तथ्य (सामग्री) का स्त्रोत क्या है? प्राथमिक स्रोतों का वर्णन कीजिये।
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तथ्यों (सामग्री) के स्त्रोत (SOURCES OF DATA)
तथ्यों (सामग्री) के स्रोत का तात्पर्य यह है कि तथ्यों का संकलन किन स्रोतों या माध्यमों से किया जा रहा है। तथ्य-संकलन के स्रोतों के चुनाव में विशेष सावधानी की आवश्यकता है। यदि ये स्रोत विश्वसनीय नहीं हुए तो सम्पूर्ण शोध-कार्य ही निरर्थक साबित हो सकता है। अतः तथ्य-संकलन के विभिन्न स्रोतों को भली-भाँति समझ लेना अत्यन्त आवश्यक है। प्रमुखतः तीन तरीकों से अध्ययन हेतु तथ्य एकत्रित किये जा सकते हैं। सामाजिक शोध का विषय चूंकि मानव या मानव समूह होता है जिसे हम अपनी सुविधानुसार या आवश्यकतानुसार नियन्त्रित नहीं कर सकते। अतः हम उसके सम्बन्ध में तीन तरीकों से सूचना प्राप्त कर सकते या तथ्य एकत्रित कर सकते हैं-
(1) हम व्यक्ति से स्वयं बातचीत करें, वार्तालाप करें, सीधे प्रश्न करें तथा विषय या समस्या के सम्बन्ध में उसके विचार या प्रतिक्रिया को जान लें।
(2) शोध-विषय से सम्बन्धित व्यक्ति, समूह एवं संगठन के क्रिया-कलापों, आचार व्यवहारों का प्रत्यक्ष रूप से अवलोकन करें और इस अवलोकन के आधार पर प्राप्त तथ्यों को संकलित कर लें।
(3) शोध-कार्य के समय उन दस्तावेजों तथ्यों या सामग्री का उपयोग अपनी आवश्यकतानुसार करें जो किसी अन्य अध्ययन या शोध हेतु एकत्रित किये गये थे।
तथ्य-संकलन के उपर्युक्त तीन स्रोतों को विद्वानों ने प्रमुखतः दो भागों में बाँटा है, प्रथम, प्राथमिक स्रोत (Primary Source) तथा द्वितीय, द्वैतीयक स्रोत (Secondary Source)।
1. प्राथमिक स्त्रोत (Primary Source)
प्राथमिक स्रोत से प्राप्त तथ्य वे मौलिक तथ्य होते हैं जिनको संकलित व प्रचारित करने का दायित्व उसी व्यक्ति या शोधकर्ता का होता है जिसने उन्हें एकत्रित किया है। यहाँ हमें यह बात भली-भाँति समझ लेनी चाहिए कि प्राथमिक स्रोत से एकत्रित सामग्री का संकलनकर्ता रिपोर्ट या प्रतिवेदन का लेखक हो, यह आवश्यक नहीं है। श्रीमती पी.वी. यंग ने लिखा है, “प्राथमिक स्रोत वे स्रोत हैं जो प्राथमिक स्तर पर तथ्यों के संकलन में सहायक होते हैं।” पीटर एच. मान के अनुसार, “प्राथमिक स्रोत वे स्रोत हैं जो प्रथम बार तथ्य प्रदान करते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि ये तथ्य संकलित करने वाले लोगों द्वारा प्रस्तुत किये तथ्यों का मौलिक स्वरूप होते हैं।”
प्राथमिक स्रोत को अन्य शब्दों में हम इस प्रकार समझा सकते हैं। जहाँ शोधकर्ता स्वयं अपने अध्ययन-क्षेत्र या समग्र (Universe) की अध्ययन इकाइयों से सम्पर्क कर तथ्यों को एकत्रित करता है, वहां इसे तथ्य संकलन का प्राथमिक स्रोत कहा जाता है। यहां अपनी अध्ययन की इकाई- व्यक्ति से वह सीधा सम्पर्क कर तथ्य संकलित करता है। इस प्रकार से प्रप्त तथ्यों को प्राथमिक स्रोत द्वारा एकत्रित सामंत्री इस कारण भी कहा जाता है क्योंकि किसी विशिष्ट विषय (समस्या) के लक्ष्य को ध्यान में रखकर इसे प्रथम बार एकत्रित किया जाता है। इस सामग्री के संकलन का दायित्व स्वयं शोधकर्ता का होता है। इस सामग्री की विश्वसनीयता एवं उपयुक्तता के लिए स्वयं अनुसन्धानकर्ता उत्तरदायी होता है। इस सामग्री के संकलन में शोधकर्ता का स्वयं का लगाव होता है। इस लगाव के फलस्वरूप अपने अध्ययन को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करने हेतु वह पूर्णतः निष्पक्ष रहकर तथ्यों का संकलन कर सकता है। यह भी सम्भव है कि इस लगाव के कारण वह पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो जाये, ऐसे तथ्यों का संकलन कर ले जो उसकी प्राक्कल्पना को सही प्रमाणित करने में योग दें। ऐसी स्थिति में अध्ययन में वैज्ञानिकता बनाये रखने हेतु शोधकर्ता को भी पूर्वाग्रहों से अपने को मुक्त रखने की आवश्यकता है।
श्रीमती पी. बी. यंग ने तथ्य संकलन के प्राथमिक स्रोत को दो भागों में विभाजित किया है: प्रथम, प्रत्यक्ष स्रोत (Direct Source), तथा द्वितीय, अप्रत्यक्ष स्रोत (Indirect Source) प्रत्यक्ष स्रोत के अन्तर्गत अवलोकन, अनुसूची एवं साक्षात्कार प्रविधियों की सहायता से सामग्री संकलित की जाती है। प्रत्यक्ष स्रोत में शोधकर्ता या अध्ययन कर्त्ता द्वारा अध्ययन-इकाइयों से सीधा सम्पर्क स्थापित किया जाता है। अप्रत्यक्ष स्रोत में शोधकर्ता अध्ययन इकाइयों से सीधा सम्पर्क किये बिना ही सामग्री का संकलन करता है। अप्रत्यक्ष प्राथमिक स्रोत में प्रश्नावली, रेडियो या टेलीविजन अपील, टेलीफोन साक्षात्कार, प्रतिनिधि प्रविधियां आदि प्रमुख हैं। यहां इन माध्यमों से सामग्री एकत्रित की जाती है।
तथ्य संकलन के प्राथमिक स्रोत के अन्तर्गत हम अवलोकन, साक्षात्कार, अनुसूची एवं प्रश्नावली का संक्षिप्त वर्णन निम्न हैं-
(1) अवलोकन (Observation)- अवलोकन तथ्य-संकलन के प्राथमिक स्रोत के अन्तर्गत आता है। इसमें अध्ययनकर्त्ता स्वयं अध्ययन-स्थल पर पहुँच कर घटनाओं, दशाओं, वस्तुओं, रीति-रिवाजों एवं व्यवहारों को निष्पक्ष रूप से देखता है, तटस्थ होकर उनका अवलोकन करता है और इस आधार पर तथ्यों को एकत्रित करता है। इस प्रविधि का सफल प्रयोग सीमित क्षेत्र में ही किया जा सकता है। साथ ही ऐसा अध्ययन लोगों के विचारों, विश्वासों, भावनाओं एवं मनोवृत्तियों से सम्बन्धित नहीं होना चाहिए क्योंकि इनका अध्ययन अवलोकन प्रविधि से नहीं किया जा सकता। अवलोकन के तीन प्रकार हैं- प्रथम, सहभागिक अवलोकन (Participant Observation); द्वितीय, अर्द्ध-सहभागिक अवलोकन (Quasi-Participant Observation); तथा तृतीय, असहभागिक अवलोकन (Non-Participant Observation)। सहभागिक अवलोकन में अध्ययन कर्ता स्वयं उस समूह या समुदाय का एक सदस्य या भाग बन जाता है जिसका उसे अध्ययन करना होता है। ऐसा करके वह समूह के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण तथ्य ज्ञात कर सकता है। अर्द्ध-सहभागिक अवलोकन में अध्ययनकर्त्ता लम्बे समय तक समूह का अंग बनकर नहीं रहता। वह विशेष अवसरों से सम्बन्धित तथ्य एकत्रित करने के लिए उन अवसरों पर समूह के निकट सम्पर्क में आता है। असहभागिक अवलोकन में अध्ययनकर्त्ता अध्ययन किये जाने वाले समूह या लोगों के निकट सम्पर्क में नहीं आता, उस समूह का सदस्य नहीं बन जाता। वह तो एक दर्शक के रूप में घटनाओं का निरीक्षण कर तथ्य एकत्रित करता है। तथ्य संकलन की यह प्रविधि अर्थात् अवलोकन अधिक विश्वसनीय और निर्भर योग्य है।
(2) साक्षात्कार (Interview )– इसमें अध्ययन से सम्बन्धित विभिन्न व्यक्तियों सीधा सम्पर्क स्थापित कर बातचीत की जाती है और अध्ययन हेतु आवश्यक सामग्री एकत्रित की जाती है। इस विधि की साक्षात्कार विधि के नाम से पुकारते हैं। इसमें अध्ययनकर्ता अनुसूची या साक्षात्कार प्रदर्शिका (Interview Guide) की साहयता ले सकता है। वह चाहे तो मुक्त वार्तालाप के माध्यम से भी तथ्य संकलित कर सकता है। घटना या विषय से जुड़े हुए लोग साक्षात्कार के माध्यम से विश्वसनीय एवं निर्भर योग्य सूचनाएं (तथ्य) दे सकते हैं, फिर भी साक्षात्कार द्वारा बीच-बीच में ऐसे प्रश्न पूछे जा सकते हैं जिनकी सहायता से एकत्रित सामग्री की जांच की जा सके।
(3) अनुसूची (Schedule)- अनुसूची प्रश्नों की एक सूची होती है जिसे अनुसन्धानकर्ता स्वयं या उसके प्रगणक क्षेत्र में जाकर सूचनादाताओं से प्रश्न पूछकर उत्तरों को भरते हैं। इस विधि में अनुसन्धानकर्ता तथा सूचनादाताओं के बीच अनुसूची के माध्यम से प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित हो जाता है। इस विधि की सहायता से अशिक्षित व्यक्तियों से भी सूचनाएं सुगमता से प्राप्त कर ली जाती हैं। यह सूचना प्राप्ति का काफी विश्वसनीय स्रोत है। इस विधि की सहायता से अध्ययन का एक प्रमुख लाभ यह है कि अनुसन्धानकर्ता को घटनाओं का अवलोकन करने का अवसर भी प्राप्त हो जाता है।
(4) प्रश्नावली (Questionnaire)- यद्यपि प्रश्नावली की सहायता से प्राथमिक तथ्य संकलित किये जाते हैं, परन्तु फिर भी यह सूचना प्राप्ति का प्रत्यक्ष स्रोत नहीं होकर अप्रत्यक्ष स्रोत है। इस विधि द्वारा अध्ययन में अनुसन्धानकर्ता तथा सूचनादाता में प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित नहीं होकर अप्रत्यक्ष सम्बन्ध रहता है। प्रश्नावली अनुसन्धानकर्ता द्वारा तैयार की गयी प्रश्नों की एक सूची होती है जिसे वह उत्तरदाता के पास डाक द्वारा इस अनुरोध के साथ भेजता है कि इसे भरकर समय पर अवश्य लौटायें। इस विधि का प्रयोग उस दशा में किया जाता है जब अध्ययन क्षेत्र या समग्र इतना विस्तृत हो कि सभी सूचनादाताओं से प्रत्यक्ष सम्पर्क कर तथ्य संकलित करना सम्भव नहीं हो। इसके अलावा इस विधि का प्रयोग ऐसे उत्तरदाताओं के लिए ही किया जा सकता है जो शिक्षित हों, जो स्वयं प्रश्नों को समझकर बिना अनुसन्धानकर्ता की सहायता के उत्तर दे सकें। इस विधि द्वारा अध्ययन का लाभ यह है कि इसमें समय एवं धन की काफी बचत होती है। इस विधि का एक प्रमुख दोष यह है कि इसमें प्राप्त उत्तरों का सत्यापन कठिन रहता है।
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