HOME SCIENCE

किशोरावस्था: तनाव एवं झंझावत की अवस्था

किशोरावस्था: तनाव एवं झंझावत की अवस्था
किशोरावस्था: तनाव एवं झंझावत की अवस्था

“किशोरावस्था तनाव एवं झंझावत की अवस्था है।” तर्क के साथ स्पष्ट कीजिए।

किशोरावस्था: तनाव एवं झंझावत की अवस्था

किशोरावस्था: तनाव एवं झंझावत की अवस्था के रूप में- मानव जीवन के विकास की अवस्थाओं में किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है। अपनी संरचना, प्रकृति एवं महत्व के कारण जहाँ शैशवावस्था को ‘जीवन का सबसे महत्वपूर्ण काल’ तथा बाल्यावस्था को ‘जीवन का अनोखा काल’ कहा जाता है, वहीं किशोरावस्था को ‘जीवन का सबसे कठिन काल’ कहा जाता है। ऐसा इसलिए भी माना जाता है क्योंकि किशोरावस्था में किशोर बालक के व्यक्तित्व विकास के विभिन्न पक्षों में ऐसे क्रांतिकारी परिवर्तन होते हैं तथा जिनके कारण किशोरावस्था को ‘तनाव व तूफान की अवस्था’ भी कहा जाता है। किशोरावस्था को कर्मशील युवावस्था का प्रवेश द्वार भी कहा गया है। इस अवस्था में बालक शीघ्र ही निर्णय पाने के लिए आतुर दिखता है। इस अवस्था में न तो किशोरों के साथ बच्चों जैसे व्यवहार किया जाता है और न ही उसे पूर्ण रूप से वयस्क समझा जाता है। इस परिवर्तनकाल में माता-पिता, अभिभावक, शिक्षक और अन्य लोग भी बालक के वर्तमान और भविष्य के कल्याण एवं हित में रुचि रखते हैं तथा समाज की प्रगति चाहते हैं।

स्टेनले हॉल ने अपनी पुस्तक Adolescence में किशोरावस्था का का वर्णन एक ऐसे काल के रूप में किया है जो कि बहुत जटिल, तनावपूर्ण एवं संघर्षपूर्ण है। सन् 1922 में Atlantic Monthly के Volume 129 में छपे एक शोध पत्र में उन्होंने लिखा है कि किशोरावस्था हलचल की अवस्था है। इस अवस्था में आन्तरिक दबाव एवं बाह्य परिस्थितियाँ दोनों ही किशोर के मन को प्रभावित करती है। स्टेनले हॉल कि अनुसार “किशोर वह है जो अभी घोंसले में ही है, जिसके पंख अभी छोटे हैं परन्तु फिर भी वह उड़ने का व्यर्थ प्रयत्न कर रहा है।” इसी प्रकार आन्तरिक दबाव एवं बाह्य परिस्थितियाँ दोनों ही किशोरों के मन को प्रभावित करती हैं तथा किशोर द्वारा आत्म-सम्प्रत्यय की खोज में किए गए प्रयत्नों को उलझा देती हैं। चूँकि शारीरिक परिवर्तन के कारण किशोरों के मन में जो जिज्ञासायें जन्म लेती हैं, यदि उनका संतोषजनक उत्तर किशोरों को यथासमय नहीं मिल पाता है तो तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है तथा धीरे-धीरे उनमें विद्रोह की भावना पनपने लगती है तथा वे असामान्य व्यवहार करने लगते हैं।

किशोरों की मनःस्थिति भी जल्दी-जल्दी बदलती रहती है। ये समूह में अपनी एक विशेष स्थिति प्राप्त करना चाहते हैं, समूह का सदस्य बनना चाहते हैं तथा अपने समूह में महत्वपूर्ण स्थान पाने हेतु विचलित रहते हैं। अतः वह स्वयं तो तनाव में रहते ही हैं साथ ही अपने परिवार में तथा दूसरे मित्रों के साथ भी विद्रोह की स्थिति बना लेते हैं जो कभी-कभी विवाद का कारण बनती है। इन घनिष्ठ सम्बन्धों में जब कभी बिखराव की स्थिति आती है ता किशोर बालक इतने तनावग्रस्त हो जाते हैं कि वे सही रास्ते से भटक जाते हैं और भावनात्मक संरक्षण व उचित मार्गदर्शन न मिलने से आत्महत्या कर बैठते हैं।

किशोर बालक-बालिकाओं में कल्पना की भी अधिकता होती है जिसके कारण वे अपने ही संसार में खोए रहते है। इस दिवास्वप्न की अवस्था में ही बुरे व अश्लील साहित्यों को पढ़ने से व बुरी आदतें पनपने से कई बार किशोर अपराध की ओर अग्रसर हो जाते हैं। इस प्रकार किशोर अपराधियों को शुरू में अपने घर से तथा बाद में पुलिस व समाज के अन्य सदस्यों से अथवा लोगों से विरोध का सामना करना पड़ता है।

इसके अतिरिक्त किशोरावस्था में आंतरिक दबाव व बाह्य परिस्थितियाँ दोनों ही किशोर के मन को प्रभावित करती हैं। इस आयु में माता-पिता/अभिभावक भी किशोरों को न बच्चा समझते हैं और न ही बड़ा। यही कारण है कि इस दौर में जब किशोर स्वतन्त्र रहना चाहता है तो उसे अक्सर मना किया जाता है। प्रायः यह कहा जाता है कि ‘बच्च हो बच्चे जैसे रहो।’ परन्तु दूसरे ही क्षण जब किशोर उनके मनोनुकूल कार्य नहीं करता तो कहा जाता है कि ‘अब तुम बच्चे नहीं रह गये हो।’ इसलिए इस कार्य को पूरा करना तुम्हारी जिम्मेदारी है। विरोधाभास की यह स्थिति किशोरों में अन्तर्द्वन्द्व की स्थिति को जन्म देती है। वे यह नहीं समझ पाते कि उनके लिए क्या सही है और क्या गलत है। उपयुक्त शिक्षा न मिल पाने से किशोर के मन में अनेक प्रश्न उठने लगते हैं जो कि उनके कोमल मन में तनाव व संघर्ष की स्थिति उत्पन्न करती हैं। इसीलिए प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक स्नेनले हॉल ने किशोरावस्था को संघर्ष, तनाव, तूफान तथा विरोध की अवस्था माना है।

उम्र के इस दौर में हिंसा, चोरी, लूटपाट की घटनायें भी पाई जाती हैं। बहुधा इसका कारण उच्च महत्वाकांक्षा, ईर्ष्या और क्षमता से अधिक अपेक्षा का पाया जाता है। अभिभावक भी अति महत्वाकांक्षी होने के कारण अपने बच्चों से ढेरों अपेक्षायें रखते हैं। बच्चे भी आशान्वित रहते हैं और असफल होने पर आत्महत्या अथवा घर से भागने जैसा अविवेकी कदम उठा लेते हैं।

अतः हम कह सकते हैं कि किशोरावस्था तनाव व झंझावत की अवस्था है जिसके कारण कुछ मनोवैज्ञानिकों ने इसे जीवन का कठिन काल भी कहा है। यह संवेगात्मक दृष्टि से वह अस्थिरता की अवस्था हैं। जो किशोरों को अन्तर्द्वन्द्वों एवं मनोनुकूल परिस्थितियों के विपरीत विभिन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए विवश करती है। यही विवशता की स्थिति उनके तनाव का कारण बनती है। अतः प्रत्येक माता-पिता, अभिभावक, शिक्षक एवं समाज के हर प्रबुद्ध नागरिक को किशोरों की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं एवं समस्याओं को समझना होगा तभी उनके व्यक्तित्व का संतुलित विकास हो सकेगा।

Important Link

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment