बाल मनोविज्ञान / CHILD PSYCHOLOGY

बाल-मनोविज्ञान की अध्ययन विधियाँ | Study Methods of Child Psychology in Hindi

बाल-मनोविज्ञान की अध्ययन विधियाँ | Study Methods of Child Psychology in Hindi
बाल-मनोविज्ञान की अध्ययन विधियाँ | Study Methods of Child Psychology in Hindi

बाल मनोविज्ञान की अध्ययन विधियाँ कौन-कौन सी हैं ? वर्णन कीजिये।

बाल-मनोविज्ञान की अध्ययन विधियाँ

बाल-मनोविज्ञान का अध्ययन करने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने कई विधियों का विकास किया है। इन विधियों से जो परिणाम प्राप्त होते हैं, उन्हें विश्वसनीय तथा वैध कहा जा सकता है। बाल मनोविज्ञान की अध्ययन विधियाँ निम्न प्रकार हैं-

1. नियन्त्रित निरीक्षण विधि- नियन्त्रित निरीक्षण विधि बालक के निजी व्यवहार का अंकन करने में सहायक होती है। इसमें निरीक्षणकर्त्ता चैकलिस्ट या सिम्पटन शीट के द्वारा बालक के व्यवहार का अंकन करता है। इस विधि की अनेक प्रविधियों में से मुख्य इस प्रकार हैं

(a) सामुदायिक सर्वेक्षण – इस विधि द्वारा किसी समुदाय में रहने वाले बालकों का अध्ययन किया जाता है। इससे किसी विशेष समुदाय के बालकों में विशेष व्यवहार क्यों उत्पन्न होता है, यह अन्य समुदायों के बालकों के व्यवहार से क्यों भिन्न होता है, की जानकारी मिलती है।

(b) चैक-लिस्ट – यह बालकों के विभिन्न प्रकार के विकास तथा व्यवहारों की एक सूची होती है। इस सूची में दिये गये पदों के अनुसार जाँच करके ही व्यवहार तथा विकास का निरीक्षण किया जाता है।

(c) परिस्थिति विश्लेषण – विभिन्न परिस्थितियों में घटने वाले बालक के व्यवहार का अध्ययन इस विधि द्वारा किया जाता है। माता-पिता, शिक्षक, साथी, समुदाय आदि सभी पक्षों के साथ बालक के व्यवहार में क्यों भिन्नता पाई जाती है, इस बात की जानकारी उन परिस्थितियों का विश्लेषण करने से होती है, जिनमें निर्दिष्ट व्यवहार किया जाता है।

(d) समय निर्देशन – इस विधि द्वारा किसी निर्धारित समय में बालक के विकास तथा व्यवहार का निरीक्षण किया जाता है। एक वर्ष में अनेक बालकों के शारीरिक विकास में भिन्नता तथा उसके कारकों की जानकारी इस विधि से हो जाती है।

उपर्युक्त चारों प्रविधियों की सीमाएँ इस प्रकार हैं-

  1. इन विधियों द्वारा एक साथ बहुत से बालकों का अध्ययन नहीं किया जा सकता।
  2. इनका प्रयोग प्रशिक्षित व्यक्ति ही कर सकते हैं।
  3. इन विधियों का प्रयोग करते समय वातावरण को नियन्त्रित करने में कठिनाई आती है।

2. प्रश्नावली विधि- विभिन्न प्रश्नों के उत्तर बालकों से प्राप्त किये जाते हैं। उनके उत्तरों के अध्ययन पर बालक के विकास का अध्ययन किया जाता है। जी० स्टेलने हॉल ने सर्वप्रथम 123 प्रश्नों की सूची बोस्टन स्कूल के बच्चों का अध्ययन करने के लिए तैयार की। पाइल्स, स्टोल्ज आदि ने भी इस विधि का आश्रय लिया। इस विधि की सीमाएँ इस प्रकार हैं-

  1. बच्चे प्रश्नों का भाव कठिन भाषा होने के कारण समझ नहीं पाते,
  2. काम (Sex) सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल पाते,
  3. जानबूझकर गलत उत्तर आ जाते हैं,
  4. माता-पिता पक्षपातपूर्ण उत्तर देते हैं।

3. जीवन वृत्तान्त विधि- इस विधि द्वारा बालकों के जीवन-क्रम का लेखा-जोखा सतर्कतापूर्वक रखा जाता है। बालक के जन्म के समय होने वाली घटनाओं का संकलन किया जाता है। माता-पिता, अभिभावक तथा रिश्तेदारों से बालक के बारे में सूचना मांगी जाती है। 1885 ई० में प्रेयर ने जर्मनी में इस विधि का प्रयोग किया था।

4. मनोभौतिकी विधि– मनोभौतिकी विधि द्वारा मन तथा शरीर के सम्बन्धों के आधार पर व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। शरीर के विकास के साथ-साथ शरीर की अन्य मानसिक शक्तियों का विकास भी होता है। इसी अध्ययन पर बिने ने बुद्धि-लब्धि की कल्पना की तथा मानसिक आयु का विचार प्रतिस्थापित किया।

इसी विधि में उद्दीपन, अनुक्रिया के मध्य होने वाले सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। किसी भी उद्देश्य से शरीर तथा व्यवहार में क्या परिवर्तन होते हैं, यह जानना ही इस विधि का उद्देश्य है। इस विधि के द्वारा प्राणी की अवसीमा की सत्यता को जानने का प्रयास किया जाता है।

5. आत्मनिष्ठ अंकन विधि- आत्मनिष्ठ अंकन विधि में बालक के अनौपचारिक व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। इससे बालक के बारे में विभिन्न महत्त्वपूर्ण सूचनायें प्राप्त होती हैं। यह विधि सरल है तथा इससे प्राप्त सूचनाओं का उपयोग तुलना करने में किया जाता है।

6. चिकित्सात्मक विधि– चिकित्सात्मक विधि साधारणतया विशिष्ट अधिगम, व्यक्तित्व या आचरण सम्बन्धी जटिल प्रन्थियों के अध्ययन के लिए काम में लाई जाती है और उसमें विचाराधीन समस्या के अनुकूल विविध क्लिनिकल कार्य पद्धतियाँ तथा प्रविधियाँ इस्तेमाल की जाती हैं। उनका लक्ष्य इस बात को पहचानना अथवा मालूम करना होता है कि उनमें ग्रन्थि किन कारणों से पैदा हुई है, और पात्र को क्या सहायता दी जानी चाहिये ? बालकों में कभी-कभी असामान्य व्यवहार पाया जाता है। यदि इस असामान्य व्यवहार का समय रहते उपचार नहीं किया जाता तो उसमें मानसिक विक्षिप्तता विकसित होने लगती है। चिकित्सात्मक विधि द्वारा ही ऐसे बालकों का उपचार किया जाता है।

7. सांख्यिकी विधि- सांख्यिकी विधि से प्राप्त आँकड़ों का विश्लेषण किया जाता है तथा परिणामों की विश्वसनीयता तथा वैधता की जाँच की जाती है।

8. प्रयोगात्मक विधि- प्रयोगात्मक विधि का उपयोग नियोजित वातावरण में बालकों के विकास के अध्ययन में किया जाता है। इस विधि में एक वर्ग नियन्त्रित रहता है और एक प्रयोगात्मक दोनों वर्गों से प्राप्त परिणामों की तुलना की जाती है। यह विधि मनोवैज्ञानिक, विश्वसनीय तथा वैध है।

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Anjali Yadav

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