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प्रयोग-प्रदर्शन विधि (Demonstration Method)
विज्ञान प्रयोग पर आधारित है। अतः विज्ञान शिक्षण में इस बात पर विशेष रूप से बल दिया जाता है कि छात्र जो कुछ भी सीखे वह प्रयोग के आधार पर सीखे। प्रयोग व्यवस्था की पूर्ति करते हैं। किसी भी अस्पष्ट कथन को प्रयोग प्रदर्शन द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। यदि छात्रों को यह दिखाना है कि धातुओं को गर्म करने से उनमें प्रसार होता है तो इसको छल्ले-गेंद वाले यन्त्र के प्रयोग द्वारा भली प्रकार दिखाकर समझाया जा सकता है। इस विधि में छात्र कानों से प्रयोग के विषय में सुनते जाते हैं तथा आँखों से देखते जाते हैं। प्रयोग-प्रदर्शन विधि में व्याख्यान विधि की कमी को पूरा किया जाता है। व्याख्यान विधि से छात्र केवल निष्क्रिय श्रोता बन कर बैठे रहते हैं, जबकि प्रयोग-प्रदर्शन विधि में उत्साहित तथा सक्रिय होकर भाग लेते हैं। माध्यमिक स्तर तक की विज्ञान कक्षाओं के लिये यह विधि सर्वोत्तम है।
प्रयोग-प्रदर्शन विधि के गुण
- इसके अपनाने से कक्षा का वातावरण सक्रिय और सजग रहता है।
- यह विधि छात्रों की निरीक्षण शक्ति का विकास करती है।
- अध्यापक तथा छात्र दोनों सक्रिय रहते हैं।
- प्रयोग विधि प्रत्यक्ष ज्ञान प्रदान करने की सबसे सरल विधि है।
- यह रोचक विधि है तथा छात्रों में प्रयोगात्मक प्रवृत्ति का विकास करती है।
- शिक्षक के श्रम की बचत होती है।
- यह विधि धन और समय की बचत करती है। कम उपकरणों द्वारा ही अध्यापक पूरी कक्षा को प्रयोग करके दिखा देता है। दूसरे, अध्यापक स्वयं प्रयोग करता है। अतः समय भी कम लगता है।
- इस विधि में स्थूल से सूक्ष्म की ओर चला जाता है। अतः यह मनोवैज्ञानिक विधि है।
प्रयोग-प्रदर्शन विधि के दोष
- कक्षा में जहाँ कि छात्रों की संख्या अधिक होती है, यह विधि अधिक प्रभावशाली नहीं होती।
- इस विधि में छात्रों को यन्त्रों तथा उपकरणों के प्रयोग का अवसर नहीं मिलता।
- इस विधि में छात्रों की अपेक्षा शिक्षक अधिक क्रियाशील रहता है।
- प्रयोग प्रदर्शित करते समय शिक्षक इतना लीन हो सकता है कि उसे यह ध्यान ही नहीं रहे कि छात्र प्रयोग को भली प्रकार समझ रहे हैं अथवा नहीं।
- यह आवश्यक नहीं कि छात्र प्रयोग के समस्त भाग को ध्यान से देखते या सुनते रहें।
- प्रयोग में समस्त छात्रों का सहयोग नहीं लिया जा सकता।
- छात्रों की व्यक्तिगत कठिनाइयों की उपेक्षा होती है।
प्रयोग-प्रदर्शन विधि के लिये सुझाव
1. छात्रों के सामने प्रयोग प्रदर्शन करने से पूर्व शिक्षक को स्वयं अभ्यास कर लेना चाहिये। प्रयोग कभी असफल नहीं होना चाहिये।
2. प्रयोग प्रदर्शन को सफल बनाने के लिये शिक्षक को समस्त वैज्ञानिक यन्त्रों तथा उपकरणों का ज्ञान होना चाहिये।
3. प्रयोग में आने वाले उपकरण आकार में इतने बड़े होने चाहिये कि कक्षा के समस्त छात्र सरलता से उन्हें देख सकें।
4. कक्षा में प्रयोग प्रदर्शन करने से पूर्व प्रयोग में आने वाले समस्त उपकरणों तथा यन्त्रों को प्रदर्शन मेज पर रख देना चाहिये। प्रयोग करते समय बीच-बीच में से उठकर जाना अनुचित है।
5. प्रदर्शन किसी समस्या को हल करने या अवधारणा को स्पष्ट करने में सहायता पहुँचाने वाले होने चाहियें।
6. प्रयोग अधिक लम्बे न हों। छात्र प्रयोग के परिणाम के लिये अधिक उत्सुक रहते हैं, अतः प्रयोग ऐसे किये जायें, जिनके परिणाम शीघ्र निकल सकें।
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