प्रयोगात्मक अनुसंधान प्ररचना की प्रक्रिया एवं प्रकार का वर्णन कीजिये।
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प्रयोगात्मक अनुसंधान-प्ररचना की प्रक्रिया एवं प्रकार (Process and Types of Experimental Research Design)
सामान्यतया प्रयोगात्मक अनुसंधान में निम्नलिखित पद्धति अपनाई जाती है-
- नियंत्रित एवं प्रयोग समूह का निश्चय ।
- पूर्व-परीक्षण, अर्थात् समूहों का प्रयोग के पूर्व पर्यवेक्षण (Pre-test ) ।
- प्रयोग-समूह में संबंध कारक या परिवर्त्य का समावेश या परिचालन (manipulation) ।
- पश्चात-परीक्षण, अर्थात् कारक परिचालन के पश्चात समूहों में प्रभाव एवं भिन्नता का पर्यवेक्षण (Post-test)।
उद्देश्य एवं साधन के आधार पर यह प्रक्रिया मुख्यतः दो प्रकार से संपन्न की जाती है। दूसरे शब्दों में, प्रयोगात्मक अनुसंधान मुख्यतः दो प्रकार के हैं-
(A) केवल पश्चात परीक्षण प्रयोग (After-only Experiment),
(B) पूर्व-पश्चात परीक्षण-प्रयोग (Before-after Experiment)।
केवल पश्चात परीक्षण-प्रयोग (After-only Experiment)
इस अनुसंधान प्ररचना में सर्वप्रथम यादृच्छीकरण (randomization) या सादृश्यीकरण (matching ) अथवा अन्य किसी विधि से दो समान समूह का चयन या निर्माण कर लिया जाता है। इसके पश्चात् एक समूह में जिस कारक का प्रभाव देखना है, उसे सम्मिलित किया जाता है। यह माना जाता है कि कारक-समावेश के पूर्व दोनों समूह समान हैं। कारक में परिचित समूह को प्रयोग-समूह (experimental group) और दूसरे को नियंत्रित-समूह (control-group) कहते हैं। इसके बाद दोनों समूहों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। प्रयोग-समूह में उत्पन्न भिन्नताएँ परिचालित कारक के कारण मानी जाती हैं।
एक उदाहरण लें। गाँव लोगों पर किसी कार्यक्रम (जैसे टी. वी. द्वारा प्रचारित परिवार कल्याण-कार्यक्रम) का परिवार नियोजन अपनाने पर क्या प्रभाव पड़ता है, इस अध्ययन के लिए दो समान गाँवों का चुनाव करते हैं। फिर, एक गाँव में टी. वी. का कार्यक्रम कुछ महीनों तक दिखाया जाता है। इसके पश्चात दोनों गाँवों में परिवार नियोजन अपनाने वालों की गणना की जाती है। प्रयोग समूह गाँव में (जिसमें टी.वी. कार्यक्रम दिखाया गया है) यदि परिवार नियोजन अपनाने वालों की संख्या में, नियंत्रित समूह गाँव की तुलना में अधिकता आई है, तो इसे उस ‘कारक’ (टी.वी. प्रचार) का प्रभाव समझा जाएगा, क्योंकि कारक प्रस्तुत करने के पूर्व यह विश्वास किया जाता है कि दोनों गाँव समान थे।
यह निष्कर्ष कई कारणों से गलत भी सिद्ध हो सकता है-
(i) यह कहना कठिन है कि वास्तव में दोनों समूह प्रत्येक दृष्टि से समान थे।
(ii) चूँकि पूर्व परीक्षण नहीं किया गया है, इसलिए यह भी कहना कठिन है कि उत्पन्न परिवर्तन पहले से ही उपस्थित नहीं थे।
(iii) इस प्रयोग में अन्य कारकों को नियंत्रित करने का कोई सफल प्रयास नहीं किया जाता है, जो विभिन्न परिवर्तन ला सकते हैं। अर्थात्, यह कहना भी कठिन है कि उत्पन्न परिवर्तन केवल ‘परिचालित कारक’ के कारण ही उत्पन्न हुए हैं, और अन्य किसी कारक का उसमें कोई प्रभाव नहीं है।
केवल पश्चात् की ये कमियाँ मुख्यतः इस कारण उत्पन्न होती हैं कि समाज-विज्ञान में दोनों समूह की पूर्ण समानता का आश्वासन मिलना कठिन है।
पूर्व-पश्चात परीक्षण प्रयोग (Before-after Experiment)
केवल पश्चात प्रयोग की कमियों को दूर करने के लिए पूर्व-पश्चात परीक्षण प्रयोग किया जाता है। यह परीक्षण भी मूलतः नियंत्रित एवं प्रयोग समूहों का अध्ययन है, किंतु केवल पश्चात की तरह इसमें ‘कारक’ के समावेश के बाद ही मापन नहीं करते, बल्कि ‘कारक’ के पूर्वस्थिति की भी माप करते हैं।
सर्वप्रथम, इस प्रकार के प्रयोग में एक प्रयोग समूह, या एक से अधिक समान प्रयोग समूह एवं नियंत्रित समूह का चुनाव किया जाता है। फिर, उनका प्रारंभिक पर्यवेक्षण कर लिया जाता है। यह पूर्व-परीक्षण (per-test) है। इसके पश्चात प्रयोग-समूह में ‘कारक’ का समावेश किया जाता है। फिर, समूह या समूहों का ‘कारक-परिचालन’ के पश्चात पर्यवेक्षण किया जाता है। यह ‘पश्चात परीक्षण’ है। पूर्व-स्थिति एवं पश्चात स्थिति की तुलना एवं उनके अंतर के आधार पर कारक के प्रभाव का विश्लेषण किया जाता है। चूँकि इस परीक्षण में पूर्व परीक्षण भी किया जाता है, इसलिए शोधकर्ता इस स्थिति में होता है कि वह बाह्य कारकों को अलग कर सके या हटा सकें, जिससे प्राप्त निष्कर्ष अधिक यथार्थ हो जाते हैं।
पूर्व-पश्चात प्रयोग के कई स्वरूप हो सकते हैं, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं-
(i) केवल एक समूह का परीक्षण- इसमें कारक परिचालन के पूर्व समूह की माप की जाती है, और फिर कारक-परिचालन के पश्चात । इस तरह, पूर्व स्थिति नियंत्रित समूह की है और बाद में वही समूह प्रयोग-समूह हो जाता है।
(ii) एक नियंत्रित समूह के साथ परीक्षण- इसमें एक प्रयोग एवं एक नियंत्रित समूह का चुनाव किया जाता है, जो सभी दृष्टियों से लगभग समान होते हैं। फिर, प्रयोग के पूर्व दोनों समूहों की माप की जाती है। उसके पश्चात एक समूह में प्रयोगात्मक कारक का समावेश करते हैं, और नियंत्रित समूह को यथावत छोड़ देते हैं। फिर, दोनों समूहों की माप एवं तुलना के आधार पर कारक के प्रभाव के बारे में निष्कर्ष प्राप्त करते हैं।
(iii) नियंत्रित समूहों के साथ परीक्षण- इसमें एक प्रयोग-समूह तथा दो नियंत्रित समूह का अध्ययन किया जाता है। पूर्वमाप (pre-test) के पश्चात प्रयोग तथा एक नियंत्रित समूह को ‘कारक’ से परिचित कराया जाता है और दूसरे नियंत्रित समूह को यथावत छोड़ दिया जाता है। फिर, तीनों समूहों का पर्यवेक्षण कर निष्कर्ष प्राप्त किए जाते हैं।
(iv) तीन नियंत्रित समूहों के साथ प्रयोग- इसमें दो की जगह तीन नियंत्रित एवं एक प्रयोग समूह पर अध्ययन किया जाता है। इस प्ररचना का सुझाव सोलोमन (Solomon) ने दिया था। इसमें नियंत्रित समूह II एवं III की पूर्वमाप नहीं की जाती है और नियंत्रित समूह I एवं प्रयोग-समूह II में ही किया जाता है, और फिर चारों समूहों के अध्ययन के आधार पर निष्कर्ष किए जाते हैं।
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