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तथ्य (सामग्री) का अर्थ एंव प्रकार | Meaning and Types of Data
तथ्य (सामग्री) का अर्थ (MEANING OF DATA)
तथ्य-संकलन के लिए शोधकर्ता में अवलोकन की चेतना का होना आवश्यक है, यद्यपि यह सही है कि तथ्यों के अन्तर्गत उन बातों या सूचनाओं को सम्मिलित किया जाता है जो अवलोकन के योग्य हों और जिन्हें लिखित रूप में रखा जा सकता हो ।
वैज्ञानिक ज्ञान की सीमाओं के विस्तार हेतु शोध-प्रयत्नों के आधार पर संकलित की गईं साधारण-सी लगने वाली छोटी-छोटी सूचनाएं भी काफी लाभदायक होती हैं। इन्हीं संकलित सूचनाओं को तथ्य या सामग्री (Data) के नाम से पुकारते हैं। ऐसे ही तथ्यों या सामग्री के आधार पर वैज्ञानिक निष्कर्ष निकाले जाते तथा नियमों का प्रतिपादन एवं सिद्धान्तों का निर्माण किया जाता है।
तथ्य-संकलन प्रत्येक विज्ञान का चाहे वह भौतिक विज्ञान हो या सामाजिक विज्ञान लक्ष्य होता है। व्यवस्थित रूप में संकलित तथ्यों के आधार पर ही वैज्ञानिक नियमों का प्रतिपादन किया जा सकता है। तथ्य-संकलन से ही घटनाओं के कार्य-कारण सम्बन्ध को जाना जा सकता है, कारण-प्रभाव (Cause and Effect) सम्बन्धों का पता लगाया जा सकता है। प्रत्येक विज्ञान में विविध घटनाओं के कारणों एवं प्रभावों को जानने का प्रयत्न तथ्यों के आधार पर ही किया जाता है। अतः हम कह सकते हैं कि विज्ञान की प्रगति तथ्यों पर ही निर्भर करती है। अन्य शब्दों में प्रत्येक विज्ञान तथ्यों के आधार पर ही आगे बढ़ता है, न कि कल्पनाओं के आधार पर।
अमरीकी कॉलेज शब्दकोश में तथ्यों का अर्थ स्पष्ट करने की दृष्टि से बताया गया है। कि जो घटना वास्तव में घटित हुई है, जो कुछ घटा है, उसे तथ्य का नाम दिया जाता है। यहां हमें यह बात ध्यान में रखनी है कि भौतिक विज्ञानों की मूर्त घटनाएं मात्र ही सामाजिक विज्ञानों के तथ्य नहीं होतीं, बल्कि अमूर्त जैसे विश्वास, भावनाएं, मनोवृत्तियां या विचार, आदि भी तथ्यों के अन्तर्गत आते हैं।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि तथ्य (Data) का तात्पर्य ऐसी सभी सूचनाओं, सामग्री व आंकड़ों से है जो कि क्षेत्रीय कार्य (Field-work) और द्वैतीयक स्रोतों (Secondary Sources) के माध्यम से प्राप्त किए जाते हैं।
तथ्यों के प्रकार (TYPES OF DATA)
प्रत्येक अध्ययन विषय या समस्या से सम्बन्धित तथ्य काफी विविधतापूर्ण हैं, कुछ तथ्य गुणात्मक तो कुछ परिमाणात्मक होते हैं। अध्ययन हेतु तथ्यों का संकलन कई प्रविधियों की सहायता से किया जा सकता है। अवलोकन-विधि, साक्षात्कार, अनुसूची, डाक द्वारा प्रेषित प्रश्नावली, आदि के माध्यम से तथ्य एकत्रित किए जा सकते हैं। कई बार अध्ययन विषय की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए कुछ ऐसे तथ्यों का उपयोग भी किया जाता है जिन्हें शोधकर्ता या उसके सहायकों ने स्वयं संकलित नहीं किया है बल्कि अन्य अध्ययन-कर्ताओं ने अपने-अपने अध्ययन हेतु एकत्रित किया है। ऐसे तथ्य पुस्तकों, प्रतिवेदनों, पांडुलिपियों, डायरियों, जनगणना रिपोर्ट, आदि से प्राप्त किए जाते हैं। अतः तथ्य प्रमुखतः दो प्रकार के होते हैं— प्रथम प्राथमिक तथ्य (Primary Data), तथा द्वितीय, द्वैतीयक तथ्य (Secondary Data)। प्राथमिक तथ्यों का संकलन प्रथम बार शोधकर्ता या उसके सहायकों द्वारा क्षेत्रीय कार्य के आधार पर किया जाता है। द्वैतीयक तथ्यों के अन्तर्गत वे तथ्य आते हैं जिनका संकलन किसी अन्य अध्ययन-कर्ता, शोधकर्ता, किसी संस्थान या संगठन द्वारा किया गया है। अन्य अध्ययन-कर्ताओं द्वारा संकलित तथ्यों का उपयोग जब कोई शोधकर्ता करता है तो उस शोधकर्ता के लिए अन्यों द्वारा संकलित तथ्य द्वैतीयक तथ्य होते हैं क्योंकि उसने या उसके सहायकों ने इन तथ्यों को प्रथम बार एकत्रित नहीं किया है। यहां अब हम प्राथमिक एवं द्वैतीयक तथ्यों पर सविस्तार विचार करेंगे।
(1) प्राथमिक तथ्य ( सामग्री) (Primary Data)- वे सभी सूचनाएं, संग्रहित की गई सामग्री और आंकड़े जिन्हें शोधकर्ता ने अपने अध्ययन (शोध) हेतु स्वयं या अपने सहायकों की मदद से एकत्रित किया हो, प्राथमिक तथ्य कहलाते हैं। ये तथ्यं प्रमुखतः क्षेत्रीय कार्य (Field-work) के आधार पर प्राप्त किए जाते हैं। रॉबर्टसन तथा राइट ने लिखा है, “वे तथ्य प्राथमिक होते हैं, जिन्हें एक विशेष शोध-समस्या को हल करने के लिए विशेष उद्देश्य हेतु संकलित किया गया हो।” स्पष्ट है कि अनुसन्धान या शोध समस्या से सम्बन्धित प्रथम बार एकत्रित आंकड़े, सूचनाएं एवं सामग्री प्राथमिक तथ्य कहलाते हैं।
श्रीमती पी. वी. यंग ने लिखा है, “प्राथमिक तथ्य-सामग्री का तात्पर्य उन सूचनाओं व आंकड़ों से है जिनको पहली बार संकलित किया गया हो तथा जिनके संकलन का उत्तरदायित्व शोधकर्ता या अन्वेषण कर्ता का अपना है।” यहां यह बात स्पष्ट है कि प्राथमिक तथ्यों का संकलन या तो शोधकर्ता स्वयं करता है या अपनी देखरेख में अपने सहायकों से कराता है, इस प्रकार की सामग्री या तथ्य क्षेत्रीय कार्य के आधार पर प्राप्त किए जाते हैं।
प्राथमिक तथ्यों (सामग्री) की उपर्युक्त विशेषताओं के कारण प्राथमिक सामग्री (तथ्य) को प्रथम स्तरीय सामग्री (First-hand Data), क्षेत्रीय-सामग्री (Field Data) एवं आधार या मौलिक सामग्री (Basic Data) के नाम से पुकारते हैं। इस प्रकार की सामग्री का संकलन शोधकर्ता स्वयं या अपने सहायकों की मदद से या तो घटनाओं का सूक्ष्म अवलोकन करके करता है या शोध-विषय से सम्बन्धित लोगों से बातचीत करके साक्षात्कार करके, अनुसूची या डाक द्वारा भेजी गई प्रश्नावली की सहायता से करता है। प्राथमिक सामग्री या तथ्य क्योंकि शोधकर्ता द्वारा प्रथम बार एकत्रित किए जाते हैं, इसलिए इन्हें प्राथमिक तथ्य कहते हैं। ये तथ्य नवीन और विश्वसनीय होते हैं। इन तथ्यों के अधिक विश्वसनीय होने का कारण यह है कि इन्हें शोधकर्ता नियंत्रित रूप से अपनी प्राक्कल्पना के सत्यापन की आवश्यकता एवं अपने अध्ययन के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर स्वयं संकलित करता है। यदि कोई शोधकर्ता ग्रामीण-नेतृत्व का अध्ययन करना चाहे तो उसे किसी ग्राम विशेष या कुछ ग्रामों के नेताओं का पता लगाना होगा। इसके पश्चात् उसे इन नेताओं के क्रिया-कलापों व विभिन्न गतिविधियों का निरीक्षण करना होगा। शोधकर्ता को इनसे सम्पर्क स्थापित कर बहुत-सी सूचनाएं या जानकारी प्राप्त करनी होगी। उसे यह मालूम करना पड़ेगा कि इन नेताओं ने सामूहिक हित के कौन-कौन से कार्य किए हैं। ये किस आयु समूह में आते हैं, इनकी शैक्षणिक योग्यता क्या है, इनकी आजीविका के साधन क्या हैं, इनकी आर्थिक स्थिति कैसी है? ये सब सूचनाएं, जानकारी, आँकड़े शोधकर्ता स्वयं या कुछ सहायकों की मदद से एकत्रित करता है। इन्हीं सब एकत्रित तथ्यों को प्राथमिक तथ्य (Primary Data) कहते हैं ।
(2) द्वैतीयक तथ्य (सामग्री) (Secondary Data) – वे सब सूचनाएं, आंकड़े वे एवं तथ्य जिन्हें शोधकर्ता अपने अध्ययन हेतु स्वयं संकलित नहीं करता बल्कि जो पहले से ही प्रकाशित या अप्रकाशित रूप में उपलब्ध हैं, द्वैतीयक सामग्री या तथ्य कहलाते हैं। इनमें पत्र, डायरियां, आत्मकथाएं, पांडुलिपियाँ, सरकारी प्रतिवेदन, जनगणना रिपोर्ट, गजेटियर, प्रलेख, अभिलेख, आदि आते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि द्वैतीयक तथ्य पहले से ही उपलब्ध होते हैं जिनका उपयोग कोई शोधकर्ता अपने शोध-विषय की आवश्यकतानुसार करता है। किसी शोधकर्ता या संगठन द्वारा इस प्रकार की सामग्री या तथ्य पहले से संकलित किए हुए होते हैं। श्रीमती पी. वी. यंग के अनुसार, “द्वैतीयक तथ्य वे होते हैं जिन्हें मौलिक स्रोतों से एक बार प्राप्त कर लेने के पश्चात् काम में लिया गया हो एवं जिनका प्रसारण अधिकारी उस व्यक्ति से भिन्न होता है जिसने प्रथम बार तथ्य संकलन को नियन्त्रित किया था ।” स्पष्ट है कि द्वैतीयक तथ्य वे होते हैं जिनका एकत्रीकरण स्वयं शोधकर्ता या उसके सहायकों द्वारा नहीं किया गया हो, परन्तु जिसने किसी अन्य अध्ययन हेतु किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा संकलित सामग्री का उपयोग किया हो। इस सामग्री या तथ्यों का उपयोग करने वाला इसके क्षेत्रीय संकलन से सम्बन्धित नहीं होता है। अन्य शब्दों में जब कोई शोधकर्ता, अन्य शोधकर्ता, संस्था, संगठन या किसी सरकारी वा गैर-सरकारी एजेन्सी द्वारा एकत्रित सामग्री या तथ्यों का स्वयं के अध्ययन हेतु उपयोग १. तो उसके लिए वह सामग्री द्वैतीयक सामग्री या तथ्य होंगे। यहां इसे एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करना उचित रहेगा। यदि कोई शोधकर्ता 2001 की जनगणना-रिपोर्ट के रूप में प्रकाशित सामग्री में से कुछ तथ्यों का चयन कर अपने अध्ययन हेतु उपयोग करता है तो ऐसे तथ्य उसके लिए द्वैतीयक तथ्य कहलाएंगे। किसी अध्ययन में द्वैतीयक तथ्यों का उपयोग उस समय किया जाता है जब विषय की प्रकृति ऐसी हो कि सभी तथ्यों को नवीन सिरे से एकत्र करना आवश्यक नहीं हो तथा उस विषय से सम्बन्धित अन्य द्वारा एकत्रित तथ्य पहले से उपलब्ध हों। शोधकर्ता को अपने सीमित साधनों के कारण भी कई बार द्वैतीयक सामग्री का उपयोग करना पड़ता है। द्वैतीयक सामग्री को काम में लेने हेतु शोधकर्ता का कार्य-कुशल और सूझ-बूझ वाला होना आवश्यक है। यह सामग्री काफी विविधता लिए हुए होती है। अतः इसमें से शोधकर्ता को आवश्यक तथ्यों को संकलित करना होता है।
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