शिक्षण विधियाँ / METHODS OF TEACHING TOPICS

व्याख्यान विधि (Lecture Method) | व्याख्यान विधि के गुण | व्याख्यान विधि के दोष | व्याख्यान विधि के लिये सुझाव

व्याख्यान विधि (Lecture Method) | व्याख्यान विधि के गुण | व्याख्यान विधि के दोष | व्याख्यान विधि के लिये सुझाव
व्याख्यान विधि (Lecture Method) | व्याख्यान विधि के गुण | व्याख्यान विधि के दोष | व्याख्यान विधि के लिये सुझाव

व्याख्यान विधि (Lecture Method)

व्याख्यान विधि सबसे सरल विधि है। प्राचीन काल में जब मुद्रण कला का आविष्कार नहीं हुआ था, विद्यालयों में व्याख्यान विधि का ही प्रयोग किया जाता था। शिक्षक पाठ्य पुस्तक तथा परम्परागत अर्जित ज्ञान के आधार पर विद्यार्थियों के समक्ष व्याख्यान देता जाता था और विद्यार्थी चुपचाप बैठे ध्यान से सुना करते थे। इस विधि का प्रयोग समस्त स्तरों पर किया जाता था, परन्तु शिक्षक भाषण देते समय यह नहीं देख पाता था कि विद्यार्थी विषय को भली प्रकार समझ रहे हैं या नहीं। आजकल इस विधि का प्रयोग निम्न तथा माध्यमिक कक्षाओं के लिये अनुचित ठहरा दिया गया है। यह एक अमनोवैज्ञानिक विधि है। इसका प्रयोग केवल विश्वविद्यालय स्तर पर ही किया जा सकता है। यह विधि विद्यार्थियों को केवल सूचना प्रदान करती है, उन्हें स्वयं ज्ञान प्राप्त करने के लिये प्रेरित नहीं करती। इसमें विद्यार्थियों की रुचि तथा जिज्ञासाओं की भी अवहेलना की जाती है।

व्याख्यान विधि के गुण

  1. इस विधि का प्रयोग करने से विषय-वस्तु को संगठित रूप से तथा एक निश्चित क्रम से पढ़ाया जा सकता है।
  2. कम समय में पाठ्यक्रम समाप्त किया जा सकता है।
  3. अल्प समय में अधिक सूचनायें दी जा सकती हैं।
  4. इस विधि को प्रदर्शन से जोड़कर प्रयोग किया जाये तो इसका मूल्य और भी अधिक बढ़ जाता है। अतः प्रसंगानुसार प्रयोग प्रदर्शन भी किया जाना चाहिये।
  5. शिक्षक के लिये एक सरल विधि है।
  6. विचारों का क्रम टूटता नहीं है।

व्याख्यान विधि के दोष

  1. इस विधि में केवल सूचनायें ही प्राप्त होती हैं, जो विज्ञान में विशेष आवश्यक नहीं हैं।
  2. सभी शिक्षकों का व्याख्यान प्रभावशाली नहीं होता।
  3. विचारों का एक के बाद एक आना, शीघ्रता से होता है, जिसे छोटी कक्षाओं के बालकों का मस्तिष्क स्वीकार नहीं कर पाता है। इस कारण अतिरिक्त पढ़ने की आवश्यकता होती है।
  4. शिक्षक छात्र या शिक्षक कक्षा सम्बन्ध न्यूनतम होता है।
  5. छात्रों को सक्रिय होने का कोई अवसर नहीं है।
  6. केवल श्रवण ज्ञानेन्द्रिय का प्रयोग होता है, जबकि अन्य ज्ञानेन्द्रिय सुस्त रहती हैं।

व्याख्यान विधि के लिये सुझाव

शिक्षक यदि इस विधि का प्रयोग करे तो उसे बीच-बीच में आवश्यकतानुसार प्रदर्शन का भी प्रयोग करना चाहिये। यदि शिक्षक किसी स्थान पर इस विधि का प्रयोग करे तो उसे एक पाठ सूत्र बना लेना चाहिये, जिससे कि वह पाठ्य-वस्तु को संगठित रूप से पढ़ा सके।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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