शिक्षाशास्त्र / Education

परिवर्तन तथा नवाचार के मध्य सम्बन्ध | relationship between change and innovation

परिवर्तन तथा नवाचार के मध्य सम्बन्ध | relationship between change and innovation
परिवर्तन तथा नवाचार के मध्य सम्बन्ध | relationship between change and innovation

परिवर्तन तथा नवाचार के मध्य सम्बन्ध पर लेख लिखिए।

परिवर्तन और नवाचार के मध्य सम्बन्ध 

परिवर्तन और नवाचार दोनों ही शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं और शिक्षा द्वारा प्रभावित होते हैं इसे एक रेखाचित्र द्वारा इस तरह स्पष्ट किया जा सकता है-

नवाचार ⇔ परिवर्तन

इस सम्बन्ध में ये तीन बातें अ शिक्षा हैं-

  • सुधार की दृष्टि से शैक्षिक पारवर्तन की चाह,
  • उपर्युक्त सन्दर्भ में नवाचार का चयन,
  • नवाचार को प्रयोग में लाने के लिए साधनों का आयोजन करना।

इस आधार पर कहा जा सकता है कि-

  1. नवाचार और शैक्षिक परिवर्तन-इनमें घनिष्ठ सम्बन्ध है।
  2. इनसे शिक्षा में सुधार लाया जा सकता है।

अतएव यदि नवाचार को शिक्षा का आधार कहा जाए, तो कोई अतिश्योक्ति न होगी।

नवाचार की अभिस्वीकृति के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ

नवाचार तभी जल्दी स्वीकार किये जाते हैं, जब निम्न बातों का ध्यान रखा जाये-

  1. ग्रहणकर्ता नवाचार को भली-भाँति समझ ले।
  2. यह प्रयास करना कि ग्रहणकर्ता स्वयं ही नवाचार को प्रयोग में लाने की योजना बनाये।
  3. यदि नीति निश्चित करने में ग्रहणकर्ताओं को सहयोगी बनाया जाए, तो वें अधिक उत्साह से काम करते हैं।
  4. वे इस तथ्य की भली-भाँति अनुभूति कर सकें कि वर्तमान परिस्थितियों में यह नवाचार उपयुक्त तथा प्रासंगिक हैं।
  5. उन्हें मिलकर काम करने के लिए प्रेरित करना।
  6. यदि कार्य को दो-दो, तीन-तीन के समूहों में विभाजित किया जाता है, तो शीघ्र सफलता मिलेगी।
  7. स्वतन्त्र परिवेश में विचारों के आदान-प्रदान करने की सुविधा बराबर देते रहना।
  8. नवाचार के चयन में यदि ‘सामूहिक नवाचार चयन विधि अपनायी जाती है, ग्रहणकर्ताओं का उत्साह अन्त तक बना रहता है।
  9. यदि विद्यालय में शिक्षकों को स्वतन्त्र रूप से नये-नये प्रयोग करने की छूट होती है और उन्हें इसके लिए पर्याप्त अवसर दिये जाते हैं, तो नवाचार की सफलता के लिए वे जी-तोड परिश्रम करेंगे।

नवाचार और परिवर्तन के मध्य सम्बन्ध को प्रभावित करने वाले कारक

व्यक्तित्व सम्बन्धी कारक- इन बाधाओं की गणना व्यक्तित्व सम्बन्धी बाधाओं में की जा सकती है-

1. आत्मविश्वास का अभाव- आमतौर पर व्यक्ति को अपनी क्षमताओं और योग्यताओं में पूरा-पूरा विश्वास नहीं होता। वह सोचता है मुझमें इतनी शक्ति कहाँ है कि परम्परा से चली आती रूढ़ियों और आत्मविश्वासों को भग्न कर सकें। ऐसी स्थिति में अधिकारियों को पुरस्कार देकर सम्मान देकर तथा अन्य मनोवैज्ञानिक तरीके अपनाकर, ग्रहणकर्त्ता के आत्मविश्वास में वृद्धि करते रहना चाहिए।

2. प्रथम प्रभाव – किसी व्यक्ति के मन में, किसी बात का जो पहला प्रभाव होती है, वह बड़ा गहरा और दूरगामी होता है। बाद में यदि कोई बात, इसके विपरीत होती है, तो वह उसे स्वीकार करने में कतराता है।

इस बाधा का निराकरण करने के लिए कार्यकर्ता को नवाचार से होने वाले लाभ का प्रभावशाली ढंग से वर्णन करना होगा। फिर यह झिझक धीरे धीरे दूर होती जायेगी।

3. आदतें व्यक्ति एक बार जो आदत बना लेता है, उससे छुटकारा पाना बहुत कठिन होता है। यदि नवाचार को सफल बनाना है, तो ऐसा परिवेश बनाना होगा, जिसमें व्यक्ति की आदतों में वांछित परिवर्तन लाया जा सके।

4. असुरक्षा का भाव और पलायन – प्रायः व्यक्ति जब किसी नवीन वस्तु को अपनाता है और मार्ग में बाधाएँ आ जाती हैं, तब वह अपने आपको असुरक्षित अनुभव करने लगता है और पीछे की ओर पलायन करके, फिर से पुरानी बात या व्यवहार को अपना लेता है।

इस बाधा को उन्मूलित करने के लिए अधिकारियों द्वारा ग्रहणकर्ता को संरक्षण दिया जाना चाहिए, उसको प्रेरित कर उसका हौसला बढ़ाते रहना चाहिए।

5. नैतिकता यदि नवाचार, व्यक्ति की नैतिक मान्यताओं या परम्परागत श्रद्धा बिन्दुओं के विरुद्ध आता है, तो वह उससे दूर भागना चाहेगा। इस बाधा को दूर करने के लिए ग्रहणकर्ता के मन में नवाचार के प्रति विश्वास जाग्रत करना होगा।

6. भविष्य की आशा- व्यक्ति को अपने अतीत काल में जो सफलताएँ प्राप्त होती हैं, उनके आधार पर वह अपने भविष्य की आशाओं और आकांक्षाओं का निर्माण करता है। जिस सीमा तक वह अपनी सफलता के प्रति आश्वस्त होता है, उस सीमा के आधार पर ही वह किसी नवीन कार्य को हाथ में लेता है। असफलता का थोड़ा-सा संशय भी उसे नवीन कार्य से विरत कर सकता है।

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Anjali Yadav

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