मातृभाषा का अर्थ बताइए। मातृभाषा शिक्षण के उद्देश्य एवं लक्ष्य क्या हैं ? अथवा हिन्दी शिक्षण के सामान्य उद्देश्य बताइए। कौशलात्मक उद्देश्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
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मातृभाषा का अर्थ
बालक अपने परिवार में अपने जन्मकाल से ही जिस भाषा का अर्जन करता है, वही उसकी मातृभाषा होती है। कुछ बड़े होने पर बालक इसी भाषा में अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ दूसरों से माँगता है, अपने भाव दूसरों से प्रकट करता है तथा अन्य लोगों की बातें भी इसी भाषा में समझता है। वास्तव में मातृभाषा ही व्यक्ति को उसका सामाजिक स्वरूप प्रदान करती है। उसे संस्कृति व परम्परा से परिचित कराती है तथा उसे मानवीयता का बोध कराती है। इस प्रकार मातृभाषा ही व्यक्ति के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास की आधारशिला है।
मातृभाषा का बालक के जीवन में अत्यधिक महत्त्व है। माँ के दूध से तो केवल शरीर की वृद्धि होती है लेकिन मातृभाषा से बालक का हृदय तथा मस्तिष्क विकसित होता है। इसी के द्वारा उसमें सामाजिक प्रवृत्तियाँ विकसित हो पाती हैं।
हिन्दी शिक्षण के सामान्य उद्देश्य
हिन्दी शिक्षण के सामान्य उद्देश्य की चर्चा करते समय इसके मातृभाषा के रूप का ही यहाँ पर विशेष ध्यान रखा जा रहा है। मातृभाषा के रूप में हिन्दी शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
(1) शुद्ध, सरल, स्पष्ट एवं प्रभावशाली भाषा में छात्र अपने भावों एवं अनुभूति की अभिव्यक्ति कर सकें।
(2) छात्रों को इस योग्य बनाना कि वे उचित भाव-भंगिमाओं के साथ वाचन करके काव्य कला एवं अभिनय कला का आनन्द प्राप्त कर सकें और साथ ही अपनी मानसिक सुख-दुःखात्मक भावनाओं के प्रति सन्तुष्टि प्राप्त कर सकें।
(3) ज्ञान प्राप्त करने और मनोरंजन के लिए पढ़ना-लिखना सिखाना, गद्य-पद्य में निहित आनन्द और चमत्कार से परिचय कराना, पुस्तकों में निहित ज्ञान भण्डार का अवलोकन करना तथा बालक की स्वाध्ययनशीलता के प्रति रुचि उत्पन्न करना मातृभाषा शिक्षण के महत्त्वपूर्ण उद्देश्य हैं।
(4) क्रमबद्ध विचार प्रणाली और भावाभिव्यंजन में उन्हें दक्ष बनाना।
(5) बालकों के शब्दों, वाक्यांशों तथा लोकोक्तियों आदि के दोष में वृद्धि करना।
(6) उनको शुद्धता एवं गति का निरन्तर विकास करते हुए वाचन का अभ्यास कराना।
(7) ज्ञान क्षेत्र तथा विवेक का निरन्तर विकास करते हुए छात्र-छात्राओं का चरित्र निर्माण करना।
(8) विभिन्न शैलियों का परिचय कराकर अपनी उपयुक्त शैली के विकास में सहायता करना ।
(9) उन्हें सुसाहित्य के सृजन की प्रेरणा देना जिससे वे अपने अवकाश के समय के सदुपयोग द्वारा अपने व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन को सुसंस्कृत एवं सुखी बना सकें।
(10) बालकों को मानव स्वभाव एवं चरित्र के अध्ययन का अवसर प्रदान करना।
(11) उन्हें भावानुकूल भाषा प्रयोग, स्वर निर्माण एवं अंग-संचालन की कला का अभ्यास करना।
उद्देश्यों का वर्गीकरण
उपर्युक्त उद्देश्यों को देखने से यह ज्ञात होता है कि इसमें से कुछ उद्देश्य ज्ञानात्मक हो तो कुछ कौशलात्मक, कुछ रसात्मक एवं सृजनात्मक हैं तो कुछ सम्बद्ध अभिवृत्तियों से हैं। इस प्रकार इन उद्देश्यों को निम्नलिखित पाँच वर्गों में रख सकते हैं-
- ज्ञानात्मक उद्देश्य,
- कौशलात्मक उद्देश्य,
- रसात्मक उद्देश्य,
- सर्जनात्मक उद्देश्य,
- अभिवृत्यात्मक उद्देश्य।
(1) ज्ञानात्मक उद्देश्य- ज्ञानात्मक उद्देश्य का तात्पर्य यह है कि क्षेत्रों की भाषा एवं साहित्य की कुछ बातों का ज्ञान देना। प्रायः निम्नलिखित बातों की जानकारी देना ज्ञानात्मक उद्देश्य के अन्तर्गत आता है-
(क) ध्वनि शब्द एवं वाक्य रचना का ज्ञान देना।
(ख) उच्चतर माध्यमिक स्तर पर निबन्ध, कहानी, उपन्यास, नाटक, काव्यगीत, गद्य गीत आदि की साहित्य विधियों का ज्ञान देना।
(ग) सांस्कृतिक, पौराणिक, व्यावहारिक एवं अनुश्रुतियों, कथाओं, तथ्यों, घटनाओं आदि का ज्ञान देना तथा लेखकों की जीवनगत रचनागत विशेषताओं एवं समीक्षा सिद्धान्तों का उच्च माध्यमिक स्तर पर ज्ञान देना। यह ज्ञान विषय-वस्तु से सम्बन्धित है।
(घ) रचना कार्य के मौखिक एवं लिखित कार्यों का ज्ञान देना जिसमें वार्तालाप, सस्वर वाचन, अन्त्याक्षरी भाषण, वाद-विवाद संवाद, साक्षात्कार, निबन्ध, सारांशीकरण, कहानी, आत्मकथा, पत्र, तार आदि सम्मिलित हैं।
(ड़) उच्चतर माध्यमिक स्तर पर छात्रों को हिन्दी साहित्य के इतिहास की रूपरेखा से भी परिचित कराना चाहिए।
(2) कौशलात्मक उद्देश्य- इन उद्देश्यों का सम्बन्ध भाषा के कौशलों से है जिसमें पढ़ना, लिखना, सुनना, बोलना, अर्थग्रहण करना आदि आते हैं। कौशलात्मक उद्देश्यों के अन्तर्गत प्रायः निम्नलिखित बातें आती हैं-
- सुनकर अर्थ ग्रहण करना।
- शुद्ध एवं स्पष्ट वाचन ग्रहण करना।
- गद्य-पद्य पढ़कर अर्थ ग्रहण करना।
- बोलकर भावाभिव्यक्ति करना।
- लिखकर भावाभिव्यक्ति करना।
(3) रसात्मक एवं समीक्षात्मक उद्देश्य – इन उद्देश्यों में दो उद्देश्य आते हैं-
- साहित्य का रसास्वादन, और
- साहित्य की सामान्य आलोचना।
इन उद्देश्यों का सम्बन्ध मुख्यतः उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में होता है।
(4) सर्जनात्मक उद्देश्य- सर्जनात्मक उद्देश्य का तात्पर्य यह है कि छात्रों को साहित्य सृजन की प्रेरणा देना और उन्हें रचना में मौलिकता लाने की योग्यता का विकास करने के लिए प्रेरित करना। इस कार्य के लिए निबन्ध, कहानी, संवाद, पत्र, उपन्यास एवं कविता को माध्यम बनाया जा सकता है।
(5) अभिवृत्यात्मक उद्देश्य- इस उद्देश्य का तात्पर्य यह है कि छात्रों को उपयुक्त दृष्टिकोण एवं अभिवृत्तियों का विकास किया जाय। हिन्दी शिक्षण माध्यम से इस सम्बन्ध में दो उद्देश्यों की प्राप्ति होनी चाहिए-
- भाषा और साहित्य में रुचि,
- सद्वृत्तियों का विकास।
भाषा और साहित्य में रुचि लेने के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए छात्र में निम्नलिखित योग्यताओं का विकास आवश्यक है-
- पाठ्यक्रम के अतिरिक्त अन्य पुस्तकें पढ़ना।
- अच्छी-अच्छी कविताएँ कण्ठस्थ करना।
- कक्षा और विद्यालय की पत्रिका में योगदान देना ।
- कक्षा और विद्यालय में होने वाले साहित्यिक कार्यक्रमों में भाग लेना।
- विद्यालय से बाहर होने वाले साहित्यिक कार्यक्रमों में भाग लेना।
- साहित्यकारों एवं साहित्यिक महत्त्व के चित्र एकत्रित करना ।
- साहित्यिक महत्त्व की पत्रिकाएँ एकत्रित करना ।
- अपना एक पुस्तकालय बनाना ।
- साहित्य संस्थाओं का सदस्य बनाना।
- अपने मित्रों तथा संसर्ग में आने वाले व्यक्तियों में भाषा और साहित्य के प्रति रुचि जाग्रत करना ।
सद्वृत्तियों का विकास करने के अर्थ
छात्रों में आस्था, श्रद्धा, साहित्य प्रेम, सहृदयता एवं संवेदनशीलता का विकास करना, इसके लिए निम्नलिखित योग्यताओं का विकास आवश्यक है
- संस्कृत और सौन्दर्य में आस्था रखना।
- आदर्शों के प्रति श्रद्धा रखना।
- सामाजिक सामान्यताओं में आस्था रखना।
- साहित्य प्रेम तथा मानव प्रेम की ओर अग्रसर होना।
- वातावरण के प्रति संवेदनशील व सहृदय होना ।
- सद्वृत्तियों के समस्त विचार रखना।
- सद्वृत्तियों के अनुसार क्रियाएँ करना ।
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