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अधिकार की सीमाएँ | Limitations of Authority in Hindi

अधिकार की सीमाएँ | Limitations of Authority in Hindi
अधिकार की सीमाएँ | Limitations of Authority in Hindi

क्या अधिकारों की कुछ सीमाऐं भी होती है ?

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अधिकार की सीमाएँ (Limitations of Authority)

कोई भी अधिकार प्राप्त अधिकारी अपने अधिकारों को चाहे जैसा उपयोग नहीं कर सकता है, क्योंकि उसकी कुछ सीमाएँ होती हैं, जो कि निम्नलिखित हैं-

(1) आर्थिक सीमाएँ- क्रेताओं एवं विक्रेताओं की पारस्परिक प्रतिस्पर्धा, बाजार की दशाओं के अनुसार वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य निर्धारण आदि आर्थिक सीमाएँ हैं, जिनके विपरीत एक प्रबन्धक अपने आदेश नहीं दे सकता, जैसे-मॉंग और पूर्ति (Demand and Supply) की शक्तियों के कारण यदि बाजार में किसी वस्तु का मूल्य 5 रु० है तो कोई भी प्रबन्धक अपने अधीन कर्मचारी को उस वस्तु को 3 रु० में लाने का आदेश नहीं दे सकता ।

(2) प्राकृतिक सीमाएँ- भौगोलिक स्थिति, जलवायु तथा प्राकृतिक नियमों से सम्बन्धित सीमाएँ प्राकृतिक सीमा के अन्तर्गत आती हैं, जैसे-एक प्रबन्धक अपने अधीन कर्मचारी को एल्युमीनियम से चाँदी बनाने का आदेश नहीं दे सकता या कोयले की हीरे में परिवर्तित करने का आदेश नहीं दे सकता।

(3) जीव-विज्ञान सम्बन्धी सीमाएँ- किसी भी अधिकारी को अपने अधीन व्यक्ति को ऐसा आदेश नहीं देना चाहिए जिसे पूरा करना उसके लिए जीव-विज्ञान की दृष्टि से असम्भव हो, क्योंकि जीव विज्ञान की दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता सीमित होती है और यदि उसकी क्षमता से अधिक कार्य उसे सौंप दिया जाये तो वह उसे नहीं कर पायेगा, जैसे एक प्रबन्धक अपने अधीन कर्मचारी को खड़ी दीवार पर ऊपर की ओर चलने का आदेश नहीं दे सकता।

(4) तकनीकी सीमाएँ- ये सीमाएँ तकनीकी ज्ञान एवं कला के विकास से सम्बन्ध रखती हैं और कोई भी प्रबन्धक जितनी तकनीकी उन्नति हुई है उससे आगे की स्थिति के लिये आदेश नहीं दे सकता है, जैसे कोई भी प्रबन्धक अपने अधीन कर्मचारियों को चन्द्रमा पर शक्कर फैक्ट्री स्थापित करने का आदेश उस समय तक नहीं दे सकता जब तक कि तकनीकी ज्ञान एवं काल के विकास के फलस्वरूप चन्द्रमा पर शक्कर फैक्ट्री स्थापित करना संभव नहीं हो जाये।

(5) व्यक्ति समूह की प्रतिक्रियाएँ- किसी भी अधिकार का प्रयोग करने पर उसका प्रभाव विभिन्न व्यक्तियों और व्यक्ति समूहों पर पड़ता है। एक प्रबन्धक का सम्बन्ध उपक्रम के कर्मचारियों, अंशधारियों (Share-holders), संचालक मण्डल (Board of Directors), उपभोक्ताओं आदि से होता है। अतः अधिकार प्रयोग से पूर्व उन सभी की प्रतिक्रियाओं का ध्यान रखना पड़ता है और यदि सभी वर्गों के लिये कोई अधिकार प्रयोग कल्याणकारी होता है तब तो उसका प्रयोग किया जा सकता है।

(6) अन्य सीमाएँ- उपरोक्त सीमाओं के अतिरिक्त, प्रबन्धकों को एक फर्म की दशा में साझेदारी अनुभव एवं कम्पनी की दशा में पार्षद सीमा नियम तथा अन्तर्नियम, कम्पनी अधिनियम तथा व्यापारिक एवं औद्योगिक सन्नियमों में वर्णित सीमाओं का भी ध्यान रखना पड़ता है।

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Anjali Yadav

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