मानवाधिकार एवं पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र के कार्यों का वर्णन कीजिए।
मानवाधिकार एवं पर्यावरण पर U.N. के कार्य स्टॉकहोम सम्मेलन, 1972 की उपर्युक्त संस्तुतियों तथ निर्णयों में से कुछ कार्यान्वयन संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1972 में हो अपने 27 वें सत्र में कर दिया। इस सम्बन्ध में महासभा का प्रस्ताव 2997 (xxvii) उल्लेखनीय है। इस प्रस्ताव द्वारा महासभा ने 58 सदस्यीय पर्यावरण प्रोग्रामों के लिये अधिशासी परिषद् (UNEP) स्थापित की। इस परिषद् का पहला सत्र जून, 1973 में जेनेवा में हुआ। यह परिषद् वास्तव में पर्यावरण कार्यों का केन्द्र, उत्प्रेरक तथा समन्वयक बन गई है। मई, 1975 को अपने तीसरे सत्र में स्टाकहोम सम्मेलन के कार्यान्वयन करने के सम्बन्ध में नीति आदि अपनाने के सम्बन्ध में सहमति हो गई । इसने (HABITAT) अर्थात् मानवीय भू व्यवस्था पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के 50 लाख डालर का बजट निर्धारित किया। समुद्र विधि पर सम्मेलन से प्रार्थना की। कि वह सामुद्रिक पर्यावरण के संरक्षण के लिये सन्धियों में प्रभावशाली प्रावधान रखे तथा हुये रेगिस्तानों को रोकने हेतु 1977 के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की तैयारी तथा प्रोग्रामों हेतु 5 लाख हजार डालर का बजट निर्धारित किया।
पर्यावरण के क्षेत्र में वर्ष 1975 बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ क्योंकि राज्यों द्वारा अनुसमर्थनों के परिणामस्वरूप सात विश्व स्तर की सन्धियों ने 1975 में लागू होकर विधि का रूप ग्रहण किया (1) संकटापन्न या जोखिम में पड़े जंगली पेड़-पौधों के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का अभिसमय (The Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Life Fauna and Flora, 1973 🙂 (2) अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की नम विशेष कर पानी में रहने वाले पक्षियों के रहने के स्थान पर अभिसमय, 1971 (The Convention on Wet lands of International Importance Especially as Waterfowl Habitat, 1971); (3) विश्व सांस्कृतिक तथा प्राकृतिक पैतृकी के संरक्षण से सम्बन्धित अभिसमय, 1972 (The Convention Concerning the Protection of the World Cultural and Natural Heritage, 1972); (4) तेल प्रदूषण के मामलों में हस्तक्षेप से सम्बन्धित अन्तर्राष्ट्रीय अभिसमय, 1969 (The International Convention relating to Intervention on the High Seas in Case of Oil Pollution Casualties. 1969); (5) तेल प्रदूषण से नुकसान के लिये सिविल दायित्व पर अन्तर्राष्ट्रीय अभिसमय, 1969, (The International Convention on Civil Liability for Oil Pollution Damage, 1969); (6) जलपोतों तथा हवाई जहाजों द्वारा ढेर करने से सामुदायिक प्रदूषण को बचाने के लिये अभिसमय, 1973, (The Convention for the Prevention of Marine Pollution by Dumping from Ships and Aircraft, 1973); (7) कूड़ा-कर्कट तथा अन्य सामान ढेर करने से सामुदायिक प्रदूषण को बचाने के लिये अभिसमय, 1972 (The Convention for the Prevention of Marine Pollution by Dumping of Wastes and other Matter, 1972)।
मनुष्य की मौलिक आवश्यकताओं को जुटाने का ध्यान रखते हुए पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिये ऐसे बड़े स्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है जो अभी तक इतिहास में नहीं देखा गया है। उपर्युक्त सन्धियों का अनुसमर्थन तथा लागू होना इस दिशा में एक उत्साहवर्द्धक लक्षण है।
पर्यावरण प्रोग्रामों की अधिशासी परिषद् का सबसे बड़ा योगदान 1976 में हैंबोटेट (Habitat) सम्मेलन का बुलाना था। पर्यावरण के क्षेत्र में एक अन्य महान उपलब्धि नैरोबी (केन्या) में 29 अगस्त से 3 सितम्बर 1977 तक रेगिस्तान को दूर करने हेतु संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का बुलाया जाना था। 19 दिसम्बर, 1977 की महासभा ने मानवीय पर्यावरण से सम्बन्धित छः प्रस्ताव पारित किये। एक प्रस्ताव द्वारा महासभा ने 1977 में ही हुए रेगिस्तान को रोकने के सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की रिपोर्ट को अस्वीकार किया। इसके अतिरिक्त, 1978-79 में कार्यवाही की योजना के कार्यान्वयन हेतु हेतु पर्यावरण-प्रोग्रामों की अधिशासी परिषद् के सचिवालय के भीतर ही एक इकाई स्थापित करने का निर्णय लिया।
पर्यावरण प्रोग्रामों के लिए संयुक्त राष्ट्र अधिशासी परिषद ने संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के साथ बेहतर तालमेल स्थापित करने के लिये पूर्ण संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के साथ मिलकर व्यापक मध्यम अवधि पर्यावरण प्रणाली प्रोग्राम (Th’ System Wide- Medium Term Environment Programme of SWMTEP) तैयार की। 1982 में इसका अन्तिम रूप से विकास किया गया। तथा इसे संयुक्त राष्ट्र प्रणाली का पर्यावरण प्रोग्राम कहा जा सकता है। इसकी नीतियों तथ उद्देश्यों को कार्यान्वित करने की मध्य अवधि 1984-89 है। इसके प्रोग्राम पर्यावरण प्रोग्रामों के लिए संयुक्त राष्ट्र अधिशासी परिषद् के प्रोग्रामों के समान हैं। इसके प्रोग्राम 15 शीर्षकों में विभाजित हैं, जैसे पर्यावरण तथा विकास, पर्यावरण जागृति, वायुमण्डल, समुद्र जल, शिला क्षेत्र (Litho Sphire), प्राकृतिक घोर विपत्ति, भू-पर्यावरण प्रणाली (Terrestrial Eco Systems), जीवित संसाधन, स्वास्थ्य तथा कल्याण, कार्य पर्यावरण, मानवीय बन्दोबस्त, ऊर्जा, उद्योग तथा यातायात एवं शस्त्रों की होड़ तथा पर्यावरण। प्रत्येक उपर्युक्त प्रोग्राम दो या उससे अधिक उन प्रोग्रामों में विभाजित हैं तथा इस प्रकार कुल 38 प्रोग्राम हैं। SWMTEP की एक नवीनता यह है कि पहली बार पर्यावरण प्रोग्राम पूर्ण संयुक्त राष्ट्र प्रणाली का भाग तथा संस्थाओं की विनिर्दिष्ट जिम्मेदारियों की सूची बनाई गई है।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि (UNEP) की भविष्य के प्रोग्रामों की योजना बड़ी ही प्रभावशाली प्रतीत होती है। परन्तु इसका सही मूल्याकन इसकी उपलब्धियों के आधार पर ही किया जा सकेगा।
मई, 29, 1984 UNEP की परिषद् ने भारत का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया कि पर्यावरण योजना में जनसंख्या को भी सम्मिलित किया जायेगा।
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