवाद से असहमत होते हुए कहा कि इतिहास हमेशा रेखीय नही होता। इतिहास की प्रक्रियाएँ खुली प्रक्रियाएँ है जिसमें अनगिनत प्रतिवाद या प्रतिरोध शामिल है, अतः इसमें कोई भविष्याणी नहीं की जा सकती। अल्थ्यूजर ने मार्क्स की इस अवधारणा का कि ‘मनुष्य इहिास बनाते है, परन्तु उन परिस्थितियों में जो उनकी बनाई हुई नही है, का खण्डन करते हुए मार्क्स के इस विचार को मानववाद विरोधी कहा और इतिहास निर्माण में मनुष्य की भूमिका को स्वीकार किया है मार्क्स के विपरीत अल्थ्यूजन ने विचाधारा को भी एक सामाजिक यर्थाथता के रूप में स्वीकार किया है।

हेबरमॉस के उत्तर-मार्क्सवादी विचार- हेबरमॉस जर्मनी के उत्तर-मार्क्सवादी विचारक हैं जिन्होंने प्रतयक्षवाद एवं आर्थिक निर्धारणवाद की आलोचना करते हुए मार्क्स के विचारों को संशोधित रूप में प्रस्तुत किया है। हेबरमॉस के अनुसार मार्क्स के श्रम व उत्पादन की धारणा वर्तमान सांस्कृतिक व राजनीतिक जीवन को समझने में असमर्थ है आज स्थिति बदल गयी और राज्य अर्थव्यवस्था में भागीदारी । हस्तक्षेप करने लगा है। आज राज्य स्वयं अर्थव्यवस्था की दिशा को निर्धारित करती है गलत हे। हेबरमॉस के अनुसार आज विकसित समाजों में दमन के तरीके भी बदल गए है। आज का श्रमिक आर्थिक दृष्टि से गरीब नहीं है। अब अनकी वंचितता । आर्थिक न होकर मनोवैज्ञानिक एवं नृजातीय हो गई है। मार्क्स ने सामाजिक उद्विकास की प्रक्रिया में अधिसरंचना की उपेक्षा की है तथा उसकी भूमिका को रेखांकित नही किया है।

आज ‘अधिसंरचना निर्माण एवं पविर्तन में सचार की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण हैं। जिसको परम्परागत मार्क्सवाद के ढांचे में नहीं समझा जा सकता। पूंजीवाद के सन्दर्भ में कहा कि दमन व शोषण उत्पन्न करने वाली पूंजीवादी शक्तियों को खोजकर उन पर प्रहार करना होगा। हेबरमॉस ने पूंजीवादी शक्तियों में विज्ञान और प्रौद्योगिक को सम्मिलित किया है ओर कहा है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी में हुई अप्रत्याशित प्रगति के कारण मानव की तार्किकता का महत्व कम हुआ है अब तार्किकता की भूमिका मात्र तकनीकी कार्यकुशलता तक सीमित रह गई है। परिणामतः मानव की तार्किकता स्वतन्त्रता का साधन न होकर प्रभुत्व व वर्चस्व की प्राप्ति का साधन मात्र बन गई है अतः मानव के उद्धार हेतु तार्किकता की पुनर्स्थापना आवश्यक है।

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Anjali Yadav

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