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औपचारिकता के आधार पर संगठन | organization based on formality in Hindi

औपचारिकता के आधार पर संगठन | organization based on formality in Hindi
औपचारिकता के आधार पर संगठन | organization based on formality in Hindi

औपचारिकता के आधार पर संगठन का वर्णन कीजिए।

औपचारिकता के आधार पर संगठन (ⅰ) औपचारिक तथा (ii) अनौपचारिक संगठन हो सकते हैं।

(i) औपचारिक संगठन (Formal Organisation) –

किसी संस्था में एक औपचारिक संगठन की स्थापना प्रबन्धकों के विवेकपूर्ण निर्णयों के परिणामस्वरूप होती है। ऐसे संगठन की स्थापना के लिए अधिकार-सम्बन्ध, कार्यों एवं उत्तरदायित्वों का बंटवारा, सामूहिक उद्देश्यों का निर्धारण, नियंत्रण, समन्वयय एवं संदेशवाहन की व्यवस्था, आदि का निर्णय सोच विचार कर प्रबन्धक लेते हैं और उनकी आधिकारिक रूप से सर्वत्र मान्यता होती है। अतः औपचारिक संगठन की रचना में निश्चित अधिकार और दायित्व होते हैं तथा प्रबन्धकीय आदेश और निर्देश इसी संगठन श्रृंखला के माध्यम से मान्यरूप से प्रवाहित होते हैं, तथा प्रबन्धक यह आशा करते हैं कि इस संगठन संरचना का ही प्रयोग समस्त संस्था के अधिकारियों और कर्मचारियों के द्वारा होगा। औपचारिक संगठन का प्रदर्शन प्रायः संगठन चार्टों के माध्यम से किया जाता है। संगठन वातावरण समय, स्थान अधिकार, दायित्व कार्य एवं साधनों के संदर्भ में विधिवत परिभाषित होता है। कोई भी संगठन बिना कुछ औपचारिक ढाँचे के बन ही नहीं सकता। अतः औपचारिक संगठन ढाँचे का निर्माण हर स्थिति में आवश्यक होता है।

(ii) अनौपचारिक संगठन (Informal Organisation) –

यह सामान्य अनुभव एवं अवलोकन की बात है कि हर संस्था में औपचारिक संगठन के साथ व्यक्तियों के अनेक अनौपचारिक ‘वर्ग (Informal Groups and Cliques) भी विद्यमान होते हैं जिनका औपचारिक एवं अधिकृत रूप से संगठन ढांचे में कोई स्थान नहीं होता किन्तु वे उसके समानान्तर कार्य करते हैं और उसे महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं। अनौपचारिक संगठन ऐसे व्यक्ति समूह होते हैं जिनके सदस्यों में कोई परस्पर सम्बन्ध या समानता होती है। यह सम्बद्ध जाति, क्षेत्र, धर्म, संस्कृति हितों में एकता समान शत्रुता या अनेकों अन्य घटकों के आधार पर निर्भर हो सकते हैं। अपनी वर्ग-सम्बद्धता की मनोभावना, सामाजिकता या किसी समान हित से प्रेरित होकर ऐसे अनौपचारिक संगठन वर्ग या समूह हर संस्था में औपचारिक संगठन के साथ उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसे संगठनों का कोई निश्चित स्वरूप, सदस्यता, अधिकार, दायित्व, कार्यक्षेत्र, परस्पर सम्बन्ध या अधिकार स्तर नहीं होता। इनकी कोई व्यवस्थित नियंत्रण, समन्वय, निर्देशन या संदेशवाहन की पद्धति भी नहीं होती और उन्हें औपचारिक संगठन की संरचना में कहीं प्रदर्शित भी नहीं किया जाता।

वास्तव में औपचारिक संगठन ही अनौपचारिक वर्गों के निर्माण के लिए उत्तरदायी होते हैं। औपचारिक संगठन व्यक्तियों को एक साथ कार्य करने एवं आपसी सम्बन्ध स्थापित करने का अवसर प्रदान करता है और इन्हीं आपसी एवं निकट सम्बन्धों, परस्पर हितों और प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप अनौपचारिक वर्गों का जन्म होता है। निरन्तर निकट सम्बन्ध आपसी मेलजोल, गहरी मित्रता, जाति धर्म स्थान की समानता, और समान शत्रुता इन अनौपचारिक वर्गों को एक औपचारिक संगठन के अन्दर जन्म देती है। कुछ व्यक्तियों का किसी विशेष वर्ग से सम्बद्ध होना या तो मात्र उनकी सामाजिकता या वर्गसम्बद्धता की मनोभावना को संतुष्ट करती है या इसके पीछे उनके निहित आर्थिक या सामाजिक हित हो सकते हैं।

प्रबन्धक इन वर्गों की विद्यमानता से पूर्णरूप से परिचित या उनसे बिल्कुल अनभिज्ञ हो सकते हैं। बर्नार्ड ने इस सम्बन्ध में लिखा है, ‘बहुत से प्रबन्धक अपने औपचारिक संगठन में अनौपचारिक वर्गों की विद्यमानता को या तो स्वीकार ही नहीं करते यां उनको अनदेखा कर देते हैं। वे संभवतः ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उनका सम्बन्ध केवल औपचारिक संगठन की समस्याओं से ही होता है। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि ऐसे वर्गों जो साकार या प्रत्यक्ष नहीं है, को परिभाषित और उनकी व्याख्या करने में वे कठिनाई अनुभव करते हैं। अतः ऐसे वर्गों की विद्यमानता को स्वीकार करने में वे हिचकते हैं।’ इसका परिणाम यह होता है कि प्रबन्धक इन अनौपचारिक वर्गों के विस्तृतरूप से फैले प्रभाव, मनोवृत्तियों और संघर्षों से या तो अनभिज्ञ रहते हैं या औपचारिक संगठन में उन्हें स्वीकारने से हिचकते हैं। किन्तु उनकी स्वीकार करने की अनिक्षा या अनभिज्ञता के उपरान्त भी ऐसे वर्ग संगठन में विद्यमान रहते हैं और वे किसी औपचारिक मान्यता या प्रबन्धकीय स्वीकृति की चिन्ता नहीं करते। इनका प्रभाव औपचारिक संगठन में कभी-कभी इतना गहरा होता है कि अधिकतर निर्णय इन्हीं वर्गों की अन्तरंग नीतियों और इच्छाओं से प्रेरित होते हैं। कभी-कभी ऐसे प्रन्धकों, जो कि ऐसे वर्गों की विद्यमानता को हमेशा नकारा करते हैं, को भी यह स्वीकार करना पड़ता है कि संगठन को मात्र संस्था की छपी नियमावली नियमों नियंत्रणों, अधिकार सम्बन्दों या व्यक्तियों के अवलोकन मात्र से नहीं जाना जा सकता। संगठन को सही रूप से समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि संगठन में यथार्थ में कौन क्या है, किस चीज का क्या महत्व है और उसमें कोई बात क्यों होती है और इसलिए इस संदर्भ में हरवर्ट साइमन का यह सुझाव है कि संगठन के प्रत्येक नए सदस्य को किसी अनौपचारिक वर्ग के साथियों से अपने को अवश्य सम्बद्ध कर लेना चाहिए यदि वह यह चाहता है कि वह संगठन की कार्यप्रणाली का एक महत्वपूर्ण अंग बन कर रहे।

औपचारिक तथा अनौपचारिक संगठन परस्पर निर्भर होते हैं। अनौपचारिक वर्ग कुछ विचारों व्यवहारों रीति-रिवाजों आदतों, प्रथाओं, समझौतों और दृष्टिकोणों की स्थापना करते हैं और जिनसे किसी औपचारिक संगठन का जन्म होता है। किसी भी औपचारिक संगठन के पूर्व किसी अनौपचारिक वर्ग में ही उसकी स्थापना की कल्पना जन्म लेती है और जिसके परिणामस्वरूप औपचारिक संगठन का निर्माण होता है। लेकिन जब औपचारिक संगठन बन जाते हैं, तब उनमें अनौपचारिक संगठन या वर्ग उत्पन्न होने लगते हैं। अनौपचारिक वर्गों का अस्तित्व और जीवन अधिक समय तक बिना किसी औपचारिक संगठन के स्थापित नहीं रह सकता। अतः इन दोनों में परस्पर निकट का सम्बन्ध है और एक-दूसरे के बिना उनका अस्तित्व सम्भव नहीं है। फिर अनौपचारिक संगठनों की सदस्यता उन्हीं व्यक्तियों से बनती है जो औपचारिक संगठन के किसी न किसी पद पर आसीन होते हैं। यही कारण है कि औपचारिक संगठन के सदस्यों की मनोवृत्तियों, आचरणों, भावनाओं, प्रथाओं, आदतों और हितों पर अनौपचारिक वर्गों का गहरा प्रभाव पड़ता है। अनौपचारिक वर्ग औपचारिक संगठन को शक्ति और सहयोग प्रदान करते हैं और संगठन संरचना को सक्रिय रूप से प्रभावित करते हैं। ऐसे अनौपचारिक वर्ग संगठन के हर स्तर पर पाए जाते हैं और हर स्वर को प्रभावित करते हैं।

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Anjali Yadav

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