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क्रियात्मक संगठन से आप क्या समझते हैं ? What do you mean by Functional Organization?

क्रियात्मक संगठन से आप क्या समझते हैं ? What do you mean by Functional Organization?
क्रियात्मक संगठन से आप क्या समझते हैं ? What do you mean by Functional Organization?

क्रियात्मक संगठन से आप क्या समझते हैं। What do you mean by Functional Organization?

क्रियात्मक संगठन (Functional Organization)

रेखीय व कर्मचारी संगठन के दोषों को दूर करने के उद्देश्य से एफ० डब्ल्यू० टेलर ने एक नई संगठन प्रणाली को जन्म दिया, जिसे ‘क्रियात्मक संगठन’ कहते हैं। इसमें श्रमिकों का सम्बन्ध संस्था के सभी अधिकारियों से प्रत्यक्ष रूप से होता है। अर्थात् किसी एक अधिकारी के ही अधीन एक निश्चित श्रमिक कार्य नहीं करते बल्कि वे सभी अधिकारियों के प्रति उत्तरदायी होते हैं। टेलर महोदय के अनुसार, “इस पद्धति में प्रबन्ध का नियन्त्रण इस प्रकार होता है कि जिससे प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम कार्य करना पड़े। अतः उसका कार्य यथासम्भव छोटी से छोटी प्रक्रिया में विभाजित कर दिया जाता है, जिससे इसी क्रिया तक उसका कार्यक्षेत्र सीमित रहता है। इस प्रकार के क्रिया विभाजन से एक व्यक्ति का सम्बन्ध केवल एक ही अधिकारी तक रहता है, जो आवश्यक आदेश अथवा सूचनाएँ देता है।” इस प्रकार इस प्रणाली में प्रत्येक छोटे से छोटे कार्य के लिए भी एक निरीक्षक नियुक्त किया जाता है, जो कि अपने कार्य की पूर्णरूप से निगरानी रखता है। इस व्यक्ति को इस कार्य से सम्बन्धित प्रायः सभी अधिकार प्राप्त रहते हैं।

एफ० डब्ल्यू० टेलर के अनुसार, “क्रियात्मक प्रबन्ध का अर्थ का इस प्रकार विभाजन से है जिसमें सहायक अधीक्षक से लेकर नीचे तक के व्यक्तियों को इतने कम कार्य किये जाएँ जितने वे आसानी से पूरे कर सके। यदि सम्भव हो सके तो प्रबन्ध के प्रत्येक व्यक्ति को केवल एक ही महत्वपूर्ण कार्य दिया जाना चाहिये।

क्रियात्मक संगठन की विशेषताएँ (Characteristics of Functional Organization)

क्रियात्मक संगठन की मुख्य विशेषताएँ अग्रलिखित हैं-

1. कार्य का विभाजन छोटी से छोटी क्रिया तक किया जाता है।

2. यह पद्धति विशिष्टीकरण के सिद्धान्त पर आधारित है।

3. विशेषज्ञों का कर्मचारियों से सीधा सम्बन्ध होता है।

4. विशेषज्ञ अपने कार्य के प्रति उत्तरदायी होता है।

5. इसमें प्रत्येक विशेषज्ञ केवल अपने विशिष्ट दोष के सम्बन्ध में ही आदेश एवं निर्देश दे सकता है।

6. इसमें प्रत्येक विभाग अपने कार्य को पूरा करने के लिए उत्तरदायी होता है।

7. इसमें अधिकार सत्ता का प्रत्यारोपण ऊपर से नीचे की ओर कार्यों के अनुसार होता है।

क्रियात्मक संगठन का क्षेत्र (Scope of Functional Organization)

ऐसी औद्योगिक इकाइयों जिनका कार्यक्षेत्र विस्तृत होता है और जहाँ पर विशिष्टीकरण की अधिक आवश्यकता होती है, क्रियात्मक संगठन को अपनाना चाहिए। इसके अतिरिक्त जहाँ विशेषज्ञों और रेखा अधिकारियों के मध्य मतभेद उत्पन्न होने की सम्भावना हो, वहाँ क्रियात्मक संगठन को अपनाना ही लाभप्रद रहता है।

क्रियात्मक संगठन के लाभ (Advantages of Functional Organization)

क्रियात्मक संगठन के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-

(1) श्रम विभाजन व विशिष्टीकरण के लाभ- इस प्रणाली में इन दोनों सिद्धान्तों का पालन कियाजाता है अतः उनसे प्राप्त होने वाले सभी लाभ संगठन को प्राप्त हो जाते हैं।

(2) कार्यक्षमता में वृद्धि- इस प्रणाली में प्रत्येक अधिकारी अपने-अपने कार्यों का विशेषज्ञ होता है, जिससे वह अपने कार्य को दक्षता से करते हैं अतः सम्पूर्ण संगठन की कार्यक्षमता बढ़ जाती है।

(3) इस प्रणाली में लोच की मात्रा अधिक होती है। फलतः संस्था के स्वरूप में वृद्धि होने पर संगठन व्यवस्था में बिना किसी विशेष कठिनाई के समावेश किया जा सकता है।

(4) वैज्ञानिक व प्रेरणात्मक पद्धति – इस प्रणाली निर्माण विशिष्टीकरण के आधार पर किया जाता है।

(5) विभिन्न प्रकार के चातुर्य का सदुपयोग- टेलर के आठ नायकों में विविध प्रकार का चातुर्य होता हैं, क्योंकि वे पृथक्-पृथक् कार्यों में विशेषज्ञ हैं। अतः विविध प्रकार की कुशलताओं का लाभ प्राप्त होने से उनका उत्तम उपयोग होना स्वाभाविक है।

(6) प्रेरणादायक संगठन- इस संगठन व्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में अधिकाधिक प्रयास करके दक्षता करने का प्रयत्न करता है, जिसके कारण यह संगठन प्रेरणादायक सिद्ध होता है ।

(7) कार्यकुशलता में एकरूपता – प्रत्येक इकाई या विभाग का कार्य समस्त संस्था पर प्रभाव डालता है, जिससे प्रत्येक विभाग एक-दूसरे से कदम मिलाकर चलता है और कार्य में एकरूपता आती है।

(8) अनुसन्धान व शोध को प्रोत्साहन – विशेषज्ञ व्यक्तियों की नियुक्ति से अनुसन्धान व शोध को प्रोत्साहन मिलता है। श्रमिकों को अपने कार्यों में सुधार करने का मौका मिलता है।

(9) सरल प्रशिक्षण- संस्था में लगा प्रत्येक व्यक्ति एक ही तरह कार्य करता है। इस प्रकार उसे प्रशिक्षण देना सरल होता है तथा समय भी कम लगता है।

(10) मधुर औद्योगिक सम्बन्ध- इस संगठन प्रणाली में औद्योगिक सम्बन्ध अधिक मधुर हो जाते हैं, क्योंकि कारीगरों को उनकी योग्यता के अनुसार कार्य दिया जाता है।

क्रियात्मक संगठन के दोष (Disadvantages of Functional Organization)

क्रियात्मक संगठन के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-

(1) समन्वय का अभाव- इसमें कार्य विभागों और उप-विभागों में विभक्त होता है अतः उन सबमें आपसी तालमेल का अभाव पाया जाना स्वाभाविक ही है।

(2) कार्य में नीरसता – इस पद्धति के अन्तर्गत विशिष्टीकरण और श्रम विभाजन व शारीरिक एवं मानसिक कार्यों का विभाजन इस सीमा तक किया जाने लगता है कि श्रमिक में नीरसता व यन्त्रवत प्रवृत्ति जागृत होने लगती है।

(3) अनुशासन में शिथिलता – इस पद्धति में श्रमिक को अनेक अधिकारियों के अधीन कार्य करना पड़ता है जिससे त्रुटियों के लिए किसी को उत्तरदायी बनाना कठिन है। विशेषज्ञ या नायक एक दूसरे को दोषी ठहराने का प्रयत्न करते हैं और अपने पर्यवेक्षक को दोषी बताते हैं। अतः उसके कार्य में अकुशलता व अनुशासनहीनता आ जाती है।

(4) उत्तरदायित्व निश्चित करने में कठिनाई- श्रमिक को कई अधिकारियों के अधीन कार्य करना पड़ता. है अतः कार्य की गलती पर यह निश्चित करना कठिन हो जाता है कि कार्य किसकी गलती से हुआ है।

(5) निर्देशों की अनेकता- एक कारीगर को आठ विशेषज्ञ एक साथ निर्देश देते हैं जिससे आदेश की एकता का सिद्धान्त समाप्त हो जाता है। निर्देशों की बहुलता से कारीगरों में भ्रम उत्पन्न हो जाता है जिससे आर्थिक कुशलता का स्तर गिर जाता है

(6) कारीगर का मानसिक विकास न होना- इस संगठन में कारीगर सदैव दूसरे व्यक्तियों के निर्देशानुसार ही कार्य करता है। अतः उसका स्वयं का मानसिक विकास नहीं हो पाता है।

(7) छोटी इकाइयों के लिए अनुपयुक्त- इसमें प्रत्येक कार्य के लिए विशेषज्ञ नियुक्त होते हैं, जिससे व्यय बहुत अधिक होता है यही कारण है कि छोटी इकाइयाँ उस पद्धति को नहीं अपना पाती।

(8) अव्यावहारिक एवं अपव्ययी – यह प्रणाली अव्यावहारिक भी है, क्योंकि इसमें कागजी कार्यवाही बहुत बढ़ जाती है। साथ ही यह बोझिल तथा अपव्ययी पद्धति भी है।

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Anjali Yadav

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